शब्द का अर्थ
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					उधर					 :
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					अव्य० [सं० उत्तर अथवा पुं० हिं० ऊ (वह)+धर(प्रत्य)] १. उस तरफ जिधर वक्ता ने संकेत किया हो। वक्ता के विपक्ष में या सामने की ओर, कुछ दूरी पर। २. पर पक्ष की ओर या उसके आस-पास। ‘इधर’ का विपर्याय।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं				 | 
				
			
			
					
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					उधर					 :
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					अव्य० [सं० उत्तर अथवा पुं० हिं० ऊ (वह)+धर(प्रत्य)] १. उस तरफ जिधर वक्ता ने संकेत किया हो। वक्ता के विपक्ष में या सामने की ओर, कुछ दूरी पर। २. पर पक्ष की ओर या उसके आस-पास। ‘इधर’ का विपर्याय।				 | 
			
			
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					उधरना					 :
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					अ० [सं० उद्वरण] १. संकट आदि से उद्धार पाना या मुक्त होना। उदाहरण—अनायास उधरी तेहि काला।—तुलसी। स० [सं० उद्वरण] १. उद्धार करना। उबारना। २. पाठ की उद्वरणी करना। स०=उधड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					उधरना					 :
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					अ० [सं० उद्वरण] १. संकट आदि से उद्धार पाना या मुक्त होना। उदाहरण—अनायास उधरी तेहि काला।—तुलसी। स० [सं० उद्वरण] १. उद्धार करना। उबारना। २. पाठ की उद्वरणी करना। स०=उधड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					उधराणी					 :
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					-स्त्री० [सं० उद्धार, हिं,० उधार] उधार दिया हुआ धन वसूल करना। उगाही। वसूली। (राज०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					-स्त्री० [सं० उद्धार, हिं,० उधार] उधार दिया हुआ धन वसूल करना। उगाही। वसूली। (राज०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					उधराना					 :
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					अ० [सं० उद्वरण] १. हवा के झोंके में पड़कर इधर-उधर छितराना या बिखरना। जैसे—रुई उधराना। २. बहुत उद्दंड होकर उपद्रव या उधम मचाना। ३. नष्ट-भ्रष्ट हो जाना। न रह पाना। उदाहरण—कहै रत्नाकर पै सुधि उधिरानी सबै धूरि परि धीर जोग जुगति सँधाती पर।—रत्नाकर। स० १. किसी को उधरने में प्रवृत्त करना। २. दे० ‘उधेड़ना’।				 | 
			
			
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					उधराना					 :
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					अ० [सं० उद्वरण] १. हवा के झोंके में पड़कर इधर-उधर छितराना या बिखरना। जैसे—रुई उधराना। २. बहुत उद्दंड होकर उपद्रव या उधम मचाना। ३. नष्ट-भ्रष्ट हो जाना। न रह पाना। उदाहरण—कहै रत्नाकर पै सुधि उधिरानी सबै धूरि परि धीर जोग जुगति सँधाती पर।—रत्नाकर। स० १. किसी को उधरने में प्रवृत्त करना। २. दे० ‘उधेड़ना’।				 | 
			
			
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