शब्द का अर्थ
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					कोटि					 :
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					स्त्री० [सं०√कुट्+इञ्०] १. धनुष का सिरा। २. अर्द्ध-चंद्र का सिरा। ३. अस्त्र की नोक या धार। ४. एक ही प्रकार की वस्तुओं या लोगों की वह श्रेणी या वर्ग जो क्रमिक उत्कृष्टता के विचार से बनाया गया हो। (ग्रेड) ५. किसी वाद-विवाद का पूर्व पक्ष। ६. किसी विचारणी या विवादग्रस्त बात के पक्ष और विपक्ष में कही जानेवाली हर तरह की बात या विचार। जैसे—इन सभी कोटियों में एक तत्त्व समान रूप से पाया जाता है। ७. उत्कृष्टता। ८. किसी ९॰ अंश के चाप के दो भागों में से एक। ९. किसी त्रिभुज या चतुर्भुज के आधार और कर्ण से भिन्न रेखा। १॰. राशि चक्र का तीसरा अंस या खंड। ११. असबर्ग नामक ओषधि। वि०=करोड़ (संख्या)।				 | 
			
			
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					कोटि-क्रम					 :
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					पुं० [ष० त०] १. विकास क्रम की दृष्टि से किसी वस्तु या विषय की बनाई या लगाई जाने हुई कोटियाँ या वर्ग। २. तर्क में विचार प्रकट करने का ढंग या प्रकार।				 | 
			
			
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					कोटि-च्युत					 :
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					वि० [पं० त०] १. (व्यक्ति) जो किसी ऊँची कोटि (या पद) से हटाकर निम्न कोटि में भेज दिया गया हो। २. जिसकी किसी कोटि से अवनति हुई हो। (डिग्रेडेड)				 | 
			
			
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					कोटि-ज्या					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] ग्रहों की स्पष्टता के लिए बनाये जाने वाले एक प्रकार के क्षेत्र का एक विशिष्ट अंश।				 | 
			
			
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					कोटि-तीर्थ					 :
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					पुं० [ब० स०] चित्रकूट का गंधमादन पर्वत पर का एक तीर्थ।				 | 
			
			
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					कोटि-परीक्षा					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] किसी विभाग के कर्मचारियों की ली जानेवाली वह परीक्षा जिसमें उत्तीर्ण होने पर वे ऊँची कोटि में रखे जाते हैं। (ग्रेड इग्जामिनेशन)				 | 
			
			
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					कोटि-बद्ध					 :
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					वि० [स० त०] १. किसी विशिष्ट कोटि में रखा हुआ। २. जो छोटी-बड़ी कोटियों में विभक्त हो। (ग्रेडेड)।				 | 
			
			
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					कोटि-बंध					 :
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					पुं० [स० त०] बहुत-सी वस्तुओं, व्यक्तियों या कार्यकर्त्ताओं को उनके महत्त्व, विकास-क्रम, वे तन आदि के अनुसार अलग-अलग कोटियों में बाँधना या स्थान देना। कोटियाँ स्थिर करना। (ग्रेडेशन)।				 | 
			
			
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					कोटिक					 :
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					वि० [संकोटि+क] १. कई करोड़। करोड़ों। २. बहुत अधिक। असंख्य।				 | 
			
			
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					कोटिफली (लिन्)					 :
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					पुं० [सं० कोटि-फल, ष० त०+इनि] गोदावरी के संगम के निकट का एक प्रसिद्ध तीर्थ।				 | 
			
			
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					कोटिशः (शस्)					 :
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					क्रि० वि० [सं० कोटि+शस्] अनेक प्रकार से। वि० असंख्य। बहुत अधिक।				 | 
			
			
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