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तर्जन  : पुं० [सं०√तर्ज् (भर्त्सना करना)+ल्युट्-अन] १. कोई काम करने से किसी को रोकने के लिए क्रोधपूर्वक कुछ कहना या संकेत करना। २. डराना-धमकाना।
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तर्जना  : अ० [हिं० तर्जन] तर्जन करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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तर्जनी  : स्त्री० [सं० तर्जन+ङीष्] अँगूठे के पास की उँगली। विशेष–इस उँगली को होंठो पर रखकर अथवा खड़ी करके किसी को तर्जित किया जाता है इसी लिए इसका नाम यह पड़ा है।
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तर्जनी-मुद्रा  : स्त्री० [मध्य० स०] तंत्र की एक मुद्रा जिसमें बाएँ हाथ की मुट्ठी बाँधकर तर्जनी और मध्यमा को फैलाते हैं।
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