शब्द का अर्थ
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गंधा :
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वि० स्त्री० [सं०√गंध+णिच्+अच्-टाप्] गंध से युक्त। (यौं० शब्दों के अंत में) जैसे-रजनी गंधा।, मत्स्य गंधा। |
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गंधाजीव :
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पुं० [सं० गंध-आ√जीव् (जीना)+अच्] इत्र, तेल आदि बनाने और बेचनेवाला, गंधी। |
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गंधाज्ञ :
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वि० [सं० गंध-अज्ञ, ष० त० ] [भाव० गंधाज्ञता] १. (व्यक्ति) जिसे गंध का अनुभव न होता हो। २. (व्यक्ति) जो गंधों के प्रकार या स्वरूप न जानता हो। जो यह न बतला सकता हो कि यह गंध किस चीज की या किस प्रकार की है। |
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गंधाज्ञता :
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स्त्री० [सं० गंधाज्ञ+तल्-टाप्] =गंध-नाश। (दे०)। |
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गंधाढ्य :
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वि० [गंध-आढ्य,तृ० त० ] जिसमें बहुत अधिक खुशबू या सुगंध हो। पुं० १. चंदन। २. नारंगी का वृक्ष। ३. एक प्रकार का गंध-द्रव्य। ४. कई प्रकार के पौधों की संज्ञा। |
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गंधाना :
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पुं० [हिं० गंधन] रोला छंद का एक नाम। अ० [हिं० गंध] किसी पदार्थ में से गंध या महक का फैलना। गंध छोड़ना या देना। स० गंध या महक फैलाना। |
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गंधानुवासन :
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पुं० [गंध-अनुवासन, तृ० त०] किसी चीज को सुगंधि से युक्त करना। सुवसित करना। |
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गंधाबिरोजा :
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पुं० [हिं० गंध+बिरोजा] चीड़ या साल नामक वृक्ष का गोंद या निर्यास जो प्रायः फोड़े-फुसियों पर लगाया जाता है। चंद्रस। |
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गंधाम्ला :
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स्त्री० [गंध-अम्ल,ब० स०] जंगली नीबू। |
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गंधार :
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पुं० [सं० गंध√ऋ (गति)+अण्] १. भारत के उस पश्चिमोंत्तर प्रदेश का पुराना नाम जो तक्षसिला में कुनड़ या चित्राल नदी तक था। २. दे० ‘गांधार’। |
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गंधारी :
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स्त्री० =गांधारी। |
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गंधालिका :
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स्त्री० [स०] उड़ने तथा डंक मारनेवाला उन छोटे-छोटे कीड़ों का वर्ग जिसमें बर्रे, भौरें मधुमक्खियाँ आदि सम्मिलित हैं। (वास्प) |
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गंधाली :
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स्त्री० [सं० गंध-आली, ब० स०] गंधप्रसारिणी लता। |
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गंधालु :
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वि० [सं०√गंध्+आलुच्] १. खुशबूदार। २. सुवासित। |
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गंधाशन :
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पुं० [गंध-अशन, ब० स०] वायु। हवा। |
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गंधाश्मा(श्मन्) :
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पुं० [मध्य० स०] गंधक। |
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गंधाष्टक :
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पुं० [गंध-अष्टक, ष० त० ] आठ प्रकार के गंधो के मेल से बना हुआ गंध। अष्ट गंध। |
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