शब्द का अर्थ
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					लेह					 :
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					पुं० [सं०√लिञ्+घञ्] १. चाटकर खाई जानेवाली चीज। २. अवलेह। ३. ग्रहण का एक भेद जिसमें पृथ्वी की छाया (या राहु) सूर्य या चंद्र बिम्ब को जीभ के समान चाटती हुई जान पड़ती है।				 | 
			
			
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					लेहँड़ा					 :
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					पुं० लहँड़ा (जन्तुओं का)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					लेहन					 :
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					पुं० [सं०√लिह् (आस्वादन)+ल्युट—अन] जीभ से चाटना।				 | 
			
			
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					लेहना					 :
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					पुं० [हिं० लहना] १. खेत में कटे हुए शस्य या फसल का वह अंश जो काटने वाले मजदूरों को मजदूरी के रूप में दिया जाता है। २. कटी हुई फसल की वह डंठल जो नाई, धोबी आदि को दिया जाता है। ३. डंठल या पयाल आदि की वह मात्रा जो उठाने वाले के दोनों हाथों में आ सके। ४. दे० ‘लहवा’। स० [सं० लेहन] चाटना। स०=लेसना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					लेहसित					 :
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					वि० [हिं० लसना] १. शोभा देने या सुन्दर लगनेवाला। २. किसी से मिश्रित या युक्त। उदाहरण—लखती लाल की ओर लाज लेहसित नैननि सों।—रत्नाकर। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					लेहसुआ					 :
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					पुं०=लहसुआ (घास)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					लेहाज़ा					 :
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					अव्य० [अं०] इसलिए। इस वास्ते। इस कारण। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					लेहाड़ा					 :
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					वि०=लिहाड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					लेहाड़ी					 :
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					स्त्री० =लिहाड़ी।				 | 
			
			
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					लेहाफ़					 :
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					पुं०=लिहाफ।				 | 
			
			
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					लेही (हिन्)					 :
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					वि० [सं०√लिह् (आस्वादन)+णिनि] चाटनेवाला।				 | 
			
			
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					लेह्य					 :
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					पुं० [सं०√लिह् (आस्वादन)+ण्यत्] १. वह पदार्थ जो चाटकर खाया जाता है। जैसे—अचार, चटनी आदि, (यह भोजन के छः प्रकारों में से एक है) २. अवलेह। वि० (पदार्थ) जो चाटकर खाया जाता हो।				 | 
			
			
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