शब्द का अर्थ
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					कलिक					 :
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					पुं० [सं० कल+ठन्—इक्] क्रौंच (पक्षी)।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					कलिका					 :
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					स्त्री० [सं० कलि+कन्, टाप्] १. फूल का आरंभिक बिना खिला हुआ अंकुरा। कली। २. एक प्रकार का पुराना बाजा सिर पर चमड़ा मढ़ा होता था। वीणा का सब से नीचेवाला भाग। ४. संस्कृत में एक विशिष्ट प्रकार की पद—रचना, जो ताल और लय से युक्त होती है। ५. कलौंजी या मँगरैला नामक दाने या बीज। ६. बहुत छोटा अंश या भाग। ७. समय का वह बहुत छोटा भाग, जिसे कला या मुहूर्त कहते हैं।				 | 
			
			
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					कलिकान					 :
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					वि० [?] हैरान। परेशान। स्त्री०=कलिकानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कलिकानी					 :
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					स्त्री० [?] परेशानी। हैरानी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कलिकापूर्व					 :
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					पुं० [कलिका-अपूर्व, मध्य० स०] कोई ऐसी बात जिसके आदि और अन्त अथवा अस्तित्व, मूल आदि का कुछ भी ज्ञान या निश्चय न हो। जैसे—जन्म, मृत्यु, स्वर्ग आदि।				 | 
			
			
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					कलिकारी					 :
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					स्त्री० [सं० कलि+कृ (करना)+अण्—ङीप्] कलियारी विष।				 | 
			
			
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					कलिकाल					 :
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					पुं० [मयु० स०] कलियुग।				 | 
			
			
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