शब्द का अर्थ
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					कंद					 :
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					पुं० [सं०√कंद् (विकल करना)+णिच्+अच्] १. पौधों का वह गूदेदार और बिना रेशे का तना, जो जमीन पर फैला हुआ या उसके अन्दर छिपा रहता है और प्रायः खाने के काम आता है। (राइजोम) जैसे—गाजर, मूली, सूरन आदि। २. मेघ। बादल। ३. एक वर्णवृत्त, जिसके प्रत्येक चरण में चार यगण और एक लघु होता है। ४. छप्पय छंद का एक भेद। ५. एक प्रकार का योनि रोग। पुं० [फा०] एक प्रकार की जमाई हुई चीनी। पुं० दे० ‘कंथा’ (स्थानवाचक उत्तर-पद)।				 | 
			
			
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					कंद-मूल					 :
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					पुं० [ब० स०] एक पौधा जिसकी जड़ उबालकर तरकारी बनाई जाती है।				 | 
			
			
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					कंद-सार					 :
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					पुं० [ब० स०] १. इंद्र का उपवन। २. हिरन की एक जाति।				 | 
			
			
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					कंदक					 :
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					पुं० [सं० कंद+कन्] पालकी।				 | 
			
			
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					कंदन					 :
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					पुं० [सं०√कंद्+ल्युट-अन] क्षय। नाश।				 | 
			
			
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					कंदन					 :
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					पुं० [सं०√क्रंद् (रोना)+ल्युट-अन] १. विलाप करना। रोना। २. लड़ने-भिड़ने के लिए ललकारना।				 | 
			
			
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					कंदर					 :
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					पुं० [सं० कम्√दृ (विदारण)+अप्] १. कदरा। (दे०)। २. अंकुश।				 | 
			
			
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					कंदरा					 :
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					स्त्री० [सं० कंदर+टाप्] जमीन के अंदर या पहाड़ में खोदा हुआ अथवा प्राकृतिक रूप से बना हुआ बहुत बड़ा गड्ढा। गुफा। खोह।				 | 
			
			
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					कंदराना					 :
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					अ० [हिं० कंदरी] कीचड़ की तरह गंदा और मैला होना। स० गंदा या मैला करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कँदरी					 :
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					स्त्री० [सं० कर्दम] १. कीचड़। २. इमारत के काम के लिए सड़ाकर कूटा हुआ चूना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कंदर्प					 :
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					पुं० [सं० कम्√दृप् (मत्त होना)+अच्] १. कामदेव। २. संगीत में रुद्राताल का एक प्रकार या भेद।				 | 
			
			
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					कंदर्प-कूप					 :
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					पुं० [ष० त०] योनि।				 | 
			
			
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					कंदर्प-दहन					 :
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					पुं० [ष० त०] शिव।				 | 
			
			
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					कंदर्प-मथन					 :
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					पुं० =कंदर्प-दहन।				 | 
			
			
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					कंदल					 :
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					पुं० [सं०√कंद्+कलच्] १. नया अँखुआ। २. कपाल। सिर। ३. सोना। स्वर्ण। ४. वाद-विवाद।				 | 
			
			
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					कंदला					 :
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					पुं० [सं० कंदल-सोना] १. चाँदी, सोने आदि का पतला तार। २. चाँदी की गुल्ली या छड़, जिससे तारखश तार बनाते हैं। ३. एक प्रकार का कचनार। स्त्री० =कंदरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कंदला-कश					 :
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					पुं० [हिं० कंदला+फा० कश] तार खींचनेवाला। तारकश।				 | 
			
			
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					कंदलाकशी					 :
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					स्त्री० [हिं० कंदलाकश] तार खींचने का काम तारकशी।				 | 
			
			
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					कंदली					 :
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					स्त्री० [सं० कंदल+ङीष्] १. एक पौधा, जिसमें सफेद रंग के फूल लगते हैं। २. एक प्रकार का हिरन। ३. कमलगट्टा। ४. केला। ५. पताका।				 | 
			
			
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					कंदा					 :
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					पुं० १. दे०‘ कंद’ २. दे० ‘शकरकंद’।				 | 
			
			
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					कंदाकार					 :
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					पुं० [सं० कंद-आकार, ष० त०] बादलों की घटा। मेघमाला।				 | 
			
			
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					कंदी (दिन्)					 :
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					पुं० [सं० कंद+इनि] सूरन।				 | 
			
			
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					कंदीत					 :
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					पुं० [प्रा०] एक प्रकार के देवगण जो वाणव्यंतर के अंतर्गत माने गये हैं। (जैन)।				 | 
			
			
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					कंदील					 :
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					स्त्री० [अ०] १. एक प्रकार का पुराना आधान, जिसमें दीपक जलाया जाता था। २. लालटेन। ३. जहाज में वह स्थान जहाँ लोग पाखाना फिरते हैं, और जिसके पास पानी का भण्डार रहता है।				 | 
			
			
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					कंदु					 :
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					पुं० [सं० स्कंद(गति)+उ,सलोप] १. भाड़। २. गेंद।				 | 
			
			
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					कंदुआ					 :
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					पुं० [हिं० कांदो] एक रोग जिससे गेहूँ, जौ , धान आदि की बालों पर काली भुकड़ी जम जाती है।				 | 
			
			
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					कंदुक					 :
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					पुं० [सं० कम्दा (देना)+डु+कन्] १. गेंद। २. गोल तकिया। ३. सुपारी। ४. कंद नामक वर्णवृत्त।				 | 
			
			
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					कँदूरी					 :
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					स्त्री० [सं० कन्दूरी] कुँदरू। बिंबाफल। स्त्री० [फा०] मुसलमानों में वह भोजन, जिसे सामने रखकर फातिहा पढ़ा जाता है और जो बाद में बाँटा जाता है।				 | 
			
			
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					कंदेब					 :
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					पुं० [देश] पुन्नाग या सुलताना चंपा की तरह का एक वृक्ष, जिसके तने से नावों के मस्तूल बनते हैं।				 | 
			
			
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					कँदेलिया					 :
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					स्त्री० [?] एक प्रकार की भैंस, जो कम दूध देती है।				 | 
			
			
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					कंदोत					 :
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					पुं० [सं० कंद-ऊत, स० त०] सफेद कमल।				 | 
			
			
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					कंदोरा					 :
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					पुं० [हिं० गांड+डोरा] कमर में पहनने की करधनी या तागा।				 | 
			
			
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					कंद्रप					 :
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					पुं० =कंदर्प (कामदेव)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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