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शब्द का अर्थ

आद  : वि० [सं० आ√दा(दान)+क] १. ग्रहण या प्राप्त करनेवाला। २. समस्त पदों के अन्त में, प्रत्यय के रूप में खाने या खा जानेवाला। जैसे—व्यालाद=गरुड़। स्त्री० =याद। (राज०) स्त्री० =आदी। (अदरख)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आदत  : स्त्री० [अ०] १. अभ्यास। २. टेव। बान। ३. प्रकृति। स्वभाव।
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आदत्त  : वि० [सं० आ√दा+क्त] १. ग्रहण किया या लिया हुआ। गृहीत। २. दे० आत्त।
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आदम  : पुं० [अ०] १. ईसाइयों मुसलमानों यहूदियों आदि के अनुसार वह पहला व्यक्ति (हिन्दुओं के मनु का सम-कक्ष) जिससे सारी मानव जाति उत्पन्न हुई है। सृष्टि का आदि मनुष्य या व्यक्ति। २. आदम की संतान अर्थात् आदमी मनुष्य।
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आदम-कद  : पुं० [अ०+फा०] जो ऊँचाई में साधारणतः मनुष्य की ऊँचाई के बराबर हो। जैसे—आदम कद पेड़, आदम-कद शीशा आदि।
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आदम-खोर  : वि० [अ०+फा०] आदमी या मनुष्य को अथवा उसका मांस खानेवाला। नर-भक्षी।
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आदमजाद  : पुं० [अ०+फा०] आदम की संतान। आदमी। मनुष्य।
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आदमियत  : स्त्री० =आदमीयत।
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आदमी  : पुं० [अ०] [भाव० आदमीयत] १. आदम के वंशज या संतान। मनुष्य। मानव। जैसे—सड़क पर हजारों आदमी इकट्ठे हो गये। २. प्रौढ़ या वयस्क मनुष्य (बालक और स्त्री से भिन्न)। जैसे—अभी तक इस संबंध में तीन आदमी पकड़े गये है। ३. समझदार और होशियार व्यक्ति। जैसे—अब लड़कपन छोड़कर आदमी की तरह बातें करना सीखों। ४. किसी विशिष्ट कार्य के लिए नियुक्त किया हुआ व्यक्ति। जैसे—(क) उनका आदमी आकर यह पुस्तक ले जायगा। (ख) काम जल्दी कराना हो तो चार आदमी और रख लो। ५. विवाहित स्त्री के विचार से उसका पति। स्वामी। जैसे—मजदूरनी तो आ गयी पर उसका आदमी अभी नहीं आया।
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आदमीयत  : स्त्री० [अ०] १. आदमी होने की अवस्था या भाव। मनुष्यत्व। २. भले आदमी का सा आचरण और व्यवहार। शिष्टता। सभ्यता।
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आदर  : पुं० [सं० आ√दृ(सम्मान करना)+अप्] १. किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा सम्मान का वह पूज्य भाव जो दूसरों के मन में रहता है। २. उक्त के विचार से किया जाने वाला सत्कार। ३. किसी के प्रति अनुराग होने के कारण किया जानेवाला सत्कार और सम्मान। ४. बच्चों के साथ किया जानेवाला दुलार। (पूरब)। पुं० =आर्द्रा (नक्षत्र)। वि० =आर्द्र (गीला या तर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आदर-भाव  : पुं० [सं० आदर-भाव,ष०त०] किसी का किया जानेवाला आदर या सत्कार। आव-भगत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आदरण  : पुं० [सं० आ√दृ+ल्युट्-अन] अनुराग श्रद्धा आदि के कारण किसी का आदर या सत्कार करना।
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आदरणीय  : वि० [सं० आ√दृ+अनीयर] [स्त्री० आदरणीया] जो आदर प्राप्त करने का अधिकारी हो। आदर किये जाने के योग्य।
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आदरना  : स० [सं० आदरण] १. आदर या सत्कार करना। २. इज्जत या सम्मान करना।
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आदरस  : पुं०=आदर्श।
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आदर्य  : वि० [सं० आ√दृ (आदर करना)+यत्] =आदरणीय।
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आदर्श  : पुं० [सं० आ√दृश् (देखना)+घञ्] १. अवलोकन करना। देखना। २. दर्पण। शीशा। ३. टीका या व्याख्या। ४. प्रतिलिपि। ५. मानचित्र। नक्शा। ६. किसी बात या वस्तु की वह काल्पनिक श्रेष्ठतम अवस्था रूप या स्थिति जिसका हम अनुकरण करना चाहते हों, अथवा जिसके पास तक पहुँचना चाहते हों। जैसे—राम-राज्य का आदर्श। ७. वह श्रेष्ठतम वस्तु (या व्यक्ति) जिसके अनुकरण पर वैसी ही और वस्तु (या व्यक्ति) बनने बनाने की भावना उत्पन्न होती है। नमूना। प्रतिमान। (आइडियल, अंतिम दोनों अर्थों के लिए)।
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आदर्श-मंदिर  : पुं० [सं० ष० त०] शीशे का बना हुआ अथवा ऐसा घर जिसमें बहुत से शीशे लगे हों। शीश महल।
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आदर्श-विज्ञान  : पुं० [सं० ष०त०] विज्ञान की दो शाखाओं में से एक जिसमें वे विज्ञान आते हैं जो कल्पना आदि के आधार पर आदर्शों का विवेचन करते हैं। (नाँरमेटिव साइंस) जैसे—नीति विज्ञान। (दूसरी शाखा तात्त्विक विज्ञान है)
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आदर्शक  : वि० [सं० आ√दृश्+णिच्+ण्वुल् वा√दृश+ण्वुल्-अक] १. दिखलाने या देखनेवाला। २. आदर्श संबंधी। पुं० [आदर्श+कन्] दर्पण। शीशा।
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आदर्शन  : पुं० [सं० आ√दृश्+ल्युट्-अन] १. देखना या दिखलाना। २. दृश्य। ३. दर्पण। शीशा। ४. आदर्श प्रस्तुत करना या बनाना।
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आदर्शवाद  : पुं० [ष० त०] [वि० आदर्शवादी] १. यह सिद्धांत जो मनुष्य को सदा आदर्श (अच्छी से अच्छी बाते) अपने सामने रखकर उनकी सिद्धि या प्राप्ति के लिए सब कार्य करने चाहिए। २. दार्शनिक क्षेत्र में यह सिद्धांत कि संसार के सभी दृश्य पदार्थ मनुष्य की कल्पना या मन से ही संभूत है और यह नहीं कहा जा सकता कि मन से पृथक् या भिन्न कोई वास्तविकता है। ३. कला और साहित्य में कल्पनागत बात या विषय को आदर्श रूप देने की प्रणाली या शैली यथार्थवाद, का विपर्याय। (आइडियलिज्म)।
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आदर्शवादी(दिन्)  : वि० [सं० आदर्शवाद+इनि] आदर्शवाद संबंधी। पुं० १. आदर्शवाद को मानने और उसके अनुसार चलनेवाला व्यक्ति। २. ऐसा कलाकर या लेखक जो काल्पनिक आदर्श को अपनी कृति का विषय बनाता हो। (आइडियलिस्ट, दोनों अर्थों में)
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आदर्शित  : भू० कृ० [सं० आ√दृश्+णिच्+क्त] १. दिखलाया हुआ। प्रदर्शित। २. निर्देश किया हुआ। निर्दिष्ट।
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आदर्शीकरण  : पुं० [सं० आदर्श+च्वि,ईत्व√कृ(करना)+ल्युट्-अन] किसी वस्तु कार्य आदि को आदर्श रूप देने की क्रिया या भाव। (आइडियलाइजेशन)
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आदंश  : पुं० [सं० आ√दंश् (डसना)+घञ्] १. दाँत से काटना। २. दाँत से काटने पर होनेवाला घाव।
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आदहन  : पुं० [सं० आ√दह् (जलाना)+ल्युट-अन] १. अच्छी तरह जलना या जलाना। २. जलन। दाह। ३. ईर्ष्या। डाह। ४. शमशान।
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आदा  : पुं० =अदरक। (आदी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आदाता (तृ)  : वि० [सं० आ√दा(दान)+तृच्] १. पानेवाला। २. प्रापक। (रिसीवर) पुं० १. किसी विवाद ग्रस्त संपत्ति का अथवा दिवालिया संस्था का वह व्यवस्थापक जो न्यायालय द्वारा नियुक्त हो। (रिसीवर) २. =आग्राहक। ४. =प्रतिग्राहक।
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आदाद  : पुं० [अ० अदब का बहु०] १. आचरण, व्यवहार आदि के नियम। २. नमस्कार। प्रणाम।
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आदान  : पुं० [सं० आ√दा+ल्युट-अन] १. ग्रहण, प्राप्त या स्वीकार करना। लेना। २. लक्षण। चिन्ह। ३. निदान। ४. बंधन। ५. वह धन जो कर, शुल्क आदि के रूप में लिया जाने को हो या प्राप्य हो।
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आदान-प्रदान  : पुं० [सं० द्वन्द्व० स०] किसी से कुछ लेना और उसे कुछ देना। जैसे—वस्तुओं और विचारों का आदान-प्रदान।
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आदाय  : वि० [सं० आदेय] १. जो किसी से लेने, ग्रहण करने या प्राप्त करने के येग्य हो। प्राप्य। २. प्राप्त किया हुआ। पुं० १. किसी से कुछ लेने या ग्रहण करने की क्रिया या भाव। २. वह धन या लोन जो किसी से अधिकारपूर्वक लिया जा सकता हो।
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आदायी (यिन्)  : पुं० [सं० आ√दा+णिनि, युक् आगम] =आदाता।
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आदि  : पुं० [सं० आ√दा+कि] १. मूल कारण। २. आरंभ। शुरू। ३. परमात्मा। वि० १. पहला। जैसे—आदि कवि। २. आरंभ का। अव्य० एक अव्यय जिसका अर्थ होता है- इसी प्रकार या और बाकी सब भी, और जिसका प्रयोग कुछ चीजें गिनाने या बातें बताने के बाद यह सूचित करता है कि इस प्रकार की और सब चीजें या बातें भी इसी वर्ग में समझ ली जानी चाहिए। इत्यादि। वगैरह। (एट-सेट्रा) जैसे—(क) गौ, घोड़ा हाथी आदि। (ख) कपड़े गहने बरतन आदि।
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आदि-कल्प  : पुं० [सं० कर्म० स०] भू० विज्ञान के अनुसार पाँच कल्पों से पहला कल्प जिसमें प्रायः सारे पृथ्वीतल पर ज्वालामुखियों का विस्फोट होता रहा था। अनुमान है कि यह कल्प आज से दो अरब वर्ष पहले हुआ था। (आर्कियाजोइक एरा)
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आदि-कवि  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. वाल्मीकी। २. शुक्राचार्य।
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आदि-कारण  : पुं० [सं० कर्म० स०] सृष्टि का पहला उपादान या मूल कारण। विशेष—सांख्य के मत से प्रकृति वैशेषिक के मत से परमाणु और वेदांत के मत से ब्रह्म इस सृष्टि के आदि कारण माने गये हैं।
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आदि-देव  : पुं० [कर्म० स०] विष्णु। नारायण।
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आदि-नाथ  : पुं० [कर्म० स०] शिव। महादेव।
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आदि-पुराण  : पुं० [क्रम० स०] =ब्रह्मा पुराण।
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आदि-पुरुष  : पुं० [कर्म० स०] १. परमेश्वर। विष्णु। २. वह जिससे किसी वंश का आरंभ हुआ हो। मूल-पुरुष।
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आदि-मान  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. वह आदर या मान जो किसी व्यक्ति वस्तु या कार्य को औरों से पहले दिया जाता है। २. किसी विशेष अवस्था में किसी मान्य व्यक्ति को दिया जानेवाला कोई विशिष्ट अधिकार। विशेषाधिकार। (प्रेरोगेटिव)
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आदि-रस  : पुं० [सं० कर्म० स०] साहित्य में श्रंगार रस।
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आदि-रूप  : पुं० [सं० ब० स०] ईश्वर। परमात्मा।
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आदि-वासी (सिन्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. किसी देश या प्रांत के वे निवासी जो बहुत पहले से वहाँ रहते आयें हों और जिनके बाद और लोग भी वहाँ आकर बसे हों। आदिम निवासी। २. आधुनिक भारत में, उड़ीसा, बिहार, मध्यप्रदेश आदि में रहनेवाली ओराँव खरिया पहाड़िया, मुंडा संथाल आदि पुरानी जन-जातियाँ।
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आदि-विपुला  : पुं० [सं० त०] आर्या छंद का एक रूप या भेद।
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आदि-विपुला-जघन-चपला  : पुं० [जघन-चपला, तृ० त० आदि विपुला, जघन-चपला, द्वं० स०] आर्या छंद का एक भेद जिसके पहले चरण के तीन गणों में पाद अपूर्ण होता और दूसरे दल में दूसरा और चौथा गण जगण होता हैं।
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आदि-शक्ति  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] दुर्गा। महामाया।
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आदिक  : अव्य० [सं० आदि+क] आदि। वगैरह। (इस बात का सूचक कि ऐसे ही और भी समझें) जैसे—धर्म गुरु, पुरोहित आदिक। वि० किसी काम के आरंभ में होनेवाला। (इनीशियल) जैसे—(क) झगड़े या आदिक कारण। (ख) उत्सप का आदिक व्यय।
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आदित  : पुं० =आदित्य (सूर्य)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आदितेय  : पुं० [सं० अदिति+ठक्-एय] अदिति के पुत्र, सूर्य।
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आदित्य  : पुं० [सं० अदिति+ण्य] १. अदिति के पुत्र धाता, मित्र अर्यमा, रुद्र, वरुण, सूर्य, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु। २. सूर्य। देवता। ४. इंद्र। ५. वसु। ६. विश्वेदेव। ७. वामन अवतार। ८. मदार का पौधा। आक। ९. बारह मात्राओं के छंदों (तोमर लीला आदि) की संज्ञा।
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आदित्य-केतु  : पुं० [ष० त०] सूर्य का सारथि, अरुण।
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आदित्य-पर्णी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] १. सूरजमुखी नाम का पौधा और उसका फूल। २. एक प्रकार की बूटी जिसमें लाल फूल लगते हैं।
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आदित्य-पुराण  : पुं० =सूर्य-पुराण।
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आदित्य-मंडल  : पुं० [ष० त०] १. सूर्य के चारों ओर का प्रभा मंडल। २. वह वृत्त जिसपर सूर्य भ्रमण करता है।
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आदित्य-वार  : पुं० [ष० त०] रविवार। एतवार।
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आदिम  : वि० [सं० आदि+डिमच्] १. सबके आदि में होनेवाला। प्रथम। पहला। २. जो बहुत पुराना आरंभिक अविकसित और बिलकुल सीधे-सादे ढंग का हो। (प्रिमिटिव)।
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आदिम-जाति  : स्त्री० [कर्म० स०] किसी देश में रहनेवाला सबसे पहली और पुरानी मनुष्य जाति। (प्रिमिटिव रेस)
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आदिम-निवासी (सिन्)  : पुं० [कर्म० स०] दे० आदि वासी।
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आदिल  : वि० [अ०] सदा अदल (न्याय) करनेवाला। न्यायशील।
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आदिलशाही  : पुं० [आदिलशाह(एक बादशाह का नाम)] पुरानी चाल का एक प्रकार का कागज जो दक्षिण भारत में बनता था।
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आदिश्यमान  : वि० [सं० आ√दिश् (बताना)+यक्+शानच्] जो आदेश के रूप में हुआ हो। आदिष्ट।
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आदिष्ट  : वि० [सं० आ√दिश्+क्त] १. (व्यक्ति) जिसे कोई आदेश दिया या मिला हो। २. (विषय) जिसके संबंध में कोई आदेश दिया गया हो या मिला हो।
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आदी  : स्त्री० [सं० आर्द्रक] अदरख। अव्य० [सं० आदि] १. आदि या आरंभ में ही। २. जरा भी। बिलकुल। उदाहरण—मातु न जानसि बालक आदी।—जायसी। वि० [अ०] जिसे किसी बात की आदत पड़ी हों। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आदीचक  : पुं० [हिं० आदी] आदी या अदरख की तरह का एक प्रकार का कंद जिसकी तरकारी बनती है।
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आदीपन  : पुं० [सं० आ√दीप् (दीप्ति)+णिच्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० आदीपित,आदीप्त] १. दीपक जलाना। २. आग जलाना या सुलगाना। ३. उत्तेजित करना। उकसाना। ४. स्वच्छ या चमकीला करना। चमकाना।
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आदृत  : भू० कृ० [सं० आ√दृ(आदर करना)+क्त] जिसका आदर या सम्मान किया गया हो।
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आदेय  : वि० [सं० आ√दा (देना)+यत्] १. किसी से प्राप्त करने या लेने योग्य। जो लिया जा सके। २. जिसपर कर, शुल्क आदि लिया या लगाया जा सके। ३. जिसपर कर, शुल्क आदि लगाया गया हो। (लेवीड)
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आदेश  : पुं० [सं० आ√दिश् (बताना)+घञ्] [कर्त्ता आदेशक, भू० कृ० आदिष्ट] १. अधिकारपूर्वक यह कहना कि ऐसा करो या ऐसा मत करो। आज्ञा। हुकुम। (आर्डर) २. नमस्कार। प्रणाम। उदाहरण—विद्या है तो करहिंगे सब कोऊ आदेस (आदेस)।—वृन्द। ३. ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों का फल। ४. व्याकरण में किसी नियम के अनुसार एक वर्ण के स्थान पर दूसरे वर्ण का आ लगना।
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आदेश-लेख  : पुं० [ष० त०] न्यायालय की वह लिखित आज्ञा जिसमें कोई काम करने या न करने के लिए कहा गया हो। (रिट)।
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आदेशक  : वि० [सं० आ√दिश्+ल्वुट्-अक] आदेश करने या देनेवाला। (दे० आदेश।)
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आदेशन  : पुं० [सं० आ√दिश्+ल्युट-अन] [भू० कृ० आदिष्ट] आदेश देने की क्रिया या भाव।
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आदेशवाद  : पुं० [ष० त०] [वि० आदेशवादी] १. विचार किये हुए किसी आदेश मानने का सिद्धांत। २. वह दार्शनिक प्रणाली जिसमें ऐसे तत्त्व या सिद्धांत ठीक मान लिये जाते है, जो परीक्षा द्वारा अभी तक ठीक सिद्ध नहीं हुए हैं। (डॉगमैटिज्म)
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आदेशी (शिन्)  : पुं० [सं० आ√दिश्+णिनि] १. वह जो आदेश दे। २. शासक। ३. ज्योतिषी।
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आदेष्टा (ष्ट्रा)  : पुं० [सं० आ√दिश्+तृच्] =आदेशक।
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आदेस  : पुं० =आदेश। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आदौ  : अव्य० [सं० आदि० से] १. आदि या आरंभ से। शुरू से। २. आदि या आरंभ में। पहले।
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आद्य  : वि० [सं० आदि+यत्] १. आदि या आरंभ में रहने या होनेवाला। २. आरंभिक। ३. प्रधान। मुख्य। ४. जो खाया जा सके।
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आद्य-शेष  : पुं० [सं० ब० स०] हिसाब में वह धन जो पहले रोकड़ बाकी के रूप में रहा हो और अब नये खाते या पृष्ठ में गया हो। (ओपनिंग बैलेंस)
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आद्यक्षिक  : पुं० [सं० अद्यक्ष+ठञ्-इक] वह नास्तिक जो केवल प्रत्यक्ष को प्रमाण मानता हो। (तार्किक से भिन्न)।
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आद्यंत  : अव्य० [सं० आदि-अंत, अव्य० स०] आदि से अंत तक। पुं० किसी चीज या बात का आरंभ और अंत।
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आद्या  : स्त्री० [सं० आद्य+टाप्] १. दुर्गा। २. काली। ३. दस महाविद्याओं में से पहली महाविद्या। ४. भूमि। जमीन।
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आद्याक्षर  : पुं० [सं० आद्य-अक्षर, कर्म० स०] कई पदोंवाले नाम के प्रत्येक पद का आरंभिक अक्षर जिसका प्रयोग प्रायः संक्षिप्त रूप में नाम बताने हस्ताक्षर करने आदि के समय होता है। (इनीशियल) जैसे—महावीर प्रसाद द्विवेदी के आद्याक्षर हैं-म० प्र० द्वि।
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आद्याक्षरित  : भू० कृ० [सं० आद्याक्षरं+णिच्+क्त] जिस पर हस्ताक्षर की जगह नाम के केवल आद्याक्षर लिखे गये हों। (इनीशियल्ड)
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आद्योत  : पुं० [सं० आ√द्युत्(दीप्ति)+घञ्] १. क्रांति। चमक। २. प्रकाश। से अंत तक।
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आद्योपांत  : अव्य० [सं० आद्य-उपांत, अव्य० स०] आदि का आरंभ।
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आद्रा  : स्त्री० =आर्द्रा।
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