शब्द का अर्थ
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					कण					 :
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					पुं० [सं०√कण् (गति)+अच्] १. किसी कड़ी या ठोस वस्तु का कोई बहुत छोटा अंश या दाना। जैसे—बालू के कण। (पार्टिकल) २. किसी जैव या सेंद्रिय पदार्थ अथवा उसके अंग का कोई बहुत छोटा टुकड़ा। जैसे—रक्त कण। ३. अनाज का दाना या उसका टुकड़ा। ४. किसी चीज के ऊपर उभरा या निकला हुआ छोटा या महीन अंश। दाना। ५. दे० ‘केलास’।				 | 
			
			
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					कणकच					 :
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					पुं० [?] १. करंज। कंजा। २. केवाँच। कौंछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कणगच					 :
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					पुं० =कणकच।				 | 
			
			
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					कणजीरक					 :
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					पुं० [सं० कण-जीर, कर्म० स०,×कन्] एक प्रकार का सफेद जीरा।				 | 
			
			
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					कणप					 :
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					पुं० [सं० कण√पा (पीना)+क] बरछा। भाला।				 | 
			
			
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					कणयर					 :
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					पुं०=कनेर।				 | 
			
			
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					कणा					 :
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					स्त्री० [सं० कण+टाप्] १. छोटा कण या बहुत छोटा टुकड़ा। २. पीपल।				 | 
			
			
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					कणाटीर					 :
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					पुं० [सं० कण√अट् (गति)+ईरन्] खंजन पक्षी।				 | 
			
			
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					कणाद					 :
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					पुं० [सं० कण√अद् (खाना)+अण्] वैशेषिक दर्शन के रचयिता प्रसिद्ध मुनि जिन्हें उलूक भी कहते थे। २. सुनार।				 | 
			
			
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					कणिक					 :
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					पुं० [सं० कण+ठन्-इक] [स्त्री० अल्पा० कणिका] १. अनाज का दाना या उसका टुकड़ा। २. गेहूँ, चावल आदि की बालें। ३. गेहूँ के आटे से बना हुआ पकवान या भोजन। ४. जल-कण। पानी की बूँद। ५. शत्रु। दुश्मन।				 | 
			
			
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					कणियर					 :
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					पुं० कनेर।				 | 
			
			
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					कणिष्ठ					 :
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					वि०=कनिष्ठ।				 | 
			
			
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					कणी					 :
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					स्त्री०=कनी।				 | 
			
			
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					कणीकरण					 :
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					पुं० [सं० कण+च्वि, ईत्व√कृ (करना)+ल्युट-अन] दे० ‘केलासन’।				 | 
			
			
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					कणीसक					 :
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					स्त्री० [सं० कणिक] गेहूँ,चावल जौ आदि की बालें।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कणेर					 :
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					पुं० [सं०√कण्+एर्] कनेर। (पेड़ और फूल)।				 | 
			
			
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					कण्व					 :
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					पुं० [सं०√कण्+क्वन्] १. एक वैदिक ऋषि जो शुक्ल यजुर्वेद की एक शाखा के प्रवर्त्तक थे। २. कश्यप गोत्र में उत्पन्न एक प्रसिद्ध ऋषि जिन्होंने अपने आश्रम में शकुंतला को पुत्री की तरह पाला था।				 | 
			
			
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