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अनी  : स्त्री० [सं० अणि=अग्रभाग, नोंक] १. किसी चीज का अगला नुकीला सिरा। २. आगो निकली हुई नोक। ३. नाव या जहाज का अगला सिरा जो नुकीला होता है। स्त्री० [सं० अनीक=समह] १. समूह। झुंड। २. सेना। स्त्री० [हिं आन=मर्यादा] १. ग्लानि, द्वेष या लज्जा के कारण मन में होनेवाली कसक। मुहावरा—अनी पर कनी चाटना=ग्लानि के कारण कनी चाटकर आत्म-हत्या करना। अव्य० [सं० अपि] स्त्रियों के पारस्परिक संबोधन में प्रयुक्त होने वाला शब्द। अरी। री।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
अनीक  : पुं० [सं०√अन् (जीता)+ईकन्] १. सेना। २. युद्ध। ३. समूह। झुंड। ४. किनारा। तट। ५. पंक्ति। वि० [हिं० अ+नीक=अच्छा] जो अच्छा न हो, फलतः त्याज्य या बुरा।
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अनीकिनी  : स्त्री० [सं० अनीक इनि-ङीष्] १. अक्षौहिणी का दसवाँ भाग या अंश जिसमें २१८७ हाथी, ५६६१ घोड़े और १॰९३५ पैदल होते थे। २. सेना। ३. कमलिनी। ४. समूह। झुंड।
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अनीठ  : [सं० अनिष्ट] खराब। बुरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अनीठि  : स्त्री० [सं० अनिष्टि] १. बुराई। २. क्रोध। (क्व०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अनीड  : वि० [न० ब०] १. (पक्षी) जिसका घोंसला न हो। २. (व्यक्ति) जिसका घर-बार या रहने का ठिकाना न हो। निराश्रय। ३. बिना शरीर का। अशरीरी।
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अनीत  : स्त्री०=अनीति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अनीति  : स्त्री० [न० त०] १. नीति का अभाव। २. अनुचित और नीति विरुद्ध व्यवहार। ३. दुष्टता। पाजीपन। ४. अत्याचार। जुल्म।
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अनीतिमान् (मत्)  : वि० [सं० अनीति+मुतप्] अनीति पूर्ण आचरण करनेवाला।
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अनीदार  : वि० [हिं० अनी+फा० दार] तेज नोकवाला।
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अनीप्सित  : वि० [सं० न-ईप्सित, न० त०] जिसकी ईप्सा या चाह न की गई हो। अन-चाहा।
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अनीश  : वि० [सं० न-ईश, न० ब०] १. ईश्वर-रहित। २. जिसका कोई ईश या स्वामी न हो, फलतः अनाथ या दीन। ३.जो ईश्वर को न मानता हो, फलतः नास्तिक। ४. जो किसी के नियंत्रण या वश में न हो। ५. [न० त०] अशक्त। शक्तिहीन। निर्बल। ६. असमर्थ। पुं० [न० ब०] विष्णु का एक नाम।
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अनीश्वर  : वि० [न० ब०] १. ईश्वर को न माननेवाला। नास्तिक। जैसे—अनीश्वरवाद। २. दे० ‘अनीश’।
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अनीश्वरवाद  : पुं० [ष० त०] [वि० अनीश्वरवादी] वह मत या वाद जिसमें ईश्वर का अस्तित्व न माना गया हो। जैसे—मीमांसा-दर्शन।
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अनीश्वरवादी (दिन्)  : वि० [सं० अनीश्वरव√वद् (बोलना)+णिनि] ईश्वर का अस्तित्व न मानने वाला। नास्तिक।
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अनीष्ट-प्रवृत्तिक  : वि० [ब० स०कप्] अनिष्ट करने की प्रवृत्ति रखनेवाला।
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अनीस  : वि० =अनीश। पुं० [अ०] सहायक और साथी। मित्र। स्नेही।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अनीसून  : पुं० [यू०] एक प्रकार की सौंफ।
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अनीह  : वि० [सं० न-ईहा, न० ब०] १. जिसे ईहा (इच्छा या चाह) न हो। निस्पृह। २. मोह-माया से रहित। निर्लिप्त। ३. असावधान। ४. किसी बात की चिंता या ध्यान न रखनेवला। ला-परवाह।
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अनीहा  : स्त्री० [सं० न-ईहा, न० त०] १. ईहा (इच्छा या वासना) का अभाव। २. उदासीनता। निरपेक्षता। पु०-उप० [सं०√अन् (जीना)+उ] एक उपसर्ग जो शब्दों के पहले लगकर निम्नलिखित अर्थ देता है। (क) पीछे। बाद में। जैसे—अनुचर, अनुगत, अनगमन, अनुगायन आदि। (ख) साथ में लगा हुआ या पास। साथ-साथ। जैसे—अनुतट, अनुपथ आदि। (ग) प्रत्येक या हर एक। जैसे—अनुक्षण, अनुदिन आदि। (घ) कई बार या बार-बार। जैसे—अनुयाचन, अनुसीलन आदि। (च) तुल्य सदृश या समान। जैसे—अनुरूप। (छ) ठीक या नियमित। जैसे—अनुक्रम। अव्य-१. स्वीकृतिसूचक अव्यय। हाँ। २. इसके बाद या आगे। अब। ३. पीछे। उदाहरण—देहु उतरू अनु करहु कि नाहीं-तुलसी। पुं० =अणु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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