शब्द का अर्थ
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					कज					 :
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					वि० [फ़ा०] टेढ़ा। वक्र। पुं० १. टेढ़ापन। वक्रता। २. ऐब। दोष। ३. कमी। त्रुटि। पुं० =कार्य (काम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कजकोल					 :
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					पुं० [फा० कशकोल] भिक्षुओं का कपाल या खप्पर, जिसमें वे भिक्षा लेते हैं। भिक्षापात्र।				 | 
			
			
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					कजनी					 :
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					स्त्री० [?] वह उपकरण, जिससे खुरचकर ताँबे आदि के बरतन साफ किये जाते हैं। खरदनी।				 | 
			
			
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					कजपूती					 :
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					स्त्री० =कयपूती (एक प्रकार का पेड़)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कजरवा					 :
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					पुं० =काजल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कजरा					 :
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					वि० [हिं० काजल] १. काजल के रंग का। काला। २. काजल से युक्त। कजरारा। पुं० काले रंग की आँखोंवाला बैल। पुं०=काजल। उदाहरण—गोरी नैनों में तेरे कजरा फला।—गीत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कजराई					 :
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					स्त्री० [हिं० काजल] काले या काजल के रंग के होने की अवस्था, गुण या भाव। कालापन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कजरारा					 :
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					वि० [हिं० काजर+आरा प्रत्यय] १. जिसमें काजल लगा हो अथवा जो काजल से युक्त हो। (मुख्यतः नेत्र) २. जो काला या काजल के रंग जैसा हो। जैसे—कजरारे बादल।				 | 
			
			
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					कजरियाना					 :
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					स० [हिं० काजर=काजल] १. बच्चों को नजर से बचाने के लिए उनके माथें पर बिंदी लगाना। २. आँखों में काजल लगाना। ३. काला करना। ४. चित्रकला में अंधकार या अंधेरी रात दिखलाने के लिए चित्र पर काला रंग लगाना।				 | 
			
			
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					कजरी					 :
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					स्त्री० १. =कजली। २. =कदली। पुं० एक प्रकार का धान और उसका चावल जो काले रंग का होता है।				 | 
			
			
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					कजरौटा					 :
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					पुं० =कजलौटा।				 | 
			
			
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					कजलबाश					 :
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					पुं० [तु०] मुगलों की एक जाति, जो बहुत लड़ाकू होती है।				 | 
			
			
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					कजला					 :
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					पुं० [हिं० काजल] १. काले रंग का एक प्रकार का पक्षी। २. वह बैल, जिसकी आँखों पर काला घेरा हो। ३. खरबूजे की एक जाति। वि० =कजरा। पुं० =काजल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कजलाना					 :
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					अ० [हिं० काजल] १. काजल से युक्त होना। २. काजल के रंग का, अर्थात् काला पड़ना या होना। ३. आग या कोयलों का बुझने पर होना। झँवाना। स०१. काजल से युक्त करना। काजल लगाना। २. काला करना।				 | 
			
			
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					कजली					 :
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					स्त्री० [हिं० काजल] १. वह कालिख, जो दिया जलने पर उसके ऊपर जमती है, और जिससे काजल बनता है। २. ऐसी गौ, जिसकी आँखें काजल के रंग की अर्थात् काली हों। ३. ऐसी भेंड़, जिसकी आँख के चारों ओर काले बालों का घेरा हो। ४. उत्तर-प्रदेश, बिहार आदि में वर्षा ऋतु में गाये जानेवाले एक प्रकार के लोकगीत, जिनकी बीसियों धुनें होती हैं। ५. भादों बदी तीज को होनेवाला स्त्रियों का एक त्योहार, जिसमें वे प्रायः रात-भर उक्त प्रकार के गीत गाती और नाचती है। मुहावरा—कजली खेलना=स्त्रियों का घेरा या झुरमुट बनाकर झूमते हुए कजलियाँ गाना। ६. जौ के वे नये अंकुर, जो उक्त त्योहार पर स्त्रियाँ अपनी सखियों और संबंधियों में बाँटती हैं। ७. वैद्यक में एक ओषध, जिसे गंधक और पारे के योग से बनाते है, और जिसका उपयोग भस्म या रस प्रस्तुत करने में होता है। ८. एक प्रकार का गन्ना। ९. एक प्रकार की मछली। १॰. वनस्पतियों आदि का एक रोग, जिससे उनकी पत्तियों, फूलों आदि पर काली धूल-सी जम जाती है।				 | 
			
			
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					कजली-तीज					 :
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					स्त्री० [हिं० कजली+तीज] भादों बदी तीज,जिस दिन स्त्रियाँ रात-भर कजली गाती और नाचती हैं।				 | 
			
			
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					कजली-बन					 :
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					पुं० [सं० कदलीवन] १. केले का जंगल। २. आसाम का एक जंगल जो अच्छे हाथियों के लिए प्रसिद्ध है।				 | 
			
			
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					कजलोटा					 :
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					पुं० [सं० कज्जल-पात्र या हिं० काजल+औटा (प्रत्यय)] [स्त्री० अल्पा० कजलौटी] १. काजल रखने का एक प्रकार का डडोदार लोहे का पात्र। २. गोदना गोदने की स्याही रखने का पात्र।				 | 
			
			
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					कजही					 :
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					स्त्री० दे० ‘कायजा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कजा					 :
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					स्त्री० [सं० कांजी] काँजी। माँड़। स्त्री० [अ०] मौत। मृ्त्यु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कजाक					 :
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					पुं० [तु० कज्जाक] [वि०, भाव० कजाकी] डाकू। लुटेरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कजाकी					 :
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					स्त्री० [फा०] १. कजाक या लुटेरे का काम। २. लूटमार और बहुत बड़ी जबरदस्ती का काम। ३. छल-कपट। धोखेबाजी।				 | 
			
			
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					कजावा					 :
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					पुं० ऊँठ की पीठ पर रखी जानेवाली काठी, जिस पर लोग बैठते या सामान रखते हैं।				 | 
			
			
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					कजि					 :
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					क्रि० वि० [हिं० काज] कार्य के लिए। वास्ते। उदाहरण—कमल तणा मकरंद कजि।—प्रिथीराज।				 | 
			
			
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					कजिया					 :
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					पुं० [अ०] १. झगड़ा। लडा़ई। २. झंझट। बखेड़ा।				 | 
			
			
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					कजी					 :
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					स्त्री० [फा] १. टेढें होने की अवस्था या भाव। टेढ़ापन। २. ऐब। दोष। ३. कसर। त्रुटि।				 | 
			
			
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					कज्ज					 :
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					पुं० =कार्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कज्जल					 :
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					पुं० [सं० कु-जल, ब० स० कद् आदेश] १. आँखों में लगाने का काजल या अंजन। २. सुरमा। ३. दीपक आदि की कालिख। कजली। ४. बादल। मेघ। ५. चौदह मात्राओं का एक छंद जिसके अंत में एक गुरु और एक लघु होता है।				 | 
			
			
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					कज्जल-ध्वज					 :
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					पुं० [ब० स०] दीपक।				 | 
			
			
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					कज्जलरोचक					 :
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					पुं० [सं० कज्जल√रुच् (दीप्ति)+णिच्+अच्+कन्] दीअट। दीपाधार।				 | 
			
			
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					कज्जलित					 :
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					भू० कृ० [सं० कज्जल+इतच्] १. कज्जल या काजल से युक्त किया हुआ। जिसमें काजल लगा हो। २. काला।				 | 
			
			
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					कज्जली					 :
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					स्त्री० [सं० कज्जल+क्विप्+अच्-ङीष्] १. एक प्रकार की मछली। २. एक प्रकार का द्रव्य, जो गंधक तथा पारे के योग से बनाया जाता है। ३. स्याही।				 | 
			
			
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					कज्जाक					 :
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					पुं० [तु] डाकू० लुटेरा।				 | 
			
			
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					कज्जाकी					 :
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					स्त्री० दे० ‘कजाकी’।				 | 
			
			
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