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शब्द का अर्थ

इतः  : अव्य० [सं० इदम्+तसिल्] १. इस जगह। यहाँ। २. इस ओर। इधर। ३. इसलिए। अतः।
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इत  : अव्य० [सं० इतः] १. इस जगह। यहाँ। २. इस ओर। इधर। उदाहरण—इत बिधि उत हिमवान सरिस सब लायक।—तुलसी।
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इतः पर  : अव्य० [पं० त०] इसके उपरांत। इसके बाद।
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इतक्राद  : पुं० =एतकाद।
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इतना  : वि० [सं० इयत्, ब्रज० एता, एतो, पु० हिं० इत्ता, एत्ता+ना प्रत्यय] [स्त्री० इतनी] परिमाण, मात्रा या संख्या सूचित करनेवाला एक सार्वनामिक विशेषण जो मूलतः हिंदी ‘इस’ का विकारी रूप है और जो प्रसंग के अनुसार नीचे लिखे अर्थ देता है- १. कहीं, निर्धारित की हुई अथवा प्रस्तुत मात्रा। जैसे—(क) इतना सुनते ही सब लोग उठकर खड़े हो गये। (ख) इतना तुम ले लो, बाकी हमें दे दो। (ग) इतनी पुस्तकें आ चुकी हैं। २. आश्चर्य, क्षोभ आदि के प्रसंगों में परिमाण, मात्रा या स्थिति की घनता, तीव्रता, प्रचुरता या विकटता। जैसे—(क) इतना अंधकार।(ख) इतनी निर्दयता। (ग) इतना वैभव। ३. तो, सा, ही आदि शब्दों से युक्त होने पर परिणाम, मात्रा, संख्या आदि की अल्पता, न्यूनता या सूक्ष्मता। जैसे—(क) इतना तो बतला दो कि वहाँ कौन-कौन लोग आये थे। (ख) इतनी-सी बात पर बिगड़ खडे होना ठीक बात नहीं। (ग) मैंने इतना ही कहा था कि आप भी आ जाइयेगा। ४. कुछ अवस्थाओं में उक्त अर्थों में क्रिया विशेषण की तरह प्रयुक्त। जैसे—(क) वह इतना डर गया था कि उसके मुँह से बात भी नहीं निकलती थी। (ख) इस गरमी में इतनी लंबी यात्रा तो हमसे न हो सकेगी। (ग) इतना मत चिल्लाओं कि दूसरों के काम में हर्ज हो। ५. कुछ अवस्थाओं में विशेष्य के अभाव में संज्ञा की तरह प्रयुक्त और अज्ञात या अनिश्चित परिमाण,मात्रा, राशि आदि का सूचक। जैसे—(क) इतना यथेष्ठ है, इतने से हमारा काम चल जायेगा। (ख) जब वह कहे कि हम इतना लेंगे, तब तुम कहना कि हम इतना नहीं, इनता देगें। मुहावरा-इतने में=(क) इस बीचवाले समय में। इस अवधि में। इतनी देर में। जैसे—आप स्नान कर लें, इतने में भोजन तैयार हो जायेगा। (ख) जब कोई काम या बात हो रही हो, ठीक उसी समय। उसी अवसर पर। जैसे— अभी ये बातें हो ही रही थी कि इतने में वह भी आ पहुँचा।
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इतनो  : वि=इतना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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इतबार  : पुं० =एतबार (विश्वास)।
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इतमाम  : पुं० [अ० एहतमाम-प्रबंध] प्रबंध। व्यवस्था।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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इतमीनान  : पुं० [अ०] [वि० इतमीनानी] १. किसी व्यक्ति या विषय के संबंध में मन में होनेवाला भरोसा या विश्वास। जैसे—हमारा इतमीनान करा दो तो हम रुपयें दे दे। २. मन की शांति और स्थिरता। जैसे—ये बातें इतमीनान के वक्त होगीं।
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इतर  : वि० [सं० इत√रा (देना)+क] १. उपस्थित या प्रस्तुत से भिन्न। कोई और। अन्य। दूसरा। जैसे—हिंदीभाषियों को छोड़कर इतरभाषा-भाषी ऐसा नहीं करते। २. बाकी बचा हुआ। अवशिष्ट। शेष। ३. बहुत ही साधारण या हलका और इसलिए तुच्छ अथवा नगण्य। ४. नीच। पतित। उदाहरण—जनु देत इतर नृप कर विभाग।—तुलसी। पुं० [अ० इत्र] अतर या इत्र नामक सुगंधित द्रव्य।
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इतरदान  : पुं० =इत्रदान।
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इतराज  : पुं० =एतराज। (आपत्ति)। उदाहरण—देत कहा नृप काज पर, लेत कहा इतराज।—तुलसी।
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इतराना  : अ० [सं० इतर=तुच्छ या बहुत ही साधारण] १. किसी गुण, विशेषता, सफलता आदि के बल पर अपना आदर या महत्त्व दिखलाने के लिए ठसक या नखरे से भरा हुआ आचरण या व्यवहार करना। कुछ अभिमानपूर्वक या किसी से कुछ तनकर चोचला करना। उदाहरण—(क) बडो बड़ाई नहिं तजै, छोटो बहु इतराय।—रहीम। (ख) जिमि थोरे धन खल इतराई।—तुलसी। (ग) तू तो इतराति उत राति बीती जाति है।—कोई कवि। २. दे० ‘इठलाना’।
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इतराहट  : स्त्री० [हिं० इतराना+आहट (प्रत्यय)] इतराने की क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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इतरेतर  : अव्य० [इतर-इतर, द्व० स०] एक दूसरे के प्रति। आपस में। परस्पर। वि० आपस का। पारस्परिक।
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इतरेतर-योग  : पुं० [ष० त०] १. पारस्परिक संबंध। २. संस्कृत व्याकरण में, द्वंद समास का एक भेद जिसमें समस्त पद के दोनों पक्षों या पदों का अलग-अलग विचार होता है। ‘समाहार द्वंद’ का विपर्याय।
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इतरेतराभाव  : पुं० [इतरेतर-अभाव, ष० त०] न्याय में, वह स्थिति जब हर एक (वस्तु या व्यक्ति) के गुणों में दूसरे का अभाव होता है। अन्योन्याभाव। जैसे—गौ और घोड़े में इतरेतरा भाव है, क्योकिं इनमें से हर एक के गुण और धर्म दूसरे में नहीं हैं।
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इतरेतराश्रय  : पुं० [इतरेतर-आश्रय, ष० त०] न्याय में, वह स्थिति जब ऐसी दो बातें कही जाती हैं जो आपस में एक दूसरी पर आश्रित होती है और इसी लिए दोनों में से कोई ठीक तरह से सिद्ध नहीं हो सकती। (यह तर्क का एक दोष माना गया है)।
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इतरौहाँ  : वि० [हिं० इतराना+औहां (प्रत्यय)] जो प्रायः इतराता रहता हो। इतराने की प्रवृत्ति रखनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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इतला  : स्त्री० [अ० इत्तला] किसी घटना के संबंध में किसी को दी जानेवाली सूचना। जैसे—(क) थाने में मार-पीट की इत्तला लिखाना। (ख) अधिकारी के पास अपने आने की इत्तला भेजना।
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इतवरी  : स्त्री० =इत्वरी।
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इतवार  : पुं० [सं० आदित्यवार] =एतवार(रविवार)।
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इतस्ततः  : अव्य० [इतस्-ततस्, द्व० स०] कुछ इधर और कुछ उधर। कुछ यहाँ, कुछ वहाँ। जैसे—सारी सामग्री इस्ततः कर दो।
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इतहास-वेत्ता  : पुं० [ष० त०] =इतिहासज्ञ।
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इता  : वि० -इतना। उदाहरण—औलाँडे राजकुल इता।—प्रिथीराज।
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इताअत  : स्त्री० [अ०] किसी की आज्ञा का पालन करना। हुक्म मानना। आज्ञाकारिता।
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इताति  : स्त्री०=इताअत। उदाहरण—निसि बासर ता कहँ भलो मानै राम इताति।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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इति  : अव्य० [सं० इ (गति)+क्तिन्] १. परिमाण, विस्तार आदि का अंत या समाप्ति। खतम या पूरा होना। स्त्री०-अंत (समाप्ति)। क्रि० वि० इस प्रकार। ऐसे। उदाहरण—इति बदति तुलसीदास शंकर सेष मुनि मन रंजन।—तुलसीदास। पद—इति श्री=एक पद जो किसी काम या बात के अंत या समाप्ति का सूचक है।
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इति-कर्त्तव्य  : पुं० [सुप्सुपा० स०] [भाव० इति-कर्त्तव्यता] ऐसा काम जिसे पूरा करना उत्तरदायित्व, विधि-विधान आदि की दृष्टि से परम आवश्यक या कर्त्तव्य माना जाता हो।
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इति-कृर्त  : पद [सुप्सुपा० स०] एक पद जो इस भाव का सूचक होता है कि जो कुछ किया जाने को था, वह पूरा या समाप्त कर दिया गया। (क्यू० ई० एफ)।
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इति-मात्र  : अव्य० [सं० इति+मात्रच्] बस, इतना ही अर्थात् इससे अधिक नहीं। वि० बहुत थोड़ा।
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इति-वृत्त  : पुं० [सं० सुप्सुपा० स०] १. किसी बात या विषय की अब तक की सारी घटनाओं या बातों काल-क्रम से किया या लिखा हुआ वर्णन। पूरा विवरण या हाल। (क्राँनिकल) २. कथा, कहानी आदि के रूप में परंपरागत पुरानी बातों का वर्णन या विवरण। इतिहास।
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इति-वृत्तक  : पुं० [सं० इतिवृत्त+कन्] वह पत्र जिसपर किसी आदमी या चीज के संबंध में आदि से अब तक की सब बातें काल-क्रम से लिखी हों। २. वह पत्र या लेख जिसमें किसी दुर्वृत्त या दुश्चरित्र व्यक्ति के किए हुए अब तक के अपराधों और उसे मिले हुए दंडो आदि का विवरण लिखा हो। दुर्वृत्त-फलक। (हिस्टरीशीट)।
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इति-वृत्ती  : पुं० [सं० इति-वृत्ति से] ऐसा अपराधी या दुश्चरित्र व्यक्ति जिसके अपराधों और भोगे हुए दंड़ों का लेखा आरक्षी विभाग या राजकर्मचारी रखते हों। (हिस्टरी-शीटर)
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इति-सिद्धं  : पद [सं० सुप्पसुपा० स०] एक पद जो इस बात का सूचक है कि जो कुछ प्रमाणित या सिद्ध किया जाने को था, वह प्रमाणित या सिद्ध कर दिया गया। (क्यू० ई० डी०)।
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इतिहास  : पुं० [सं०इतिह, द्व० स० इतिहास, इतिह√आम्(बैठना)+घञ्] १. किसी व्यक्ति, समाज या देश की महत्त्वपूर्ण, विशिष्ट या सार्वजनिक क्षेत्र की घटनाओं, तथ्यों आदि का काल-क्रम से लिखा हुआ विवरण। २. किसी वस्तु या विषय की उत्पत्ति, विकास आदि का काल-क्रम के अनुसार होनेवाला विवेचन। (हिस्टरी, उक्त दोनों अर्थों के लिए)।
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इतिहासकार  : पुं० =इतिहासज्ञ।
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इतिहासज्ञ  : पुं० [सं०इतिहास√ज्ञा(जानना)+क] वह जो इतिहास का अच्छा ज्ञाता हो। इतिहास-वेत्ता।
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इते  : अव्य०=इतने। उदाहरण—इते घटे घटिहै कहा जौ न घटै हरि नेह। -तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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इतेक  : वि० [हिं० ‘इतना’ में का इत+एक] इतना या इतने के लगभग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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इतै  : अव्य०-इधर(इस ओर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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इतो (तौ)  : वि० [सं०इयत-इतना] इतना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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इत्तफाक  : पुं० [अ० इत्तिफाक] १. आपस में मिलकर एक होने या मिले हुए होने की अवस्था या भाव। एकता। २. मत, विचार आदि के क्षेत्र में होनेवाली एकता। मतैक्य। ३. अचानक या संयोग से उपस्थित होनेवाला अवसर अथवा ऐसे अवसर पर घटित होनेवाली घटना या बात। संयोग। पद—इत्तफाक से=संयोग-वश।
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इत्तफ़ाकन  : अव्य० [अ०] १. इत्तफ़ाक़ या संयोग से। २. अकस्मात्। अचानक।
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इत्तफाकिया  : वि० [अ०] १. इत्तफाक या संयोग से होनेवाला। संयोग-जन्य। २. आकस्मिक।
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इत्तलानामा  : पुं० [अ०+फा०] किसी को भेजा जानेवाला वह पत्र जिसमें कोई इत्तला या सूचना लिखी हो।
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इत्तहाद  : पुं० [अ०] आपस में होनेवाली एकता या हर तरह का मेल-जोल।
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इत्ता  : वि० =इतना।
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इत्तो  : वि० =इतना।
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इत्थमेव  : वि० [इत्थम्-एव, द्व० स०] इसी जैसा। अव्य० इसी प्रकार से। इसी तरह।
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इत्थे  : अव्य० =यहाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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इत्यादि  : पद—[सं० इति-आदि, ब० स०] एक पद जिसका अर्थ है- ‘जो चीजें या बाते अभी कही गयी हैं, वे आदि में है। और जिसका आशय है-इसी प्रकार की और चीजें या बातें भी आगे समझ लें। इसका प्रयोग अव्यय के रूप में यह सूचित करने के लिए होता है कि इस वर्ग की और चीजें या बातें भी हमारे कथन में सम्मिलित हैं या इसके अन्तर्गत समझी जानी चाहिएँ। जैसे—(क) घोड़े, हाथी इत्यादि अर्थात् ऊँट, बकरी, बैल या ऐसे ही और पशु भी। (ख) कपड़े, गहने इत्यादि अर्थात् घर के बरतन और नित्य के व्यवहार की दूसरी चीजें भी।
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इत्यादिक  : पद—[सं०ब० स० कप्] =इत्यादि।
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इत्र  : पुं० [अ०] विशिष्ट प्रक्रिया से निकाला हुआ फूलों का सुगंधितसार या सत्त्व। अतर। इतर।
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इत्रदान  : पुं० [अ०+फा०] १. इत्र रखने का डिब्बा या पात्र। २. वह तश्तरी जिसमें इत्र रखकर लोगों के सामने ले जाते हैं।
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इत्रफरोश  : पुं० [अ०+फा०] [भाव० इत्रफरोशी] इतर बेचनेवाला व्यक्ति। अत्तार। गंधी।
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इत्रसाज  : पुं० [अ०+फा०] [भाव० इत्रसाजी] इतर बनानेवाला व्यक्ति। गंधी।
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इत्रीफल  : पुं० [सं०त्रिफला का अ० रूप] एक औषध जो हड़, बहेड़े और आँवले को शहद में मिलाकर तैयार की जाती है।
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इत्वं  : अव्य० [सं० इदम्+थमु, इद् आदेश] इस तरह से। इस प्रकार। यों।
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इत्वंभूत  : वि० [सं० इत्थम्√भू (होना)+क्त] इस प्रकार का। ऐसा। अव्य० ऐसी अवस्था में। ऐसा होने पर।
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इत्वर  : वि० [सं०√इ (गति)+क्वरप्] १. तुच्छ प्रकृति का। कमीना। २. निर्दय। निष्ठुर। पुं० १. नपुसंक। नामर्द। २. पथिक। मुसाफिर।
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इत्वरी  : स्त्री० [सं० इत्वर+ङीष्] चरित्रहीन स्त्री। कुलटा।
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