शब्द का अर्थ
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					कोह					 :
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					पुं० [सं० क्रुद्द, कुढ्ढ० क्रुष्ट, गु० कूट, पा० कोधौ, प्रा० कोहो, उ० कोहा] क्रोध। गुस्सा। पुं० [फा] पर्वत। पहाड़। पुं० [सं० कुकुम, प्रा० कउह] अर्जुन वृक्ष।				 | 
			
			
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					कोह-आदम					 :
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					पुं० [फा०] लंका के एक पहाड़ की वह चोटी जिस पर चरण चिन्ह बने है और जिसमें बौद्ध मुसलमान तथा हिंदू अपने-अपने विश्वास के अनुसार पवित्र तीर्थ मानते हैं।				 | 
			
			
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					कोहकन					 :
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					वि० [फा०] १. पर्वत खोदनेवाला। २. लाक्षणिक रूप में बहुत बड़ा अथवा कठोर परिश्रम का काम करनेवाला।				 | 
			
			
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					कोहकाफ					 :
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					स्त्री० [फा० कोह=पहाड़+अं० काफ] युरोप और एशिया के बीच का काकेशस पर्वत।				 | 
			
			
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					कोहँड़ा					 :
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					पु०=कुम्नहड़ा।				 | 
			
			
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					कोहँड़ौरी					 :
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					स्त्री०=कुम्हडौरी।				 | 
			
			
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					कोहनी					 :
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					स्त्री० [सं० कफोणि] १. बाँह के बीच का वह जोड़ जहां से हाथ और कलाई मुड़कर ऊपर उठती है। २. हुक्के की निगाली में लगाई जानेवाली धातु की टेंढ़ी नली। ३. यंत्रों आदि में समकोण बनाने वाले दो नलों के बीच में मिलाने वाला टुकड़ा। (एल्बो)				 | 
			
			
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					कोहनी-उड़ान					 :
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					स्त्री० [हिं० कोहनी+उड़ान] कुश्ती के एक पेंच जिसमें कोहनी के झटके से प्रतिद्वंद्वी के हाथ पकड़कर रद्दा लगाया जाता है।				 | 
			
			
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					कोहनूर					 :
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					पुं० [फा० कोह+अं० नूर] १. भारत का एक प्रसिद्ध पुराना हीरा, जो अब इंग्लैण्ड के शाही ताज में लग गया है और कटता-कटता बहुत कुछ छोटा रह गया है। २. एक प्रकार का बढ़िया आम।				 | 
			
			
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					कोहबर					 :
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					पुं० [सं० कोष्ठवर] वह स्थान, जहाँ शुभ अवसरों पर कुल-देवता बैठाए या स्थापित किये जाते हैं। विवाह के समय जहाँ कई प्रकार की लौकिक रीतियाँ होती हैं।				 | 
			
			
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					कोहर					 :
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					पुं० [सं० कुहर] कूआँ। कूप।				 | 
			
			
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					कोहरा					 :
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					पुं० [सं० कुही या कुहेड़ी] वायु-मंडल में मिले हुए जल के वे सूक्ष्म कण जो पृथ्वी तल से कुछ ऊपर उठकर भाप के रूप में जम जाते और धूएँ के रूप में दिखाई देते हैं। (फॉग)।				 | 
			
			
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					कोहराम					 :
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					पुं० [अ० कहरआ से फा] १. कोई अनर्थकारी, दुखद या शोक-जनक घटना देख या बात सुनकर होनेवाला रोना-पीटना या विलाप। २. बहुत अधिक हल्ला-गुल्ला।				 | 
			
			
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					कोहरी					 :
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					स्त्री० [देश] उबाले या तले हुए चने आदि की घूँघरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कोहल					 :
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					पुं० [सं०√कुह (विस्मित करना)+कलच्, गुण] १. नाट्य-शास्त्र में प्रणेता एक मुनि, जिन्होंने सोमेश्वर से संगीत सीखा था। २. जौ की शराब। ३. एक प्रकार का पुराना बाजा।				 | 
			
			
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					कोहा					 :
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					पुं० [सं० कोश=पात्र] ईख का रस,काँजी आदि रखने का बड़ा पात्र। नाँद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कोहान					 :
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					पुं० [फा०] ऊँट की पीठ पर का डिल्ला। कूबड़।				 | 
			
			
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					कोहाना					 :
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					अ० [हिं०कोह=क्रोध] १. क्रोध करना। नाराज होना। बिगड़ना। २. मान करना। रूठना। उदाहरण—तुम्हहिं कोहाब परम प्रिय अहई।—तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कोहाँर					 :
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					पुं० =कुम्हार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					कोहिल					 :
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					पुं० [देश] [स्त्री० कोही] नर शाही बाज।				 | 
			
			
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					कोहिस्तान					 :
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					पुं० [फा०] पर्वतीय प्रदेश। पहाड़ी इलाका।				 | 
			
			
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					कोहिस्तानी					 :
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					वि० [फा०] पर्वतीय। पहाड़ी।				 | 
			
			
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					कोही					 :
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					वि० [हिं० कोह-क्रोध] क्रोध करनेवाला। क्रोधी। गुस्सेवर। वि० [फा०] पर्वतीय। पहाड़ी। स्त्री० [देश] एक प्रकार का बाज पक्षी की मादा।				 | 
			
			
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