शब्द का अर्थ
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अगत :
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वि० [सं० न० त०] १. जो गया न हो। २. जो बीता न हो। स्त्री०=अगति। पद—[सं० अग्रत, प्रा० अग्गतो) (हाथी के लिए विधि सूचक पद) आगे चलो। (महावतों की भाषा में।) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अगता :
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वि० [सं० अग्र, हिं० आगे] १. नियत समय से आगे या पहले होने वाला। (अर्ली) जैसे—अगता अनाज या फल। २. अग्रिम। पेशगी। पुं० [अ० आख्त] वह घोड़ा जिसके अंडकोश नष्ट कर दिये गये हों। आख्ता। |
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अगति :
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स्त्री० [सं० न० त०] १. गति का न होना। ठहरा या रुका हुआ न होना। स्थिरता। २. अत्येष्टि, श्राद्ध आदि न होने के कारण मृतक की आत्मा की वह स्थिति जिसमें उसका मोक्ष नहीं होता और वह इधर-उधर भटकती फिरती है। ३. उचित दशा या स्थिति का अभाव। दुर्दशा। वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें गति न हो। अचल। स्थिर। २. जिसके पास तक पहुँच न हो। ३. जिसके लिए और कोई गति या उपाय न रह गया हो। निरुपाय। |
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अगतिक :
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वि० [सं० न० ब० कप्] १. जिसकी कहीं गति या ठिकाना न हो। अशरण। निराश्रय। २. जिसके लिए कोई गति या उपाय न रह गया हो। निरुपाय। ३. अंत्येष्टि, श्राद्ध आदि न होने के कारण जिसकी गति या मोक्ष न हुआ हो। |
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अगती :
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वि० [सं० अगति] १. मरने के बाद जिसकी गति (मोक्ष प्राप्ति) न हुई हो। २. कुकर्मी, दुराचारी या पापी। स्त्री० [हिं० अगता का स्त्री०] अग्रिम। पेशगी। क्रि० वि० आगे या पहले से। स्त्री० [?] चकवँड या चक्रमर्द नाम का पौधा। |
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अगत्तर :
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वि० [सं० अग्रतर) आगे आने वाला। भावी। क्रि० वि० आगे या पहले से।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अगत्या :
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क्रि० वि० [सं० अगति का तृतीयांत रूप] १. कोई गति या उपाय न रह जाने की दशा में। लाचारी की हालत में। विवश होकर। २. सबके अंत में। ३. अकस्मात्। अचानक। सहसा। (क्व०)। |
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अगत्री :
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पुं० [सं० अग्रतर] उपद्रवी। नटखट। |
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