शब्द का अर्थ
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					कोच					 :
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					पुं० [अं०] १. एक प्रकार की गद्देदार बड़ी और लंबी कुरसी जिस पर दो-तीन आदमी बैठ सकते हैं। २. चार पहियोंवाली एक प्रकार की घोड़ागाड़ी। पुं० [सं० ] एक संकर जाति। स्त्री० [हिं० कोचना] कोंचने की क्रिया या भाव।				 | 
			
			
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					कोचकी					 :
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					पुं० [?] एक रंग जो लाली लिये भूरा होता है। वि० उक्त प्रकार के रंग का।				 | 
			
			
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					कोचना					 :
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					स० [सं० कुच०] १. नुकीली चीज बार-बार किसी वस्तु में धँसाना। २. बार-बार किसी को तंग करना। पुं० बड़ी कोचनी (औजार) दे० ‘कोचनी’।				 | 
			
			
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					कोचनी					 :
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					स्त्री० [हिं० कोचना०] १. लोहे का एक प्रकार का दाँतेदार औजार जिससे तरकारियाँ, फल आदि कोंचे जाते हैं। २. लोहे का छोटा सूआ जिससे तलवार की म्यान पर का चमड़ा सीया जाता है। ३. वह छड़ी जिससे बैल हाँके जाते है।				 | 
			
			
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					कोचबकस					 :
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					पुं० [अं० कोच+बाक्स] घोड़ा-गाड़ी में वह ऊँचा स्थान जिस पर कोचवान बैठकर हाँकता है।				 | 
			
			
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					कोचरा					 :
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					पुं० [देश०] दोनों ओर से नुकीली तथा अंगुल भर लंबी पत्तियों वाली एक लता।				 | 
			
			
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					कोचरी					 :
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					पुं० [देश०] एक प्रकार का पक्षी।				 | 
			
			
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					कोचवान					 :
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					पुं० [अं० कोचमैन] घोड़ा-गाड़ी, टाँगा आदि हाँकनेवाला व्यक्ति।				 | 
			
			
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					कोचा					 :
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					पुं० [हिं० कोचना] १. छुरी, तलावर आदि की नोक कोचने या चुभाने से होनेवाला घाव। २. चुभती या लगती हुआ बहुत तीखी बात।				 | 
			
			
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					कोचिला					 :
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					पुं० =कुचला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कोची					 :
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					पुं० [?] बबूल की जाति का एक जंगली पेड़। बनरीठा।				 | 
			
			
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					कोचीन					 :
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					पुं० [देश०] दक्षिण भारत के केरल राज्य का एक प्रदेश।				 | 
			
			
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