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ऊपर  : अव्य० [सं० उपरि] [वि० ऊपरी] एक संबंधसूचक शब्द जो प्रायः क्रिया विशेषण की तरह और कभी-कभी विशेषण और फलतः संज्ञा की तरह प्रयुक्त होता और नीचे लिखे अर्थ देता है- १. किसी तल,बिन्दु या विस्तार की तुलना में ऊँचाई की ओर, आकाश की ओर, ऊर्ध्व दिशा में। तले या नीचे का विपर्याय। जैसे—(क) नीचे पृथ्वी और स्वर्ग ऊपर है। (ख) सूर्य ऊपर आ चला है। २. उत्सेध के विचार से ऊँचे तल या पार्श्व पर। ऊँचे स्थान में या ऊँचाई पर। जैसे—(क) चलो ऊपर चलकर बातें करे। (ख) ऊपरवाली दोनों पुस्तकें उठा लाओ। ३. किसी विस्तार के विचार से, इस प्रकार इधर-उधर या चारों (फैला हुआ) कि कोई चीज या इसका कुछ अंश ढक जाय। जैसे—कमीज के ऊपर कोट पहन लो या ऊपर चादर डाल लो। ४. टिके या ठहरे रहने के विचार से,किसी के आधार या सहारे पर। जैसे—(क)गिलास के ऊपर तश्तरी रख दो। (ख) ये चीजें चौकी के नीचे से निकालकर उसके ऊपर रख दो० ५. किसी पदार्थ या विस्तार के किनारे पर या पास ही सटकर। जैसे—(क) तालाब के ठीक ऊपर मंदिर है। (ख) वे गंगा के ठीक ऊपर मकान बनवा रहे हैं। ६. (पुस्तक लेख आदि में) किसी प्रकार के क्रम के विचार से जो पहले आया या हुआ हो अथवा जो पहले से वर्त्तमान हो। आदि या आरंभिक भाग में। जैसे—(क) पहले ऊपर की सब रकमों का जोड़ लगा लो। (ख) हम ऊपर कहे आये हैं कि राजनीति हमारा मुख्य विषय नहीं है। ७. ऊँची या उच्च कोटि के वर्ग या श्रेणी में। जैसे—छोटा भाई तो परीक्षा में पारित होकर ऊपर चला गया और बड़ा जहाँ का तहाँ रह गया है। ८. पद, मर्यादा आदि के विचार से, आधिकारिक और उच्च या श्रेष्ठ स्थिति में। जैसे—(क) दल सिपाहियों के ऊपर एक जमादार रहता है। (ख) ऊपर की अदालत ने यह आज्ञा रद्द कर दी है। ९. कार्य के निर्वाह या भार के वहन के विचार से उत्तरदायित्व के रूप में। जैसे—तुमने इतने काम अपने ऊपर ले रखे हैं, जिनकी गिनती नही। १॰ उपयोगिता, गुण, विशेषता आदि के विचार से औरों से बढ़कर। उत्तम। श्रेष्ठ। जैसे—आपकी सम्मति सबसे ऊपर है। ११. अंकित, नियत या निर्धारित मात्रा या मान से अधिक। ज्यादा। जैसे—जरा-सी बात में सौ रुपये से ऊपर लग गये। पद—ऊपर कानियत, नियमित, साधारण आदि से भिन्न। जैसे—(क) ऊपर के काम करने के लिए एक आदमी और रख लो। (ख) उनका सारा खर्च तो ऊपर की आमदनी से चल जाता है, और वेतन यों ही बच रहता है। (ग) देखो, ऊपर के सब लोग इस कमरे में न आने पावें। ऊपर ऊपर (क) प्रस्तुत के साथ बिना किसी संपर्क या संबंध के। अलग और बाहर। जैसे—वे ऊपर-ऊपर आये और चले गये। हमसे मिले भी नहीं। (ख) बिना किसी को जतलाये। चुप-चाप। चुपके से। जैसे—तुम ऊपर-ऊपर सब कारवाई कर लेते हो, हमसे पूछते भी नहीं। ऊपर से अतिरिक्त। अलग। सिवा। जैसे—ज्वर तो था ही, ऊपर से पेट में दरद भी होने लगा। १२. अंदर की तुलना में, प्रत्यक्ष, बाहर या सामने। जैसे—इस दवा से अन्दर का रोग ऊपर आ जायगा। पद—ऊपर-ऊपर से बिना गहराई या तह तक पहुँचे। जैसे—अभी तो हमने ऊपर-ऊपर से सब बातें देखी या समझी है। ऊपर का जो प्रत्यक्ष या सामने हो। जैसे—इनकी ऊपर की आँखे तो फूटी ही है, अंदर की भी फूटी हैं। ऊपर से औपचारिक रूप में या दिखलाने भर के लिए। जैसे—ऊपर से तो उनका व्यवहार अच्छा ही है,अंदर की राम जानें। ऊपर से देखने पर-साधारणतः पहले पहल देखने पर जोरूप दिखाई देता हो,उसके आधार पर या विचार से। (प्राइमाफेसी) पद—ऊपर तलेऊपर-नीचे(दे०)। विशेष—‘ऊपर’ और ‘पर’ बहुत अधिक परन्तु बहुत सूक्ष्म अन्तर है। प्रस्तुत प्रसंग में ‘पर’ का मुख्य अर्थ होता है-ऐसे रूप में कि किसी के ऊपरी तल के साथ दूसरी चीज का नीचेवाला तल सटा रहे, परंतु ‘ऊपर’ में तल के सटे होने का भाव न तो अनिवार्य ही है, न मुख्य ही। इसमें मुख्य भाव उत्सेध या ऊँचाई पर आश्रित रहने या स्थित होने का है। ‘बंदर’ पेड़ पर बैठा है। और बंदर पेड़ के ऊपर जा पहुँचा। में जो अंतर है, वह स्पष्ट ही है। परन्तु नीचे के उदाहरणों से यह अंतर और भी अच्छी तरह स्पष्ट हो जायगा। (क) टोपी सिर पर पहनी जाती है और पगड़ी उस (टोपी) के ऊपर बाँधी जाती है। (ख) रेल की पटरी या लाइन पुल पर बिछी रहती है, परंतु (दोहरे पुलों में) पुल के ऊपर (अर्थात् पटरीवाले विस्तार के ऊपरी भाग में, कुछ ऊँचाई पर) वह सड़क होती है। जिसपर पैदल यात्री, बैल-गाड़ियाँ आदि चलती हैं। (ग) नावें पानी पर चलती या तैरती हैं, परन्तु मछलियाँ उछलकर पानी के ऊपर आती हैं। कुछ अवस्थाओं में, जहाँ ‘अंदर’ की अपेक्षा, तुलना या विपरीतता का प्रसंग होता है, वहाँ ‘पर’ के स्थान पर भी ‘ऊपर’ का प्रयोग होता है। जैसे—(क) तुम इतना भी नही जानते कि गाड़ी पुल के ऊपर चलती हैं, नीचे नहीं चलती ? (ख) अधिकतर नावें (या जहाज) तो पानी के ऊपर ही चलते हैं, परंतु पनडुब्बी नावें पानी के ऊपर भी चलती हैं और अंदर (या नीचे) भी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊपर  : अव्य० [सं० उपरि] [वि० ऊपरी] एक संबंधसूचक शब्द जो प्रायः क्रिया विशेषण की तरह और कभी-कभी विशेषण और फलतः संज्ञा की तरह प्रयुक्त होता और नीचे लिखे अर्थ देता है- १. किसी तल,बिन्दु या विस्तार की तुलना में ऊँचाई की ओर, आकाश की ओर, ऊर्ध्व दिशा में। तले या नीचे का विपर्याय। जैसे—(क) नीचे पृथ्वी और स्वर्ग ऊपर है। (ख) सूर्य ऊपर आ चला है। २. उत्सेध के विचार से ऊँचे तल या पार्श्व पर। ऊँचे स्थान में या ऊँचाई पर। जैसे—(क) चलो ऊपर चलकर बातें करे। (ख) ऊपरवाली दोनों पुस्तकें उठा लाओ। ३. किसी विस्तार के विचार से, इस प्रकार इधर-उधर या चारों (फैला हुआ) कि कोई चीज या इसका कुछ अंश ढक जाय। जैसे—कमीज के ऊपर कोट पहन लो या ऊपर चादर डाल लो। ४. टिके या ठहरे रहने के विचार से,किसी के आधार या सहारे पर। जैसे—(क)गिलास के ऊपर तश्तरी रख दो। (ख) ये चीजें चौकी के नीचे से निकालकर उसके ऊपर रख दो० ५. किसी पदार्थ या विस्तार के किनारे पर या पास ही सटकर। जैसे—(क) तालाब के ठीक ऊपर मंदिर है। (ख) वे गंगा के ठीक ऊपर मकान बनवा रहे हैं। ६. (पुस्तक लेख आदि में) किसी प्रकार के क्रम के विचार से जो पहले आया या हुआ हो अथवा जो पहले से वर्त्तमान हो। आदि या आरंभिक भाग में। जैसे—(क) पहले ऊपर की सब रकमों का जोड़ लगा लो। (ख) हम ऊपर कहे आये हैं कि राजनीति हमारा मुख्य विषय नहीं है। ७. ऊँची या उच्च कोटि के वर्ग या श्रेणी में। जैसे—छोटा भाई तो परीक्षा में पारित होकर ऊपर चला गया और बड़ा जहाँ का तहाँ रह गया है। ८. पद, मर्यादा आदि के विचार से, आधिकारिक और उच्च या श्रेष्ठ स्थिति में। जैसे—(क) दल सिपाहियों के ऊपर एक जमादार रहता है। (ख) ऊपर की अदालत ने यह आज्ञा रद्द कर दी है। ९. कार्य के निर्वाह या भार के वहन के विचार से उत्तरदायित्व के रूप में। जैसे—तुमने इतने काम अपने ऊपर ले रखे हैं, जिनकी गिनती नही। १॰ उपयोगिता, गुण, विशेषता आदि के विचार से औरों से बढ़कर। उत्तम। श्रेष्ठ। जैसे—आपकी सम्मति सबसे ऊपर है। ११. अंकित, नियत या निर्धारित मात्रा या मान से अधिक। ज्यादा। जैसे—जरा-सी बात में सौ रुपये से ऊपर लग गये। पद—ऊपर कानियत, नियमित, साधारण आदि से भिन्न। जैसे—(क) ऊपर के काम करने के लिए एक आदमी और रख लो। (ख) उनका सारा खर्च तो ऊपर की आमदनी से चल जाता है, और वेतन यों ही बच रहता है। (ग) देखो, ऊपर के सब लोग इस कमरे में न आने पावें। ऊपर ऊपर (क) प्रस्तुत के साथ बिना किसी संपर्क या संबंध के। अलग और बाहर। जैसे—वे ऊपर-ऊपर आये और चले गये। हमसे मिले भी नहीं। (ख) बिना किसी को जतलाये। चुप-चाप। चुपके से। जैसे—तुम ऊपर-ऊपर सब कारवाई कर लेते हो, हमसे पूछते भी नहीं। ऊपर से अतिरिक्त। अलग। सिवा। जैसे—ज्वर तो था ही, ऊपर से पेट में दरद भी होने लगा। १२. अंदर की तुलना में, प्रत्यक्ष, बाहर या सामने। जैसे—इस दवा से अन्दर का रोग ऊपर आ जायगा। पद—ऊपर-ऊपर से बिना गहराई या तह तक पहुँचे। जैसे—अभी तो हमने ऊपर-ऊपर से सब बातें देखी या समझी है। ऊपर का जो प्रत्यक्ष या सामने हो। जैसे—इनकी ऊपर की आँखे तो फूटी ही है, अंदर की भी फूटी हैं। ऊपर से औपचारिक रूप में या दिखलाने भर के लिए। जैसे—ऊपर से तो उनका व्यवहार अच्छा ही है,अंदर की राम जानें। ऊपर से देखने पर-साधारणतः पहले पहल देखने पर जोरूप दिखाई देता हो,उसके आधार पर या विचार से। (प्राइमाफेसी) पद—ऊपर तलेऊपर-नीचे(दे०)। विशेष—‘ऊपर’ और ‘पर’ बहुत अधिक परन्तु बहुत सूक्ष्म अन्तर है। प्रस्तुत प्रसंग में ‘पर’ का मुख्य अर्थ होता है-ऐसे रूप में कि किसी के ऊपरी तल के साथ दूसरी चीज का नीचेवाला तल सटा रहे, परंतु ‘ऊपर’ में तल के सटे होने का भाव न तो अनिवार्य ही है, न मुख्य ही। इसमें मुख्य भाव उत्सेध या ऊँचाई पर आश्रित रहने या स्थित होने का है। ‘बंदर’ पेड़ पर बैठा है। और बंदर पेड़ के ऊपर जा पहुँचा। में जो अंतर है, वह स्पष्ट ही है। परन्तु नीचे के उदाहरणों से यह अंतर और भी अच्छी तरह स्पष्ट हो जायगा। (क) टोपी सिर पर पहनी जाती है और पगड़ी उस (टोपी) के ऊपर बाँधी जाती है। (ख) रेल की पटरी या लाइन पुल पर बिछी रहती है, परंतु (दोहरे पुलों में) पुल के ऊपर (अर्थात् पटरीवाले विस्तार के ऊपरी भाग में, कुछ ऊँचाई पर) वह सड़क होती है। जिसपर पैदल यात्री, बैल-गाड़ियाँ आदि चलती हैं। (ग) नावें पानी पर चलती या तैरती हैं, परन्तु मछलियाँ उछलकर पानी के ऊपर आती हैं। कुछ अवस्थाओं में, जहाँ ‘अंदर’ की अपेक्षा, तुलना या विपरीतता का प्रसंग होता है, वहाँ ‘पर’ के स्थान पर भी ‘ऊपर’ का प्रयोग होता है। जैसे—(क) तुम इतना भी नही जानते कि गाड़ी पुल के ऊपर चलती हैं, नीचे नहीं चलती ? (ख) अधिकतर नावें (या जहाज) तो पानी के ऊपर ही चलते हैं, परंतु पनडुब्बी नावें पानी के ऊपर भी चलती हैं और अंदर (या नीचे) भी।
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ऊपर-तले  : वि० [हिं० ऊपर+तले] १. (दो या दो से अधिक पदार्थ) जो क्रम के विचार से एक दूसरे के ऊपर पड़े या रखे हों। २. काल-क्रम के विचार से एक के तुरंत बाद दूसरावाला। पद—ऊपर-तले के (ऐसे भाई-बहन) जो एक-दूसरे के ठीक पहले या ठीक बाद उत्पन्न हुए हों। अव्य० १. एक के ऊपर एक। २. एक के बाद एक (काल-क्रम के विचार से)। जैसे—ऊपर-तले कई घटनाएँ एक साथ घटी थी।
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ऊपर-तले  : वि० [हिं० ऊपर+तले] १. (दो या दो से अधिक पदार्थ) जो क्रम के विचार से एक दूसरे के ऊपर पड़े या रखे हों। २. काल-क्रम के विचार से एक के तुरंत बाद दूसरावाला। पद—ऊपर-तले के (ऐसे भाई-बहन) जो एक-दूसरे के ठीक पहले या ठीक बाद उत्पन्न हुए हों। अव्य० १. एक के ऊपर एक। २. एक के बाद एक (काल-क्रम के विचार से)। जैसे—ऊपर-तले कई घटनाएँ एक साथ घटी थी।
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ऊपर-नीचे  : वि० , अव्य० [हिं० ऊपर+नीचे] ऊपर-तले।
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ऊपर-नीचे  : वि० , अव्य० [हिं० ऊपर+नीचे] ऊपर-तले।
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ऊपरवाला  : पुं० [हिं० ऊपर+वाला] १. ईश्वर। २. सूर्य। ३. चंद्रमा। ४. बादल। ५. इंद्र। वि० १. जो ऊपर रहता या होता हो। २. अपरिचित या बाहरी।
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ऊपरवाला  : पुं० [हिं० ऊपर+वाला] १. ईश्वर। २. सूर्य। ३. चंद्रमा। ४. बादल। ५. इंद्र। वि० १. जो ऊपर रहता या होता हो। २. अपरिचित या बाहरी।
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ऊपरी  : वि० [हिं० ऊपर] १. क्रम, स्थिति आदि के विचार से ऊपर की ओर होने या रहनेवाला। ऊपर का। जैसे—(क) घर का ऊपरी खंड या भाग। (ख) बादाम का ऊपरी छिलका। २. जो किसी निश्चित क्षेत्र, वर्ग आदि से अलग या बाहर का हो। जैसे—ऊपरी आदमी। ३. नियत या नियमति से भिन्न। अतिरिक्त। जैसे—ऊपरी आमदनी। ४. जिसका प्रस्तुत से कोई संबंध न हो। जैसे—ऊपरी बातें। ५. जिसका आविर्भाव किसी ऊपरी (अर्थात् अलौकिक) कारणों, उपद्रवों आदि से हो। जैसे—ऊपरी फसाद (भूत-प्रेत आदि की बाधा)। ६. (आचरण या व्यवहार) जो केवल ऊपर से अर्थात् दिखाने भर के लिए किया जाय, वास्तविक या हार्दिक न हो। औपचारिक या दिखावटी। जैसे—ऊपरी आदर-सत्कार। ७. (कार्य) जिसका कोई ठोस आधार या भीतरी तत्त्व न हो। जैसे—ऊपरी तड़क-भड़क।
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ऊपरी  : वि० [हिं० ऊपर] १. क्रम, स्थिति आदि के विचार से ऊपर की ओर होने या रहनेवाला। ऊपर का। जैसे—(क) घर का ऊपरी खंड या भाग। (ख) बादाम का ऊपरी छिलका। २. जो किसी निश्चित क्षेत्र, वर्ग आदि से अलग या बाहर का हो। जैसे—ऊपरी आदमी। ३. नियत या नियमति से भिन्न। अतिरिक्त। जैसे—ऊपरी आमदनी। ४. जिसका प्रस्तुत से कोई संबंध न हो। जैसे—ऊपरी बातें। ५. जिसका आविर्भाव किसी ऊपरी (अर्थात् अलौकिक) कारणों, उपद्रवों आदि से हो। जैसे—ऊपरी फसाद (भूत-प्रेत आदि की बाधा)। ६. (आचरण या व्यवहार) जो केवल ऊपर से अर्थात् दिखाने भर के लिए किया जाय, वास्तविक या हार्दिक न हो। औपचारिक या दिखावटी। जैसे—ऊपरी आदर-सत्कार। ७. (कार्य) जिसका कोई ठोस आधार या भीतरी तत्त्व न हो। जैसे—ऊपरी तड़क-भड़क।
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