शब्द का अर्थ
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					ग्राम्य					 :
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					वि० [सं० ग्राम+यत्] १. गाँव से संबंध रखनेवाला। गाँव का। जैसे–ग्राम्य-गीत, ग्राम्य-सुधार। २. गाँव में रहने या पाया जानेवाला। ३. ग्रामवासियों के रीति-रिवाज, स्वभाव, व्यवहार आदि से संबंध रखनेवाला। जैसे–ग्राम्य व्यवहार। ४.जो ग्रामवासियों की प्रकृति, स्वभाव, व्यवहार आदि का सा हो। असभ्य या अरुचिपूर्ण। ५. अश्लील। ६. जिसमें किसी प्रकार का संशोधन या सुधार न हुआ हो। अनमढ़ और प्रकृत। ७. (जीव या पशु) जो पाला पोसा और गाँव या बस्ती में रखा गया हो अथवा रहता आया हो। जैसे–कुत्ता, गधा, गौ आदि ग्राम्य पशु। पुं० १. अनाड़ी। बेवकूफ। मूर्ख। २. मैथुन की एक मुद्रा या रतिबंध। ३. काव्य का एक दोष, जो किसी साहित्यिक रचना में (क) गँवारू शब्दों के प्रयोग अथवा (ख) गँवारू विषयों के वर्णन के कारण उत्पन्न माना गया है। ४. यह शब्दगत और अर्थगत दो प्रकार का होता है। ४. अशिष्ट और अश्लीलतापूर्ण कथन या बात। ५. स्त्री-प्रसंग। मैथुन। ६. मिथुन राशि।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					ग्राम्य-देवता					 :
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					पुं० [कर्म० स०]==ग्रामदेवता।				 | 
			
			
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					ग्राम्य-दोष					 :
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					पुं० [कर्म० स० ] काव्य का ग्राम्य नामक दोष। ( दे० ‘ग्राम्य’)।				 | 
			
			
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					ग्राम्य-धर्म					 :
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					पुं० [ष० त०] मैथुन। स्त्री० प्रसंग।				 | 
			
			
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					ग्राम्य-पशु					 :
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					पुं० [कर्म० स०] पालतू जानवर।				 | 
			
			
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					ग्राम्य-मृग					 :
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					पुं० [कर्म० स०] कुत्ता।				 | 
			
			
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					ग्राम्य-वल्लभा					 :
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					स्त्री० =ग्राम-वल्लभा।				 | 
			
			
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					ग्राम्या					 :
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					स्त्री० [सं० ग्राम्य+टाप्] १.नील का पौधा। २.तुलसी।				 | 
			
			
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