शब्द का अर्थ
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					कात					 :
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					पुं० [सं० कर्त्तन, प्रा० कत्तन] १. भेड़ों के बाल काटने की कैंची। २. मुरगे के पैर में निकलनेवाला काँटा।				 | 
			
			
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					कातक					 :
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					पुं० =कार्तिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कातंत्र					 :
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					पुं० [सं० कु-तंत्र, ब० स० कु=कादेश] सर्ववर्मा का बनाया हुआ एक प्रसिद्ध व्याकरण ग्रंथ। कलाप व्याकरण।				 | 
			
			
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					कातना					 :
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					स० [सं० कृत, पा० कत्त, पं० कत्तना, गु० कातबूँ, मरा० कातणें] [भाव० कताई] चरखे या तकली की सहायता से अथवा यों ही हाथ से ऊन, रूई रेशम आदि के रेशों से बटकर धागा या सूत बनाना (स्पिनिंग)। मुहावरा—महीन कातना=बहुत गढ़-गढ़कर और बारीकी से (अर्थात् अपना विशेष कौशल या योग्यता दिखलाते हुए) बातें करना। (व्यंग्य और हास्य)।				 | 
			
			
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					कातर					 :
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					वि० [सं० क-आ√तृ (तरना)+अच्] [भाव० कातरता] १. भय से काँपता हुआ। भयभीत। २. डरपोक। भीरू। ३. जो कष्ट या दुःख में पड़ने पर निराश या हतोत्साह होने के कारण अधीर हो रहा हो। जैसे—कतार भाव से प्राणरक्षा की प्रार्थना करना। पुं० [सं० कर्तृ=कातने या घूमनेवाला] १. कोल्हू में वह तख्ता जिस पर आदमी बैठकर आगे जुते हुए बैलों को हाँकता है और जो जाठ के साथ-साथ चारों ओर घूमता है। २. घड़ों आदि को बाँधकर बनाया हुआ बेड़ा। घड़नैल। पुं० [सं० कर्त्तरी] बंदर या भालू का जबड़ा। (कलंदर)। स्त्री० [?] एक प्रकार की मछली।				 | 
			
			
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					कातरता					 :
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					स्त्री० [सं० कातर+तल्,टाप्] १. कतार होने की अवस्था या भाव। २. कष्ट या दुःख के समय होनेवाली विकलता। बेचैनी। ३. अधीरता।				 | 
			
			
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					कातरोक्ति					 :
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					स्त्री० [सं० कातर-उक्ति, ष० त०] दुःख या संकट में पड़कर और अधीर या निराश होकर दीनपूर्वक कही जानेवाली बात या की जानेवाली प्रार्थना।				 | 
			
			
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					कातर्य					 :
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					पुं० [सं० कातर+ष्यञ्]=कातरता।				 | 
			
			
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					काता					 :
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					पुं० [हिं० कातना] १. काता हुआ सूत। तागा। २. एक प्रकार की मिठाई जो देखने में बहुत महीन कते हुए सूत के लच्छों की तरह होती है। बुढ़िया का काता। पुं० [सं० कर्त्तन] बाँस काटने या छीलने का एक प्रकार का औजार।				 | 
			
			
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					कातिक					 :
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					पुं० [सं० कार्तिक] कार्तिक मास। पुं० [?] एक प्रकार का बड़ा तोता।				 | 
			
			
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					कातिकी					 :
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					वि०=कार्तिकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कातिग					 :
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					पुं० =कार्तिक।				 | 
			
			
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					कातिल					 :
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					वि० [अ०] १. कत्ल या हत्या करनेवाला। हत्यारा। २. प्राण लेने या प्राण संकट में डालनेवाला। बहुत अधिक घातक।				 | 
			
			
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					कातिव					 :
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					पुं० [अ०] १. लेखों आदि की प्रतिलिपि करनेवाला व्यक्ति। २. वह जिसने कोई दस्तावेज या लेख्य लिखा हो अथवा जो लेख्य आदि लिखने का व्यवसाय करता हो।				 | 
			
			
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					काती					 :
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					स्त्री० [सं० कत्त्वी, प्रा० कत्ती] १. कैंची। जैसे—लोहारों या सुनारों की काती। २. चाकू। छुरी। उदाहरण—तजि ब्रजलोक पिता अरू जननी कंठ लाय गरु काती।—सूर। ३. एक प्रकार की छोटी तलवार।				 | 
			
			
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					कातीय					 :
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					वि० [सं० कात्यायन+छ-ईय, फक्, प्रत्यय का लुक्] कात्यायन-संबंधी।				 | 
			
			
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					कात्य					 :
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					वि० [सं० कत+य़ञ्] कत ऋषि संबंधी। पुं० १. कत ऋषि के गोत्र का व्यक्ति। २. दे० ‘कात्यायन’।				 | 
			
			
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					कात्यायन					 :
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					पुं० [सं० कत+यञ्+फक्-आयन] [स्त्री० कात्यायिनी] १. व्याकरण के एक प्रसिद्ध आचार्य, जिन्होंने वार्तिक लिखकर पाणिनी के सूत्रों की अभिपूर्ति की थी। २. एक ऋषि जो सामाजिक और धार्मिक विधियों के आचार्य माने गये हैं।				 | 
			
			
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					कात्यायनी					 :
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					स्त्री० [सं० कात्यायन+ङीष्] १. कत गोत्र में उत्पन्न स्त्री। २. कात्यायन ऋषि की पत्नी। ३. वह विधवा जो कषाय वस्त्र पहनती हो। ४. दुर्गा की एक मूर्ति या रूप।				 | 
			
			
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					कात्यायनीय					 :
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					वि० [सं० कात्यायन+छ-ईय] कात्यायन द्वारा रचित (ग्रन्थ)।				 | 
			
			
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