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शब्द का अर्थ

ट  : देवनागरी वर्ण-माला का ग्यारहवाँ व्यंजन जो उच्चारण तथा भाषा-विज्ञान की दृष्टि से मूर्द्धन्य, स्पर्शी, अल्पप्राण तथा अघोष है। पुं० [सं०√ टल् (उपद्रव करना)+ड] १. नारियल का खोपड़ा। २. वामन। बौना। ३. किसी चीज का चौथाई भाग। चतुर्थाश्। ४. आवाज। शब्द।
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ट-वर्ग  : पुं० [ष० त०] वर्णमाला के ट ठ ड ढ और ण इन पाँच व्यजनों का समूह।
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टई  : स्त्री० १.=टही। (थाक)। २.=टहल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टंक  : पुं० [सं०√टंक् (बाँधना, कसना आदि)+घञ्] १. प्राचीन भारत में चाँदी की एक तौल जो प्रायः चार मासे के बराबर होती थी। २. उक्त तौल का बटखरा या बाट जिसके भार के हिसाब से टकसाल में सिक्के ढाले जाते थे। ३. उक्त तौल का चांदी का पुराना सिक्का। ४. मोती की एक तौल जो २१ रत्ती की होती थी। ५. पत्थर काटने और गढ़ने की टाँकी। ६. कुदाल। फरसा। फावड़ा। ७. कुल्हाड़ी। ८. तलवार। 9, तलवार की म्यान। १॰. टाँग। पैर। ११. अभिमान। घमंड। १२. क्रोध। गुस्सा। १३. सुहागा। १४. पहाड़ का खड्ड। १५. नीला कैथ। १६. बेल की तरह का एक कँटीला पेड़ और उसका फल। 1७. सम्पूर्ण जाति का एक संकर राग जो रात के समय गाया जाता है। पुं० [अं० टैक] १. तालाब। २. पानी रखने का बड़ा हौज। ३. स्थल पर चलनेवाला एक युद्धयान जिस पर तोपें चढ़ी रहती है।
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टक  : स्त्री० [सं० टंक-बाँधना वा सं० त्राटक] अनुराग, आश्चर्य, प्रतीक्षा आदि के कारण किसी ओर मनोनिवेशपूर्वक स्थिर दृष्टि से देखते रहने की अवस्था, क्रिया या भाव। नजर गड़ाकर लगातार किसी ओर देखते रहना। टकटकी। क्रि० प्र०–बँधना।–बाँधना।–लगना।–लगाना। मुहावरा–टक टक देखना=विवशता की दशा में स्थिर दृष्टि से देखते रहना। टक लगाना=आसरा देखते रहना। दृष्टि लगाकर ध्यानपूर्वक किसी ओर देखते रहना। स्त्री० [?] चीजें या बोझ तौलने का बड़ा तराजू।
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टंक-पति  : पुं० [ष० त०] टंक-शाला अर्थात् टकसाल का प्रधान अधिकारी।
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टंक-मार  : स्त्री० [अं० टैक+हिं० मारना] एक प्रकार की बहुत बड़ी तोप जिसका उपयोग टैकों पर मढ़ी हुई इस्पात की मोटी चादरें तोड़नें में होता है।
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टंकक  : पु० [सं० टंक+कन्] १. सिक्का, विशेषत चाँदी का ऐसा सिक्का जिस पर छाप आदि लगी हुई हो। २. कुदाल। पुं० [सं० टंकण से] आज कल वह व्यक्ति जो टंकण यंत्र पर चिट्ठीपत्री आदि छापता हो। (टाइपिस्ट)।
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टंकक-शाला  : स्त्री० [ष० त०] धातुओं के सिक्के ढालने का कारखाना। टकसाल।
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टकटका  : पुं०=टकटकी।
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टकटकारना  : स० [हिं० टक] टकटकी लगाकर किसी ओर देखना। स्थिर दृष्टि किए हुए किसी ओर देखते रहना। स० [अ०] टक-टक शब्द उत्पन्न करना। अ० टक-टक शब्द होना।
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टकटकी  : स्त्री० [हिं० टक या सं० त्राटकी] टक लगाकर मनोनिवेशपूर्वक स्थिर दृष्टि से किसी ओर देखते रहने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–बँधना।–बाँधना।–लगना।–लगाना।
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टंकटीक  : पुं० [सं० ब० स०] महादेव। शिव।
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टकटोना  : स०=टकटोरना। उदाहरण–सबै देस टकटोये।–नागरीदास।
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टकटोरना  : स०=[हिं० टकटकी] अन्धकार आदि में किसी चीज के आकार, रूप आदि का पता लगाने के लिए उसे जगह-जगह से छूकर देखना। टटोलना(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकटोलना  : स० [अनु०]=टकटोरना।
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टकटोहन  : पुं० [हिं० टकटोना] टटोलने की क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकटोहना  : स०=टकटोरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टंकण  : पुं० [सं०√टंक्+ल्यु-अन, णत्व] १. टाँकी से कोई चीज काटने, गढ़ने, तोड़ने आदि का काम। २. टाँका या जोड़ लगाने का काम। ३. दक्षिण भारत का एक प्राचीन देश। ४. उक्त देश में होनेवाला एक प्रकार का घोड़ा। ५. सुहागा। सिक्के ढालने तथा उन पर चित्र, चिन्ह आदि की छाप लगाने की क्रिया या भाव। ६. आज-कल टंकण यंत्र पर चिट्ठी-पत्री आदि छापने का काम। (टाइपराइटिंग)।
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टकण-यंत्र  : पुं० [ष० त०] आज-कल छापे की एक प्रकार की छोटी कल जिसमें अलग-अलग पत्तियों पर अक्षर खुदे होते हैं और उन पत्तियों को जोर से दबाने पर वे अक्षर ऊपर लगे हुए कागज पर छपते चलते हैं। इससे प्रायः चिट्ठियाँ, छोटे लेख आदि छापे जाते हैं। (टाइपराइटर)।
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टकतंत्री  : स्त्री० [सं०] पुरानी चाल का एक प्रकार का सितार की तरह का बाजा।
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टंकना  : अ० [हिं० टाँकना का अ० रूप] १. टाँका जाना। २. कपड़े आदि के टुकड़ों के जोड़ पर सूई-धागे से टाँका लगाया जाना। ३. टाँका लगने के कारण कपड़े के एक टुकड़े का दूसरे टुकड़े के साथ अथवा किसी चीज का कपडे़ पर अटकाया जाना। जैसे–साड़ी में बेल या कमीज में बटन टंकना। ४. धातु खंडो या पात्रों का टाँके के योग से जोड़ा जाना। ५. टाँकी आदि के द्वारा चक्की, सिल आदि का रेहा जाना। ६. स्मरण रखने के लिए संक्षिप्त रूप में कहीं लिखा जाना। जैसे–खाते में रकम टँकना। ७. अनुचित रूप से हड़प लिया जाना।
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टकना  : पुं० दे० ‘टखना’। अ०=टँकना।
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टकबीड़ा  : पुं० [देश०] प्राचीन काल में मंगल तथा शुभ अवसरों पर प्रजा द्वारा जमींदार को दी जानेवाली भेंट।
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टकराना  : अ० [हिं० टक्कर] १. विपरीत दिशाओं में वेगपूर्वक आगे बढ़नेवाली दो वस्तुओं, व्यक्तियों आदि अथवा उनके अगले भागों या सिरों का आपस में इस प्रकार भिड़ना या जोर से लगना कि उनमें से किसी एक अथवा दोनों को भारी आघात लगे। जैसे–बाइसिकिलों या मोटरों का टकराना। २. किसी दिशा में चलती या बढती हुई वस्तु का मार्ग में खड़ी किसी बड़ी या भारी चीज से सहसा तथा जोर से जा लगना अथवा आघात करना। जैसे–किनारे से लहरों का टकराना। ३. किसी के मार्ग में बाधक होना अथवा किसी का मुकाबला या सामना करने के लिए उसके मार्ग में आना या पड़ना। संघर्ष होना। जैसे–जो हमसे टकरायेगा चूर-चूर हो जायगा। ४. इधर-उधर मारे-फिरना। टक्करें खाना। स० एक चीज पर दूसरी चीज मारना। स० दो चीजों के अगले भागों या सिरों को एक दूसरे से इस प्रकार जोर से भिड़ाना कि उनमें से एक या दोनों को चोट लगे या उनकी कोई विशेष हानि हो। आपस में टक्कर खिलाना या लगाना।
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टकरी  : स्त्री० [देश०] एक तरह का पेड़।
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टंकवाना  : स० [हिं० टाँका का प्रे० रूप] १. टाँकने के काम दूसरे से कराना। टँकाना। २. टाँका लगवाना। ३. स्मरण रखने के लिए लिखवाना। ४. (सिक्का) परखना। जँचवाना। ५. खिलाना। ६. लाभ कराना। (दलाल)।
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टंकवान्(वत्)  : पुं० [सं० टंक+मतुप्] वाल्मीकि रामायण में वर्णित एक पर्वत।
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टंकशाला  : स्त्री० [ष० त०] टंक अर्थात् सिक्के ढालने तथा उन पर अंक, चित्र, चिन्ह आदि छापने का कारखाना। टकसाल।
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टकसरा  : पुं० [देश०] भारत के पूर्वी प्रदेशों में होनेवाला एक तरह का बाँस।
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टकसार  : स्त्री=टकसाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकसाल  : स्त्री० [सं० टकसाला] [वि० टकसाली] १. प्राचीन भारत में वह कारखाना जहाँ पैसे, रुपए आदि के सिक्के ढलते थे। २. आज-कल वह स्थान जहाँ आधुनिक यंत्रों से ठप्पों आदि की सहायता से रुपए, पैसे आदि के सिक्के तैयार किये या बनाये जाते हैं। ३. लाक्षणिक रूप में वह स्थान जहाँ मानक चीजें बनती हों। मुहावरा–टकसाल चढाना=(क) प्राचीन भारत में खरे-खोटे की परख के लिए सिक्कों का टकसाल में पहुंचाना। (ख) लाक्षणिक रूप में, किसी चीज का ऐसे स्थान में पहुँचना जहाँ उसकी बुराई-भलाई की परख हो सके। (ग) दुष्कर्मों आदि में पराकाष्ठा या पूर्णता तक पहुँचना। (परिहास और व्यंग्य) पद–टकसाल बाहर=(चीज या बात) जो ठीक, प्रामाणिक या मानक न मानी जाती हो। जैसे–इस प्रकार के प्रयोग आधुनिक भाषा में टकसाल बाहर माने जाते हैं। ४. वह चीज या बात जो सब प्रकार से ठीक, निर्दोष प्रामाणिक या मानक मानी जाती हो। उदाहरण–सार शब्द टकसार। (ल) है, हिरदय माँहि बिबेक।–कबीर।
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टकसाली  : वि० [हिं० टकसाल] १. टकसाल-संबंधी। टकसाल का। २. टकसाल में ढला या बना हुआ। ३. उतना ही प्रामाणिक और लोक-मान्य जितना टकसाल में ढाला हुआ अली सिक्का होता है। सब तरह से चलनसार, ठीक और मान्य। शिष्ट-सम्मत। जैसे–बा० बालमुकुन्द गुप्त की भाषा टकसाली होती थी। ४. सब प्रकार से परीक्षित और प्रामाणिक। जैसे–आप की हर बात टकसाली होती है। पुं० मध्ययुग में टकसाल या सिक्के ढालनेवाले विभाग का प्रधान अधिकारी।
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टकहा  : पुं०=टका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि=टकाहा।
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टकहाया  : वि० [स्त्री० टकहाई]=टकाहा।
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टंका  : स्त्री० [सं०√टंक्+अच्–टाप्] १. तारादेवी का एक नाम। २. जाँघ। रान। ३. संपूर्ण जाति की एक रागिनी। पुं० [सं० टंक] १. टंक नाम की पुरानी तौल। २. टका नाम का ताँबे का पुराना सिक्का। पुं० [देश०] एक प्रकार का गन्ना। टनका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टका  : पुं० [सं० टंक] १. प्राचीन भारत में चाँदी का एक सिक्का जो प्रायः आज-कल के एक रुपये के बराबर होता था। २. उक्त के आधार पर वैद्यक में तीन तोले की तौल। ३. अँगरेजी शासन में ताँबे का एक सिक्का जो दो पैसे मूल्य का होता था अधन्ना। पद–टका भर=बहुत ही अल्प या थोड़ी मात्रा में। जैसे–टका भर घी दे दो। टका सा=बहुत ही छोटा, तुच्छ थोड़ा या हीन। जैसे–टके सी जान, और इतना गुमान। टके गज की चाल=(क) बहुत ही मद्धिम या सामान्य अथवा पुराने ढंग की चाल-ढाल या रहन-सहन। जैसे–वह तो जनम भर वही टके गज की चाल चलते रहे। (ख) बहुत ही धीमी गति या सुस्त चाल। जैसे–छोटी लाइन की गाडियाँ तो बस वही टके की चाल चलती हैं। मुहावरा–टका सा जबाव देना=उसी प्रकार तिरस्कारपूर्वक और नकारात्मक उत्तर देना जैसे किसी भिक्षुक के आगे टका फेंका जाता था। इनकार करते हुए साफ जबाव देना। टका सा मुँह लेकर रह जाना-अपमानित या तिरस्कृत होने पर लज्जित भाव से चुप रह जाना। ४. धन-संपत्ति। रुपया-पैसा। ५. गढ़वाल के पहाड़ी इलाकों की एक तौल जो प्रायः सवा सेर के लगभग होती है।
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टका-तोप  : स्त्री० [देश०] समुद्री जहाजों पर की एक प्रकार की छोटी तोप।
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टँकाई  : स्त्री० [हिं० टाँकना] टाँकने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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टकाई  : वि० स्त्री०=टकाहाई। (टकहाया का स्त्री० रूप)। स्त्री०=टकासी।
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टंकानक  : पुं० [सं० टंक√ अन्(प्रदीप्त करना)+ण्वुल्-अक] शहतूत।
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टँकाना  : स० [हिं० टाँकना का प्रे० रूप]=टँकवाना।
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टकाना  : स०=टँकवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकानी  : स्त्री०=टेकानी।
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टंकार  : स्त्री० [सं० टम्√कृ (करना)+अण्] १. धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) को तानकर सहसा ढीला छोड़ने पर टन-टन होनेवाला कर्कश ध्वनि। २. धातु-खंड, विशेषतः धातु के कसे या तने हुए तार पर आघात लगने से होनेवाला टन टन शब्द। टनाका। ३. तर्जनी या मध्यमा उँगली का नाखून अँगूठे से दबाकर वह उंगली झटके से छोड़ते हुए इस प्रकार किसी चीज पर आघात करना कि उससे टन का शब्द हो। ४. चिल्लाहट। ५. ख्याति। ६. कुख्याति। ७. आश्चर्य। अचरज।
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टंकारना  : स० [सं० टंकार] १. धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) को तानकर सहसा ढीला छोड़ना जिससे वह टन-टन शब्द करने लगे। २. टन-टन शब्द उत्पन्न करना।
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टंकारी(रिन्)  : वि० [सं० टंकार+इनि] टंकार उत्पन्न करनेवाला। स्त्री० [सं० टंक्√ऋ (गति)+अण्-ङीप्] लंबोतरी पत्तियोंवाला एक प्रकार का वृक्ष जिसमें कई रंगों के फूल लगते हैं और जिसके कुछ रंग औषध के काम आते हैं।
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टकासी  : स्त्री० [हिं० टका] १. एक रुपये पर प्रतिमास दो पैसे का सूद या ब्याज देने लेने का एक ढंग। २. मध्य युग में व्यक्ति पीछे एक टके के हिसाब से लगनेवाला कर या चंदा। स्त्री० =टकहाई।
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टकाहा  : वि० [हिं० टका] [स्त्री० टकाही] टके-टके पर बिकने या मिलनेवाला अर्थात् बहुत ही तुच्छ या हीन। जैसे–टकाहा कपड़ा, टकाही रंडी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकाही  : वि० हिं० ‘टकाहा’ का स्त्री० रूप। स्त्री० बहुत ही निम्म कोटि की वेश्या या दुश्चरित्रा स्त्री। स्त्री० दे० ‘टकासी’।
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टंकिका  : स्त्री० [सं० टंकक+टाप् इत्व] लोहे की वह छोटी टाँकी जिससे चक्की, सिल आदि रेती जाती है।
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टंकी  : स्त्री० [अं० टैक, मि० सं० टंक-गड्ढा] १. गारे-चूने-ईंट पत्थर, लोहे आदि का वह चौकोर आधान जिसमें पानी बर कर रखा जाता है। कुंड। हौज। २. पानी रखने का एक प्रकार का बरतन। स्त्री० [?] एक प्रकार की रागिनी। स्त्री=पंक्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकी  : स्त्री=टकटकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टँकुआ  : वि० [हिं० टाँकना] [स्त्री० टँकुई] (वस्त्र) जिस पर कोई चीज टाँकी गई हो। जैसे–टँकुआ दुपट्टा। टँकुई साड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकुआ  : पुं० [सं० तर्कुक, प्रा० तक्कुअ] [स्त्री० अल्पा० टकुई, टकुली] १. चरखे में का तकला। (देखें) २. कई प्रकार के छोटे अँकुसीदार या टेढ़े औजारों की संज्ञा। जैसे–बिनौले निकालने का टकुआ, मोची का टकुआ।
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टकुली  : स्त्री० [हिं० टकुआ] १. छोटा टकुआ। २. नक्काशी करनेवालों का एक औजार। स्त्री० [?] सिरिस की जाति का एक प्रकार का वृक्ष।
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टकूचना  : स० [हिं० टाँकना-खाना] खाना। (दलाल)
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टकैट  : वि=टकैत।
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टकैत  : वि० [हिं० टक+ऐत (प्रत्यय)] जिसके पास टके हों अर्थात् धनी। धनवान।
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टंकोर  : स्त्री०=टंकार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकोर  : स्त्री० [सं० टंकार] १. धनुष की डोरी खींचने से होनेवाला शब्द। टंकार। २. नगाड़े पर होनेवाला आघात। ३. आघात। ठेस। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। ४. शरीर के किसी विकारग्रस्त विशेषतः सूजे हुए अंग पर दवा की पोटली को बार-बार गरम करके उससे किया जानेवाला हलका सेंक। ५. खट्टी या चरपरी चीजें खाने से दाँतों या मसूढ़ों में होनेवाली चुनचुनी या टीस। ६. लाक्षणिक अर्थ में, ऐसी बात जिससे दुःखी व्यक्ति और अधिक दुःखी होता हो। (पश्चिम)
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टंकोरना  : स०=टंकारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकोरना  : स० [हिं० टकोर] १. टकोर या हलका सेंक करना। २. हलका आघात लगाना। जैसे–डंका बजाने के लिए उसे टकोरना। ३. ठेस लगाना ४. ऐसी बात जिससे दुःखी व्यक्ति और अधिक दुःखी हो।
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टकोरा  : पुं० [सं० टंकार] १. डंके की चोट। २. आघात। ठेस।
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टकोरी  : स्त्री० [सं० टंकार] हलकी चोट या आघात।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टकोहा  : पुं० [हिं० ठोकर] १. हाथ या पैर से किया हुआ बहुत हलका आघात। २. लाक्षणिक रूप में, मन पर लगनेवाला हलका आघात या ठेस।
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टकौना  : पुं०=टका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टंकौरी  : स्त्री० [सं० टंक] टंक अर्थात् सिक्के आदि तौलने की छोटी तुला। तराजू। विशेष–प्राचीन काल में सिक्कों को तौलकर देखा जाता था कि कहीं इसमें धातु की मात्रा कम या अधिक तो नहीं है।
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टकौरी  : स्त्री० [सं० टंक] सोना, चाँदी आदि तौलने का पुरानी चाल का एक प्रकार का काँटा या तराजू। स्त्री० १.=टकासी। २.=टकहाई।
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टक्क  : पुं० [√ टक् (बाँधना)+कक्, पृषो० सिद्धि] १. वाहीक जाति का आदमी। २. कंजूस व्यक्ति।
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टक्क देश  : पुं० [सं० मध्य० स०] चनाब और ब्यास नदियों के बीच के प्रदेश का पुराना नाम।
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टक्कदेशीय  : वि० [सं० टक्कदेश+छ-ईय] १. टक्क देश का। २. टक्क देश में होनेवाला। पुं० बथुआ नामक साग।
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टक्कर  : स्त्री० [प्रा०] १. दो या अधिक चीजों के आपस में टकराने की अवस्था, क्रिया या भाव २. एक ही सीध में, परन्तु दो विपरीत दिशाओं में वेगपूर्वक आगे बढ़ने या चलनेवाली दो वस्तुओं, व्यक्तियों आदि के अगले भाग या सिरे के सहसा एक दूसरे से टकराने या भिड़ने की अवस्था, क्रिया या भाव। जैसे–रेल-गाड़ियों की टक्कर ३. बल-परीक्षा, मनोविनोद, व्यायाम आदि के लिए दो प्राणियों के आपस में मस्तक या सिर से एक दूसरे पर आघात करने या धक्का देने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र–लड़ना।–लड़ाना। ४. वेगपूर्वक आगे बढ़ने के समय किसी वस्तु या व्यक्ति के अगले या ऊपरी भाग का मार्ग में पड़नेवाली किसी बड़ी या भारी चीज के साथ इस प्रकार लगनेवाली ठोकर या होनेवाली भिडन्त कि उनमें से किसी एक अथवा दोनों को किसी प्रकार की आघात लगे। जैसे–अँधेरे में चलते समय खंभे या दीवार से लगनेवाली टक्कर। मुहावरा–इधर-उधर टक्करें खाना या मारना=जगह-जगह मारे-मारे फिरना। दुर्दशा भोगते हुए कभी कहीं और कभी कहीं आना जाना। ५. बराबर के दो पक्षों में होनेवाला ऐसा मुकाबला या सामना जिसमें दोनों एक दूसरे को गिराना या दबाना चाहते हों या उन्हें हानि पहुँचाना चाहते हों। जैसे–दो देशों या विचार धाराओं में होनेवाली टक्कर। पद–टक्कर का=जोड़, बराबरी या मुकाबले का। जैसे–भगवद्गीता या रामचरितमानस की टक्कर की पुस्तक विश्व-साहित्य में मिलना दुर्लभ है। मुहावरा–(किसीसे) टक्कर लेना=बराबरी या मुकाबला करना। जैसे–यह घोड़ा दौड़ में रेलगाड़ी से टक्कर लेता है। ६. घाटा। हानि। (क्व०)।
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टखना  : पुं० [सं० टंक-टाँग] १. पिंडली और येड़ी के बीच की दोनों ओर उभरी हुई हड्डी। २. उक्त हड्डी के आस-पास का भाग।
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टंग  : पुं० [सं० टंक√पृषो० सिद्धि] १. टाँग। २. कुल्हाड़ी। ३. कुदाल। फरसा। ४. सुहागा। ५. चार मासे की एक तौल। टंक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टग  : स्त्री=टकटकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टगटगाना  : स०=टकटकाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टँगड़ी  : स्त्री०=टाँग। (टंगड़ी के मुहावरा के लिए दे० टाँग के मुहावरा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टंगण  : पुं० [सं० टंकण, पृषो० सिद्धि] सोहागा।
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टगण  : पुं० [सं० मध्य० स०] साहित्य शास्त्र में, छः मात्राओं के गणों की सामूहिक संज्ञा।
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टंगना  : अ० [सं० टंकण] १. टाँगा जाना। २. किसी चीज का ऊपरी भाग किसी ऊंचे आधार के साथ या स्थान पर इस प्रकार अटकाया, जड़ा, बाँधा या लगाया जाना कि वह चीज उसी के सहारे टिकी या ठहरी रहे। ३. फाँसी पर चढ़ाया जाना। पुं० १. दो खूटियों आदि में बेड़े बल में बँधा हुआ ताल, बाँस, रस्सी आदि जिस पर वस्त्र आदि टाँगे जाते हैं २. उक्त काम के लिए लकड़ी का बनाया हुआ एक प्रकार का ऊँचा चौखटा।
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टगर  : पुं० [अनु०] १. टंकण। सोहागा। २. भोग-विलास के लिए की जानेवाली क्रीड़ा। ३. तगर का वृक्ष।
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टगरगोड़ा  : पुं० [?] कौड़ियों से खेला जानेवाला एक खेल।
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टगरना  : अ० १=टघरना (पिघलना) २.=खिसकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टगरा  : वि० [सं० टेरक] ऐंटा-ताना। भेंगा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टँगरी  : स्त्री०=टँगड़ी (टाँग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टँगवाना  : स० [हिं० टाँगना का प्रे० रूप] किसी को कुछ टाँगने में प्रवृत्त करना।
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टँगा  : पुं० [देश] मूँज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टँगाना  : स=टँगवाना। अ०=टँगना।
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टँगारी  : स्त्री० [सं० टंग] कुल्हाड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टंगिनी  : स्त्री० [सं०√टंक् (गलाना आदि)+णिनि, पृषो० सिद्धि] पाठा।
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टघरना  : अ० दे० ‘पिघलना’।
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टघराना  : स=पिघलाना।
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टघार  : पुं० [हिं० टघरना] १. टघरने अर्थात् पिघलने की क्रिया या भाव। २. किसी जमी हुई चीज के टघरने या पिघलने पर उसकी बहनेवाली धार।
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टंच  : वि० [सं० चंड, हि० चंट] १. बहुत बड़ा कंजूस या कृपण। २. बहुत बड़ा चालाक या धूर्त्त। उदाहरण–पायो जानि जगत में सब कपटी कुटिल कलिजुगी टंचु।–हरिवंश। ३. निष्ठुर। वि० दे० ‘टिचन’।
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टचटच  : स्त्री० [अनु०] आग के जलने का शब्द।
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टचना  : अ० [अनु० टचटच से] आग का जलना।
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टचनी  : स्त्री० [सं० टंक] बरतनों पर नक्काशी करने का कसेरों का एक उपकरण।
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टट  : पुं० [सं०] तट। उदाहरण–आएउँ भागि समुद्र टट...।–जायसी।
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टंट-घंट  : पुं० [अनु० टन-टन+सं० घंटा] १. पूजा-पाठ का भारी आडंबर या आडंबरपूर्ण सामग्री। २. फालतू रद्दी या व्यर्थ की चीजें।
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टटका  : वि० [सं० तत्काल] [भाव० टटकाई, स्त्री० टटकी] १. (फलों आदि के संबंध में) जो अभी-अभी (खेत, पौधे आदि से तोड़कर) लाया गया हो, फलतः जो बासी न हो। ताजा। जैसे–टटका आम, टटका तरकारी। २. (समाचार) जिसकी सूचना अब या अभी मिली हो। ताजा। जैसे–टटकी खबर। ३. नया।
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टटकाई  : स्त्री० [हिं० टटका] टटके या ताजे होने की अवस्था या भाव। ताजापन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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टटड़ी  : स्त्री०=टटरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटरी  : स्त्री० १.=टट्टी। २.=ठठरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटरूँ  : पुं० [अनु०] पेंडुकी (चिडि़याँ)।
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टटल-बटल  : वि० [अनु०] ऊटपटाँग। पुं० अंगड-खंगड़। काठ-कबाड़।
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टंटा  : पुं० [अनु० टन-टन] १. ऐसा व्यर्थ का उपद्रव, झगड़ा या बखेड़ा जिसमें बहुत सी पेचीदी बातें हों। सारहीन लड़ाई या वैर-विरोध। क्रि० प्र०–मचाना। २. निकम्मी, रद्दी या व्यर्थ की चीजें या विस्तार।
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टटाना  : अ० [हिं० ठाँठ] शुष्क होना। सूखना। २. खुश्की, थकावट आदि के कारण शरीर या उसके अंगों में हलकी पीड़ा होना। ३. भूख आदि से विकल होना स० १. सुखाना। २. भूखे रखकर विकल करना।
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टटावक  : पुं० [?] काला टीका। उदाहरण–मोर चन्द सिर अस कछु लौनी। मानहु अली टटालक टौनौ।–नन्ददास।
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टटावली  : स्त्री० [सं० टिटिट्भ] कुररी या टिटिहरी नाम की चिड़िया।
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टटिया  : स्त्री=टट्टी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटियाना  : अ० स०=टटाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटीरी  : स्त्री० टिटिहरी। (चिड़िया)।
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टटुआ  : पुं० [स्त्री० टटुई] =टटू। पुं० दे० ‘टेटुआ’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटोना  : स=टटोलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटोबा  : पुं० [अनु०] १. चारों ओर घूमनेवाला चक्कर या चरखी। २. घिरनी। ३. चारों ओर घूमने या चक्कर खाने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–खाना। ४. दे० ‘टिटिबां’।
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टटोरना  : स०=टटोलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टटोल  : स्त्री० [हिं० टटोलना] टटोलने की क्रिया, ढंग या भाव।
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टटोलना  : स० [सं० तुला से अनु०] १. अन्धकार में अथवा स्पष्ट दिखाई न देने पर किसी चीज के आकार-प्रकार रूप-रंग आदि का पता लगाने के लिए उसके अंगों आदि पर उँगलियाँ या हाथ फेरना। २. किसी आवरण में रखी हुई वस्तु का अनुमान करने के लिए उसे बाहर से छूना, दबाना या हिलाना। जैसे–किसी का जेब टटोलना। ३. ठीक पता न चलने पर अन्दाज से इधर-उधर ढूँढना या तलाश करना। ४. किसी का आशय या विचार जानने अथवा उसके मन की थाह लेने के लिए उससे जिज्ञासात्मक बात-चीत करना। ५. जाँचने, परखने आदि के लिए किसी प्रकार की ऊपरी या बाहरी क्रिया करना।
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टटोहना  : स०=टटोलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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टट्टड़  : पुं०=टटृर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टट्टनी  : स्त्री० [सं० टट्ट√ नी(ढोना)+ड–ङीष्] छिपकली।
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टट्टर  : पुं० [सं० तट=ऊँचा किनारा या सं० स्थाता=जो खड़ा हो] गाँवों, देहातों आदि के कच्चे मकानों में दरवाजे के स्थान पर मार्ग अवरुद्ध करने के लिए लगाया जानेवाला बाँस की पट्टियों का चौकोर जालीदार ढाँचा। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। पुं० [सं० टटृ√रा (देना)+क] भेरी का शब्द।
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टट्टर  : पुं० [सं० टटृ√रा (देना)+क] नगाड़े का शब्द।
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टट्टरी  : स्त्री० [सं० टट्टर+ङीष्] १. ढोल, नगाड़े आदि के बजने का शब्द। २. लंबा या विस्तृत कथन या विवरण। ३. हँसी-माजक। ठट्ठा।
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टट्टा  : पुं० [सं० तट-ऊँचा किनारा या सं० स्थाता=जो खड़ा हो] [स्त्री० टट्टी] १. टट्टर। बड़ी टट्टी। २. लकड़ी का तख्ता या पल्ला। ३. अंडकोश। (पंजाब)।
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टट्टी  : स्त्री० [सं० तटी=ऊँचा किनारा या सं० स्थायी] १. तिनकों, तीलियों आदि को आपस में फँसा या बाँधकर तैयार किया हुआ परदा। जैसे–खस की टट्टी। २. टट्टर। ३. आड़ या ओट के लिए सामने खड़ा किया हुआ वह आवरण या परदा जो प्रायः वृक्षों की डालियों, बाँसो आदि से बनाया जाता है। पद–धोखे की टट्टी=(क) ऐसा आवरण या परदा जो लोगों को धोखे में रखकर अपना काम निकालने के लिए खड़ा किया जाय। (ख) ऐसी चीज या बात जो ऊपर से देखने पर कुछ और जान पड़े, परन्तु जिसके अन्दर कुछ और ही हो। मुहावरा–टट्टी की आड़ (या ओट) से शिकार खेलना=स्वयं आड़ में रहकर या छिपकर किसी पर आघात या वार करना किसी प्रकार के स्वार्थ-साधन का प्रयत्न। करना। टट्टी में छेद करना=ढकने या परदा करने वाली चीज में ऐसा अवकाश निकालना जिससे बाहरवालों को अन्दर की चीजों या बातों का पता लगने लगे। टट्टी लगाना=ऐसा आवरण या परदा खड़ा करना जिसके अन्दर लुक-छिप कर कोई काम किया जा सके। ४. बाँस की फट्टियों आदि का वह ढाँचा जो बेलें आदि चढ़ाने के लिए खड़ा किया जाता है। जैसे–अंगूर की टट्टी। ५. वे तख्ते या पटरियाँ जिन पर नकली पेड़-पौधें आदि बनाकर रखे या लगाये जाते हैं और जो शोभा के लिए जुलूसों, बरातों आदि के साथ ले जाये जाते हैं। ६. किसी प्रकार की ओट या आड़ करने के लिए बनाई जानेवाली छोटी, पतली दीवार। ७. चारों ओर उक्त प्रकार का दीवारों से घेरा हुआ वह स्थान जो केवल शौच आदि के लिए नियत हो। पाखाना। मुहावरा–टट्टी जाना=मल-मूत्र आदि का विसर्जन करने के लिए उक्त प्रकार के स्थान में अथवा खेत आदि में जाना। ८. मल। गूह। पाखाना। ९. चिक। चिलमन। १॰. कोई पतली, चौकोर या लंबी-चौडी रचना। पद–टट्टी का शीशा=बहुत ही पतले दल का और साधारण शीशा, जैसा तसवीरों दरवाजों आदि की चौखट में लगाया जाता है।
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टट्टू  : पुं० [अनु०] [स्त्री० टटुआनी, टटुई] १. छोटे या नाटे कद का घोड़ा। टाँगन। पद–भाड़े का टट्टू=ऐसा व्यक्ति जो अपने पद, मर्यादा, विवेक आदि का ध्यान छोड़कर पैसे के लालच में दूसरों का काम करता हो अथवा उनकी बातों का समर्थन करता हो। मुहावरा–टट्टू पार होना=काम पूरा होना। प्रयोजन सिद्ध हो जाना। २. पुरुष की लिगेंद्रिय (बाजारू)।
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टट्डा  : पुं०=टाड़ (गहना)।
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टठिया  : स्त्री० [?] १. एक प्रकार की भाँग जो राजपूतों में होती है। स्त्री०=टाड़ (बाँह में पहनने का गहना। स्त्री०=टट्टी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टंडर  : पुं०=टेंडर।
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टंडल  : पुं०=टंडैल। पुं०=टेंडर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टँडिया  : स्त्री० [सं० ताड़] बाँह पर पहनने का टाँड़ नामक गहना।
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टड़िया  : स्त्री०=टाड़ (गहना)।
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टँडुलिया  : स्त्री० [देश०] बन-चौलाई।
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टंडैल  : पुं० [अं० टेंडर] १. मजदूरों का सरदार। २. हष्ट-पुष्ट जवान।
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टण  : पुं०=टना।
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टन  : पुं० [अनु०] घंटा बजने का शब्द। टंकार। वि० नशे आदि में चूर। बेसुध टन्न। पुं० [अ०] एक प्रकार की पाश्चात्य तौल जो लगभग २७॥ मन के बराबर होती है।
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टनकना  : अ० [अनु० टन] १. टन टन शब्द होना। २. गरमी, धूप आदि के कारण सिर में धमक या पीड़ा होना।
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टनटन  : स्त्री० [अनु०] घंटा बजने का शब्द।
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टनटनाना  : स० [हिं० टनटन] घंटे पर आघात करके उसमें से ‘टनटन’ शब्द उत्पन्न करना। जैसे–घंटा टनटनाना। अ० किसी चीज में से टन-टन शब्द निकलना या होना।
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टनमन  : पुं० [सं० तंत्र-मंत्र] जादू टोना। तंत्र-मंत्र। वि०=टनमना।
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टनमना  : वि० [सं० तन्मनस्] १. सब प्रकार से नीरोग और स्वस्थ। २. प्रसन्न-चित्त और गमन। ‘अनमना’ का विपर्याय।
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टना  : पुं० [सं० तुंड] १. स्त्रियों की योनि में का निकला हुआ मांस का टुकड़ा जो दोनों किनारों के बीच में होता है। टिंगा। २. भग। योनि।
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टनाका  : पुं० [अनु० टन] १. घंटा बजने का शब्द। जोर से होनेवाला टन शब्द। २. कुछ समय तक टनटन शब्द बजते या होते रहने की अवस्था या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० उभ्य० बहुत उग्र या विकट। जैसे–टनाका धूप या सरदी।
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टनाटन  : स्त्री० [अनु०] लगातार घंटा बजने के कारण होनेवाला टनटन शब्द। क्रि० वि० १. टनटन शब्द करते हुए। २. अच्छी तथा ठीक अवस्था में। जैसे–वहाँ वे टनाटन हैं।
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टनी  : स्त्री०=टना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टनेल  : स्त्री० [सं० टनल] पहा़ड़ के बीच में से अथवा नदी से बनायी हुई सुरंग।
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टप  : स्त्री० [अनु०] १. वर्षा अथवा किसी तरल पदार्थ की बूँद पृथ्वी तल पर अथवा धातुओं आदि पर गिरने से होनेवाला शब्द। २. एकाएक किसी भारी चीज के जमीन पर गिरने से होनेवाला शब्द। जैसे–जामुनों का टप-टप पेड़ से गिरना। मुहावरा–टप से=एकाएक या सहसा। जैसे–वह वहाँ पर टप से आ पहुँचा। स्त्री०=टोप। (बूँद)। पुं० [अ० टेब] १. गाड़ियों आदि के ऊपर छाया के लिए बनाया हुआ आच्छादन। जैसे–गाड़ी का टप। २. लटकने वाले लंप के ऊपर की छतरी। पुं० [अ० टब] टीन आदि का बना हुआ चौड़े मुँह का पानी रखने का बड़ा पात्र। पुं० [देश०] कान में पहनने का एक प्रकार का फूल। पुं० [अ० ट्यूब] जहाजों की गति का पता लगाने का एक उपकरण। (लश०) पुं० [हिं० ठप्पा] एक औजार जिससे डिबरी का पेच घुमावदार बनाया जाता है।
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टपक  : स्त्री० [हिं० टपकना] १. टपकने की क्रिया या भाव। २. किसी चीज के ऊपर से गिरने पर होनेवाला टपटप शब्द। ३. शरीर के किसी अंग में मवाद आदि अथवा और कोई विकार उत्पन्न होने के कारण रह-रहकर होनेवाला हलका दरद या पीड़ा। टीस।
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टपकन  : स्त्री०=टपक।
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टपकना  : अ० [सं०√टिप् या अनु०] १. किसी चीज में से बूँद बूँद करके किसी तरल पदार्थ का धरातल पर टपटप शब्द करते हुए गिरना। जैसे–(क) छत में से वर्षा का पानी टपकना। (ख) आम में से रस टपकना। २. (फलों आदि का पेड़ से टूटकर) ऊपर से सहसा नीचे गिरना जैसे–अमरूद या जामुन टपकना। ३. (व्यक्तियों का) सहसा कहीं आ पहुँचना। जैसे–इतने में न जाने वह कहाँ से टपक पड़ा। ४. कोई भाव प्रकट होना। जाहिर होना। झलकना। ५. शरीर के किसी अंग में मवाद भरा होने के कारण रह-रहकर पीड़ा होना। ६. फोड़े में से मवाद का निकलना। ७. (हृदय का) झट आकर्षित होना। लुभा जाना। मोहित हो जाना। ८. स्त्री का संभोग की ओर प्रवृत्त होना। ढल पड़ना। (बाजारू)। ९. युद्ध में घायल होकर गिरना।
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टपकवाना  : हिं० ‘टपकाना’ का प्रे० रूप।
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टपका  : पुं० [हिं० टपकना] १. टप-टप शब्द करते हुए बूँदों के गिरने की अवस्था या भाव। २. उक्त प्रकार से गिर, चू या रसकर निकली हुई चीज। रसाव। ३. ऐसा फल जो पककर या हवा के झोंके से जमीन पर गिरा हो। जैसे–टपका आम। ४. चौपायों के खुर में होनेवाला एक रोग जिसमें टपक या टीस होती है। ५. दे० ‘टपक’।
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टपका-टपकी  : स्त्री० [हिं० टपकना] १. बार-बार या रह-रहकर कभी इधर-और कभी उधर कुछ टपकने की क्रिया या भाव। जैसे–आम या जामुन की टपका-टपकी। २. रह-रहकर होनेवाली बूँदा-बाँदी या हलकी वर्षा। ३. लाक्षणिक रूप में महामारी आदि के प्रकोप से होनेवाली छूटपुट मौंते। क्रि० प्र०–लगना।
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टपकाना  : स० [हिं० टपकना] १. कोई चीज रह-रहकर बूँदों या छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में कहीं गिराना। २. भभके आदि के द्वारा अरक, आसव आदि तैयार करना। चुआना।
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टपकाव  : पुं० [हिं० टपकना] टपकने अथवा टपकाने की क्रिया या भाव।
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टपकी  : स्त्री० [हिं० टपकना] १. टपकने की क्रिया या भाव। २. अचानक होनेवाली मृत्यु। मुहावरा–टपकी पड़े=नष्ट या बरबाद हो जाय। (बोल-चाल)
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टपना  : अ० [हिं० टापना] १. बिना कुछ खायें-पियें अथवा किसी प्रकार की प्राप्ति या फल-सिद्धि के यों ही चुप-चाप कष्ट सहते हुए समय बिताना। जैसे–(क) बिना कुछ खाये-पीये सबेरे से टप रहे हैं। (ख) ये तो महीनों से नौकरी की आशा में यहाँ बैठे हुए टप रहे हैं। २. पशु-पक्षियों आदि का जोड़ा खाना या संभोग करना। ३. उछलना। कूदना। स० १. उछल या कूदकर किसी चीज को लाँघते हुए उसके पार जाना। (पश्चिम) जैसे–दीवार या मुंडेरा टपना। २. आच्छादित करना। ढकना। तोपना। (क्व०)।
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टपनामा  : पुं० [हिं० टिप्पन] वह रजिस्टर जिसमें समुद्री जहाजों पर तूफानों आदि का लेखा रखा जाता है।
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टपमाल  : पुं० [अं० टापमाल] जहाजों पर काम आनेवाला लोहे का भारी घन।
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टपरना  : स० [अनु०] दीवार में, मसाला भरने से पहले उसके फर्श की दरजों को कुछ खोदकर चौड़ी या बड़ी करना जिससे उनमें मसाला अच्छी तरह से भरा जा सके।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टपरा  : पुं० [स्त्री० अल्पा० टपरी]=टप्पर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टपरियाना  : अ०=टपरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टपाटप  : क्रि० वि० [अनु० टप टप] १. टप-टप शब्द करते हुए। जैसे–टपाटप आँसू गिरना। २. निरन्तर। लगातार। ३. चटपट। तुरन्त। जैसे–टपाटप काम निपटाना।
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टपाना  : स० [हिं० टपना का स०] १. किसी को टपने (अर्थात् निराश भाव से कष्टपूर्वक समय बिताने) में प्रवृत्त करना। ऐसा काम करना जिसमें किसी को टपना पड़े। २. पशु-पक्षियों आदि का जोड़ा खिलाना या संभोग कराना। ३. कूदने-फाँदने या लाँघने में प्रवृत्त करना। जैसे–नाले पर से घोड़ा टपाना (पश्चिम)।
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टपाल  : स्त्री० [तेलगु तप्पालु] भेजी जानेवाली चिट्ठी-पत्री आदि। डाक। (महाराष्ट्र)।
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टप्पर  : पुं० [?] १. झोपड़ा। २. छप्पर। ३. बिछाने का टाट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) मुहावरा–टप्पर उलटना=दे० टाट के अन्तर्गत मुहा० ‘टाट उलटना’।
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टप्पा  : पुं० [हिं० टाप या फा० तप्पा] १. उतनी दूरी या फासला जितना कोई चीज उछाली, कुदाई या फेंकी जाने पर एक बार में पार करे। जैसे–गेंद या गोली का टप्पा। मुहावरा–टप्पा खाना=किसी फेंकी हुई वस्तु का बीच में गिरकर जमीन से छू जाना और फिर उछलर आगे बढ़ना। २. उछाल। फलाँग। ३. दो चीजों या स्थानों के बीच की दूरी या फासला। ४. जमीन का छोटा टुकड़ा। ५. टिकने का स्थान। पड़ाव। ६. टाक-घर। ७. वह बेड़ा जिसमें पाल लगी हो। ८. बड़ी या मोटी सीयन। ९. एक प्रकार का पंजाबी लोकगीत जिसकी तीन-तीन पंक्तियों में स्वतंत्र भाव सँजोये हुए होते हैं। विशेष–इसका आरंभ पंजाब के सारबानों से हुआ था। १॰. एक प्रकार का पक्का गाना जिसमें गले के स्वरों के बहुत छोटे-छोटे टुकड़े या दाने एक विशेष प्रकार से निकाले जाते हैं। विशेष–इसका प्रचलन लखनऊ के गुलाम नबी शोरी ने किया था। ११. संगीत में एक प्रकार का ठेका जो तिलवाड़ा ताल पर बजाया जाता है। १२. एक प्रकार का हुक या काँटा।
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टब  : पुं० [अ० टब] पानी रखने का एक प्रकार का खुले मुँह का चौड़ा और बड़ा बरतन। पुं० दे० ‘टप’ (कान में पहनने का गहना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टब्बर  : पुं० [?] कुटुंब। परिवार। (पंजाब)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टमकी  : स्त्री० [सं० टंकार] डुगडुगी नाम का बाजा।
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टमटम  : स्त्री० [अ० टैडेंम] एक प्रकार की ऊँची और बड़ी दो पहियोंवाली घोड़ा-गाडी।
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टमटी  : स्त्री० [देश०] पुरानी चाल का एक प्रकार का बरतन।
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टमस  : स्त्री० [सं० तमसा] टौंस नदी। तमसा।
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टमाटर  : पुं० [अ० टमैटो] १. बैंगन की जाति का एक प्रसिद्ध पौधा जिसमें लाल रंग के गोल-गोल फल लगते हैं। २. उक्त फल जिनकी तरकारी बनाई जाती है।
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टमुकी  : स्त्री=टमकी।
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टर  : स्त्री० [अनु] १. तीव्र तथा कर्कश ध्वनि। जैसे–मेंढक का टर-टर बोलना। २. ऊँचे स्वर में कहीं हुई बात। मुहावरा–टर-टर करना या लगाना=हठपूर्वक बढ़-बढ़कर बोलते चलना। ३. अविनीत आचरण या चेष्टा। उद्दंडता। ४. जिद। हठ। ५. मुसलमानों का एक त्यौहार।
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टरकना  : अ०=टलना। अ० [अनु०] १. टर-टर शब्द होना। २. टर-टर या व्यर्थ की बकवाद करना।
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टरकनी  : स्त्री० [देश०] खेत की (विशेषतः ऊख के खेत की) की जानेवाली दुबारा सिंचाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टरकाना  : स०=टालना।
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टरकी  : स्त्री० [अनु० टर्क-टर्क से] मुरगे की जाति का एक प्रकार का पक्षी जो अनेक देशों में मुरगों की तरह पाला जाता है। विशेष–यह पक्षी मूलतः उत्तरी अमेरिका का है, और टरकी (तुर्क) देश से इसका कोई संबंध नहीं है। यह टर्क-टर्क शब्द करता है, इसी से इसका नाम पड़ा है।
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टरकुल  : वि० [हिं० टरकाना] बहुत ही साधारण या घटिया। निकम्मा।
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टरखल  : वि० [?] बुड्ढा (घृणासूचक)।
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टरगी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास।
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टरटराना  : स० [हिं० टर] १. टर-टर शब्द करना। २. घृष्टतापूर्वक बहुत अधिक या बढ़-बढ़ कर तथा जोर से बोलना।
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टरना  : अ०=टलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [देश०] तेली के कोल्हू की वह रस्सी जो ढेंका और कतरी से बँधी होती है।
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टरनि  : स्त्री० [हिं० टरना] टलने की अवस्था, क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टराना  : अ०=टरना (टलना)। स०=टारना (टालना)।
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टरू  : पुं० [हिं० टर-टर] १. बहुत टर-टर करने अर्थात् अनावश्यक रूप से बकने या बोलनेवाला व्यक्ति। २. बहुत ही कठोर और रूखे स्वभाव रूप से ऐसा व्यक्ति जो जरा सी बात पर भी लड़ने को तैयार हो जाता हो। टर्रा। आदमी। ३. मेंढ़क। ४. कौआ या भौंरा नामक खिलौना जिसे घुमाने से मेंढक की तरह का टर-टर शब्द होता है।
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टर्र-टर्र  : स्त्री० [अनु०] १. मेंढ़क का तीव्र तथा कर्कश शब्द। २. उद्दंडतापूर्वक ऊंचे स्वर में बढ-बढ़कर कहीं जानेवाली बातें जिनसे लड़ाई-झगड़ा छिड़ सकता हो।
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टर्रा  : वि० [अनु० टर टर] (व्यक्ति) जो उद्दंडतापूर्वक ऊंचे स्वर में बढ़-बढ़कर बातें करता हो। कटुवादी। २. जो जरा सी बात पर लड़ने को तैयार हो जाय। ३. कठोर तथा कर्णकटु (शब्द)
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टर्राना  : अ० [अनु० टर] ऐसी उद्दंण्डतापूर्वक और घमंड भरी बातें करना जिनसे झगड़ा या लड़ाई हो सकती हो।
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टर्रापन  : पुं० [हिं० टर्रा] उद्दंण्डतापूर्वक घमंड-भरी बातें करने का ढंग या भाव।
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टलन  : पुं० [सं०√टल् (बेचैन होना)+ल्युट-अन] धबड़ाहट। विह्वलता। स्त्री० [हिं० टलना] टलने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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टलना  : अ० [सं० टलन=विचलित होना] १. हिं टालना का अ० रूप। किसी चीज का अपने स्थान से कुछ खिसकना, सरकना या हटना। २. किसी काम से आये हुए व्यक्ति का बिना अपना काम पूरा किये चले जाना या हट जाना। जैसे–आज तो वह जैसे–तैसे टल गया, कल देखा जायगा। किसी अनिष्ट घटना या स्थिति का किसी प्रकार घटित होने से रुक जाना या कुछ समय के लिए स्थगित हो जाना। जैसे–चलो यह बला भी टली। ४. किसी काम का अपने पूर्व निश्चित समय पर न होकर स्थगित होना। जैसे–मुकदमे की तारीख टलना। ५. किसी के अनुरोध, आग्रह, आदेश, निश्चय आदि का पालन न होना। किसी की बात का न माना जाना। जैसे–उनकी आज्ञा टल नहीं सकती। ६. अपने कार्य, निश्चय, विचार आदि छोड़ना या उनसे हटना। जैसे–यह लड़का इतनी मार खाता है, पर अपनी आदतों (या शरारतों) से किसी तरह नहीं टलता। ७. बहुत कठिनता से या जैसे–तैसे समय बिताना। जैसे–आज का दिन तो किसी तरह टाले नहीं टलता। टलमल
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टलवा  : पुं० [देश०] बैल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टलहा  : वि० [देश०] [स्त्री, टलही] १. निकम्मा। रद्दी। २. जिसमें रद्दी चीजों की मिलावट हो। खोटा। जैसे–टलही चाँदी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टलाटली  : स्त्री०=टाल-मटोल।
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टलाना  : स० हिं ‘टालना’ का प्रे० रूप।
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टलुआ  : वि० [हिं० टाल] टाल संबंधी। पुं० टाल का स्वामी।
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टल्ला  : पुं० [अनु०] १. ठोकर। २. धक्का। मुहावरा–टल्ले मारना=व्यर्थ इधर-उधर घूमते रहना। ३. टाल-मटोल।
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टल्ली  : पुं० [देश०] एक प्रकार की बाँस जिसे ‘टोली’ भी कहते हैं।
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टल्लेनवीसी  : स्त्री० [हिं० टल्ला+फा० नवीसी] १. टाल-मटोल। बहानेबाजी। २. निकम्मे या निठल्ले होने की अवस्था या भाव। ३. बहुत छोटे व्यर्थ के या इधर-उधर के काम।
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टल्लो  : स्त्री० [सं० पल्लव] छोटी हरी टहनी। जैसे–आम का टल्लो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टवाई  : स्त्री० [सं० अटन-घूमना] १. भ्रमण। २. व्यर्थ का घूमना-फिरना।
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टस  : स्त्री० [अनु०] १. किसी भारी चीज के खिसकने का शब्द। २. जोर लगाये जाने पर भी भारी चीज के अपने स्थान से न हिलने की अवस्था या भाव। मुहावरा–टस से मस न होना= (क) भारी चीज का अपने स्थान से न हिलना। (ख) समझाने-बुझाने आदि पर भी अपनी अड़ या बात न छोड़ना।
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टसक  : स्त्री० [हिं० टसकना] १. टकसने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. टीस।
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टसकना  : अ० [सं० टस=ढकेलना+करण] १. अपने स्थान से थोड़ा खिसकना या हटना। २. निश्चिय, विचार आदि से थोड़ा इधर-उधर या विचलित होना। ३. रह-रहकर हलकी पीड़ा होना। टीस उठना। ४. फलों आदि का पककर गदराना [हिं० टसुआ=आँसू] धीरे-धीरे रोते हुए आँसू बहाना। बिसूरना।
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टसकाना  : स० [हिं० टसकना] १. खिसकाना। हटाना। २. विचलित करना। ३. आँसू बहाना।
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टसना  : अ० [अनु० टस] खींच पड़ने के कारण कपड़े आदि का फटना, मसकना या दरकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टसर  : पुं० [सं० त्रसर] १. मटमैले पीले रंग का एक प्रकार का रेशम। २. उक्त रेशम का बुना हुआ कप़ड़ा।
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टंसरी  : पुं० [?] एक प्रकार का वीणा।
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टसरी  : वि० [हिं० टसर] टसर के रंग का। मटमैला और पीला। गरदी। पुं० उक्त प्रकार का रंग। गरदी।
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टँसहा  : पुं० [हिं० टाँस+हा (प्रत्यय)] वह बैल जिसकी टाँग की नसें सिकुड़ गई हों और जो इसी कारण लँगड़ा कर चलता हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टसुआ  : पुं० [हिं० अँसुआ (आँसू) का अनु०] अश्रु। आँसू। क्रि० प्र०–बहाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टहक  : स्त्री० [हिं० टहकना] १. टकहने की क्रिया, अवस्था या भाव २. शरीर के अंगों में रह-रहकर दरद होने की अवस्था या भाव।
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टहकना  : अ० [अनु०] १. रह-रहकर शरीर के अंगों में दरद होना। २. पिघलना। ३. टक-टक शब्द करना।
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टहकाना  : स० [हिं० टहकना का स० रूप] पिघलाना।
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टहटहा  : वि० [हिं० टहटहाना] १. हरा-भरा। लहलहाता हुआ। ३. टटका। ताजा।
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टहटहाना  : अ०=लहलहाना।
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टहना  : पुं० [हिं० टहनी] बहुत बड़ी तथा मोटी टहनी।
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टहनी  : स्त्री० [सं० तनु] वृक्ष की शाखा। डाल। डाली।
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टहरकट्ठा  : पुं० [हिं० ठहर+काठ] काठ का वह टुकड़ा जिस पर तकले से उतारा हुआ सूत लपेटा जाता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टहरना  : अ=टहलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टहल  : स्त्री० [हिं० टहलना] १. टहलने की क्रिया या भाव। २. किसी को शारीरिक सुख पहुँचाने के लिए की जानेवाली उसकी छोटी या निम्न कोटि की सेवा। खिदमत। जैसे–पैर या सिर दबाना, बदन में तेल मलना आदि।
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टहलना  : अ० [सं० तत्+चलन्=चलना] केवल जी बहलाने, स्वास्थ्य ठीक रखने, हवा खाने आदि के उद्देश्य से धीरे-धीरे इधर-उधर चलना-फिरना या कहीं जाना। मुहावरा–(कहीं से) टहल जाना=किसी जगह से चुपचाप या धीरे से खिसक या हट जाना। चल देना।
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टहलनी  : स्त्री० [हिं० टहलुआ का स्त्री० रूप] १. टहल करनेवाली दासी। सेविका। २. मजदूरनी। स्त्री० [?] दीए की बत्ती उसकाने की छोटी लकड़ी या सींक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टहलाना  : स० [हिं० टहलना] १. किसी को टहलने में प्रवृत्त करना। मनोविनोद, स्वास्थ्य-रक्षा आदि के लिए धीरे-धीरे चलाना या घुमाना-फिराना। २. चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसाकर किसी को अपने साथ कहीं ले जाना।
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टहलुआ  : पुं० [हिं० टहल] [स्त्री० टहलुई, टहलनी] टहल या सेवा करनेवाला व्यक्ति।
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टहलुई  : स्त्री० [हिं० टहलुवा का स्त्री० रूप]=टहलनी।
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टहलुवा  : पुं०=टहलुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टहलू  : पुं=टहलुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टही  : स्त्री० [हिं० तह या तही] १. एक पर एक करके रखी हुई चीजों का ढेर या थाक। २. कोई उद्देश्य पूरा करने या काम निकालने के लिए की जानेवाली छोटी मोटी युक्ति। क्रि० प्र०–जमाना।–बैठाना।–लगाना।
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टहुआटारी  : स्त्री० [देश०] दुष्ट उद्देश्य से एक की बात दूसरों से कहने की क्रिया या भाव० चुगलखोरी(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टहूकड़ा  : पुं० [अनु०] १. कोयल के बोलने का शब्द। २. ऊँट के बोलने का शब्द। पुं०=टहूका।
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टहूका  : पुं० [हिं० ठक या ठहाका] १. पहेली। २. चमत्कारपूर्ण या हास्य रस की छोटी कहानी या बात चुटकुला। पुं०=टहूकड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टा  : स्त्री० [सं० ट-टाप्] १. पृथ्वी। २. शपथ।
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टाइटिल  : स्त्री० [अ०] १. आवरण-पत्र। २. उपाधि। ३. लेख आदि का शीर्षक। शीर्ष नाम।
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टाइप  : पुं० [अ०] धातु या लकड़ी का वह टुकड़ा जिसके एक सिरे पर कोई अक्षर या चिन्ह खुदा रहता है। विशेष–इन्हीं टुकड़ों को जोड़कर पुस्तकें, समाचार-पत्र आदि छापे जाते हैं।
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टाइप-राइटर  : पुं० दे० ‘टंकण यंत्र’।
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टाइपिस्ट  : पुं० दे० ‘टंकक’।
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टाइफायड  : पुं० [अं०] एक प्रकार का रोग जिसमें ज्वर किसी निश्चित अवधि में उतरता है। मियादी बुखार।
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टाइफोन  : पुं० दे० ‘तूफान’।
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टाइम  : पुं० [अं०] समय।
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टाइम पीस  : स्त्री० [अं०] एक प्रकार की छोटी घड़ी जिसे मेज आदि पर रखा जाता है (बाँधी या लटकाई जानेवाली घड़ियों से भिन्न)।
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टाइम-टेबुल  : पुं० दे० ‘समय सारिणी’।
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टाई  : स्त्री० [अं०] १. अँगरेजी पहनावे के अन्तर्गत विशेष ढंग से सिली हुई कपड़े की वह पट्टी जिसे गले में कमीज के कालर के ऊपर बाँधा जाता है और जिसके दोनों सिरे सामने लटकते रहते हैं। २. प्रतियोगिता आदि में होनेवाली जिच्च। ३. जहाज के ऊपर के पाल की वह रस्सी जिसकी मुद्दी मस्तूल के छेदों में लगाई जाती है।
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टाउन  : पुं० [अं०] दे० ‘नगर’।
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टाउन-हाल  : पुं० [अं०] किसी नगर का वह सार्वजनिक भवन जिसमें बड़ी-बड़ी साभाओं के अधिवेशन आदि होते हों।
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टाँक  : स्त्री० [सं० टंक] १. तीन या चार मासे की एक पुरानी तौल। २. प्रायः २५ सेर का एक पुराना बाट जिसकी सहायता से धनुष की शक्ति की परीक्षा की जाती थी। ३. अंश। भाग। हिस्सा। स्त्री० [हिं० टाँकना] १. टाँकने की क्रिया या भाव। २. लिखावट या लेख। ३. लिखने की कलम का अगला भाग या सिरा। स्त्री० [हिं० आँकना] मान, मू्ल्य आदि का अनुमान कूत।
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टाँकना  : स० [सं० टंकण=बाँधना] १. सूई, डोरे आदि से सीकर कोई चीज कपड़ों पर लगाना। जैसे–साड़ी पर बेल या सलमासितारे टाँकना; कमीज या कोट में बटन टाँकना। २. दो चीजों को आपस में जोड़ने, मिलाने आदि के लिए किसी प्रकार उनमें टाँका (देखें) लगाना। ३. किसी क्रिया से कोई चीज किसी दूसरी चीज के साथ अटकाना या लगाना। ४. चक्की, सिल आदि को टाँकी से रेहना। ५. आरी, रेती आदि के दाँत, किसी क्रिया से चोखे, तेज या नुकीले करना। ६. स्मरण रखने के लिए अथवा हिसाब ठीक रखने के लिए कोई बात या रकम कहीं लिखना। जैसे–(क) जाकड़ दिया हुआ माल बही पर टाँकना, कापी पर किसी का पता टाँकना। ७.लिखित रूप में कोई च़ीज; या बात किसी के सामने उपस्थित करना। (क्व०) ८. भोजन करना। खाना। जैसे–वह सारी मलाई टाँक गया। ९. किसी प्रकार के लेन-देन में, बीच में से कुछ रकम निकाल या हथिया लेना। (दलाल) जैसे–मकान की बिक्री में सौ रुपये वह भी टाँक गया।
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टांकर  : पुं० [सं० टंक+अण्, टांक√रा (देना)+क] १. व्यभिचारी। २. कामुक या विषयी व्यक्ति।
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टाकरा  : पुं०=टाकरी (लिपि)।
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टाकरी  : स्त्री० [टक्क देश] टक्क देश अर्थात् चनाब और व्यास नदियों के बीच के प्रदेश में प्रचलित एक प्रकार की लिपि जो देवनागरी वर्णमाला का ही एक लेखन प्रकार है।
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टाँकली  : स्त्री० [सं० ढक्का] पुरानी चाल का एक तरह का बड़ा ढोल। स्त्री० [देश०] वह गराड़ी या घिरनी जिसकी सहायता से जहाज के पाल लपेटे जाते हैं। (लश०)
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टाँका  : पुं० [हिं० टाँकना] १. हाथ की सिलाई में, धागे आदि की वह सीयन जो एक बार सूई को एक स्थान से गडा़कर दूसरे स्थान पर निकालने से बनती है। जैसे–(क) इस लिहाफ में टाँके बहुत दूर-दूर पर लगे हैं। (ख) उनके घाव में चार टाँके लगे हैं। २. उक्त प्रकार से जोड़ी, टाँकी या लगाई हुई चीजों का वह अंश जहाँ जोड़ दिखाई पड़ता हो। ३. सूई, तागे आदि से की हुई सिलाई या ऊपर से दिखाई देनेवाले उसके चिन्ह। सीवन। ४. उक्त प्रकार से टाँक लगाकर जोड़ा जानेवाला टुकड़ा। चकती। थिगली। ५. कड़ी धातुओं को आपस में जोड़ने या सटाने के लिए उनके बीच में मुलायम धातु या मसाले से लगाया हुआ जोड़। जैसे–इस थाली ( या लोटे) का टाँका बहुत कमजोर है। मुहावरा–(किसी के) टांके उधड़ना=बहुत ही दुर्गत या दुर्दशा होना। जैसे–इस मुकदमें में उनके टाँके उधड़ गये। ६. धातुएँ जोड़ने का मसाला। पुं० [सं० टंक-गड्ढा या अं० टैंक] [स्त्री० अल्पा० टंकी टाँकी] १. पानी आदि भरकर रखने के लिए वह आधान जो चारों ओर छोटी दीवारें खड़ी करके बनाया जाता है। चहबच्चा। हौज। २. पानी रखने का बड़ा गोलाकार बरतन। कंडाल। लोहे की बड़ी छेनी या ‘टाँकी’।
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टाँकाटूक  : वि० [हिं० टाँक+तौल] तौल में ठीक-ठाक। वजन में पूरा-पूरा। (दूकानदार)
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टांकार  : पुं०=टंकार।
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टाँकी  : स्त्री० [सं० टंक] १. दो चीजों को जोड़नेवाला छोटा टाँका। २. छेनी की तरह का संगतराशों का एक औजार जिससे पत्थर काटे और तोड़े जाते हैं। मुहावरा (किसी चीज पर) टांकी बजना=टाँकी का आघात होना। ३. फलों आदि में से काटकर निकाला हुआ कुछ गोलाकार अंश अथवा इस प्रकार काटने से उनमें बननेवाला छेद या सूराख जिससे उनकी भीतरी स्थिति का पता चलता है। ४. गरमी। सूजाक आदि रोगों के कारण शरीर में होनेवाला घाव या व्रण। ५. एक प्रकार का फोड़ा। डुंबल। ६. आरी का नुकीला दाँत या दाँता। स्त्री० दे० (टंकी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाँकीबंद  : वि० [हिं० टाँकी फा०=बंद] (वस्तु या रचना) जिसके विभिन्न अंगों को टाँके लगाकर जोड़ा गया हो। जैसे–टाँकीबंद जोड़ाई, टाँकीबंद इमारत।
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टाकू  : पुं०=तकला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाँग  : स्त्री० [सं० टंग] १. मनुष्य के शरीर का चूतड़ और एड़ी के बीच का अंग जिसमें रान, घुटना, पिंडली टखना आदि अवयव सम्मिलित हैं। विशेष–कभी कभी टाँग से घुटने और एड़ी के बीच के अंग मात्र का बोध होता है। मुहावरा–(किसी काम या बात में) टाँग अड़ाना=किसी काम में प्रायः अनावस्यक रूप से और केवल अपना अधिकार या जानकारी दिखलाने के लिए हस्तक्षेप करना। (किसी की) टांग तले से या नीचे से निकलना-नीचा देकना, अपनी छोटाई या हार मान लेना। विशेष–इस मुहावरे का प्रयोग ऐसी ही अवस्था में होता है जबकि वक्ता को अपने कथन या पक्ष की प्रामाणिकता सिद्ध करनी होती है और किसी दूसरे को इसके विपरीत चुनौती देनी होती है। (किसी की) टाँग तोड़ना=पंगु बनाना। नष्ट-भ्रष्ट करना। जैसे–भाषा की तो आपने टाँग तोड़ दी है। (किसी की) टाँग से टाँग बाँध कर बैठना=किसी के पास बैठे रहना अथवा उसे अपने पास से न हटने देना। टाँगे पसार कर सोना=निश्चित होकर सोना। पद–टाँग बराबर=बहुत छोटा। २. कुश्ती का एक पेंच जिसमें विपक्षी की टाँग में टाँग अड़कार उसे चित गिराते हैं। ३. चतुर्थांश। चौथाई भाग। चहारुम। (दलाल)
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टाँगन  : पुं० [सं० तुरंगम] छोटे कद का घोड़ा। टट्टू।
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टाँगना  : स० [हिं० टँगना का स०] १. किसी चीज को किसी ऊँचे स्थान पर इस प्रकार अटकाना, बाँधना या लगाना कि वह बिना आधार के अधर में खड़ी, झूलती या लटकती रहे। जैसे–(क) रस्सी पर कपड़े या खूँटी में छीका टाँगना। (ख) दीवार पर घड़ी या चित्र टाँगना। २. छीकें आदि पर कोई चीज सुरक्षा के लिए रखना। जैसे–दही दूध या तरकारी टाँगना। ३. फाँसी पर चढ़ना या लटकाना। विशेष–टाँगना में मुख्य भाव किसी चीज के ऊपरी भाग को कहीं लगाने का और लटकाना में चीज के नीचेवाले भाग के झूलते या लटकते रहने का है।
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टाँगा  : पुं० [सं० टंग] [स्त्री० अल्पा० टांगी] बड़ी कुल्हाड़ी। पुं० [हिं० टाँगन] दो ऊँचे पहियोंवाली एक प्रकार की गाड़ी जिसमें एक घोड़ा जोता जाता है।
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टाँगानोचन  : स्त्री० [हिं० टाँग+नोचना] खींचा–तानी। खींचा–खींची।
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टाँगी  : स्त्री० [हिं० टाँगा] कुल्हाड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाँगुन  : स्त्री० [देश०] बाजरे की तरह का एक कदन्न जिसे उबालकर गरीब लोग खाते हैं।
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टाँघन  : पं०=टाँगन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाँच  : स्त्री० [हिं० टाँचना] टाँचने की क्रिया या भाव। २. किसी चीज में लगाया जानेवाला टाँका। ३. कहीं टाँककर लगाई हुई वस्तु। ४. किसी चीज को काट या छीलकर ठीक करने की क्रिया या भाव। ५.किसी चीज में से काटकर निकाला हुआ अंश। ६. ऐसी उक्ति या कथन जिसके फलस्वरूप किसी का बना या होता हुआ काम बिगड़ जाय या न होने पाये। क्रि० वि०–मारना।
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टाँचना  : स० [हिं० टाँकना] १. टाँका लगाना। टाँकना। २. काट या छीलकर किसी चीज को कोई रूप देना। ३. किसी चीज में से काटकर कुछ अंश निकाल लेना। ४. कोई उलटी-सीधी बात कहकर किसी के बनते या होते हुए काम में बाधा खड़ी करना। टाँच मारना।
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टाँची  : स्त्री० [सं० टंक=रुपया] रुपए रखने की एक प्रकार की पतली लंबी थैली। बसनी। स्त्री=टाँच।
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टाँचु  : स्त्री०=टाँच।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाँट  : स्त्री० [?] सिर का ऊपरी भाग। खोपड़ी। मुहावरा–टाँट के बाल तक उड़ जाना=बहुत अधिक दुर्दशा होना। टाँट खुजलाना (अकर्मक)-दुर्दशा कराने या मार खाने की इच्छा या प्रवृत्ति होना। टाँट खुजलाना (सकर्मक) –दुर्दशा होने पर लज्जित भाव से पछताना। टाँट गंजी होना–टाँट के बाल तक उड़ जाना। (देखें ऊपर)।
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टाट  : पुं० [अनु०] १. पटुए, सन आदि की डोरियों से बुनकर तैयार की हुई मोटी कपड़े की तरह की वह रचना जो प्रायः बिछाने, परदों आदि के रूप में टाँगने और बाहर भेजा जानेवाला माल बाँधने आदि के काम आती है। पद–टाट में मूँज का बखिया=एक भद्दी चीज की सजावट में लगी हुई दूसरी भद्दी चीज। टाट मे पाट का बखिया=एक भद्दी चीज की सजावट में लगी हुई दूसरी बढिया चीज। २. एक ही बिरादरी के वे सब लोग जो मध्ययुग में पंचायतों आदि के समय एक ही टाट पर बैठा करते थे। ३. उक्त के आधार पर कोई उप-जाति या बिरादरी। पद–टाट बाहर=जो किसी उप-जाति या बिरादरी से निकाला या बहिष्कृत किया गया हो। ४. महाजनों, साहूकारों आदि के बैठने की गद्दी और उसके आस-पास का बिछावन जो एक टाट के ऊपर बिछा हुआ होता है, और जिस पर बैठकर वे रोजगार या लेन-देन करते हैं। जैसे–अपने टाट पर बैठकर किया जानेवाला सौदा अच्छा होता है। मुहावरा–(महाजन या साहूकार का) टाट उलटना=दिवालिया बनकर पावनेदारों का भुगतान बंद कर देना। जैसे–लक्षणों से तो ऐसा जान पड़ता है कि दस-पाँच दिन में वह टाट उलट देगा। ५. टाट की वह थैली जिसमें एक हजार रुपये आते हैं। ६. महाजनी बोलचाल में एक हजार रुपये। जैसे–इस मुकदमें में चार टाट लग गये। वि० [अं० टाइट] अच्छी तरह कसा, बैठाया या जमाया हुआ। (लश०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाटक  : वि०=टटका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाटबाफी जूता  : पुं० [फा० तारबाफी] कामदार जूता।
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टाँटर  : स्त्री०=टाँट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाटर  : पुं० १.=टट्टर। २.=टाँट (खोपड़ी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाटा  : वि०=टाठा (हृष्ट-पुष्ट)। वि०=टाठा (सूखा हुआ)।
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टाटिका  : स्त्री०=टट्टी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाटी  : स्त्री=टट्टी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाँठ  : वि०=टाँठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाठ  : पुं० [सं० स्थाली] [स्त्री० अल्पा० टाठी] १. बड़ी थाली। थाल। २. बटुआ या बटलोई नाम का बरतन।
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टाँठा  : वि० [अनु० ठन-ठन या सं० स्थाणु] जो पक या सूखकर कड़ा और नीरस हो गया हो। वि०=टाठा।
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टाठा  : वि० [सं० दृढांग] [स्त्री० टाठी] १. मोटा-ताजा। हृष्ट-पुष्ट। २. उग्र। विकट। वि०=टाँठा (सूखा हुआ)।
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टाँड़  : स्त्री० [हिं० स्थाणु या हिं० टाँड़ा ?] १. चीजें रखने के लिए दो दीवारों या आलमारी के बीच में बेड़े बल में लगा हुआ लकड़ी का तख्ता या पत्थर। २. लकड़ी के खंभो या पायों से युक्त वह रचना जिसमें सामान रखने के लिए बेड़े बल में कुछ तख्ते लगे हुए होते हैं। (रैक) ३. लकड़ी आदि के खंबो पर बनी हुई कोई छोटी रचना। जैसे–मचान। ४. बाँस का पोला डंडा जो हल में जुड़ा रहता है और जिसके ऊपरी सिरे पर लकड़ी का कटोरेनुमा टुकड़ा संबद्ध रहता है। ५. गुल्ली-डंडा के खेल में डंडे से गुल्ली पर किया जानेवाला आघात। क्रि० प्र०–मारना।–लगाना। ६. कंकरीली मिट्टी। पुं० १.=टाँड़ा। २. टाल (ढेर या राशि)। स्त्री०=टाड़।
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टाड़  : स्त्री० [सं० ताड़] भुजाओं पर पहनने का एक प्रकार का चौड़ी पट्टीवाला बाजूबंद। स्त्री=टाँड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टाडर  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की चिड़िया।
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टाँड़ा  : पुं० [हिं० टाँड़=समूह] १. चौपायों का वह झुंड या दल जिस पर व्यापारी लोग माल लादकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाते थे। २. उक्त प्रकार से माल कहीं ले जाने या कहीं से लाने की क्रिया अथवा अवस्था। ३. उक्त प्रकार से लादकर लाया या ले जाया जानेवाला माल। क्रि० प्र०–लादना। ४. पैदल, यात्रियों, बंजारों, व्यापारियों आदि के दलों का कूच या प्रस्थान। ५. उक्त प्रकार के लोगों का जत्था या दल। उदाहरण–लीजे बेगि निबेरि सूर प्रभु यह पतितन को टाँड़ो।–सूर। ६. वह स्थान जहाँ उक्त प्रकार के यात्री अथवा जंगली यायावर जातियों के लोग कुछ समय के लिए ठहरते या अस्थायी रूप से घर बनाकर अथवा पड़ाव डालकर रहते हैं जैसे–आज-कल कंजरों का टांड़ा पड़ा है। ७. कुंटुब। परिवार। पुं० [सं० टैंड, हिं० टुंड] एक प्रकार का हरा कीड़ा जो गन्ने आदि की जड़ों में लगकर फसल को हानि पहुँचाता है। क्रि० प्र०–लगना।
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टाड़ा  : पुं० [देश०] १. मिट्टी का तेल रखने का एक प्रकार का बरतन। २. लकड़ियों में लगनेवाला एक प्रकार का कीड़ा।
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टाँड़ी  : स्त्री०=टिट्डी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टान  : स्त्री० [सं० तान-फैलाव, खिंचाव] १. तनाव। खिंचाव २. आकर्षण। ३. छापे के यंत्र में, कागज हर बार छापे जाने का भाव। ४. सारंगी, सितार आदि के परदों पर उँगली रखकर उसे इस प्रकार खींचना कि क्रमात् कई स्वर या उनकी श्रुतियाँ निकलती चलें। ५. साँप के दाँत लगने का एक प्रकार जिससे दाँत कुछ दूर तक खरोंच डालता हुआ बाहर निकलता है। स्त्री०=टाँड़।
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टानना  : स० [हिं० टान+ना (प्रत्य०)] १. तानना। २. खींचना। ३. छापे के यंत्र में कागज लगाकर कुछ छापना।
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टाप  : स्त्री० [सं० स्तप्] १. गधे और घोड़े के पैर का वह निचला भाग जिसमें खुर होता है और जमीन पर पड़ता है। २. उक्त भाग के जमीन पर पड़ने से होनेवाला शब्द। ३. खंभे पाये आदि का जमीन से लगा रहनेवाला अंश। ४. वह खाँचा जिसकी सहायता से तालाबों आदि में से मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। ५. वह खाँचा जिसके नीचे मुरगियाँ बन्द करके रखी जाती हैं।
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टापड़  : पुं० [हिं० टप्पा] ऊसर मैदान।
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टापदार  : वि० [हिं० टाप+फा० दार] जिसके ऊपर या नीचे का छोर कुछ फैला हुआ और चौड़ा हो। जैसे–टापदार पाया।
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टापना  : अ० [हिं० टाप+ना (प्रत्यय)] घोड़ों का इस प्रकार पैर पटकना जिससे टप-टप शब्द हो। खूँद करना। अ०=टपना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टापर (ा)  : पुं० [देश०] १. ओढ़ने का मोटा कपड़ा। चादर। २. टट्टू, टाँघन या ऐसे ही किसी और चौपाये की सवारी। ३. तिरपाल। ४. झोंपड़ा।
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टापा  : पुं० [हिं० टापना] १. भूमि का वह विस्तार जिसे टापकर पार करने में कुछ समय लगता हो। टप्पा। २. ऊसर या बंजर मैदान। ३. चलने के समय भरा जानेवाला डग। मुहावरा–टापा देना या भरना=लंबे-लंबे डग बढ़ाते हुए आगे बढ़ना या चलते बनना। उदाहरण–राम नाम जाने नहीं, आयेटापा दीन।–कबीर। ४. व्यर्थ की उछल-कूद। ५. चीजें ढकने का एक प्रकार का टोकरा। ६. वह खाँचा या टोकरा जिसमें मुरगियाँ आदि बन्द करके रखी जाती हैं। ७. खाँचे या टोकरे की तरह का वह ढाँचा जो बहुत सी मछलियाँ एक साथ पकड़ने या फँसाने के काम आता है।
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टापू  : पुं० [हिं० टापा या टप्पा-ऐसा स्थान जहाँ टाप या लाँघकर जाना पड़े] १. स्थल का वह भाग जो चारों ओर जल से घिरा हो। द्वीप। २. दे० ‘टापा’।
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टाबर  : पुं० [पंजाबी टब्बर] १. बाल-बच्चे। सन्तान (राज०) २. परिवार। पुं० [?] छोटा जलाशय या झील।
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टाबू  : पुं० [देश०] पशुओं के मुँह पर बाँधी जानेवाली जाली।
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टामक  : पुं० [अनु०] १. डुग्गी का शब्द। २. डुग्गी।
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टामन  : पुं० [सं० तंत्र] तंत्रविधि। टोटका।
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टामी  : पुं० [अं० टॉमी] सेना का साधारण विशेषतः गोरा सिपाही।
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टांय-टाँय  : स्त्री० [अनु०] कर्कश स्वर में कहीं जानेवाली व्यर्थ की बात। बक-बक। मुहावरा–टाँय-टाँय फिस होना=बहुत ही लम्बी-चौड़ी बातों के बाद भी उनका कोई परिणाम या फल न निकलना।
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टार  : पुं० [सं० टा√ऋ (गति)+अण्] १. घोड़ा। २. लौंड़ा। ३. कुटना। दलाल। पुं० टाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टारकोल  : पुं० [अं०] अलकतरा।
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टारन  : पुं० [हिं० टारना] १. टारन अर्थात् टालने की क्रिया या भाव। २. वह उपकरण जिससे कोई चीज टाल या हटाकर एक जगह इकट्ठी की जाती है। ३. वह लकड़ी जिससे कोल्हू में की गँड़ेरियाँ चलाई जाती हैं। वि० टालने, हटाने या दूर करनेवाला।
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टारना  : स०=टालना।
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टारपीडो  : पुं० [अं०] समुद्री जहाजों को नष्ट करने के लिए जल में छोड़ा जानेवाला एक प्रकार का लंबोत्तरा गोला।
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टाल  : पुं० [सं० अट्टाल, हिं० अटाला] १. एक दूसरी पर लादकर रखी हुई बहुत सी चीजों का ऊँचा और बड़ा ढेर। अंबार। अटाला। राशि। जैसे–पत्थरों या लकड़ियों का टाल। २. पायल, भूसे, लकड़ी आदि की दूकान जहाँ इन चीजों का उक्त प्रकार का ढेर लगा रहता है। पुं० [देश०] १. गौओं, बैलों आदि के गले में बाँधा जानेवाला एक प्रकार का घंटा। २. बैल गाड़ी के पहिए का किनारा। पुं० [हिं० टालना] १. किसी काम या बात के लिए किसी को टालने की क्रिया या भाव। हीला-हवाला। पद–टाल-मटोल (देखें)। मुहावरा–टाल मारना=कोई चीज तौलने के समय कोई ऐसी चालाकी या युक्ति करना कि वह चीज तौल में पूरी न होने पावे। पुं० [सं० टार=अप्राकृतिक संभोग करानेवाला लड़का] व्यभिचार के लिए स्त्री और पुरूष को आपस में मिलानेवाला व्यक्ति। औरतों का दलाल। कुटना।
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टाल-टूल  : स्त्री०=टाल-मटोल।
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टाल-मटाल  : स्त्री=टाल-मटोल।
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टाल-मटूल  : पुं०=टाल-मटोल।
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टाल-मटोल  : स्त्री० [हिं० टालना में का टाल+अनु० मटोल] १. सामने आया हुआ काम तुरंत पूरा न करके उसे बार-बार दूसरे समय के लिए टालते रहने की क्रिया या भाव। २. किसी विशिष्ट उद्देश्य से आये हुए व्यक्ति का काम पूरा न करके उसे बार-बार टालते रहने की क्रिया या भाव।
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टालना  : स० [हिं० टलना०] १. किसी को उसके स्थान से खिसकाना या हटाना। २. अपना कोई उद्देश्य सिद्ध करने के लिए किसी को किसी बहाने से अपने सामने से दूर करना या हटाना। जैसे–जब वह शराब पीने बैठता था, तब लड़कों को अपने कमरे से टाल देता था। ३. किसी उद्देश्य से आये हुए व्यक्ति का उद्देश्य पूरा न करके किसी बहाने से उसे कुछ समय के लिए दूर कर देना या हटा देना। टरकाना। जैसे–जब उससे रुपए माँगने जाओ, तब किसी न किसी बहाने से हमें वह टाल देता है। ४. अनिष्ट घटना या स्थिति से किसी को रक्षित रखने अथवा स्वंय रक्षित रहने के लिए किसी युक्ति से उसे घटित न होने देना या दूर करना। जैसे–(क) किसी की विपत्ति या संकट टालना। (ख) अपने मन में आया बुरा विचार टालना। ५. कोई काम अपने पूर्व-निश्चित समय पर न करके उसे किसी और समय के लिए छोड़ रखना। जैसे–परीक्षा या विवाह की तिथि टालना। ६. जो काम अभी किया जाने को हो, उसे किसी और समय के लिए छोड़ रखना। जैसे–इस तरह हर काम टालने की आदत छोड़ दो। मुहावरा–(कोई काम या बात) किसी पर टालना=स्वंय कोई काम या बात करके यह कह देना कि इसे अमुक व्यक्ति कर सकता है या करेगा। जैसे–तुम तो अपना सारा काम मुझ पर टाल दिया करते हो। ७. किसी के अनुरोध, आज्ञा, परामर्श आदि की उपेक्षा करना या उस पर उचित ध्यान न देना। जैसे–आप की बात मैं किसी तरह टाल नहीं सकता। ८. कोई अनुचित काम या बात होती हुई देखकर भी उसकी उपेक्षा करना या उस पर ध्यान न देना। तरह दे जाना। बचा जाना। जैसे–अब तक तुम्हारे सब दुर्व्यवहार हम टालते आये हैं, पर आगे के लिए तुम्हें सावधान करना चाहिए। ९. बहुत कठिनता से समय व्यतीत करना। ज्यों-त्यों करके वक्त बिताना। उदाहरण–राम बियोग असोक बिटप तर सीय निमेष कलप सम टारति।–तुलसी।
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टालम-टाल  : वि० [हिं० टाला=आधा] (धन, संपत्ति) जिसका आधा भाग एक व्यक्ति के हिस्से में और आधा भाग किसी दूसरे व्यक्ति के हिस्से में आया हो या आने को हो। आधा-आधा। (दलाल) जैसे–यह रकम हम लोग आपस में टालम-टाल बाँट लेगें।
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टाला  : वि० [हिं० टाली] आधा । (दलाल)
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टाली  : स्त्री० [देश टलटल से अनु०] १. गाय, बैल आदि के गले में बाँधने की घंटी। २. बहुत चंचल बछिया या छोटी गौ। ३. एक प्रकार का बाजा। स्त्री० [देश०] आठ आने का सिक्का। अठन्नी (दलाल)। पुं० [देश०] शीशम का पेड़ और उसकी लकड़ी। (पश्चिम)।
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टाल्ही  : पुं०=टाली (शीशम)।
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टाँस  : स्त्री० [हिं० टाँसना] १. हाथ या पैर के मुड़ने या मोड़े जाने पर उसमें होनेवाला तनाव। २. उक्त तनाव के फलस्वरूप होनेवाली पीड़ा।
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टाँसना  : स० [?] किसी का हाथ या पैर मरोड़कर उसमें तनाव उत्पन्न करना। अ० तनाव उत्पन्न होने के फलस्वरूप अंग में पीड़ा होना। स० १.=टाँटना। २.=टाँकना।
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टाहली  : पुं०=टहलुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिक  : स्त्री० [अनु०] किसी यंत्र विशेषतः घड़ी के चलने से होनेवाला शब्द। टिकटिक। पुं० आटे आदि का टिक्कर या लिट्टी नाम का पकवान।
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टिकई  : वि० [हिं० टीका०] जिसमें या जिस पर टीका लगा हुआ हो अथवा टीके के आकार के चिन्ह बने हुए हों। स्त्री० वह गाय जिसके माथे पर दूसरे रंग के ऐसे बाल होते हैं जो लगाये हुए टीके की तरह जान पडते हैं।
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टिकट  : पुं० [अं०] कागज, दफ्ती आदि का कुछ विशिष्ट चिन्ह्रों से युक्त वह छोटा टुकड़ा जो कुछ निश्चित मूल्य पर बिकता और खरीदने वाले को कोई विशिष्ट कार्य करने, कहीं आने-जाने या कुछ भेजने-मँगाने आदि का अधिकारी बनाया जाता है अथवा इस बात का प्रमाण-पत्र होता है कि खरीदने-वाले ने देन चुकाकर कोई काम करने का अधिकार प्राप्त कर लिया है। जैसे–डाक, रेल या सिनेमा का टिकट। पुं० दे० ‘टैक्स’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकट-घर  : पुं० [अं० +हिं०] वह स्थान जहाँ कुछ विशिष्ट कार्यों के लिए टिकट बिकते हों। जैसे–रेलवे या सिनेमा का टिकट घर।
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टिकटिक  : स्त्री० [अनु०] १. घोड़े, बैल आदि हाँकने के लिए किया जानेवाला टिकटिक शब्द। २. घड़ी के चलते रहने की दशा में उसमें होनेवाला शब्द।
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टिकटिकी  : स्त्री० [अनु०] १. भूरापन लिये लाल रंग का एक प्रकार की चिड़िया। २. दे० ‘टिकठी’।
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टिकठी  : स्त्री० [सं० चित्रकाष्ठ, या हिंतीन+काठ०] १. मध्ययुग में लकड़ियों का वह ढाँचा जिसमें अपराधियों के हाथ-पैर उन्हें मारने-पीटने के समय बाँध या जकड़ दिये जाते थे। २. उक्त प्रकार का वह छोटा चौखटा या ढाँचा जिसमें फाँसी पाने वाले अपराधियों को खड़ा करके उनके गले में फाँसी का पंदा लगाया जाता है। ३. मृत शरीर या शव का श्मशान तक ले जाने के लिए बनाया जानेवाला बाँसों, लकड़ियों आदि का ढाँचा। अरथी। ४. जुलाहों का वह ढाँचा जिस पर वे कलफ या माँडी़ लगाने के लिए कपड़ा फैलाते हैं। ५. दे० ‘तिपाई’।
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टिकड़ा  : पुं० [हिं० टिकिया] [स्त्री० अल्पा० टिकड़ी] १. किसी जीव का छोटा विशेषतः चिपटा गोल टुकड़ा। २. गले में पहने जानेवाले आभूषणों में लटकता रहनेवाला धातु का वह गोल खंड जिसमें नग आदि जड़े रहते हैं। ३. जड़ाऊ गहनों में बना हुआ उक्त प्रकार का विभाग। ४. आँच पर सेंककर पकाई हुई छोटी चिपटी मोटी रोटी। क्रि० प्र०–लगाना। ५. प्रसूता, स्त्रियों को खिलाई जानेवाली वह रोटी जिसके आटे में अजवाइन, सोंठ आदि मसाले मिले रहते हैं।
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टिकड़ी  : स्त्री० [हिं० टिकड़ा] आँच पर सेंककर पकाई हुई छोटी चिपटी रोटी। टिकड़ा।
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टिकना  : अ० [सं० टिक] १. किसी आधार पर ठीक प्रकार से खड़ा या स्थित होना। जैसे–(क) चौकी पर मोमबत्ती का टिकना। (ख) छड़ी की नोक पर तश्तरी का टिकना। २. यात्रा के समय विश्राम के लिए बीच में कहीं ठहरना या रुकना। जैसे–धर्मशाला में यात्रियों का टिकना। ३. प्रवास में किसी के यहाँ अतिथि के रूप में ठहरना। ४. कुछ समय के लिए अस्तित्व में बने रहना। जैसे–प्रथा का टिकना। ५. किसी चीज का ठीक या प्रसम स्थिति में बने रहना फलतः दूषित या विकृत न होना। जैसे–(क) गरमी की अपेक्षा सरदी में पकाई या पकी हुई चीजें अधिक टिकती हैं। (ख) यह कपड़ा या जूता अधिक टिकेगा। ६. (ध्यान आदि के संबंध में) केंद्रित होना। जैसे–ध्यान टिकना। ७. किसी धुली हुई वस्तु का नीचे बैठना। तल में जमना।
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टिकरी  : स्त्री० [हिं० टिकिया] १. एक नमकीन पकवान जो बेसन और मैदे की टिकियों को एक में बेलकर और घी में तलकर बनाया जाता है। २. टिकिया। ३. सिर पर पहनने का एक प्रकार का गहना। ४. हलके काले या मटमैले रंग का एक प्रकार का बड़ा जल-पक्षी। स्त्री०=टोकरी (छोटा टीला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकली  : स्त्री० [हिं० टीका] १. काँच पन्नी आदि का छोटा टुकड़ा जिसे स्त्रियाँ माथे पर लगाती हैं। २. टीका नामक आभूषण। स्त्री० [हिं० टिकिया] छोटी टिकिया। स्त्री०–तकली।
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टिकसा  : पुं० १.=टिकट। २.=टैक्स। (कर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकसार  : वि०=टिकाऊ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिका  : पुं०=टीका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकाई  : पुं०=टिकैत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकाऊ  : वि० [हिं० टिकना] (चीज) जो अधिक समय तक टिके अर्थात् उपयोग या व्यवहार में आती रहे या आ सके। जैसे–टिकाऊ कपड़ा।
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टिकान  : स्त्री० [हिं० टिकना] १. टिकने की अवस्था क्रिया या भाव। २. वह स्थान जहाँ पर कोई टिके या बराबर टिकता हो। ३. दे० ‘टेकान’।
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टिकाना  : स० [हिं० टिकना] १. किसी आधार पर किसी चीज का खड़ा करना या ठहराना। टिकने में प्रवृत्त करना। २. किसी के टिकने अर्थात् कुछ समय तक ठहरने या रहने की व्यवस्था करना। ३. किसी को कहीं टिकने या रहने देना। जैसे–बरात धर्मशाला में टिकाई जायगी। ४. किसी को अपने यहाँ अतिथि रूप में ठहराना या रखना। ५. सहारे पर खड़ा करना। ६. सहारा देना। ७. चुप-चाप या धीरे-से किसी के हाथ में कोई चीज दे देना। (दलाल)
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टिकानी  : स्त्री० [हिं० टिकाना] छकड़ा गाडी की वे दोनों लकड़ियाँ जिनमें रस्सी से पैजनी बँधी होती है।
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टिकाव  : पुं० [हिं० टिकना] १. टिके हुए होने की अवस्था या भाव। २. स्थिरता। ३. टिकाने का स्थान। ४. पड़ाव।
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टिकिया  : स्त्री० [सं० वटिका] १. कोई गोलाकार चिपटी कड़ी तथा छोटी वस्तु। जैसे–दवा या स्याही की टिकिया। २. कोयले की बुकनी से बना हुआ वह गोल टुकड़ा जिसे सुलगाकर तमाखू पीते हैं। ३. उक्त आकार की एक मिठाई। ४. बाटी। लिट्टी। ५. बरतन के साँचे का ऊपरी भाग जिसका सिरा बाहर निकला रहता है। स्त्री० [हिं० टीका] १. माथा। ललाट। २. माथे परलगी हुई बिंदी। ३.=टिक्की।
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टिकुरा  : पुं० [देश०] टीला। भींटा। पुं०=टिकड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकुरी  : स्त्री०=टिकली (तकली) स्त्री०=दे० ‘निसोथ’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकुला  : पुं० [स्त्री० टिकुली]=टीका (माथे पर का)। पुं०=टिकोरा (छोटा कच्चा आम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकुली  : स्त्री=टिकली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकुवा  : पुं०=टेकुआ (तकला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकैत  : पुं० [हिं० टीका+ऐत (प्रत्यय)] १. राजा का वह पुत्र जो उसके बाद राजतिलक का अधिकरी हो। राजा का उत्तराधिकारी कुमार। युवराज। २. अधिष्ठाता। ३. जिसके मस्तक पर नेतृत्व का तिलक लगाया गया हो, अर्थात् सरदार।
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टिकोर  : स्त्री०=टकोर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकोरा  : पुं० [हिं० टिकिया] आम का कच्चा छोटा फल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिकोला  : पुं=टिकोरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिक्क  : पुं० [हिं० टिकिया] १. बड़ी टिकिया। २. आग पर सेंकी हुई मोटी रोटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिक्का  : पुं० १.=टिकड़ा। २.=टीका। ३.=टिकैत (पश्चिम)। पुं० [देश०] मूँगफली की फसल में होनेवाला एक रोग।
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टिक्की  : स्त्री० [हिं० टिकिया] १. छोटी टिकिया। २. छोटी पूरी या रोटी। ३. ताश के पत्ते पर की बूटी। बुँदकी। ४. संकेत आदि के लिए किसी रंग की वह बिंदी जो उंगली के पोर से लगाई जाती है।
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टिखटी  : स्त्री०=टिकठी।
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टिघलना  : अ०=पिघलना।
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टिघलाना  : स०=पिघलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिचन  : वि० [अं० अटेंशन] १. जो हर तरह से बिलकुल ठीक या दुरुस्त हो। २. किसी काम के लिए तैयार या लैस। प्रस्तुत।
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टिट  : स्त्री० [हिं० टेक] जिद। हठ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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टिटकारना  : स० [अनु०] [भाव० टिटकारी] टिकटिक शब्द करते हुए घोड़ों आदि का हाँकना।
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टिटकारी  : स्त्री० [हिं० टिटकारना] १. टिक-टिक शब्द करते हुए पशुओं को हाँकने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. मुँह से निकलनेवाला टिकटिक शब्द। क्रि० प्र०–देना।
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टिटिनिका  : स्त्री० [सं०] १. जल सिरिस का पेड़। दाढ़ौन। २. जोंक।
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टिटिबा  : पुं० [अ० ततिम्मः=परिशिष्ट] १. व्यर्थ का बखेड़ा। २. आडंबर। ढकोसला।
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टिटिभी  : स्त्री०=टिटिहरी।
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टिटिह  : पुं०=टिटिहा।
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टिटिहरी  : स्त्री० [सं० टिट्टिभ] जलाशयों के समीप रहनेवाली एक छोटी चिड़िया जिसके सिर, गले तथा सीने पर के बाल काले रंग के, पीठ तथा डैने भूरे रंग के, और निचला भाग सफेद होता है। कुररी। विशेष–यह अपना घोंसला नहीं बनाती बल्कि बालू में ही अंडे देती है।
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टिटिहा  : पुं० [?] नर टिटिहरी।
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टिटिहारोर  : पुं० [हिं० टिटिहा+रोर] १. टिटिहरी के बोलने का शब्द। २. टिटिहरियों की तरह की असंयत और निरर्थक चिल्लाहट, पुकार या हल्ला-गुल्ला।
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टिट्टिभ  : पुं० [टिट्टि√ भण् (शब्द करना)+ड] [स्त्री० टिटिट्भा, टिटिभी] १. कुररी या टिटिहरी नामक पक्षी। २. टिड्डी।
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टिंड  : स्त्री० [देश०] रहट में लगा हुआ मिट्टी, धातु आदि का वह पात्र जिसके द्वारा कुँए का पानी सिंचाई के लिए ऊपर खींचा तथा बाहर निकाला जाता है। (पश्चिम)। पुं० [?] घुटा या मुँडा़ हुआ सिर। (परिहास और व्यंग्य) स्त्री०=टिंडा।
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टिड़-बिंडंगा  : वि० [हिं० टेढ़ा+बेढंगा] जो सीधा या सुडौल न हो। टेढ़ा-मेढ़ा।
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टिंडर  : स्त्रीं०=टिंड।
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टिंडसी  : स्त्रीं=टिंडा।
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टिंडा  : पुं० [सं० टिंडिश] १. एक लता जिसके छोटे गोल फलों की तरकारी बनाई जाती है। २. उक्त लता का फल। डेंड़सी।
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टिंड़ी  : स्त्री० [देश०] १. हल की मुठिया। २. वह खूँटा जिसे पकड़कर चक्की का पाट घुमाया या चलाया जाता है।
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टिड्डा  : पुं० [सं० टिटिट्भ] एक प्रकार का उड़नेवाला बड़ा फतिंगा।
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टिड्डी  : स्त्री० [सं० टिटिट्भ] १. दल बाँधकर उड़नेवाला एक प्रकार का बड़ा फतिंगा जो फसलों को नष्ट कर देता है। २. घरों में रहनेवाला एक छोटा कीड़ा जो कपड़ों आदि को खाता है।
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टिन  : पुं०=टीन।
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टिंप  : स्त्री० [हिं० टीपना] वह अवस्था जिसमें साँप के काटने पर विष रक्त में प्रविष्ट हो चुका हो।
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टिपकना  : अ०=टपकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिपका  : पुं०=टपका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिपटिप  : स्त्री० [अनु०] १. जल की बूंदे गिरने से होनेवाला शब्द। २. छोटी-छोटी बूँदों के रूप में होनेवाली थोड़ी या हलकी वर्षा। क्रि० वि० टिप-टिप शब्द करते हुए। जैसे–टिप-टिप पानी बरसना।
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टिपवाना  : स० [हिं० टीपना का प्रे० रूप] टीपने का काम किसी दूसरे से कराना। किसी को टीपने में प्रवृत्त करना।
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टिपाई  : स्त्री० [हिं० टीपना] १. टीपने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. चित्रकला में, आकृतियों आदि की आरंभिक रूपरेखा अंकित करने या बनाने की क्रिया या भाव। ३. दे० ‘टीप’।
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टिपारा  : पुं० [हिं० तीन+फा० पारः=टुकड़ा] पुरानी चाल की एक प्रकार की तिकोनी टोपी जो मुसलमान फकीर पहना करते थे। पुं०=पिटारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिपुर  : पुं०=टिपोर।
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टिपोर  : पुं० [देश०] १. अभिमान। घमंड। २. आडंबर। पाखंड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिप्पणी  : स्त्री० [सं०√टिप् (प्रेरणा)+क्विप्, टिप्√पन् (स्तुति)+अच्-ङीष्, णत्व] १. स्मरण रखने के लिए कोई बात टीपने या संक्षिप्त रूप में लिख रखने की क्रिया। २. उक्त प्रकार से लिखा हुआ लेख। ३. जन्म-पत्री। ४. किसी के संबंध में प्रकट किया जानेवाला संक्षिप्त विचार। उप-कथन। ४. आज-कल पत्रिकाओं, पुस्तकों आदि में किसी शब्द, पद या वाक्य के संबंध में कुछ नवीन तथ्य, तर्क या मत उपस्थित करने के लिए लिखा जानेवाला छोटा लेख। ५. समाचार पत्रों में संपादक की ओर से किसी घटना के संबंध में लिखा हुआ छोटा लेख। (अग्रलेख से भिन्न)।
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टिप्पन  : पुं० [सं० टिप्पणी] १. टीका। २. व्याख्या। ३. जन्मपत्री।
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टिप्पनी  : स्त्री०=टिप्पणी।
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टिप्पस  : स्त्री० [देश०] अपना काम या मतलब निकालने के लिए की जानेवाली छोटी मोटी युक्ति। क्रि० प्र०–जमाना।–बैठाना।–भिड़ाना।–लगाना।
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टिप्पी  : स्त्री०=टिक्की।
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टिफिन  : पुं० [अं०] दोपहर के समय किया जानेवाला जलपान।
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टिबरी  : स्त्री० [देश०] पहाड़ की छोटी चोटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिमकी  : स्त्री० [अनु०] १. छोटा-मोटा बरतन। २. बच्चे का पेट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिमटिमाना  : अ० [सं० तिम=ठंढा होना] १. किसी चीज में से रह-रहकर मंद या हलका प्रकाश निकलना। जैसे–जूगनूँ तारे या दिये का टिमटिमाना। २. (दिये की लौ का) बुझने से कुछ पहले रह-रहकर कुछ प्रकाश देना।
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टिमाक  : स्त्री० [देश०] १. बनाव सिंगार। २. ठसक।
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टिमिला  : पुं० [देश०] [स्त्री० टिमिली] छोकरा। लड़का।
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टिम्मा  : वि० [देश०] छोटे डील-डौलवाला। ठेंगना। नाटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिर  : स्त्री=टर।
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टिरफिस  : स्त्री० [हिं० टिर+फिस] १. बहुत ही तुच्छ कोटि का प्रतिवाद या विरोध। २. व्यर्थ का टर्रापन।
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टिर्रा  : वि०=टर्रा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिर्राना  : अ०=टर्राना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिलटिलाना  : अ० [अनु०] [भाव० टिलटिलो] पतला दस्त करना या फिरना।
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टिलटिली  : स्त्री० [अनु०] १. पतला दस्त फिरने की क्रिया या भाव। २. पतला दस्त।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिलवा  : पुं० [देश०] १. लकड़ी का टेढ़ा-मेढ़ा छोटा टुकड़ा। कुंदा। २. नाटे कद का आदमी। ३. खुशामदी या चापलूस व्यक्ति।
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टिलिया  : स्त्री० [देश०] १. छोटी मुर्गी। २. मुर्गी का बच्चा।
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टिली-लिली  : स्त्री० [अनु०] बच्चों की आपस में एक दूसरे को चिढ़ाने की वह क्रिया जिसमें वे टिली-लिली करते हुए अपनी मध्यमा उंगली नचाते हैं।
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टिलेहू  : पुं० [देश०] नेवलों की जाति का एक जंतु जिसके शरीर से बहुत अधिक दुर्गध निकलती है।
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टिलोरिया  : स्त्री० [देश०] मुरगी का बच्चा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=टिलिया।
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टिल्ला  : पुं० [हिं० ठेलना] १. चोट। २. धक्का। वि०=निठल्ला।
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टिल्लेनवीसी  : स्त्री० [हिं० टिल्ला-फा० नवीसी] १. निकृष्ट या निम्न कोटि की सेवा। २. निठल्लापन। ३. टाल-मटोल। बहानेबाजी। क्रि० प्र०–करना।
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टिसुआ  : पुं० [सं० अश्रु] आँसू (पश्चिम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिहक  : स्त्री=ठिठक।
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टिहकना  : अ०=ठिठकना।
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टिहुकना  : अ० १.=ठिठकना। २.=चौंकना।
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टिहुनी  : स्त्री० [सं० घुंट, हिं० घुटना] १. घुटना। २. कोहनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टिहूक  : स्त्री० [हिं० टिहुकना] टिहुकने (अर्थात् १. ठिठकने, और २. चौंकने) की अवस्था, क्रिया या भाव।
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टिहूकना  : अ०=टिहुकना।
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टींक  : स्त्री० [सं० तिलक] १. गले में पहनने का एक आभूषण। २. माथे पर पहनने का टीका नामक आभूषण।
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टीकठ  : पुं० [हिं० टिकना] रीढ़ की हड्डी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टीकन  : स्त्री०=टेकन।
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टीकना  : स० [हिं० टीका] १. टीका या तिलक लगाना। २. संकेत के लिए टिक्की या बंदी लगाना।
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टीका  : पुं० [सं० टीक-चलना] १. धार्मिक हिंदुओं में वह सांप्रदायिक चिन्ह जो केसर, चंदन, रोली आदि से मुख्यतः मस्तक पर और गौणतः छाती, बाँह आदि पर लगाया जाता है। तिलक। २. विवाह स्थिर करने के समय का वह कृत्य जिसमें कन्या पक्ष के वर को केसर का तिलक लगाकर कुछ धन, मिठाई आदि देते हैं। तिलक। ३. कुछ विशिष्ट धार्मिक संस्कारों के अवसर पर संबंधियों के यहाँ दी या भेजी जानेवाली मिठाई, धन आदि (टीका लगाने का औपचारिक लक्षण) क्रि० प्र०–चढ़ना।–चढ़ाना।–भेजना। ४. किसी नये राजा के सिंहासन पर बैठने के समय का वह कृत्य जिसमें पुरोहित उसके मस्तक पर तिलक लगाकर नियमतः या विधानतः उसे सिंहासन का अधिकारी नियत या स्थिर करता है। ५. वह राजकुमार जो राजा के उपरान्त उसका उत्तराधिकारी होने को हो या जिसे टीका लगने को हो। टिकैत। ६. दोनों भौहों या ललाट के बीच का वह मध्य भाग जहाँ उक्त प्रकार का चिन्ह लगाया जाता है। ७. पशुओं के मस्तक या ललाट का उक्त भाग। जैसे–घोड़े या बैल का टीका। ८. वह जो किसी कुल, वर्ग समाज समूह आदि में सबसे बढ़कर या मुख्य माना जाता हो। शिरोमणि। ९. आधिपत्य, प्रधानता आदि का चिन्ह या लक्षण। जैसे–क्या तुम्हारे सिर पर कोई टीका है जिससे तुम्हारी ही बात मानी जाय। पद–टीके का=सब से बढ़कर। अच्छा। उत्तम। १॰. मध्य युग में धन आदि के रूप में वह भेंट जो असामी या प्रजावर्ग के लोग किसी बड़े जमींदार या राजा को कुछ विशिष्ट मांगलिक अवसरों पर देते थे। ११. माथे या ललाट पर पहना जानेवाला एक प्रकार का लंबोत्तरा गहना। १२. किसी प्रकार का लंबोत्तरा चिन्ह या निशान। १३. आज-कल कुछ विशिष्ट रोगों का वह चेप या रस जो रासायनिक प्रक्रिया से प्रस्तुत करके प्राणियों के शरीर में सूइयों आदि से इसलिए प्रविष्ट किया जाता है कि प्राणी उस रोग से रक्षित रहें। जैसे–चेचक प्लेग या हैजे का टीका। स्त्री० [देश०] किसी ग्रंथ, पद या वाक्य का अर्थ स्पष्ट करनेवाला कथन या लेख। अर्थ का विवरण। विवृत्ति। व्याख्या। जैसे–(क) महाभारत या रामायण की टीका। (ख) किसी के उपदेश या गूढ बात की टीका।
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टीका-टिप्पणी  : स्त्री० [सं० व्यस्त पद] कोई प्रसंग छिड़ने या बात सामने आने पर उसके गुणों दोषों आदि के प्रसंग में प्रकट किये जानेवाले विचार।
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टीकाकार  : पुं० [सं० टीका√कृ (करना)+अण्] १. वह जो कठिन या दुर्बोध ग्रंथ की टीका करता हो। २. गूढ़ शब्दों, पदों, वाक्यों आदि की सुबोध भाषा मं व्याख्या लिखनेवाला व्यक्ति।
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टीकी  : स्त्री० [हिं० टीका] १. टिकुली। २. टिकिया। ३. बिंदी। ४. पुरुषों की चुटिया। चोटी। शिखा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टीकुर  : पुं० [देश०] १. ऊँची भूमि २. जलाशयों के तट की ऊँची सूखी भूमि ३. जंगल। वन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टीटा  : पुं० [देश०] स्त्रियों की योनि में का वह ढाँचा मांस-पिंड जो दोनों भगोष्ठों के बीच निकला रहता है। टना।
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टींड  : स्त्री०=टिंड (रहट की)। पुं०=टिंडा।
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टींड़सी  : स्त्री० [सं० टिडिश]=टिंडा।
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टींड़ा  : पुं० [देश०] १. जाँता घुमाने का खूँटा। २. जाँते का जुआ। पुं०=टिंडा।
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टीड़ी  : स्त्री०=टिड्डी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टींडो  : स्त्री०=टिड्डी।
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टीन  : पुं० [अं० टिन] १. राँगा। २. राँगे की कलई की हुई लोहे की पतली चद्दर जिससे कनस्तर, डिब्बे आदि बनया जाते हैं। ३. टीन की चद्दर का बना हुआ कनस्तर या डिब्बा।
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टीप  : स्त्री० [हिं० टीपना, मि० अं० टिप] १. टीपने की क्रिया या भाव। २. धीरे-धीरे ठोंकने, पीटने या दबाने की क्रिया या भाव। जैसे–गच, छत या दीवार के पलस्तर पर होनेवाली टीप। ३. ईंटों की बनी हुई दीवार, फरश आदि पर पलस्तर न करके केवल उसकी दराजों, संधियों में मसाला भरकर उन्हें बंद करने की क्रिया या भाव। ४.जोर की ध्वनि या शब्द। ५. संगीत में, किसी एक स्वर पर बहुत जोर देते हुए कुछ देर तक किया जानेवाला उसका ऐसा उच्चारण जिसकी तीव्रता बराबर बढ़ती चलती हो। क्रि० प्र०–लगाना। मुहावरा–टीप लड़ाना=ऊँचे स्वर में या गले का पूरा जोर लगाते हुए कोई चीज गाना। ६. पानी मिला हुआ वह दूध जिससे चीनी या शीरा बनाने के समय उसकी मैल साफ की जाती है। ७. हाथी के शरीर पर औषध का किया जानेवाला लेप। ८. सेना की टुकड़ी या दल। ९. गंजीफे के खेल में विपक्षी के एक पत्ते को अपने दो पत्तों से मारने की क्रिया। १॰. स्मरण रखने के लिए संक्षेप में लिखी हुई संक्षिप्त बात या उसका मुख्य अंश। ११. सूचना, व्याख्या या आलोचना के रूप में लिखी हुई कोई बात। (नोट) १२. वह कागज जिस पर दोनों पक्षों की ओर से लेन-देन, व्यवहार आदि से संबंध रखनेवाला कोई निश्चय या उसकी शरतें लिखी रहती हैं। दस्तावेज। लेख्य। १३. वह कागज जिस पर किसी को निश्चित समय पर कुछ धन देने का आदेश या प्रतिज्ञा लिखी हो। जैसे–चेक, हुंडी आदि। १४. जन्म-पत्री। टीपन।वि० बहुत अच्छा या बढ़िया।
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टीपटाप  : स्त्री० [अनु०] १. टीप करने अर्थात् दरजों या दराजों में मसाला भरने का काम। २. दे० ‘टीम-टाम’।
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टीपन  : स्त्री० [हिं० टीपना] कंकड़ काँटे आदि के चुभने के कारण पड़नेवाली गाँठ या घट्ठा। स्त्री०=टीप (जन्म-पत्री)।
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टीपना  : स० [सं० टेपन=फेंकना] १. उंगलियों या हथेलियों से दबाना। जैसे–किसी के पैर या हाथ टीपना। २. कोई चीज ठीक तरह से बनाने या सुन्दर रूप देने के लिए उस पर धीरे-धीरे हलका आघात या प्रहार करना। जैसे–गच या पलस्तर टीपना। ३. ईटों की बनी हुई दीवार, फरश आदि पर सीमेंट आदि का पलस्तर न करके उसकी दराजों या संधियों को बंद करने के लिए उनमें मसाला भरना। ४. हलके हाथों से लेप आदि लगाना। ५. गाने के समय किसी स्वर को बहुत खींचते हुए और पूरी शक्ति लगाकर उसका उच्चारण करना। ६. गंजी के खेल में अपने दो पत्तों से विपक्षी का एक पत्ता मारना। स० [सं० टिप्पनी] १. याद रखने के लिए कुछ लिख या टाँक लेना। २. अंकित करना। निशान लगाना। उदाहरण–कुकुंम चंदन चारु चून ऐपन सौं टीपे।–रत्नाकर।
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टीबा  : पुं० [हिं० टीला] [स्त्री० टिबरी, टीबी] टीला।
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टीम  : स्त्री० [अं०] किसी खेल, प्रतियोगिता में सम्मिलित होनेवाले एक पक्ष के सब लोग। टोली।
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टीम-टाम  : स्त्री० [देश०] १. पूरी बनाव-सिंगार या सजावट। २. ठाट-बाट। तड़क-भड़क। ३. व्यर्थ का आंडबर।
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टीस  : स्त्री० [देश०] १. सहसा तथा रह-रहकर उठनेवाली वह पीड़ा जो शरीर का भीतरी भाग चीरती हुई सी जान पड़े। हूल। क्रि० प्र०–उठना।–मारना। २. दुश्मनी। बैर। शत्रुता। स्त्री० [अं० स्टिच] पुस्तकों की सिलाई का वह प्रकार जिसमें उसके फरमें पहले अलग-अलग और तब एक साथ सीये जाते हैं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टीसना  : अ० [हिं० टीस] शरीर के किसी अंग में रह-रहकर ऐसी तीव्र पीड़ा होना जो शरीर के उस अंग को अंदर से चीरती हुई सी जान पड़े।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टीसा  : पुं० [देश०] खैरे रंग का एक शिकारी पक्षी जिसके डैने भूरे होते हैं।
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टुइँयाँ  : पुं० [देश०] १. तोतों या सुग्गों की एक जाति। २. उक्त जाति का तोता जिसकी चोंच पीले रंग की और गरदन बैंगनी होती है यह अपेक्षाकृत छोटे आकार का होता है। वि० १. बहुत छोटा। २. बहुत ठिंगना या नाटा।
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टुक  : वि० [सं० स्तोक=थोड़ा] थोड़ा। जरा-सा। क्रि० वि० जरा। तनिक। पुं० टुकड़ा उदाहरण–इक टुक कपड़े तेहि जनि अजि छुड़ाओं।–रत्नाकर।
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टुक-टुक  : अव्य=टुकुर-टुकुर। जैसे–लोग टुक-टुक देखते रहे।–राहुल।
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टुकड़  : पुं० हिं० टुकड़ा का संक्षिप्त रूप जो उसे यौगिक शब्दों के आरंभ में लगने से प्राप्त होता है। जैसे–टुकड़गदा, टुकड़तोड़ आदि।
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टुकड़गदा  : पुं० [हिं० टुकड़ा+फा० गदा=भिखमंगा] १. रोटी के टुकड़े घर-घर से माँगकर निर्वाह करनेवाला भिखारी। २. वह व्यक्ति जो दूसरों के टुकड़ों पर पलता हो। वि० १. बहुत ही तुच्छ या हीन (व्यक्ति)। २. परम दरिद्र। ३. कंगाल।
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टुकड़गदाई  : स्त्री० [हिं० टुकड़ा+फा० गदई=भिखमंगापन] घर-घर से रोटी के टुकड़े भीख माँगने की क्रिया या भाव। भिखारीपन। वि० पुं०=टुकड़गदा।
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टुकड़तोड़  : पुं० [हिं० टुकड़ा+तोड़ना] वह निठल्ला व्यक्ति जो दूसरों के दिये हुए टुकड़े खाकर दिन बिताता हो।
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टुकड़ा  : पुं० [सं० द्विक+ड़ा (प्रत्य०)] [स्त्री० अल्पा० दुकड़ी] १. एक में या एक साथ लगी हुई दो चीजों का जोड़ा। युग्म। जैसे—धोतियों का दुकड़ा, मोतियों की टुकड़ी। २. एक पैसे का चौथाई भाग।
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टुकड़ा  : पुं० [सं० त्रोटक या स्तोक] [स्त्री० अल्पा० टुकड़ी] १. किसी वस्तु का वह छोटा अंश या भाग जो मूल वस्तु से कट, कट या टूटकर अलग हो गया हो। जैसे–(क) कपड़े या कागज का टुकड़ा। (ख) बादल का टुकड़ा। (ग) ईंट या पत्थर का टुकड़ा। मुहावरा–(किसी चीज के) टुकड़े उड़ाना=किसी चीज को इस प्रकार काटना, तोड़ना या फोड़ना कि उसके बहुत से छोटे-छोटे टुकड़े हो जाएँ। २. रोटी आदि में से काट या तोड़कर निकाला हुआ अंश या भाग। मुहावरा–टुकड़ा या टुकड़े माँगना=घर-घर घूमकर भिक्षा के रूप में रोटी का टुकड़ा माँगना। टुकड़ा=तोड़ या टुकड़ा सा जबाव देना-बहुत ही रूखाई से इन्कार करना या साफ जबाव देना। (किसी के) टुकड़े तोड़ना= बहुत ही दीन बनकर किसी के दिये हुए रूखे-सूखे भोजन से निर्वाह करना। दीन रूप में आश्रित बनकर दिन बिताना या रहना। (किसी के) टुकड़ों पर पडऩा या पलना=(किसी के) टुकड़े तोड़ना। ३. जमीन का वह अंश जो मूल से नदी, पहाड़, मेंड़ आदि बीच में पड़ने या बनने के कारण अलग हो गया हो। जैसे–खेत के इस टुकडे में खरबूज और उस टुकडे में तरबूज बोया गया है। ४. किसी कृति या रचना का कोई विशिष्ट अंश, खंड या भाग। जैसे–कविता गीत या शेर का टुकड़ा।
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टुकड़ी  : स्त्री० [हिं० टुकड़ा] १. छोटा टुकड़ा। जैसे–नमक या मिसरी की टुकड़ी। २. छोटे-छोटे खंड़ों या टुकड़ों में काटी या बनाई हुई चीज। जैसे–चार टुकड़ी मिठाई। ३. कुछ विशिष्ट प्रकार के प्राणियों अथवा कोई विशिष्ट कार्य करनेवाले लोगों का छोटा दल, वर्ग या समुदाय। जैसे–(क) कबूतरों की टुकड़ी। (ख) ठगों, डाकुओं या सैनिकों की टुकड़ी। ४. कपड़े का वह टुकड़ा जो स्त्रियाँ महीन साड़ी पहनने से पहले कमर में लपेट लेती हैं। ५. कार्तिक स्नान का मेला जिसमें लोग छोटे-छोटे दलों के रूप में जाया करते हैं।
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टुकनी  : स्त्री=टोकनी (टोकरी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टुकरी  : स्त्री० [?] सलल्म की तरह का एक प्रकार का मोटा कपड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री=टुकड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टुकुर-टुकुर  : अव्य० [अनु०] ललचाई हुई नजर से या विवशता की दशा में। मुहावरा–टुकुर-टुकुर देखना=ललचाई हुई नजरों से या विवशता की दशा में किसी की ओर चुपचाप टक लगाकर देखना।
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टुक्कड़(र)  : पुं० [सं० स्तोक] रोटी का टुकड़ा (पंजाब)। उदाहरण–वह पायेगी सदा दया का टुक्कड़।–कोई कवि।
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टुक्का  : पुं० [हिं० टूक] १. किसी चीज का बहुत छोटा अंश। मुहावरा–टुक्का सा जबाव देना=साफ इनकार करना। कोरा जबाव देना। टुक्का सा मुँह लेकर रह जाना-लज्जित होकर चुप रह जाना। २. किसी वस्तु का चौथाई अंश।
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टुँगना  : स०=टूँगना।
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टुघलाना  : अ०=चुभलाना।
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टुंच  : वि० [सं० तुच्छ] १. क्षुद्र। तुच्छ २. दे० ‘टुच्चा’। स्त्री० बहुत ही थोड़ा धन या पूँजी।
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टुच्चा  : वि० [सं० तुच्छ] [स्त्री० टुच्ची] १. (व्यक्ति) जो बहुत ही निम्न या हीन विचारों का या क्षुद्र प्रकृतिवाला हो। २. (कथन) जो अनुचित तथा ओछा या हेय हो। जैसे–टुच्ची बात। ३. जो देखने में बहुत ही तुच्छ या हेय जान पड़ता हो। ४. (पहनने का कपड़ा) जिसकी ऊँचाई, लंबाई या घेरा उचित या साधारण से कम हो। टुच्ची कमीज, टुच्चा पाजामा।
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टुटका  : पुं०=टोटका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टुटनी  : स्त्री० [हिं० टोंटी] झारी या गुड़वे की पतली नली। छोटी टोंटी।
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टुटपुंजिया  : वि० [हिं० टूटना+पूँजी] (व्यक्ति) जिसके पास बहुत ही थोड़ी पूँजी हो।
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टुटरूँ  : स्त्री० [अनु० टुटरूँटूँ] छोटी पंडुकी।
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टुटरूँ-टूँ  : स्त्री० [अनु०] पंडुकी के बोलने का शब्द। पेंडुकी या फाख्ता की बोली। वि० १. अकेला। २. बहुत कम। थोड़ा। ३. क्षीण काय। दुबला-पतला। ४. तुच्छ। हीन।
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टुटहा  : पुं० [देश०] एक तरह की चिड़िया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) [हिं० टूटना+हा (प्रत्यय)] [स्त्री० टुटही] १. टूटा हुआ। २. जो अपनी जाति, पंक्ति या वर्ग से छूटकर अलग हो गया हो।
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टुंटा  : वि०=टुंड़ा।
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टुटियल  : वि० [हिं० टूटना] १. जो टूटा-फूटा हो अथवा टूटने-फूटने की अवस्था में हो। जर्जर। २. कमजोर। दुर्बल। ३. टुटपुंजिया।
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टुंटुक  : पुं० [सं० टुटु√कै (शब्द)+क] १. सोना पाठा। २. काला खैर।
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टुंटुका  : स्त्री० [सं० टुंटुक+टाप्] पाठा।
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टुटुका  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का नगाड़ा।
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टुटुहा  : पुं०=टुटहा।
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टुटेला  : वि०=टुटहा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टुंड (ा)  : वि० [सं० तुंड] [स्त्री० टुंड़ी] १. (वृक्ष) जिसकी डालें या पत्तियाँ कट, गिर या झड़ गई हों। २. (व्यक्ति) जिसका एक या दोनों हाथ कटे हुए हों। ३. (पशु) जिसका एक या दोनों सींग कटकर या और किसी प्रकार गिर गये हों। ४. (चीज) जिसका कोई अंग खंडित हो। पुं० १. ठूँठ वृक्ष। २. लूला। ३. पशु जिसका एक सींग टूट चुका हो। ४. एक काल्पनिक प्रेत जिसके संबंध में यह प्रसिद्ध है कि वह रात के समय अपना कटा हुआ सिर हथेली पर रखकर तथा घोड़े पर सवार होकर निकलता है।
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टुंडी  : स्त्री० [सं० तुंडि] नाभि। ढोंढ़ी। स्त्री० [?] बाँह। मुश्क। मुहावरा–टुंड़ियाँ कसना या बाँधना=दे० ‘मुश्क’ के अन्तर्गत मुश्कें कसना या बाँधना।
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टुंड़ी  : स्त्री० [सं० तुंडि] नाभि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=टुकड़ी।
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टुनका  : पुं० [देश०] एक रोग जिसमें मूत्र जल्दी-जल्दी होता और उसके साथ वीर्य भी गिरता है।
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टुनकी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का फतिंगा।
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टुनगा  : पुं० [सं० तनु=पतला+अग्र=अगला] [स्त्री० टुनगी] १. डाल या टहनी का सिरा या अगला भाग। २. टहनी।
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टुनटुना  : पुं० [देश०] मैदे आदि का एक नमकीन पकवान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टुनहाया  : पुं० [हिं० टोना] [स्त्री० टुनहाई] टोना करनेवाला व्यक्ति। टोनहा।
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टुनाका  : स्त्री० [सं०] तालमूली। मुसली।
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टुनियाँ  : स्त्री० [सं० तुंड] एक प्रकार का मिट्टी का छोटा पात्र जिसमें टोंटी भी लगी होती है।
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टुनिहाया  : पुं० [स्त्री० टुनिहाई]=टुनहाया।
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टुन्ना  : पुं० [सं० तुंड] वह नाल जिसमें फल लगते तथा लटकते हैं। जैसे–कद्दू या कमल का टुन्ना।
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टुपकना  : अ० [अनु०] १. धीरे से ऊपरी भाग काटना या कुतरना। २. जीव-जन्तुओं का चुपचाप या धीरे-से किसी को काटना या डंक मारना। ३. धीरे से या बहुत ही सीधे-सादे बनकर कोई ऐसी छोटी सी बात कहना जो किसी का अनिष्ट कर सकती या किसी को कुछ हानि पहुँचा सकती हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टुबी  : स्त्री० [हिं० डूबना] गोता। डुबकी (पश्चिम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टुमकना  : अ=टुपकना।
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टुम्मा  : पुं० [देश०] कच्ची रसीद।
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टुरा  : पुं० [देश०] [स्त्री० टुरिन, टुरिया] बच्चा। लड़का।
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टुर्रा  : पुं० [?] १. किसी चीज का जमा हुआ या ठोस टुकड़ा या डला। जैसे–मिसरी का टुर्रा। २. ज्वार, बाजरे आदि मोटे अन्नों का बड़ा दाना।
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टुलकना  : अ०=ढुलकना।
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टुलकाना  : स०=ढुलकाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टुलड़ा  : पुं० [देश०] भारत के पूर्वी प्रदेशों में होनेवाला एक तरह का बाँस।
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टुसकना  : अ०=टसकना।
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टूँ  : स्त्री० [अनु०] पादने पर होनेवाला शब्द।
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टूँक  : पुं०=टूक।
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टूक  : पुं० [सं० स्तोक] १. खंड०। टुकड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) मुहावरा–दो टूक जबाव देना=थोड़े में तथा स्पष्ट रूप से नकारात्मक उत्तर देना। साफ इनकार करना। २. कपड़े का थान। (बजाज) जैसे–दस टूक मलमल पाँच टूक मारकीन।
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टूकर  : पुं=टुक्कड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टूका  : पुं० [हिं० टूक] १. टुकड़ा। २. भिक्षा। भीख। ३. किसी चीज का चौथाई अंश या भाग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टूकी  : स्त्री० [हिं० टूक] १. खंड। टुकड़ा। २. पहनने की अँगिया में मुलकट के ऊपर लगनेवाला कपड़े का टुकड़ा।
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टूक्यो  : पुं० [?] भालू (डिं०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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टूँगना  : स० [हिं० टुनगा] १. (चौपायो का) टहनी के सिरे की कोमल पत्तियों को दाँत से काटना। कुतरना। २. थोड़ा-थोड़ा करके और धीरे-धीरे खाना (व्यंग्य)।
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टूगर  : वि० [?] अनाथ।
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टूँगा  : वि० [सं० तुंग] ऊँचा। उदाहरण–तहाँ एक परबत हा टूँगा।–जायसी।
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टूट  : स्त्री० [सं० त्रुट्, हिं० टूटना] १. टूटने की क्रिया या भाव। २. कटने, टूटने आदि पर निकला हुआ अंश या भाग। खंड। ३. ऐसी स्थिति जिसमें बीच का कोई अंश कटा या टूटा हुआ हो। ४. क्रम के निर्वाह के प्रसंग में कहीं बीच में होनेवाला थोड़ा सा अबाव या छूट। जैसे–किसी कविता या लेख में की टूट। ५. कमी। त्रुटि। ६. घाटा। टोटा।
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टूटन  : स्त्री० [हिं० टूटना] १. टूटने की क्रिया, भाव या स्थिति। टूट। २. टूटी हुई चीज के टुकड़े।
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टूटना  : अ० [सं०√ त्रुट्, हिं० तोड़ना का अ०] १. किसी चीज के अंग अंश या अवयव का कटकर अपने मूल से अलग हो जाना। जैसे–पेड़ की डाल या उसमें लगा हुआ फल टूटना। २. किसी चीज का इस प्रकार खंडित या भग्न होना कि उसके दो या बहुत टुकड़े हो जायँ। जैसे–घन की चोट से पत्थर टूटना। ३. किसी चीज के इस प्रकार खंड या टुकड़े होना कि वह काम में आने योग्य अथवा अपने पूर्व रूप में न रह जाय। जैसे–(क) छत, दीवार या मकान टूटना। (ख) गिलास, थाली या लोटा टूटना। (ग) तालाब या नदी का बाँध टूटना। पद–टूटा-फूटा= (क) जो खंडित या भग्न होने के कारण अपने पूर्व रूप में न रह गया हो अथवा ठीक तरह से काम न दे सके। जैसे–टूटी-फूटी घड़ी, टूटा-फूटा मकान। (ख) जो नियत, विधान आदि की दृष्टि से अधूरा या असंगत हो अथवा ठीक या समीचीन न जान पड़े। जैसे–बात करना या बोली बोलना। (ग) इतर भाषा भाषियों का टूटी-फूटी हिंन्दी लिखना। ४. आघात, आदि के कारण किसी चीज का कहीं बीच में से इस प्रकार खंडित होना कि उसमें कुछ अवकाश, दरज या लकीर पड़ जाय। जैसे–(क) पैर या हाथ की हड्डी टूटना। (ख) टक्कर लगने से आरसी या घड़ी का शीशा टूटना। ५. अपने दल, पक्ष, वर्ग समाज आदि से किसी प्रकार अलग या दूर हो जाना अथवा निकल जाना। अलगाव या पार्थक्य हो जाना। जैसे–(क) कबूतर का अपने झुंड से टूटना। (ख) मुकदमें का गवाह टूटना। (ग) जाति या बिरादरी से टूटना। (अर्थात् अलग होना या निकाला जाना)। ६. किसी प्रकार के निश्चित या परम्परागत संपर्क या संबंध का अंत या विच्छेद होना। पहले का सा लगाव या व्यवहार न रह जाना। जैसे–(क) नाता या रिश्ता टूटना। (ख) आपस की संधि, संविदा या समझौता टूटना। ७. किसी चलते हुए कार्य या व्यवहार का इस प्रकार अंत या समाप्त हो जाना कि उसकी सब क्रियाएँ बिलकुल बन्द हो जायँ। जैसे–(क) कोठी, पाठशाला महकमा या संस्था टूटना। (ख) दल, मंडली या संघटन टूटना। (ग) पदाधिकार की जगह या पद टूटना (समाप्त हो जाना) ८. किसी प्रकार के क्रम, निश्चय या परम्परा का अन्त होना अथवा उसमें किसी प्रकार की बाधा या व्यतिक्रम होना। जैसे–(क) खाँसते-खाँसते (या हिचकियाँ लेते लेते) उसका दम टूट गया। (ख) पंद्रह दिन बाद अब बुखार टूटा है। (ग) बकवाद बंद करो, हमारा ध्यान टूटता है। (घ) उनका मौन (या व्रत) टूट गया। ९. किसी पदार्थ के किसी अंश या भाग का कहीं इस प्रकार दब या रुक जाना कि वह काम में न आ सके या मिल न सके। घटकर या और किसी प्रकार नहीं के बराबर हो जाना। जैसे–(क) गरमी में कूओं का पानी टूटना। (ख) लेन-देन या व्यवहार में सौ पचास रुपये टूटना। (कम मिलना)। १॰. किसी प्रकार के तत्व या शक्ति में इस प्रकार कमी या ह्रास होना कि पहले की सी सबल और स्वस्थ स्थिति न रह जाय अथवा बहुत कुछ नष्ट हो जाय। जैसे–(क) रोग से शरीर टूटना अर्थात् बहुत कृश या दुर्बल होना। (ख) बाजार गिरने से महाजन या व्यापारी का टूटना अर्थात् बहुत कुछ निर्धन हो जाना। (ग) युद्ध के कारण देशों या राष्ट्रों का बल टूटना। ११. किसी प्रकार की अनिष्ट, अप्रिय, बाधक या विपरीत घटना अथवा परिस्थिति के कारण किसी मनोदशा या स्थिति का अपने पहले के सबल और स्वस्थ रूप में न रह जाना। जैसे–उत्साह, दिल या हिम्मत टूटना। संयो० क्रि०–जाना। (उक्त सभी अर्थों में)। १२. दुर्बलता रोग शिथिलता श्रम आदि के कारण शरीर के अंगों का इस प्रकार पीड़ा से युक्त होना कि वे अपनी जगह से अलग होते या हटते हुए से जान पड़ें। जैसे–ज्वर आने या बहुत अधिक परिश्रम करने पर शरीर या उसके अंग-अंग टूटना। १३. किसी विशिष्ट उद्देश्य या विचार से बहुत से लोगों का एक साथ दल बाँधकर अथवा प्रायः एक ही समय में कहीं जाना या पहुंचना। जैसे–(क) डाकुओं का यात्रियों पर (अथवा सैनिकों का शत्रु के नगर पर) टूटना। (ख) मेला देखने के लिए (या राशन की दूकान पर) लोगों का टूटना। संयो० क्रि०–पड़ना। १४. पूरे वेग या शक्ति से किसी ओर अथवा किसी काम में प्रवृत्त होना या लगना। जुटना। जैसे–भुक्खड़ों का भोजन पर टूटना। संयो० क्रि०–पड़ना। १५. किसी चीज का प्रायः अनायास और बहुत अधिक मात्रा या मान में आने लगना या प्राप्त होना। जैसे–दौलत तो उनके घर मानों टूटी पड़ती है। संयो० क्रि०–पड़ना। पद–टूटकर या टूट टूटकर=बहुत अधिक मात्रा या मान में। जैसे–टूटकर पानी बरसना (अर्थात् मूसलधार वर्षा होना। १६. युद्ध के प्रसंग में, किले या गढ़ के सबंध में, शत्रु के आक्रमण से ध्वस्त या नष्ट होकर आक्रमणकारियों या विरोधियों के हाथ में चला जाना। जैसे–मुगलों के शासन-काल में एक-एक करके राजपूताने के बहुत से गढ टूट गये। संयो०–क्रि०–जाना। १७. प्रतियोगिता, होड़ आदि के प्रसंग में, पहले के किसी कीर्तिमान या सीमा का किसी नये कृत्य या कौशल से उल्लंघित होना या पीछे छूट जाना। जैसे–इस बार के सर्वराष्ट्रीय खेलों की प्रतियोगिता में कई क्षेत्रों के पुराने कीर्ति-मान टूट गये और उनके स्थान पर नये कीर्ति-मान स्थापित हुए हैं। संयो० क्रि०–जाना। १८. आर्थिक, व्यापारिक आदि प्रसंगों में, किसी चल-पत्र, देयादेश या सिक्के का नगद धन या छोटे सिक्कों के रूप में परिवर्तित होना। भुनना। जैसे–नोट, रुपया या हुंडी टूटना। संयो० क्रि०–जाना।
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टूठना  : अ० स०=तूठना।
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टूठनि  : स्त्री० [हिं० टूठना] तुष्टि। संतोष।
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टूँड़  : पुं० [सं० तुंड] [स्त्री० अल्पा० टूँड़ी] १. मक्खी, मच्छड़ आदि के मुँह पर रोआँ जो नली के समान लंबा होता है तथा जिसके द्वारा वे किसी चीज का रस चूसते अथवा छूकर उसका पता लगाते हैं। २. गेहूँ जौ आदि की बालों में आगे या ऊपर की ओर निकला हुआ उक्त प्रकार का पतला लंबा अंश। सींगुर। ३. कन्दों, फलों आदि का अगला नुकीला और पतला भाग। जैसे–गाजर, बैंगन या मूली की टूँड़। ४. किसी चीज की पतली, लंबी नोक ५. ढोंढ़ी। नाभि।
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टूनरोटी  : स्त्री० [अं० टाउन-ड्यूटी] चुंगी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टूना  : पुं०=टोना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टूम  : स्त्री० [अनु० टुन-टुन] १. आभूषण। गहना। पद–टूम छल्ला=छोटे-छोटे गहने। २. बनाव-सिंगार। सजावट। पद–टूम-टाम=बढ़िया कपड़े, गहने आदि, अथवा सजावट और श्रृंगार की सामग्री। ३. धनी या सुन्दर स्त्री जिसके प्रति लोगों के मन में लोभ उत्पन्न होता हो। ४. बहुत ही चतुर या चालाक या छँटा हुआ आदमी जिससे सहसा कोई पार न पा सकता हो। ५. चेतावनी संकेत आदि के रूप में किया जानेवाला बहुत हलका आघात या दिया जानेवाला झटका। जैसे–कबूतरों को छतरी पर से टूम देकर उड़ाना। क्रि० प्र०–देना। ६. ताने के रूप में कहीं हुई कोई व्यंग्यपूर्ण बात। (क्व०)।
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टूमना  : स० [अनु०] १. झटका या धक्का देना। २. व्यग्यपूर्ण बात कहना। ताना देना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टूरनामेंट  : स्त्री० दे० ‘चक्र-स्पर्धा’।
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टूल  : पुं० [अं० स्टूल] एक प्रकार की छोटी तिपाई।
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टूस  : पुं०=तूस।
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टूसा  : पुं० [सं० तुष] १. मंदार का फल। २. पाकर का फूल। ३. तंतु। रेशा। ४. खंड। टुकड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टूसी  : स्त्री० [हिं० टूसा] बिना खिला फूल। कली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टें  : स्त्री० [अनु०] १. तोते की बोली। २. कर्कश या तीखा स्वर। पद–टें टें=व्यर्थ की बकवाद। मुहावरा–टें बोलना या होना=चट-पट मर जाना।
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टेउ  : स्त्री०=टेव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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टेउकन  : स्त्री०=टेकन।
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टेउकी  : स्त्री०=टेवकी (साधुओं की अधारी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेक  : स्त्री० [हिं० टेकना] १. टेकने की क्रिया या भाव। २. वह बड़ी लकड़ी या ऐसी ही और कोई चीज जो किसी दूसरी बड़ी या भारी चीज को गिरने, लुढ़कने आदि से बचाने तथा रोकने के लिए अथवा किसी प्रकार के सहारे के लिए उसके नीचे लगाई जाती है। चाँड़। थूनी। जैसे–छत के नीचे या दीवार के पार्श्व में लगाई जानेवाली टेक। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। ३. कोई ऐसी चीज जो उठने-बैठने आदि के समय सहारा देती हो। जैसे–टेक लगाकर बैठना-तकिये दीवार आदि के सहारे पीठ टेककर बैठना। ४. साधुओं की अधारी। टेवकी। ५. अवलंब। आश्रय। सहारा। ६. टीला। टेकरी। जैसे–राम टेक। ७. आग्रह, प्रतिज्ञा हठ आदि की कोई ऐसी बात जिस पर आदमी दृढ़तापूर्वक अड़ा रहे और जल्दी इधर-उधर न हो। मुहावरा–टेक गहना=टेक पकड़ना। (देखें नीचे) टेक निभाना=अपनी की हुई प्रतिज्ञा या हठ पूरा करना। टेक पकड़ना=अपनी कहीं हुई बात पूरी करने या कराने के लिए जिद या हठ करना। टेक रहना=कही हुई बात या जिद पूरी होना। टेक का निर्वाह होना। ८. वह बात जो अभ्यास पड जाने के कारण कोई मनुष्य अवश्य या प्रायः करता हो। आदत। टेव। बान। क्रि० प्र०–पड़ना। ९. गीत के आरंभ का वह पद जो प्रायः शेष पदों से छोटा होता और हर पद के बाद दोहराया जाता है। १॰. स्थल का वह नुकीला लंबोतरा भाग जो जल में कुछ दूर तक चला गया हो। (लश०)।
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टेकड़ी  : स्त्री=टेकरी (छोटी पहाड़ी)।
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टेकन  : स्त्री० [हिं० टेकन] वह बड़ी लकड़ी या ऐसी ही और कोई चीज जो किसी दूसरी बड़ी या भारी चीज को गिरने, लुढ़कने आदि से बचाने तथा रोकने के लिए अथवा किसी प्रकार के सहारे के लिए उसके नीचे लगाई जाती हैं। चाँड़। थूनी।
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टेकना  : स० [हिं० टिकना का स० रूप] १. किसी चीज को किसी दूसरी चीज के सहारे खड़ा करना, बैठाना या लेटाना। टिकाना। ठहराना। २. किसी चीज को गिरने, लुढ़कने, आदि से बचाने के लिए उसके नीचे या बगल में टेक लगाना। ३. थकावट, दुर्बलता, शिथिलता आदि के समय सीधे खड़े रहने, चलने-फिरने या बैठ सकने के योग्य न रहने पर उठने-बैठने आदि में सहारे के लिए शरीर के बोझ का कुछ अंश किसी चीज पर डालना या स्थित करना। जैसे–उठते समय दीवार टेकना, चलते समय किसी का कंधा टेकना। बैठते समय लकड़ी टेकना। मुहावरा–(किसी के आगे) घुटने टेकना=हार मानकर अधीनता सूचित करना। माथा टेकना-दंडवत् करना। नमस्कार या प्रणाम करना। ४. अपनी टेक या हठ पर दृढ़ रहना। ५. टेक ग्रहण करना। दृढ़ प्रतिज्ञा या हठ करना। जैसे–आज तो तुमने यह नई टेक टेकी है। पुं० [देश०] एक प्रकार का जंगली धान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेकनी  : स्त्री०=टेकन।
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टेकरा  : पुं० [हिं० टेक] [स्त्री० अल्पा० टेकरी] १. प्राकृतिक रूप से ऊँची उठी हुई भूमि या छोटी सी पहाड़ी। टीला (देंखें)। पु०=टिकरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेकरी  : स्त्री० [हिं० टेकरा का स्त्री अल्पा० रूप] छोटी सी पहाड़ी। टीला।
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टेकला  : स्त्री० [हिं० टेक] १. मन में ठानी हुई बात। टेक। संकल्प। २. धुन। रट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [?] एक उपकरण जिससे चीजें उठई तथा गिराई जाती हैं।
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टेकान  : स्त्री० [हिं० टेकना] १. टेकने या टेके जाने की अवस्था या भाव। २. वह चीज जो किसी दूसरी चीज के साथ उसे सहारा देने के लिए लगाई जाती है। टेक। चाँड़। ३. वह ऊंचा चबूतरा जहाँ बोझ ढोने वाले मजदूर बोझ रखकर थोड़ी देर के लिए सुस्ताते हैं। ४. वह स्थान जहाँ से जुआरियों को जूए के अडडे का पता मिलता है।
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टेकाना  : स० [हिं० टेकना का स०] १. किसी चीज का सहारा देने के लिए उसके साथ कोई दूसरी चीज खड़ी करना या लगाना। २. किसी भारी चीज का कुछ अंश किसी आधार पर स्थित करना। ३. चुपचाप या धीरे से कोई चीज किसी को धमाना या देना (दलाल)।
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टेकानी  : स्त्री० [हिं० टेकाना] १. वह चीज जो किसी को गिरने से रोकने के लिए उसके नीचे या बगल में लगाई जाय। टेक। २. बैलगाड़ी का जूआ। ३. वह कील जो पहिये को धुरे में पहनाने पर इसलिए जड़ी जाती है कि वह बाहर निकलक गिर न जाय।
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टेंकी  : स्त्री० [सं०] १. संगीत में शुद्ध जाति का एक प्रकार का राग। २. एक प्रकार का नृत्य।
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टेकी  : वि० [हिं० टेक] १. अपनी टेक या प्रतिज्ञा या हठ पर अड़ा रहनेवाला। २. जिद्दी।
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टेकुआ  : पुं०=तकला। पुं०=टेकानी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेकुरा  : पुं० [देश०] पान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेकुरी  : स्त्री० [सं० तर्कु, हिं० टेकुआ] १. रस्सी बटने या सूत कातने की तकली। २. चरखे में का तकला। ३. चमड़ा सीने का सूआ या सूजा। ४. सुनारों का एक औजार जिससे सोने आदि के तार खींचकर उनमें फंदा लगाया जाता है। ५. संगतराशों का एक औजार जिससे मूर्तियों आदि का तल चिकना किया जाता है। ६. जुलाहों की बाँस की वह फिरकी जिसकी नाभि में रेशम के डोरे अटकाये या फँसाये जाते हैं।
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टेंगड़  : स्त्रीं०=टेंगर।
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टेंगन  : स्त्री०=टेंगर।
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टेंगनि  : स्त्री०=टेंगर।
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टेंगर  : स्त्री० [सं० तुंड-एक प्रकार की मछली] एक प्रकार की मछली जिसकी रीढ़ में केवल एक काँटा होता है।
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टेघरना  : अ० दे० ‘पिघलना’।
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टेंघुना  : पुं०=घुटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेघुनी  : स्त्री० १.=टेंघुना। २.=कोहनी।
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टेंचन  : पुं० [हिं० टेक] चाँड़। थूनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेंट  : स्त्री० [?] कमर में पड़नेवाली धोती की वह लपेट जिसमें रुपये, पैसे आदि भी रखे जाते हैं। मुहावरा–टेंट में कुछ होना=पा में कुछ रुपया-पैसा होना। स्त्री० [सं० तुंड] १. कपास की ढोंढ़। २. करील का फल। ३. भीतरी घाव।
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टेटका  : पुं० [सं० तांटक] कानों में पहनने का एक लटकौआ आभूषण। लोलक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेंटर  : पुं०=ढेंढर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेंटा  : पुं० [देश०] बगुले की जाति का चितकबरे रंग का एक बड़ा पक्षी।
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टेंटार  : पुं०=टेंटा।
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टेंटिहा  : पुं० [?] क्षत्रियों की एक शाखा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=टेंटी।
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टेंटी  : स्त्री० [देश०] १. करील नामक पौधा और उसका फल। कचड़ा। उदाहरण–फेंट किसी टेंटिन पै मेवन कौ क्यों स्वाद बिसारयौ।–भारतेन्दु। वि० [अनु० टे टे] जिद्दी और झगड़ालू।
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टेंटुवा  : पुं० [देश०] १. गरदन। २. अंगूठा।
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टेटू  : स्त्री० [सं० टुटंक] सोनापाठा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि०=टेंटी।
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टेटें  : स्त्री० [अनु०] १. तोते के बोलने का शब्द। २. बार-बार होनेवाला कोई कर्कश या तीखा स्वर। ३. व्यर्थ की बकवाद या बात-चीत।
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टेंठा  : वि० [?] [स्त्री० टेंठी] चंचल।
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टेंड  : स्त्री०=टिंड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेंडर  : पुं० [अं०] किसी काम या सेवा का ठेका लेने से पहले उपस्थित किया जानेवाला वह पत्र जिसमें लिखा रहता है कि हम अमुक काम इतने दिनों के अन्दर और इतने रुपये लेकर पूरा कर देगें। पुं०=ढेंडर (आँख का रोग)।
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टेंडसी  : स्त्री०=डेंढसी (टिंड़ा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेढ़  : स्त्री० [हिं० टेढ़ा] १. टेढ़ापन। वक्रता। २. बात-चीत या व्यवहार में दिखाई देने वाला लड़ाकापन। मुहावरा–टेढ़ की लेना=जहाँ सीधी तरह की बात होनी चाहिए वहाँ भी ऐंठ या लड़ाई-झगड़े की बात करना। वि०=टेढ़ा। उदाहरण–टेढ़ जानि संका सब काहू।–तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेढ़-बिंडगा  : वि०=टिंढ़-बिडंगा।
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टेढ़ा  : वि० [सं० त्रेधा, मरा० तेड़ा, सि० टेडो, पु० हि० टेढ़] [स्त्री० टेढ़ी, भाव टेढ़ाई] १. जो लंबाई के बल में किसी एक सीध में न गया हो, बल्कि बीच में कहीं इधर-उधर कुछ घूम या मुड़ गया हो। वक्र। सीधा का विपर्याय। जैसे–टेढ़ा बाँस, टेढ़ी लकीर। २. जिसकी क्रिया, गति या मार्ग में किसी प्रकार की कुटिलता या वक्रता आ गई हो। जैसे–टेढ़ी आँख या चितवन। ३. जिसमें सरलता, सुगमता आदि का बहुत कुछ अभाव हो। जैसे–टेढा रास्ता। ४. जिसमें अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ, विकटताएँ आदि हों। जो सहज में ठीक या संपन्न न हो सकता हो। जैसे–टेढ़ा काम, टेढ़ा मुकदमा, टेढ़ी समस्या। पद–टेढ़ी खीर=बहुत ही कठिन या विकट काम। जैसे–चंद्रमा या मंगल तक पहुँचना टेढ़ी खीर है। विशेष–यह पद उस कहानी के आधार पर बना है जिसमें किसी अंधे ब्राह्मण को खीर का परिचय कराने के लिए पहले उसके सफेद होने का और फिर सफेदी का बोध कराने के लिए बगले का उल्लेख किया गया था और अंत में बगले का बोध कराने के लिए उसके आगे हाथ टेढ़ा करके रखा गया था, जिसे टटोलकर उसने कहा था कि खीर तो टेढ़ी होती है। वह मेरे गले में अटक जायगी। ५. व्यावहारिक दृष्टि से जिसमें उग्रता कठोरता आदि हो, फलतः जिसमें कोमलता, नम्रता शिष्टता आदि का बहुत कुछ अभाव हो। जैसे–टेढ़ा आदमी, टेढ़ा स्वभाव। मुहावरा–(किसी को) टेढ़ी आँख से देखना=वैर-विरोद, शत्रुता आदि के भाव से देखना। (किसी से) टेढ़े पड़ना या होना=क्रुद्ध या रुष्ट होकर कठोरतापूर्ण बातें कहना या लड़ने झगड़ने को तैयार होना। टेढ़े-टेढ़े चलना=इतरा या ऐंठ कर चलना। पद–टेढ़ी सीधी बातें=ऐसी बातें जिनमें से कुछ तो ठीक या सीधे ढंग से और कुछ क्रुद्ध या रुष्ट होकर कहीं गई हों। जैसे–उस दिन वे अकारण ही मुझे बहुत सी टेढ़ी सीधी बातें सुना गये।
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टेढ़ा-मेढ़ा  : वि० [हिं० टेढ़ा+अनु० मेढ़ा अथवा हिं० बेड़ा] [स्त्री० टेढ़ी-मेढ़ी] १. (वस्तु) जिसमें बहुत अधिक घुमाव-फिराव या मोड़ हों। २. (कार्य) जो कठिन या मुश्किल हो।
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टेढाई  : स्त्री० [हिं० टेढ़ा]=टेढ़ापन।
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टेढ़ापन  : पुं० [हिं० टेढ़ा+पन (प्रत्यय)] टेढे होने की अवस्था या भाव।
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टेढ़े टेढ़े मेढे  : क्रि० वि० [हिं० टेढ़ा] सीधी तरह से नहीं, बल्कि टेढ़ेपन या घुमाव-फिराव के साथ। मुहावरा–टेढ़े टेढ़े चलना=सरल या सीधा व्यवहार न करके छल-कपट या लड़ाई-झगड़ा की बात करना।
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टेना  : स० [देश०] १. धार तेज करने के निर्मित्त अस्त्र आदि को पत्थर पर रगड़ना। २. धार चोखी या तेज करना। ३. मूछों के बालों में बल डालकर उन्हें खड़ा या तना रखने के लिए उमेठना।
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टेनिस  : पुं० [अं०] गेंद का एक विदेशी खेल। टेनिस।
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टेनी  : स्त्री० [देश०] १. कानी अर्थात् सबसे छोटी उँगली। मुहावरा–टेनी मारना=कोई चीज तौलने के समय तराजू की डंडी में कानी उँगली से इस प्रकार सहारा लगाना कि चीज उचित से कम तौली जाय। २. एक प्रकार की छोटी चिड़िया।
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टेपारा  : पुं०=टिपारा।
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टेबुल  : पुं० [अं०] १. मेज। २. सारिणी। (दे०)।
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टेम  : स्त्री० [हिं० टिमटिमाना] दीप-शिखा। दीये की लौ या ज्योति। पुं०=टाइम (समय)।
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टेमन  : पुं० [देश०] १. साँपों की एक जाति। २. उक्त जाति का साँप।
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टेमा  : पुं० [देश०] चारे की छोटी अँटिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेर  : स्त्री० [सं० तार=संगीत में ऊंचा स्वर] १. टेरने की क्रिया या भाव। २. किसी को बुलाने के लिए ऊँचे स्वर से की जानेवाली पुकार। ३. संगीत में वह ऊँचा स्वर जिसका उच्चारण एक साथ निरन्तर कुछ समय के लिए किया जाय। ४. गुजर। निर्वाह।
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टेरक  : वि० [सं० केकर, पृषो० सिद्ध] ऐंचाताना। भेंगा।
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टेरना  : स० [हिं० टर+ना (प्रत्यय)] १. किसी को अपने पास बुलाने के लिए कुछ ऊंचे स्वर से या चिल्लाकर पुकारना। २. किसी प्रकार के संकेत के रूप में या यों ही ऊंचा स्वर निकालना। जैसे–मुरली या वंशी टेरना। स० [?] १. (काम, बात या समय) टालना। २. (किसी व्यक्ति को) टरकाना।
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टेरवा  : पुं० [देश०] हुक्के की वह नली जिस पर चिलम रखी जाती हैं।
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टेरा  : पुं० [?] १. अंकोल का पेड़। २. पेड़ का तना या धड़। ३. पेड़ की डाल या शाखा। वि० दे० ‘भेंगा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेराकोटा  : पुं० [अं०] मृण्मूर्ति (दे०)।
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टेरी  : स्त्री० [देश०] १. पतली शाखा। टहनी। २. कुंती या बखेरी नाम का पौधा जिसकी कलियां चमड़ा सिझाने के काम आती हैं ३. बक्कम की फली। ४. दरी की बुनाई में काम आनेवाला एक प्रकार का सूजा।
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टेरो  : स्त्री० [देश०] एक तरह की सरसों। उलटी।
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टेलि-प्रिंटर  : पुं० [अं०]=दूर मुद्रक।
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टेलि-प्रिटिंग  : पुं० [अं०]=दूरमुद्रण।
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टेलिग्राफ  : पुं० [अं०]=दूरलेख।
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टेलिग्राम  : पुं० [अं०]=दूरलेख।
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टेलिपैथी  : स्त्री० [अं०]=दूरबोध।
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टेलिफोन  : पुं० [अं०]=दूरभाषक।
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टेलिविजन  : पुं० [अं०]=दूरदर्शन।
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टेलिस्कोप  : पुं० [अं०]=दूरवीक्षक।
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टेली  : स्त्री० [देश०] मझोले आकार का एक पेड़ जिसकी लकड़ी का रंग लाल होता है।
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टेव  : स्त्री० [हिं० टेक] आदत। बान। क्रि० प्र०–पड़ना।–लगना।
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टेवकी  : स्त्री० [हिं० टेवकन, टेकन] १. किसी चीज को गिरने से बचाने या सहारा देने के लिए उसके नीचे लगाई जाने वाली छोटी पतली लकड़ी। टेक। २. जुलाहों की वह लकड़ी जो ताने के सूतों को जमीन पर गिरने से बचाने के लिए उनके नीचे लगाई जाती है। ३. नाव में सबसे ऊपरवाला पाल जो प्रायः सबसे छोटा होता है।
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टेवना  : स०=टेना। (अस्त्र की धार रगड़ कर तेज करना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेवा  : पुं० [सं० टिप्पन] १. जन्मपत्री। जन्मकुंडली। २. लग्नपत्री जिसमें विवाह सम्बन्धी भिन्न-भिन्न कृत्यों का समय लिखा रहता है।
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टेवैया  : वि० [हिं० टेवना] १. टेने (टेवने) अर्थात् अस्त्रों आदि की धारें रगड़कर तेज करने वाला। २. मूँछ के बाल टेने अर्थात् उमेठने वाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेसुआ  : पुं०=टेसू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेसू  : पुं० [सं० किंशुक] १. पलाश का फूल। २. शारदीय नवरात्र का एक उत्सव जिसमें लड़के गाते हुए घर-घर जाते और वहाँ से पैसे या अनाज पाते हैं। (इसी अवसर पर इस प्रकार का लड़कियों का जो उत्सव होता है वह ‘झाँझी’ कहलाता है।) ३. इस उत्सव पर गाये जानेवाले गीत।
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टेहला  : पुं० [देश०] विवाह के समय होनेवाली अनेक छोटी रस्मों में से कोई एक या हर एक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टेहुना  : पुं०=घुटना।
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टेहुनी  : स्त्री०=कोहनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टैंक  : पुं० [अं०] १. तालाब। २. स्थल पर चलनेवाला एक प्रकार का बड़ा युद्धयान जिस पर तोपें लगी होती हैं।
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टैक्स  : पुं० [अं०] १.=कर। २.=शुल्क।
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टैक्सी  : स्त्री० [अं०] किराये पर चलने वाली छोटी मोटरगाड़ी (निजी मोटरगाडी से भिन्न)।
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टैंटी  : स्त्री० वि०=टेंटी।
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टैन  : स्त्री० [देश०] एक तरह की घास जिससे चमड़ा सिझाया जाता है।
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टैना  : पुं० [देश०] वह पुतला या हाँड़ी जिसे खेत में इसलिए खड़ा किया या टांगा जाता है कि पशु-पक्षी उससे भयभीत हों और फलतः फसल की क्षति न करने पावें।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टैनी  : स्त्री० [देश०] भेड़ों का झुंड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=टहनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टैंया  : स्त्री० [देश०] चित्ती कौड़ी। वि० छोटा या नाटा होने पर भी हृष्ट-पुष्ट।
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टैरा  : पुं० [स्त्री० टैरी]=टेरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोंआ  : स्त्री० [?] आम के वृक्ष के आरंभिक अंकुर जो कुछ समय बाद मंजरी का रूप धारण करते हैं। डाभ। पुं० [हिं० टोना=छूकर देखना] जहाज या नाव का वह मल्लाह जो आगे की ओर बैठकर पानी की गहराई नापता या थाह लेता चलता हो।
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टोइयाँ  : पुं० [देश०] एक तरह का छोटे आकार का तोता जिसकी चोंच पीले रंग की तथा गला और सिर बैंगनी रंग का होता है।
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टोई  : स्त्री० [देश०] उँगली का खंड। पोर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोंक  : स्त्री०=टोक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=टोका (सिरा)।
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टोक  : स्त्री० [सं० स्तोक या हिं० टोकना] १. टोकने की क्रिया या भाव। २. वह प्रश्नात्मक छोटी बात जो किसी को कुछ करने या कहने से टोक या रोककर बीच में कही या पूछी जाती है। साधारणतः ऐसी बात कुछ बाधक या विघ्नकारक समझी जाती है मुहावरा–किसी की टोक में आना=किसी के टोकने पर उसके अनिष्टकारक प्रभाव में पड़ना। टोक लगना=किसी के बीच में टोकने पर उसका कुछ अनिष्टकारक या विघ्नकारक प्रभाव पड़ना। जैसे–(क) तुम्हारी टोक लग गई, इसी से वहाँ जाने पर हमारा काम नहीं हुआ। (ख) बच्चे को किसी की टोक लगी है, इसी से वह बीमार हो गया। पद–टोक-टाक=किसी को कोई काम करते देखकर उसके संबंध में किये जानेवाले छोटे-छोटे प्रश्न जो साधारणतः लोक में उस काम के लिए बाधक लक्षण या अपशकुन समझे जाते हैं। ३. बुरी दृष्टि का प्रभाव। नजर। पुं=टोका (सिरा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोकना  : स० [हिं० टोक+ना (प्रत्यय)] १. वक्ता के बोलते समय बीच में ही श्रोता का उसे कोई बात कहने से रोकना अथवा किसी बात के संबंध में अपनी शंका प्रकट करना। विशेष–साधारणतः लोक में इस प्रकार के प्रश्न अपशकुन के रूप में माने जाते हैं। २. किसी को कोई काम करते देखकर अथवा कोई काम करने के लिए प्रस्तुत देखकर उसे वह काम न करने के लिए अथवा उसे ठीक तरह से करने के लिए कहना। ३. लड़ने आदि के लिए आह्वान करना। पुं० [?] [स्त्री० अल्पा० टोकनी] १. टोकरा। २. एक प्रकार का हंडा।
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टोकनी  : स्त्री० [हिं० टोकना] १. पानी रखने का चौड़े मुँह का एक प्रकार का बड़ा बरतन। २. बड़ी देगची या बटलोई। स्त्री०=टोकरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोकरा  : स्त्री० [?] [स्त्री० अल्पा० टोकरी] बाँस की खमाचियों या तीलियों अथवा बेंच सरकंडे आदि का बना हुआ खुले तथा चौड़े मुँहवाला बड़ा आधान। खाँचा। झाबा।
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टोकरिया  : स्त्री० [हिं० टोकरा का स्त्री० अल्पा० रूप] टोकरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोकरी  : स्त्री० [हिं० टोकरा का स्त्री० अल्पा० रूप] छोटा टोकरा। स्त्री०=टोकनी।
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टोकवा  : पुं० [देश०] उत्पाती या उपद्रवी लड़का।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोकसी  : स्त्री० [देश०] नारियल की आधी खोपड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [देश०] एक तरह का कीड़ा जो उर्द की फसल को हानि पहुँचाता है।
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टोंका  : पुं०=टोका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोका  : पुं० [हिं० टूक] १. किसी चीज का किनारा या सिरा। जैसे–डोरे या धागे का टोका। २. कपड़े आदि का कोना या पल्ला। ३. नोक। ४. स्थल का वह भाग जो कुछ दूर तक जल में चला गया हो। पुं० [हिं० टूक] १. चारा काटने का गँडासा नामक उपकरण। (पश्चिम) २. चारा काटने की कल या यंत्र।
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टोकारा  : पुं० [हिं० टोक] १. वह बात जो किसी को टोकने अथवा टोक कर कुछ याद दिलाने या सचेत करने के लिए कही जाय। २. उक्त उद्देश्य से किया जानेवाला कोई संकेत। उदाहरण–उसने उंगली से उसके गाल पर टोकारा दिया।–नागार्जुन। क्रि० प्र०–देना।
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टोंगा  : पुं०=टाँगा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोंगू  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पौधा जिसके रेशों से रस्सियाँ बनती हैं।
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टोंच  : स्त्री० [हिं० टोंचना] १. टोचने की क्रिया या भाव। २. सिलाई का टाँका। सीयन।
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टोंचना  : स० [सं० टकन] १. सिलाई करना। सीना। २. गड़ाना। चुभाना।
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टोंट  : स्त्री० [सं० तुंड] चोंच।
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टोट  : स्त्री० [हिं० टूट] १. टोटा। कमी। २. घाटा। हानि।
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टोटक  : पुं०=टोटका।
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टोटक-हाया  : पुं० [हिं० टोटका+हाया (प्रत्यय)] [स्त्री० टोटक-हाई] वह व्यक्ति जो टोटका या टोना करता हो।
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टोटका  : पुं० [सं० तांत्रिक से] तांत्रिक प्रयोगों के अंतर्गत, वह छोटा उपचार या औपरचारिक कृत्य, बाधा रोग आदि दूर करने या उनसे बचने बचाने अथवा इसी प्रकार के दूसरे उद्देश्य सिद्ध करने के लिए यह समझकर किया जाता है कि इसमें कुछ अलौकिक या दैवी शक्ति होती है अथवा यह कुछ विलक्षण चमत्कार या प्रभाव दिखाता है। विशेष–टोटका बहुधा औपचारिक कृत्य के रूप में ही होता है, और इसमें मंत्रों आदि का प्रयोग नहीं होता। रोगी के सिर पर उतारा उतारकर चौमुहानी या किसी विशिष्ट स्थान पर रखना, वर्षा कराने अथवा रोकने के लिए नंगे होकर कोई कृत्य करना, नजर या भूत-प्रेत का प्रभाव या कोई रोग दूर करने के लिए कुछ चीजें जलाना, अपने बच्चे को जीवित या नीरोग रखने के लिए दूसरों के बच्चों के कपड़े फाड़कर कहीं गाड़ना आदि छोटे-छोटे कृत्य टोटकों के वर्ग में आते हैं। मुहावरा–(किसी के यहाँ) टोटका करने आना=बहुत ही थोड़ी देर के लिए या केवल नाम करने के लिए आना। (स्त्रियों का परिहास और व्यंग्य) जैसे–तुम तो आते ही इस प्रकार उठकर चलने लगी कि मानों टोटका करने के लिए आई थी। (साधारणतः जब और जहाँ कोई टोटका किया जाता है, तब टोटका करने वाला व्यक्ति प्रायः तुरंत वहाँ से हट जाता है)। पुं० दे० ‘टोना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोटके-हाया  : पुं० [स्त्री० टोटके-हाई]=टोटक-हाया।
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टोंटरी  : स्त्री०=टोंटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोटल  : पुं० [अं०] संख्याओं का जोड़ या योग। मीजान। मुहावरा–टोटल मिलाना=आय-व्यय आदि के ठीक होने की जाँच या मिलान करना।
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टोंटा  : पुं० [सं० तुंड] [स्त्री० अल्पा० टोंटी] १. कोई ऐसी खोखली गोलाकार लंबी चीज जो नोक की तरह आगे निकली हो जैसे–बाँस का टोंटा, आतिशबाजी का टोंटा। २. बन्दूक की गोली का ऊपरी आवरण। कारतूस। ३. कच्चे देहाती मकानों में छाजन के नीचे लगाई जानेवाली लकड़ी की घोड़िया।
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टोटा  : पुं० [सं०√त्रुट्, हिं० टूटना] १. लेन-देन व्यवहार आदि में होनेवाली आर्थिक क्षति। घाटा। हानि। २. खटकनेवाला अभाव या कमी। जैसे–आज-कल बाजार में गेहूँ का टोटा है। ३. किसी वस्तु का कोई छोटा अंश या खंड० टुकड़ा जैसे–कपड़े का टोटा। ४. एक प्रकार की छोटी गरम चद्दर जिसे स्त्रियाँ ओढ़ती है। (पश्चिम)।
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टोंटी  : स्त्री० [सं० तुंड] १. किसी पात्र या नल में आगे की ओर लगा हुआ वह छोटा मुँह जिसमें से होकर कोई तरल पदार्थ गिरता या निकलता है। (टैप)। २. सूअर आदि पशुओं का थूथन।
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टोडा  : पुं० [सं० तुंड] देहाती कच्चे मकानों में छाजन के नीचे बाहर की ओर लगाई जानेवाली काठ की घोड़िया। टोंटा।
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टोडिक  : पुं० [हिं० टोड] वह जिसे सदा पेट भरने की चिन्ता रहे। पेटू उदाहरण–टोडिक ह्वै घनआनन्द डाँटत काटत क्यौ नहि दोनता सों दिन।–घनानन्द।
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टोडिस  : वि० [?] उत्पाती। उपद्रवी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोड़ी  : स्त्री० [सं० त्रोटकी] १. प्रातःकाल गाई जानेवाली संपूर्ण जाति की एक रागिनी। २ संगीत में चार मात्राओं का एक ताल। पुं० [अं०] नीच प्रकृति का मनुष्य। खुशामदी तथा कमीना व्यक्ति।
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टोनहा  : वि० [हिं० टोना+हा (प्रत्य)] [स्त्री० टोनही] टोना करनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोनहाई  : स्त्री० [हिं० टोना+हाई (प्रत्यय)] टोना-टोटका करने की क्रिया या भाव। स्त्री० हिं० ‘टोनहाया’ का स्त्री०।
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टोनहाया  : वि० [स्त्री० टोनाहाई]=टोनहा।
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टोना  : पुं० [हिं० टोटका का तंत्र] १. वह टोटका या छोटा-मोटा तांत्रिक उपचार जो प्रायः किसी को अनुरक्त या वशीभूत करने, मूढ़ बनाकर अपना काम निकालने या सहज में अपना कोई उद्देश्य सिद्ध करने के लिए कुछ मंत्र पढ़कर किया जाता है क्रि० प्र०–चलाना।–डालना।–पढ़ना।–मारना। २. विवाह के समय गाया जानेवाला एक प्रकार का गीत जिसके हर चरण में टोना शब्द आता है, और जिसका मुख्य उद्देश्य वर-वधू को परस्पर अनुरक्त करना और उनके अनुराग को दूसरों की नजर या बुरी दृष्टि से बचाना होता है। स० [हिं० टोहना] किसी चीज के रूप आदि का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उस पर उँगलियाँ या हथेली रखना। जाने या समझने के लिए छूना या छूकर देखना। टटोलना। पुं० [?] एक प्रकार का शिकारी चिड़िया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोप  : पुं० [हिं० तोपना=ढाँकना] १. बड़ी टोपी। २. युद्ध में सिर पर पहना जानेवाला खोद। शिरस्त्राण। ३. अंगुश्ताना। ४. खोली। गिलाफ। स्त्री० [अनु०] पानी की बूँद।
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टोपन  : पुं० [देश०] टोकरा।
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टोपरा  : पुं०=टोकरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोपरी  : स्त्री०=टोकरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोपही  : स्त्री० [हिं० टोप] बरतन ढालने के साँचे का ऊपरी भाग जो कटोरे के आकार का होता है।
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टोपा  : पुं० [हिं० तोपना] १. बड़ी टोपी। २. टोकरा। दौरा। ३. काठ का एक पात्र जिसमे भरकर अनाज आदि नापे (तौले) जाते थे और जिसमें लगभग सवा सेर अन्न आता था। (पंजाब)। पुं०–तोपा (सिलाई का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [हिं० तोपना] टीकरा।
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टोपी  : स्त्री० [सं०√स्तुभ्√स्तूप्, दे० प्रा० टिपि आ, टोप्पर] १. सिर पर रखने का एक विशिष्ट प्रकार का हलका पहनावा जो लंबोत्तरा, तिकोना चौकोर या ऐसे ही किसी और रूप का होता है। जैसे–गाँधी या तुर्की टोपी। क्रि० प्र०–पहनावा।–रखना।–लगाना। मुहावरा–(किसी की) टोपी उछालना=किसी को सबके सामने अपमानित या बेइज्जत करना। (किसी से) टोपी बदलना-भाई भाई का सा संबंध जोड़ना। २. राजमुकुट। ताज। मुहावरा–टोपी बदलना=राज्य के एक राजा या शासक के न रह जाने पर उसके स्थान पर दूसरे राजा या शासक का आना या बैठना। ३. टोपी के आकार की कोई गोल और गहरी वस्तु जिससे प्रायः कोई चीज ढकी जाती है। जैसे–चिलम ढकने की टोपी। ४. बोतल आदि का मुंह बंद करने का धातु का ढक्कन। ५. टोपी के आकार का धातु का गहरा ढक्कन जिसे बंदूक पर चढ़ा कर घोड़ा गिराने से आग पैदा होती है। ६. दरजी का वह चौड़ा छल्ला जिसे वह हाथ से सिलाई आदि करते समय उँगली में पहन लेता है। अंगुश्ताना। ७. वह थैली जो कुछ जानवरों के मुँह पर इसलिए चढ़ाई या बाँधी जाती है कि वे किसी को काट न सकें अथवा कुछ खाने न पावें। ८. लिंग का अग्रभाग।
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टोपीदार  : वि० [हिं० टोपी+फा० दार] टोपी से युक्त। जिस पर टोपी लगी हो।
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टोपीवाला  : पुं० [हिं० टोपी] वह जो कुछ विशिष्ट प्रकार की या बड़ी टोपी पहनता हो। विशेष–मध्ययुग में अहमदशाह और नादिरशाह के सिपाही एक विशिष्ट प्रकार की लाल टोपी पहनने के कारण और परवर्त्ती काल में युरोप के निवासी हैट पहनने के कारण टोपीवाले कहे जाते थे।
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टोभ  : पुं० [हिं० डोभ] टाँका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोया  : पुं० [सं० तोय] गड्ढा। (पश्चिम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोर  : स्त्री० [देश०] १. वह पानी जो घोले हुए क्षार में से नमक निकाल लेने पर बच रहता है और जिसे उबाल तथा छानकर शोरा निकाला जाता है। २. कटार।
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टोरना  : स० [?] १. इधर-उधर करना, फिराना या हटाना। जैसे–लज्जित होकर आँखें टोरना। २. दे० तोड़ना। पुं० [देश] सूत तौलने का जुलाहों का तराजू।
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टोरा  : पुं० [सं० तोक] [स्त्री० टोरी] लड़का। पुं०=टोडा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोरी  : स्त्री०=टोड़ी (रागिनी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोर्रा  : पुं=टुर्रा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोल  : पुं० [सं० चटशाला ?] १. पाठशाला। २. मध्ययुग में वह बड़ी पाठशाला जिसमें कोई बहुत बड़ा पंडित अपने शिष्यों को दर्शन, न्याय, व्याकरण आदि की ऊँची शिक्षा दिया करता था। (बंगाल)। पुं० [?] संपूर्ण जाति का एक राग जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं। स्त्री० दे० ‘टोली’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० दे० ‘टोला’ (मुहल्ला)। पुं० [अं०] किसी विशिष्ट मार्ग पर चलने के समय यात्रियों पर लगने वाला मार्ग कर।
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टोला  : पुं० [सं० अष्ठीला] १. छोटी पहाड़ी की तरह उमड़ा तथा ऊँचा उठा हुआ भूखंड। ढूह। २. मिट्टी का वह ऊँचा ढेर जो प्राकृतिक रूप से बना हो। २. छोटी पहाड़ी। पुं० [देश०] एक जल-पक्षी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोला  : पुं० [हिं० टोली का पुं०] १. किसी बस्ती का कोई विशिष्ट विभाग जो किसी स्वतंत्र नाम से प्रसिद्ध हो। मुहल्ला। जैसे–महाजनी टोला। २. ईंट-पत्थर आदि का बड़ा तथा भारी टुकड़ा। पुं० [देश०] १. गुल्ली पर किया जानेवाला डंडे का आघात या चोट। २. उँगली मोड़कर उसकी हड्डी से किया जानेवाला आघात। क्रि० प्र०–मारना।–लगाना। २. बेंत आदि की चोट का निशान। क्रि० प्र०–पड़ना। ३. बड़ी कौड़ी। कौड़ा।
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टोली  : स्त्री० [सं० टोलिका=घेरा बाड़ा] १.किसी बस्ती का कोई ऐसा छोटा विभाग जो किसी विशिष्ट नाम से प्रसिद्ध हो। छोटा टोला या मुहल्ला। जैसे–ग्वाल टोली। २. जीव-जन्तु या प्राणियों का झुंड। जैसे–बंदरों की टोली। ३. मनुष्यों का दल या मंडली। जैसे–यात्रियों की टोली। ४. पत्थर की चौकोर पटिया। बड़ी सिल। ५. पूर्वी हिमालय में होनेवाला एक प्रकार का बांस जिसे नाल भी कहते हैं।
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टोली-घनवा  : पुं० [हिं० टोली+धान] एक तरह की घास जिसके पत्ते धान के पत्तों जैसे होते हैं।
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टोवना  : स०=टोना। उदाहरण–जोबन रतन कहाँ भुँइं टोवा–जायसी।
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टोवा  : पुं०=टोआ।
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टोंस  : स्त्री०=टौंस। (तमसा नदी)।
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टोह  : स्त्री० [हिं० टोहना] १. टोहने अर्थात् टटोलने या टोने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–पाना।–मिलना।–लगना। २. किसी अज्ञात बात का लगनेवाला कुछ पता। अंघेरे में छिपी या दबी हुई बात की होनेवाली थोड़ी बहुत जानकारी। थाह।
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टोहना  : स० [हिं० टोह] १. किसी अज्ञात बात की टोह लेना या पता लगाना। थाह लेना। २. जानने के लिए कुछ छूकर देखना।
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टोहा-टाई  : स्त्री० [हिं० टोह] बार-बार टोहने या टोह लेने की क्रिया या भाव।
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टोहिया  : वि०=टोही।
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टोहियाना  : स०=टोहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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टोही  : वि० [हिं० टोह] खोज या टोह लेने या पता लगानेवाला। पुं० जासूस।
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टौनहाल  : पुं,०=टाउनहाल।
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टौर  : स्त्री० [हिं० टौरना] १. टोरने की क्रिया या भाव। २. किसी बात की होनेवाली जानकारी या लगनेवाला पता। उदाहरण–बैठी रही अभिमान सौं टाह टौर नहिं पायौ।–सूर। ३. घात। दाब। ४. उपयुक्त अवसर।
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टौरना  : स० [हिं० टेरना ?] १. जाँच करना। परखना। २. पता लगाना।
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टौरिया  : स्त्री=टेकरी।
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टौंस  : स्त्री० [सं० तमसा] १. एक छोटी नदी जो अयोध्या के पश्चिम से निकलकर बेतिया के पास गंगा में मिलती है। २. विन्ध्य-प्रदेश की एक नदी जो रीवाँ की ओर से आकर प्रयाग के पूर्व सिरसा के पास गंगा में मिलती हैं। ३. टेहरी और देहरादून के पास की एक नदी जो जमुना में मिलती हैं।
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ट्यौझा  : पुं० [देश०] व्यर्थ का झगड़ा या बखेड़ा।
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ट्रंक  : पुं० [अं०] टीन की चद्दर का बड़ा संदूक।
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ट्रक  : स्त्री० [अं०] माल ढोनेवाली एक प्रकार की बड़ी मोटरगाड़ी।
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ट्रस्ट  : पुं० [अं०] न्यास (दे०)।
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ट्रस्टी  : पुं० [अं०] न्यासी। (दे०)
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ट्राम  : स्त्री० [अं०] कुछ नगरों की सड़कों पर बिछी हुई पटरियों पर बिजली की सहायता से चलनेवाली एक प्रकार की छोटी गाड़ी।
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ट्रेडमार्क  : पुं० [अं०] किसी वस्तु पर अंकित वह विशेष चिन्ह जो यह सूचित करता है कि इसवस्तु का निर्माता अमुक व्यक्ति या संस्था है।
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ट्रेडिल मशीन  : स्त्री० [अं०] छापे की छोटी मशीन।
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ट्रेन  : स्त्री० [अं०] रेलगाड़ी।
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ट्रेनिंग  : स्त्री० [अं०] दे० ‘प्रशिक्षण’।
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ट्रौली  : स्त्री० [अं०] १. रेल की पटरियो पर चलनेवाली ठेला-गाड़ी। २. ठेला-गाड़ी।
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