शब्द का अर्थ
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					कांति					 :
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					स्त्री० [सं०√कम् (चमकना)+क्तिन्] १. मनुष्य (विशेषतः स्त्री) के स्वरूप की छवि, शोभा या सौंदर्य। दैहिक या वैयक्तिक श्रृंगार या सजावट और उसके कारण बननेवाला मोहक रूप। २. प्रेम से युक्त तथा वर्णित शारीरिक सौंदर्य। ३. आभा। प्रकाश। ४. शोभा। सौंदर्य। ५. चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक जो उसकी पत्नी भी मानी गई है। ६. आर्या चंद का एक भेद जिसमें १६ लघु और २५ गुरु मात्राएँ होती हैं।				 | 
			
			
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					कांतिकर					 :
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					वि० [सं० कांति√कृ (करना)+ट] कांति (शोभा या सौंदर्य) बढ़ानेवाला। सुशोभित करनेवाला।				 | 
			
			
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					कांतिभृत्					 :
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					पुं० [सं० कांति√भृ (धारण करना)+क्विप्] चन्द्रमा।				 | 
			
			
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					कांतिमान् (मत्)					 :
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					वि० [सं० कांति+मतुप्] १. कांति से युक्त। २. चमकीला।				 | 
			
			
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					कांतिसुर					 :
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					पुं० [सं० सुरकांति] सोना। स्वर्ण।				 | 
			
			
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