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शब्द का अर्थ

कुश  : पुं० [सं० कु√शी (सोना)+ड] [स्त्री० कुशा, कुशी] १. एक प्रकार की प्रसिद्ध घास जो पवित्र मानी जाती है और जिसका उपयोग धार्मिक कृत्यों, यज्ञों आदि में होता है। २. जल। पानी। ३. एक राजा जो उपरिचर वसु का पुत्र था। ४. भगवान राम के एक पुत्र का नाम। ५. पुराणानुसार के द्वीप। ६. बलाकाश्व का पुत्र। ७. हल की फाल। कुसी। वि० १. कुत्सित। २. पागल।
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कुश-कंडिका  : स्त्री० [तृ० त०] यज्ञ के समय अग्नि की वेदी या कुंड के चारों ओर कुश रखने की एक प्रक्रिया।
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कुश-केतु  : पुं० [ब० स०] १. ब्रह्मा। २. कुशध्वज (राजा)।
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कुश-द्वीप  : पुं० [मध्य० स०] १. सात द्वीपों में से एक जो घृत समुद्र से गिरा हुआ माना गया है। (पुराण) २. मध्यकालीन साहित्य में प्राचीन हब्स देश (हब्शियों का देश) जिसे आजकल एबिसीनिया कहते हैं।
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कुश-ध्वज  : पुं० [ब० स०] १. राजा ह्रस्वरोम का पुत्र और सरीध्वज जनक का छोटा भाई। २. बृहस्पति के पुत्र एक ऋषि।
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कुश-नाभ  : पुं० [ब० स०] राजा कुश का पुत्र और रामचन्द्र का पौत्र।
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कुश-पत्रक  : पुं० [ब० स०] फोड़ा चीरने का एक धारदार अस्त्र।
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कुश-पलवन  : पुं० [ब० स०] महाभारत में उल्लिखित एक तीर्थ।
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कुश-मुद्रिका  : स्त्री० [मध्य० स०] कुश नामक घास की बनी हुई एक प्रकार की अँगूठी जो धार्मिक कार्यों के समय पहनी जाती है। पवित्री।
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कुश-वन  : पुं० [मध्य० स०] ब्रजभूमि का एक वन।
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कुश-स्तरण  : पुं० [ष० त०] यज्ञकुंड के चारों ओर कुश बिछाने की क्रिया या भाव।
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कुश-स्थली  : स्त्री० [ष० त०] १. द्वारकापुरी। २. विंध्यप्रदेश में स्थित एक प्राचीन नगरी। कुशावती।
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कुश-हस्त  : वि० [ब० स०] जो श्राद्ध, तर्पण या दानादि के लिए हाथ में कुश लेकर उद्यत हो।
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कुशंडिका  : स्त्री० [सं० कुशम्√डी (प्राप्त होना)+क्विप्, विभक्ति का अलुक्+कन्-टाप्, ह्रस्व]=कुशकंडिका।
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कुशन  : पुं० [अं०] मोटा गद्दा।
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कुशप  : पुं० [सं०√कुश् (दीप्ति)+कपन् (बा)] पानी पीने का बरतन।
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कुशय  : पुं० [सं० कु√शी (सोना)+अच्] १. जलाशय। जलकुंड। २. पानी पीने का बरतन।
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कुशल  : वि० [सं० कुश+लच्] [भाव० कुशलता, कौशल, स्त्री० कुशला] १. (व्यक्ति) जो सब तरह के काम या बातें बहुत अच्छी तरह से करना जानता हो। भली भाँति कार्य संपादित करनेवाला। चतुर। होशियार। (स्किलफुल) २. (व्यक्ति) जिसने कोई काम अच्छी तरह करने की शिक्षा पाई हो। प्रशिक्षित तथा योग्य चतुर। (स्किल्ड) ३. पुण्यशील। पुं० [सं०] १. नीरोग तथा स्वस्थ होने की अवस्था या स्थिति। खैरियत। राजी-खुशी। जैसे—कुशल से तो हैं ? २. शिव। ३. कुशद्वीप का निवासी।
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कुशल-प्रश्न  : पुं० [ष० त०] किसी से यह पूछना कि आप कुशलपूर्वक या अच्छी तरह है न।
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कुशलता  : स्त्री० [सं० कुशल+तल्-टाप्] कुशल होने की अवस्था या भाव। २. चतुराई। होशियारी। ३. सकुशल या अच्छी तरह होने की अवस्था या भाव।
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कुशलाई  : स्त्री० दे० ‘कुशलता’।
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कुशलात  : स्त्री० [सं० कुशलता] किसी के कुशलपूर्वक या अच्छी तरह होने का समाचार।
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कुशली  : स्त्री० [?] १. अखुटा नामक वृक्ष। २. अमलोनी नामक वनस्पति।
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कुशली (लिन्)  : वि० [सं० कुशल+इनि] [स्त्री० कुशलिनी] १. जो कुशल हो। दक्ष। चतुर। २. नीरोग स्वस्थ।
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कुशवाहा  : पुं० [सं० कुशवाह] क्षत्रियों का एक भेद या वर्ग।
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कुशा  : स्त्री० [सं० कुश+टाप्] १. कुश नामक घास। (दे०) २. रस्सी। ३. एक प्रकार का मीठा नीबू। वि० [फा] १. खोलने या फैलानेवाला। जैसे—दिलकुशा। २. सुलझानेवाला। जैसे—मुश्किल कुशा।
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कुशाकर  : पुं० [सं० कुश-आ√कृ (बिखेरना)+अप्] यज्ञ की अग्नि।
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कुशाक्ष  : पुं० [कुश-आक्षि, ब० स०] बंदर।
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कुशांगुली (री) य  : स्त्री० [कुश-अंगुली (री) य, मध्य० स०] १. शुद्धता के विचार से अनामिका में पहनी जानेवाली ताँबे की मुँदरी। २. पवित्री। पैंती।
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कुशाग्र  : पुं० [कुश-अग्र, ष० त०] कुशा का अगला नुकीला भाग। वि० [सं०] कुश की नोक जैसा तीखा। अति तीक्ष्ण। नुकीला।
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कुशाग्र-बुद्धि  : वि० [ब०स] तीक्ष्ण बुद्धिवाला। जो बहुत जल्दी सब बातें समझ लेता हो।
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कुशादगी  : स्त्री० [फा०] कुशादा या विस्तृत होने की अवस्था या भाव। विस्तार।
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कुशादा  : वि० [फा०] [संज्ञा कुशादगी] १. चारों ओर से खुला हुआ या लंबा-चौड़ा। विस्तृत। २. फैला हुआ।
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कुशांब  : पुं० [सं० ] राजा कुश के पुत्र जिन्होंने कौशांबी नगरी बसाई थी।
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कुशांबु  : पुं० [सं० कुश-अंबु०, मध्य० स०] १. कुश के अगले भाग से टपकता हुआ जल जो पवित्र माना जाता है। २.=कुशांब।
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कुशारणि  : पुं० [कुश-अरणि, ब० स] दुर्वासा ऋषि।
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कुशावती  : स्त्री० [सं० कुश+मतुप्-ङीष्, म=व, दीर्घ] रामचन्द्र के पुत्र कुश की राजधानी।
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कुशावर्त  : पुं० [कुश-आवर्त, ब० स०] १. हरिद्वार में एक तीर्थ स्थान। २. एक ऋषि का नाम।
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कुशाश्व  : पुं० [कुश-अश्व, ब० स०] इक्ष्वाकु वंश का एक राजा।
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कुशासन  : पुं० [कुश-आसन, मध्य० स०] कुश नामक घास का आसन। कुश की चटाई।
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कुशिक  : पुं० [सं० कुश+ठन्-इक] १. एक प्राचीन आर्यवंश। २. उक्त वंश का व्यक्ति। ३. एक राजा जो गाधि के पिता और विश्वामित्र के दादा थे। ४. हल का अगला नुकीला भाग। फाल। कुसी। ५. बहेड़ा। ६. साखू या शाल नामक वृक्ष। ७. तेल की तलछट।
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कुशी (शिन्)  : वि० [सं० कुश+इनि] कुशवाहा। जिसके हाथ में कुश हो। पुं० वाल्मिकी ऋषि का एक नाम।
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कुशीद  : पुं० =कुसीद।
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कुशीनगर  : पुं० [सं०] भगवान बुद्ध का निर्वाण-स्थान जो आज-कल कसया कहलाता है।
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कुशीनार  : पुं० =कुशीनगर।
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कुशीलव  : पुं० [सं० कु-शील, कुगति० स०+व] १. कवि। २. चारण। भाट। ३. अभिनेता। नट। ४. गवैया। ५. वाल्मिकी ऋषि।
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कुशुंभ  : पुं० [सं० कु√शुंभ् (शोभित होना)+अच्] १. संन्यासियों का जलपात्र या कमंडल। २. घड़ा।
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कुशूल  : पुं० [सं०√कुस् (घेरना)+ऊलच्, पृषो० स०=श] १. अनाज रखने का कोठार। बखार। २. कड़ाही। ३. भूसी की आग। ४. एक राक्षस का नाम। पुं० [सं० कु+शूल] १. बुरा शूल या कांटा। २. भयंकर दर्द या पीड़ा जो बहुत कष्टदायक हो।
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कुशूल-धान्यक  : पुं० [ब० स०] वह गृहस्थ जिसके पास तीन वर्ष तक खाने भर को अन्न हो।
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कुशेश  : पुं० =कुशेशय।
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कुशेशय  : पुं० [सं० कुशे√शी (सोना)+अच्, अलुक्] १. कमल। २. कनक चंपा। ३. सारस। ४. एक पर्वत जो कुश द्वीप में स्थित माना गया है।
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कुशोदक  : पुं० [कुश-उदय, मध्य० स०] ऐसा जल जिसमें कुश घास की पत्तियाँ छोड़ी गई हों। (ऐसा जल पवित्र माना जाता है)।
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कुशोदका  : स्त्री० [कुश-उदय, ब० स०, टाप्] कुशद्वीप की एक देवी का नाम।
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कुश्तमकुश्ता  : पुं० [हिं० कुश्ती] लड़ने के समय आपस में गुथकर एक दूसरे को पटकने के लिए होनेवाले प्रयत्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कुश्ता  : वि० [फा० कुश्तः] फूँका हुआ। पुं० रासायनिक क्रियाओं द्वारा धातुओं, रसों आदि को फूँककर तैयार की हुई भस्म जो पौष्टिक तथा स्वास्थ्य-वर्धक मानी जाती है।
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कुश्ती  : स्त्री० [फा०] एक प्रसिद्ध भारतीय खेल या व्यायाम जिसमें दो व्यक्ति अपने शारीरिक बल तथा दांव-पेंच से एक दूसरे को गिराकर चित करने का प्रयत्न करते हैं। मुहावरा—कुश्ती खाना=कुस्ती में हार जाना। कुश्ती बदना=दो पहलवानों में परस्पर यह निश्चय होना कि हम लोग कुश्ती लड़ेंगे। कुश्ती माँगना=(किसी को) अपने साथ कुश्ती लड़ने के लिए कहना या ललकारना। कुश्ती मारना=कुश्ती में विरोधी को चित गिरा देना और उसे जीतना। कुश्ती लड़ाना-किसी को कुश्ती लड़ने के ढंग तथा दांव-पेंच सिखलाना। पद—कुस्तमकुश्ता। (देखें)।
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कुश्तीबाज  : वि० [फा०] (व्यक्ति) जिसे कुश्ती लड़ने का शौक हो। पहलवान।
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