शब्द का अर्थ
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कोष्ठ :
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पुं० [सं०√कुश्+थन्] १. चारों ओर से घिरा हुआ स्थान। कोठा। २. शरीर के अन्दर का वह भाग, जिसमें कोई विशिष्ट क्रिया शक्ति हो। जैसे—आमाशय, पक्वाशय आदि। ३. वह स्थान जहां अन्न रखा जाय। भंडार। ४. कोश। खजाना। ५. चहारदीवारी। ६. पेट का मध्य भाग। उदर। ७. एक विशेष प्रकार की खुली अलमारी, जिसमें कागज-पत्र अलग-अलग रखने के लिए कबूतर के दरबे की तरह के बहुत से छोटे-छोटे खाने बने रहते हैं। ८. शरीर के अन्दर के छः छक्रों में से एक नाभि के पास है। ९. दे० ‘कोष्ठक’। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
कोष्ठ-बद्ध :
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वि० [स० त०] १. कोष्ठ में बन्द। २. पेट में रुका हुआ। (मल)। |
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कोष्ठ-बद्धक :
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वि० [सं० कोष्ठबंधक] मल को पेट में रोक रखनेवाला। मलावरोधक। कब्जियत करनेवाला। (कांस्टिपेटिव) |
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कोष्ठ-शुद्धि :
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स्त्री० [ष० त०] पेट में रुका मल निकल जाने पर पेट का साफ होना। |
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कोष्ठक :
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पुं० [सं० कोष्ठ+कन्] १. दीवार आदि से घिरा हुआ स्थान। कोठा। २. भंडार। ३. () और [] {} चिन्हों में से कोई एक जिसमें अंक, शब्द पद आदि विशेष स्पष्टीकरण के लिए संकेत रूप में अथवा ऐसे ही किसी और उद्देश्य से रखे जाते हैं। (ब्रैकेट) ४. दे० ‘सारिणी’। |
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कोष्ठपाल :
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पुं० [सं० कोष्ठ√पाल् (रक्षा करना)+णिच्+अच्] किसी नगर या स्थान की रक्षा करनेवाला अधिकारी। |
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कोष्ठबद्धता :
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स्त्री० [सं० कोष्ठबद्ध+तल्-टाप्] पेट में मल जमा हो कर रुके रहने का रोग, जिसमें पाखाना नहीं होता अथवा बहुत कम तथा कठिनाई से होता है। मलावरोधक। (कांस्टिपेशन)। |
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कोष्ठागार :
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पुं० [सं० कोष्ठ-आगार, उपमि० स०] १. भंडार। २. कोषागार। |
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कोष्ठागारिक :
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पुं० [सं० कोष्ठागार+ठन्-इक] १. भंडारी। २. कोषाध्यक्ष। खजांची। |
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कोष्ठाग्नि :
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स्त्री० [सं० कोष्ठ-अग्नि, मध्य० स०] पेट में रहनेवाली वह अग्नि या शक्ति जिसमें भोजन पचता है। जठराग्नि। |
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कोष्ठी :
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स्त्री० [सं० कोष्ठ+ङीष्] जन्मपत्री। (दे०) |
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