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दौड़ना  : अ० [सं० धोरण] [भाव० दौड़ाई] १. जैव या अजैव वस्तुओं का तीव्र गति से किसी दिशा की ओर या किसी पथ पर बढ़ना। जैसे—(क) मनुष्य, हाथी या इंजन दौड़ना। (ख) कागज पर कलम दौड़ना। विशेष—मनुष्य तो दौड़ने के समय जब एक पैर जमीन पर रख लेता है, तब दूसरा पैर उठाता है; परन्तु पशु प्रायः उछल-उछल कर जमीन पर से अपने चारों पैरे ऊपर उठाते हुए दौड़ते हैं। संयो० क्रि०—जाना।—पड़ना। २. (व्यक्ति का) अपेक्षया अधिक तीव्र गति या वेग से किसी ओर जाना या बढ़ना। जैसे—दौड़कर मत चलो; नहीं तो ठोकर लगेगी। ३. किसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए बार-बार कहीं आना-जाना। जैसे—अभी उसे दो-चार दिन दौड़ लेने दो, तब आप ही उसकी बुद्धि ठिकाने हो जायगी। मुहा०—दौड़ दौड़कर आना=जल्दी-जल्दी और बार-बार आना। जैसे—हमारे यहाँ दौड़-दौड़ कर तुम्हारा आना व्यर्थ है। दौड़ पड़ना=एकाएक तीव्र गति से या वेग से चलना आरंभ करना। जैसे—जहाँ तुम खेल-तमाशे का नाम सुनते हो, वहीं दौड़ पड़ते हो। (किसी काम या बात के पीछे) दौड़ पड़ना=बिना सोचे-समझे किसी ओर वेगपूर्ण प्रवृत्त होना। (किसी पर) चढ़ दौड़ना=आक्रमण या चढ़ाई करने के लिए बहुत तेजी से आगे बढ़ना। जैसे—गुंडे मार-पीट करने के लिए उनके मकान पर चढ़ दौड़े। ४. दौड़ की किसी प्रतियोगिता में सम्मिलित होना। ५. तरल पदार्थ के संबंध में, धारा का वेगपूर्वक किसी ओर बढ़ना। जैसे—(क) नसों में खून दौड़ना। (ख) नालियों में पानी दौड़ना। ६. किसी चीज का अंश या प्रभाव कार्यकारी, विद्यमान या व्याप्त होना। जैसे—(क) चेहरे पर लाली या स्याही दौड़ना। (ख) शरीर में जहर या विष दौड़ना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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