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गिरह  : स्त्री० [सं० ग्रह से फा०] १. कपड़े डोरी आदि के सिरे को एक दूसरे में फँसाकर बाँधी जानेवाली गाँठ। २. किसी कपड़े धोती आदि के पल्ले में कोई चीज विशेषतः पैसे आदि रखकर तथा लपेटकर लगाई जानेवाली गाँठ जिसे लोग प्रायः कमर में खोंसते थे। पद-गिरहकट ( दे०) ३. खरीता। खीसा। जेब। ४. गाँठ के रूप में उठा हुआ शरीर के दो अंगो का संधि स्थान। जैसे–जाँघ और टाँग के बीच का घुटने पर का जोड़। ५. गज का सोलहवाँ अंश या भाग। ६. कलाबाजी। कलैया। ७. कुश्ती का एक दाँव। पुं० गृह। उदाहरण–गिरह उजाड़ एक सम लेखौ।–कबीर।
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गिरहकट  : पुं० [फा० गिरह=जेब या गाँठ+हिं० काटना] गिरह या गाँठ में बँधा हुआ धन काटनेवाला व्यक्ति। जेबकतरा।
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गिरहथ  : पुं०=गृहस्थ।
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गिरहदार  : वि० [फा० गिरह-जेब या गाँठ] जिसमें गाँठ या गाँठें पड़ी हो। गठीला।
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गिरहबाज  : पुं० [फा०] एक प्रकार का कबूतर जो आकाश में उड़ते समय कलैया खाता है।
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गिरहर  : वि० [हिं० गिरना+हर (प्रत्यय)] जो शीघ्र ही गिर पड़ने को हो। गिराऊ।
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गिरही  : पुं० [सं० गृहिन्] १. गृहस्थ। २. देव-दर्शन के लिए आया हुआ यात्री। (पंडे और भड्डर)।
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