शब्द का अर्थ
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कष्ट :
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पुं० [सं०√कष् (हिंसन)+क्त] १. मन में होनेवाला वह अप्रिय तथा दुःखद अनुभव जो किसी प्रकार के अभाव के कारण होता है। जैसे—(क) उन्हें आँखों का कष्ट है। (ख) आजकल कष्ट में दिन बीत रहे हैं। २. दुःख। पीड़ा। ३. आपत्ति। मुसीबत। ४. पाप। दुष्टता। ५. श्रम। वि० १. हानिकर। २. बुरा। ३. कठिन। ४. दुःखी। ५. जो संबंध में पत्नी या माता के पक्ष का हो। जैसे—कष्ट-भोगिनेय, कष्टमातुल (देखें)। |
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कष्ट-कल्पना :
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स्त्री० [मध्य० स०] कोई पक्ष सिद्ध करने के लिए की जानेवाली ऐसी कल्पना या दी जानेवाली ऐसी युक्ति जो बहुत दूर की हो तथा बहुत खींच-तानकर ही घटाई या ठीक सिद्ध की जा सकती हो। जबरदस्ती खड़ी की हुई दलील। |
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कष्ट-कारक :
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वि० [ष० त०]=कष्टकर। |
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कष्ट-भागिनेय :
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पुं० [मध्य० स०] पत्नी की बहन (साली) का लड़का। |
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कष्ट-मातुल :
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पुं० [मध्य० स०] सौतेली माँ का भाई। |
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कष्ट-साध्य :
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वि० [तृ० त०] जिसके साधन में अधिक श्रम करना तथा कष्ट सहना पड़ता हो। बहुत कठिनता से पूरा होनेवाला। (काम) |
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कष्टकर :
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वि० [सं० कष्ट√कृ (करना)+ट] १. कष्ट देने या पहुँचानेवाला। २. जिसे करने में कठिनाई या कष्ट होता हो। |
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कष्टार्तव :
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पुं० [कष्ट-आर्तव मध्य० स०] स्त्री का ऐसा रज-स्राव जो बहुत कष्ट सो होता हो। |
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कष्टार्थ :
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पुं० [कष्ट-अर्थ, मध्य० स०] १. ऐसा शब्द, जिसका अर्थ खींच-तानकर निकाला गया हो या निकाला जाता हो। २. उक्त प्रकार से निकाला हुआ अर्थ। |
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कष्टी (ष्टिन्) :
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वि० [सं० कष्ट+इनि] १. जो कष्ट में पड़ा हो। दुःखी। पीड़ित। २. (स्त्री) जिसे प्रसव की वेदना हो रही हो। |
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