शब्द का अर्थ
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					कंप					 :
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					पुं० [सं०√कंप् (काँपना)+घञ्] १. भय, शीत आदि के कारण शरीर के अंगों के बार-बार या रह-रहकर हिलने की क्रिया या भाव। २. साहित्य में क्रोध, भय हर्ष आदि के कारण शरीर में होनेवाला कंपन या थर्राहट, जिसकी गिनती सात्त्विक अनुभावों के अंतर्गत होती है। ३. प्राकृतिक या भू-गर्भस्थ कारणों से पृथ्वी के किसी भाग का थोड़ी देर के लिए रह-रहकर काँपना या हिलना। थर्राहट। (क्वेक) जैसे—भूंकंप, समुद्र-कंप आदि। पु० [अं० कैप] १. सैनिकों आदि का अस्थायी निवास स्थान। छावनी। २. यात्रियों के ठहरने का स्थान। पड़ाव। डेरा।				 | 
			
			
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					कंप-मापक					 :
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					पुं० [सं० ष० त०]=भूकंप-मापक।				 | 
			
			
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					कंप-विज्ञान					 :
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					पुं० [सं० ष०त०]=भूकंप-विज्ञान।				 | 
			
			
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					कँपकँपी					 :
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					स्त्री० [हिं० काँपना] भय, शीत आदि के कारण शरीर में होनेवाला कंपन या थर्राहट, जिसमें एक प्रकार की स्वरता होती है। कंपन।				 | 
			
			
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					कंपति					 :
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					पुं० [सं०√कंप्+अति] समुद्र।				 | 
			
			
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					कंपन					 :
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					पुं० [सं०√कंप्+ल्युट-अन] काँपने या थरथराने की क्रिया या भाव। २. किसी वस्तु आदि का कुछ समय के लिए निरंतर हिलते-डुलते या काँपते रहना। जैसे—प्रकाश या ध्वनि में होनेवाला कंपन। ३. एक प्राचीन अस्त्र।				 | 
			
			
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					कँपना					 :
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					अ०=काँपना।				 | 
			
			
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					कँपनी					 :
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					स्त्री०=कँपकँपी।				 | 
			
			
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					कँपनी					 :
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					स्त्री० [अं०] १. कुछ व्यक्तियों के द्वारा मिल-जुलकर स्थापित की हुई कोई व्यापारिक मंडली या संस्था। जैसे—ईस्ट इंडिया कंपनी। २. भारत का वह शासन, जो ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा घोषित था। ३. भारत का अँगरेजी काल का शासन। उदाहरण—सर कंपनी का कट के बिके आध आने में। ४. दे० ‘मंडली’।				 | 
			
			
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					कंपमान					 :
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					वि० [सं०√कंप्+शानच्]=कंपायमान।				 | 
			
			
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					कंपा					 :
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					पुं० [हिं० काँपा] १. बाँस की वे छोटी तिलियाँ,जिनमें लासा लगाकर बहेलिया चिड़ियाँ फँसाते हैं। २. लाक्षणिक अर्थ में ऐसा चंगुल, जाल या फंदा, जिसमें किसी को फँसाया जाय। मुहावरा—कंपा मारनाकिसी को फँसाने के लिए जाल फैलाना।				 | 
			
			
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					कँपाना					 :
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					स० [हिं० काँपना का प्रे] किसी को काँपने में प्रृवत्त करना। डराना। दहलाना।				 | 
			
			
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					कंपायमान					 :
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					वि० [सं० कंपमान] १. जो काँप रहा हो। २. हिलता-डुलता या थरथराता हुआ।				 | 
			
			
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					कंपास					 :
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					स्त्री० [अं० कम्पास] १. घड़ी के आकार का एक यंत्र, जो दिशाओं का ज्ञान कराता है। दिक्सूचक यंत्र। कुतुबनुमा। २. वृत्त बनाने का परकार।				 | 
			
			
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					कंपित					 :
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					वि० [सं०√कंप्+क्त] १. काँपता हुआ। २. डरा हुआ। भयभीत। ३. कँपाया हुआ।				 | 
			
			
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					कंपिल					 :
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					पुं० [सं०√कंप्+इलच्] १. रोचनी। सफेद। नौसादार। फर्रुखाबाद जिले का एक पुराना नगर, जो पहले दक्षिण पांचाल की राजधानी था, कहते हैं कि द्रौपदी का स्वयंवर यही हुआ था।				 | 
			
			
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					कंपू					 :
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					पुं०=कंप (छावनी)।				 | 
			
			
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					कंपेस					 :
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					पुं० [?] राजा पृथ्वीराज का एक उप-नाम या उपाधि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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