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मध्यम  : वि० [सं० मध्य+म] १. जो विपरीत कोणों, दिशाओं या सीमाओं के बीच में हो। मध्य का। बीच का। २. न बहुत बड़ा और न बहुत छोटा। वि०=मद्धिम। पुं० १. संगीत के सात स्वरों में से चौथा स्वर जिसका मूल स्थान नासिका, अंतः स्थान कंठ और शरीर में उत्पत्ति स्थान वक्षस्थल माना गया है २. वह उपपति जो नायिका की चेष्टाओं से ही उसके मन का भाव जान ले और उसके क्रोध दिखलाने पर अनुराग न प्रकट करे। यह साहित्य में तीन प्रकार के नायकों में से एक है। ३. एक प्रकार का हिरन। ४. संगीत में एक प्रकार का राग। ५. दे० ‘मध्य देश’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मध्यम पद-लोपी (पिन्)  : [सं० मध्यम-पद, कर्म० स०, मध्यम्पद] व्याकरण में एक प्रकार का समास जिसमें पहले पद से दूसरे पद का संबंध बतलानेवाला शब्द अध्याहृत लुप्त रहता है। लुप्त पद-समास।
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मध्यम-पुरुष  : पुं० [सं० कर्म० स०] व्याकरण में वक्ता की दृष्टि में उस व्यक्ति का वाचक सर्वनाम जिससे वह कुछ कह रहा हो। (सेकेंड पर्सन)। जैसे—तू, तुम, आप।
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मध्यम-मार्ग  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. दो चरम सीमाओं या परस्पर विरोधी मार्गों अथवा साधनों के बीच का ऐसा मार्ग या साधन जिसमें दोनों पक्षों या विचार-धाराओं का उचित समाधान या सामंजस्य होता हो। बीच का रास्ता (वाया-मीडिया)। २. महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित एक प्रसिद्ध मत या सिद्धांत।
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मध्यम-राजा (जन्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह राजा जो कई परमात्मा विरोधी राजाओं के मध्य में हो।
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मध्यम-लोक  : पुं० [सं० कर्म० स०] पृथ्वी।
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मध्यम-वर्ग  : पुं० [सं० कर्म० स०] मनुष्य समाज के आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से विभाजित वर्गों (उच्च, मध्यम और निम्न) में से हुद्धि प्रधान एक वर्ग जो सामान्य आर्थिक स्थित तथा सामाजिक स्थितिवाला समझा जाता है और उच्च वर्ग (धनी वर्ग) और निम्नवर्ग (श्रमिक वर्ग) के बीच में माना जाता है (मिडिल क्लास)।
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मध्यम-संग्रह  : पुं० [सं० कर्म० स०] पर-स्त्री को फुसलाने तथा अपने वश में करने के विचार से उसे गहने-कपड़े आदि भेजना (मिताक्षरा)
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मध्यम-साहस  : पुं० [सं० कर्म० स०] मनु के अनुसार पाँच सौ पणोतक का अर्थ-दंड या जुरमाना।
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मध्यमता  : स्त्री० [सं० मध्यम+तल्+टाप्] मध्यम होने की अवस्था या भाव।
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मध्यमा  : स्त्री० [सं० मध्यम+टाप्] १. हाथ की बीचवाली उँगली। २. साहित्य में वह नायिका जो अपने प्रिय के द्वारा हित अथवा अहित का व्यवहार देखकर उसके प्रति वैसा ही हित अथवा अहित का व्यवहार करती हो। ३. २४. हाथ लंबी, १२ हाथ चौड़ी और ८ हाथ ऊँची नाव (युक्तिकल्पतरु)। ४. रजस्वला स्त्री। ५. कनियारी। ६. छोटा जामुन। ७. काकोली।
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मध्यमागम  : पुं० [सं० मध्यम-आगम, कर्म० स०] बौद्धों के चार प्रकार के आगमों में से एक।
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मध्यमान  : पुं० [सं०] [वि० मध्य-मानिक] १. लेखे या हिसाब में बराबर का। औसत। पड़ता। मध्यक। २. परस्पर विपरीत दिशाओं में स्थित दो बिंदुओं या संख्याओं के ठीक बीचोबीच में स्थित बिन्दु या संख्या। (मीन) जैसे—यदि कहीं का तापमान घटकर ९५ अंश तक और बढ़कर १0५ अंश तक पहुँच जाता हो तो वहाँ के ताप-मान का मध्यमान १00 अंश होगा। वि० १. दे० ‘मध्यक’। २. दे० ‘मध्या’। ३. संगीत में, एक प्रकार का ताल जिसमें ८ ह्रस्व अथवा ४ दीर्घ मात्राएँ होती हैं और ३ आघात और १ खाली होता है।
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मध्यमाहरण  : पुं० [सं०] बीज गणित की वह क्रिया जिसके अनुसार कोई आयत्त-मान माना जाता है।
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मध्यमिका  : स्त्री० [सं० मध्यम+कन् टाप्, इत्व] रजस्वला स्त्री०।
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मध्यमीय  : वि० [सं० मध्यम+छ—ईय] मध्यम।
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