शब्द का अर्थ
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					गोड़					 :
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					पुं० [सं० गम, गो] १. पाँव। पैर। (पूरब)। क्रि० प्र० –दबाना। मुहावरा-(किसी के) गोड़ पड़ना या लगनाचरण छूना। प्रणाम करना। गोड़ भरना-पैरों में आलता या महावर लगाना। २. टाँग। ३.जहाज के लंगर का फाल जिसके सहारे वह जमीन पर टिकता या ठहरता है। पुं० [?] भड़भूँजों की एक जाति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					गोड़-सँकर					 :
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					पुं० [हिं० गोड़+साँकर] पैरों में पहनने का एक प्रकार का गहना।				 | 
			
			
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					गोड़-सिहा					 :
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					वि० [हिं० गोड़+सिहाना-ईर्ष्या करना] सिहाने अर्थात् डाह करनेवाला। ईर्ष्यालु।				 | 
			
			
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					गोड़-हरा					 :
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					पुं० [हिं० गोड़+हरा (प्रत्यय)] पैर में पहनने का कोई गहना। जैसे–कड़ा, पाजेब आदि।				 | 
			
			
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					गोड़इत					 :
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					पुं० [हिं० गोइँड़+ऐत(प्रत्यय)] १.मध्ययुग में चिट्ठियाँ आदि ले जानेवाला हरकारा। २. आज-कल गाँव देहातों में पहरा देनेवाला राजकीय चौकीदार।				 | 
			
			
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					गोड़ई					 :
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					स्त्री० [हिं० गोड़+पाई] करघे की वे लकड़ियाँ जो पाई करने में पाई के दोनों ओर खड़ी की जाती है। (जुलाहे)। स्त्री० गोड़ाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					गोड़गाव					 :
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					पुं० [हिं० गोड़-पैर+गाव] वह छोटी रस्सी जिसे गिरावँ की तरह बनाकर और पिछाड़ीवाली रस्सी के सिरों पर बाँधकर घोड़े के पिछले पैर में फँसाते हैं।				 | 
			
			
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					गोड़न					 :
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					पुं० [देश०] वह प्रक्रिया जिससे ऐसी मिट्टी से भी नमक बनाया जा सकता है जो नोनी नहीं होती।				 | 
			
			
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					गोड़ना					 :
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					स० [हिं० कोड़ना] फावड़े से अखाड़े, खेत आदि की मिट्टी इस प्रकार खोदना तथा उसे उलट-पलट करना कि वह पोली, भुरभुरी और मुलायम हो जाए।				 | 
			
			
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					गोड़ली					 :
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					उभय० [कर्णाटी] वह जो संगीत विशेषतः नृत्य में पारंगत हो।				 | 
			
			
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					गोड़वाना					 :
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					स० [हिं० गोड़ना का प्रे०] दूसरे को खेत आदि में गोड़ने में प्रवृत् करना। गोडने का काम दूसरे से कराना।				 | 
			
			
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					गोड़वाँस					 :
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					पुं० [हिं० गोड़-पैर+वाँस(प्रत्यय)] पैर विशेषतः पशुओं के पैर बाँधने की रस्सी।				 | 
			
			
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					गोड़ा					 :
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					पुं० [हिं० गोड़-पैर] १. चौकी, तिपाई, पलंग आदि का पाया। २. वह रस्सी जिसमें पानी सींचने की दौरी बाँधी जाती है। ३. वृक्ष का थाँवला या थाला।				 | 
			
			
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					गोड़ाई					 :
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					स्त्री० [हिं० गोडना] गोड़ने की क्रिया, भाव या मजदूरी।				 | 
			
			
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					गोड़ाँगी					 :
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					स्त्री० [हिं० गोड़+अंगी] १. पायजामा। २. जूता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					गोड़ाना					 :
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					स० [हिं० गोड़ना का प्रे०] खेत आदि की गोड़ाई दूसरे आदि से कराना। अ० खेत आदि का गोड़ा जाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					गोड़ापाई					 :
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					स्त्री० [हं० गोड़ना+पाई (जुलाहों की)] बार-बार कहीं आते जाते रहना।				 | 
			
			
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					गोड़ारी					 :
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					स्त्री० [हिं० गोड़-पैर+आरी (प्रत्य)] १. खाट, पलंग आदि का वह भाग जिधर पैर रखे जाते हैं। पैताना। २. जूता। स्त्री० [हिं० गोड़ना ?] तुरंत खोदकर निकाली हुई घास।				 | 
			
			
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					गोड़िया					 :
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					स्त्री० [हिं० गोड़=पैर का अल्पा०] १. छोटा गोड़ा। २. छोटा पैर। वि० पुं० [हिं० गोटी ?] तरह-तरह की युक्तियाँ लगाने और जोड़-तोड़ बैठानेवाला। काइयाँ। चालाक। पुं० [?] १. मल्लाह। २. सँपेरा। उदाहरण–कलपै अकबर काय, गुण पूंगीधर गोड़िया।–दुरसाजी।				 | 
			
			
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					गोड़ी					 :
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					स्त्री० [हिं० गोटी] किसी युक्ति के फलस्वरूप उत्पन्न ऐसी स्थिति जिसमें कुछ लाभ की संभावना हो। प्राप्ति का डौल। मुहावरा–गोड़ी जमना या बैठनाफायदे के लिए जो चाल चली गई हो उसका सफल होना। गोड़ी हाथ से जानाउक्त प्रकार का प्रयत्न विफल होना। स्त्री० =गोड़ (चरण या पैर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) मुहावरा–(कहीं किसी की) गोड़ी आना या पड़नाकिसी का कहीं आकर उपस्थिति होना या पहुँचना।				 | 
			
			
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