शब्द का अर्थ
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एकांत :
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वि० [एक-अन्त, ब० स०] १. (स्थान) जो निर्जन या सूना हो। २. पूरी तरह से किसी एक ही पक्ष में रहनेवाला या किसी नियम, निष्ठा आदि का पालन करनेवाला। एक को छोड़ और किसी ओर ध्यान न देनेवाला। जैसे—दुर्गा या शिव का एकांत भक्त। पुं० ऐसा स्थान जहाँ कोई न हो। निर्जन स्थान। पद—एकांत-कैवल्य—=१. एकांत-वास। २. जीवन्मुक्ति। |
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समानार्थी शब्द-
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एकांत-वास :
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पुं० [स० त०] [वि० एकांतवासी] एकांत अर्थात् निर्जन स्थान में रहने की क्रिया या भाव। ऐसे स्थान में रहना जहाँ और कोई मनुष्य न बसता या न रहता हो। विशेष—यह अपनी इच्छा से भी होता है, और दंड-स्वरूप या राजाज्ञा आदि के कारण भी। |
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एकांत-स्वरूप :
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वि० [सं० ब० स०] १. जो किसी के साथ कुछ भी मिलता न हो। २. असंग। निर्लिप्त। |
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एकांतता :
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स्त्री० [सं० एकांत+तल्-टाप्] एकांत होने की अवस्था या भाव। |
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एकांतर :
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वि० [सं० एक-अंतर, ब० स०] क्रमात् हर बार बीच में अगले एक को छोड़कर उसके बाद वाले स्थान पर आने या पड़नेवाला। जैसे—१, ३, ५, ७, ९, आदि या २, ४, ६, ८, १0 आदि एकांतर संख्यायें हैं। |
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एकांतरिक :
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वि० [सं० एकांतर, एक-अंतर, कर्म० स०+ठक्-इक] एकांतर। |
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एकांतवासी (सिन्) :
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वि० [सं० एकांतवस् (बसना)+णिनि] [स्त्री० एकांतवासिनी] १. एकांत में रहनेवाला। २. एकांतवास करनेवाला। |
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एकांतिक :
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वि०=ऐकांतिक। |
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एकांती (तिन्) :
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पुं० [सं० एकांत+इनि] ऐसा भक्त, जो सबसे अलग होकर तथा निर्जन स्थान में बैठकर एकाग्र चित्त से अपने देवी या देवता का भजन करता हो। |
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