शब्द का अर्थ
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					कोप					 :
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					पुं० [सं० कुप् (क्रोध करना)+घञ्] १. प्रायः किसी का दुराचार या दुष्कर्म देखकर मन को होनेवाला वह क्रोध जिसमें मनुष्य अपनापन भूल कर किसी को शाप या कठोर दंड देने पर उतारू होता है। २. क्रोध। गुस्सा। ३. दोष या मल का बिगड़ना। (वैद्यक)।				 | 
			
			
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					कोप-भवन					 :
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					पुं० [ष० त०] वह कमरा या स्थान जहाँ कोई मनुष्य कोप करके या रूठकर जा बैठे।				 | 
			
			
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					कोप-लता					 :
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					स्त्री० [सं० मध्य० स०] कनफोड़ा नाम की बेल।				 | 
			
			
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					कोपक					 :
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					वि० [सं०√कुप्+ण्वुल्-अक] १. कोप करनेवाला। २. कोप उत्पन्न करनेवाला।				 | 
			
			
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					कोपड़					 :
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					पुं० [देश] पाटा। हेंगा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कोपन					 :
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					पुं० [सं०√कुप्+युच्-अन] कुपित करना या होना।				 | 
			
			
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					कोपनक					 :
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					पुं० [सं० कोपन√कै (शब्द)+क] चोबा नामक गंध द्रव्य।				 | 
			
			
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					कोपना					 :
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					क्रि० अ० [सं० कोप] कोप या क्रोध करना। कुपित होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कोपयिष्णु					 :
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					वि० [सं०√कुप्+णिच्+इष्णुच् (बा)] कोप करनेवाला।				 | 
			
			
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					कोपर					 :
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					पुं० [सं० कपाल] वह बड़ा थाल जिसमें एक ओर पकड़ने के लिए कुंडा लगा रहता है। पुं० [हिं० कोपंल] डाल का पका हुआ आम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कोपल					 :
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					पुं० [सं० कुडमल, प्रा० कुम्पल, गु० कोंपल, मरा० कोंभ, कोंब] वृक्ष की नई तथा कोमल पत्ती।				 | 
			
			
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					कोपली					 :
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					वि० [हिं० कोपाल] कोपल के रंग का। कुछ कालापन लिये हुए लाल। पुं० उक्त प्रकार का रंग।				 | 
			
			
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					कोपिलाँस					 :
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					पुं० [हिं० कोपल] आम की गुठली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कोपी (पिन्)					 :
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					वि० [सं०√कुप्+णिनि] १. कोप करनेवाला। २. [सं० कोऽपि] कोई भी। पुं० १. जल के किनारे रहनेवाला एक पक्षी। २. संकीर्ण राग का एक भेद।				 | 
			
			
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					कोपीन					 :
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					पुं० =कौपीन।				 | 
			
			
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					कोप्तगर					 :
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					पुं० [सं०] लोहे की चीजों पर सोने-चांदी की पच्चीकारी करनेवाला।				 | 
			
			
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					कोप्तगरी					 :
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					स्त्री० [फा०] पीतल लोहे आदि के पात्रों पर सोने या चाँदी की पच्चीकारी करने का काम।				 | 
			
			
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					कोप्ता					 :
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					पुं० [फा० कोप्ता] मांस के कुटे अथवा दाल सब्जी आदि के पिसे हुए अंश को घी, तेल आदि में तलकर बनाया जानेवाला छोटा गोल पकवान जिसकी रसेदार तरकारी भी बनाई जाती है।				 | 
			
			
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