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अटक  : स्त्री० [हिं० अटकना] १. अटकने की क्रिया या भाव। २. कोई ऐसी बात जिसके कारण रुक जाना पड़े। अड़चन। बाधा। रुकावट। ३.ऐसी स्थिति जिसके कारण आगे न बढ़ा जा सके। ४. उलझन। ५. संकोच। ६. परहेज। बचाव। पद—अटक-भटक=भूल-भुलैयाँ।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
अटकन  : स्त्री० =अटक। पद—अटकन-भटकन=भूल-भुलैयाँ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अटकना  : अ० [सं० आटक्डन] १. चलते-चलते अथवा कोई काम करते रुकना या ठहरना। उदाहरण—यहि आसा अटक्यो रहै, अलि गुलाब के मूल।—बिहारी। २. किसी कार्य, सोच-विचार, अभिदेश आदि के लिए रुकना। ३. किसी कठिनाई या बाधा के कारण किसी कार्य या क्रिया का रुकना। जैसे—उच्चारण या बात करते समय अटकना। ४. झगड़ा करना। उलझना।
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अटकर  : स्त्री०=अटकल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अटकल  : स्त्री० [सं० अर्ध+कल् किंवा अन्तर+कल्गु० अठकल, सिं० अट्कल्, मरा० अटकल] (भाव० अटकलबाजी) १. बिना किसी निश्चित परिकलन या माप के कल्पना द्वारा बताई हुई लगभग ठीक गणना या मात्रा। २. गुण-दोष का अनुमान या कल्पना करने की शक्ति। पहचान। (गेस)
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अटकल-पच्चू  : वि० [हिं० अटकल+पच्चू ?] केवल कल्पना या अनुमान के आधार पर जाना या सोचा-समझा हुआ (फलतः ऊट-पटाँग या बिना सिर पैर का)।
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अटकलना  : स० [हिं० अटकल] अटकल लगाना। अंदाज या अनुमान करना।
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अटका  : पुं० [उड़ि० आटिका=हाँड़ी] जगन्नाथ जी को भोग के रूप में चढ़ाया हुआ भात और उसकी दक्षिणा। पुं० १. अटक। २. कमी।
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अटकाना  : स० [हिं० ‘अटकना' का स०] १. किसी को जाने, बढ़ने या कोई काम न करने देना। रोकना। २. ठहराना। ३. अडंगा लगाना। बाधा पहुँचाना। ४. किसी के साथ अस्थायी रूप से लगाये रखने के लिए कुछ जोड़ना, बाँधना या लगाना।
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अटकाव  : पुं० [हिं० अटक] १. अटकने या अटकाने की क्रिया या भाव। २. रुकावट। रोक ३. अड़चन। बाधा। ४. विघ्न।
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