शब्द का अर्थ
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					कपाल					 :
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					पुं० [सं० क√पाल् (रक्षण)+अण्] १. सारे सिर के ऊपरी भाग में और अगल-बगल रहनेवाली वह अर्द्घ गोलाकार हड्डी जिसके अन्दर मस्तिष्क के सब अवयव रहते हैं। खोपड़ी। (स्कूल) पद—कुपाल-क्रिया (देखें )। २. मस्तक। ललाट। ३. अदृष्ट। भाग। ४. घड़े आदि के नीचे या ऊपर का टूटा हुआ अर्द्ध-गोलाकार भाग खपड़ा। ५. भिक्षुकों का मिट्टी का बना हुआ भिक्षा-पात्र खप्पर। ६. यज्ञों में देवताओं के लिए पुरोडाश पकाने का पात्र। ७. कछुए का खोपड़ा। ८. एक प्रकार का कोढ़। ९. एक प्रकार का पुराना अस्त्र। १॰. ढाल।				 | 
			
			
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					कपाल-केतु					 :
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					पुं० [उपमि० सं०] बृहत्सहिता के अनुसार एक धूम्रकेतु जिसका उदय अशुभ माना गया है।				 | 
			
			
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					कपाल-क्रिया					 :
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					स्त्री० [ष० त०] हिन्दुओं में शव जलाने के समय का एक संस्कार जिसमें शव का अधिकांश जल चुकने पर उसकी खोपड़ी बाँस लकड़ी आदि से तोड़ने या फोड़ते हैं। विशेष—आधुनिक दृष्टि से इसका उद्देश्य सम्भवतः यह होता है कि आत्मा को शरीर से संबद्ध रखनेवाला बंधन या सूत्र टूट जाय।				 | 
			
			
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					कपाल-माली (लिन्)					 :
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					पुं० [सं० कपाल-माला, ष० त० +इनि] खोपड़ियों की माला पहननेवाले शिव।				 | 
			
			
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					कपाल-संधि					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] १. खोपड़ी की हड्डियों का जोड़। २. ऐसी संधि जो दोनों पक्षों के अधिकार बराबर मानकर की गई हो।				 | 
			
			
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					कपालक					 :
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					पुं०= कापालिका। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कपालि					 :
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					पुं० [सं० क√पाल,+ इनि] शिव।				 | 
			
			
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					कपालिक					 :
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					पुं० दे० ‘कापालिक’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कपालिका					 :
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					स्त्री० [सं० कपाल + कन् ;+ टाप्, इत्व] १. खोपड़ी। २. घड़े के नीचे आ ऊपर का टूटा हुआ भाग। ३. दाँतों में होनेवाला एक रोगा। स्त्री० [ सं० कापालिक=शिव] काली। रणचंडी।				 | 
			
			
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					कपालिनी					 :
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					स्त्री० [सं० कपाल+इनि+ङीप्] दुर्गा। शिवा।				 | 
			
			
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					कपाली (लिन्)					 :
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					पुं० [सं० कपाल +इनि] १. शिव। महादेव। २. भैरव। ३. ठोकरा लेकर भीख माँगनेवाला भिक्षुक। ४. एक प्राचीन वर्णसंकर—जाति कपरिया।				 | 
			
			
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