शब्द का अर्थ
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					चंग					 :
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					वि० [सं०√चंक् (तृप्त होना)+अच्, नि० सिद्धि] १. दक्ष। कुशल। २. स्वस्थ। तंदुरुस्त। ३. सुन्दर। स्त्री० [फा०] १. डफ की तरह का एक प्रकार का बाजा। २. बड़ी गुड्डी। पतंगा। मुहावरा–(किसी की) चंग उमहना या चढ़ना=(क) किसी बात की अधिकता पर जोर देना। (ख) किसी व्यक्ति का प्रताप या वैभव बढा हुआ होना। (ग) किसी व्यक्ति की इच्छा पूरी करने वाली बात होना या ऐसी बात का अच्छा अवसर मिलना। उदाहरण–त्यों पद्याकर दीन्ह मिलाइ कौ चंग चबाइन की उमही है।-पद्याकर। (किसी को) चंग पर चढ़ाना=कोई काम करने के लिए किसी को बहुत अधिक बढ़ावा देना। मिजाज या हौसला बढ़ाना। ३. बीन,सितार आदि बाजों का ऊँचा या चढ़ा हुआ स्वर। ४. गंजीफे के आठ रंगों में से एक। ५. तिब्बत में होनेवाला एक प्रकार का जौ। ६. भूटान में बननेवाली एक प्रकार के जौ की शराब।				 | 
			
			
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					चँगना					 :
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					स० [फा०चंग या तंग] १.कसना। खींचना। २. तंग परेशान करना।				 | 
			
			
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					चंगबाई					 :
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					स्त्री०[हिं० चंग+बाई] एक वात रोग जिसमें हाथ, पैर आदि जकड़ जाते हैं।				 | 
			
			
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					चंगला					 :
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					स्त्री० [सं०?] एक रागिनी जो मेघराग की पुत्रवधू कही गयी है।				 | 
			
			
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					चंगा					 :
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					वि० [सं०प्रा० चंग, बं० चाना, कन्न० चांगु,पं० चंगा,सि० चंगी, गु० चाँगी; मरा० चांग, चांगलें] [स्त्री० चंगी] १. तंदुरुस्त। नीरोग। स्वस्थ्य। जैसे–रोगी को चंगा करना। २. अच्छा। उत्तम। बढिया या श्रेष्ठ। जैसे–चंगा खेल, चंगा विचार। ३. निर्विकार और पवित्र। शुद्ध। जैसे–मन चंगा तो कठौती में गंगा। (कहा०) अव्यय [पं०] अच्छा।				 | 
			
			
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					चंगु					 :
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					पुं० [हिं० चौ=चार+अंगु] १. चंगुल। (दे०) २. पकड़ रखने की क्रिया या भाव। पकड़। ३. अधिकार। वश।				 | 
			
			
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					चंगुल					 :
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					पुं० [हिं० चौ=चार+अंगुल वा० फा० चंगाल] १. पक्षियों (जैसे कौआ, चील आदि) तथा पशुओं (जैसे–चीते, शेर आदि) का टेढ़ा पंजा जिससे वे किसी पर प्रहार करते अथवा कोई चीज पकड़ते हैं। २. हाथ की उँगलियों को हथेली की ओर कुछ झुकाने पर बननेवाली एक विशिष्ट मुद्रा जो कोई चीज पकड़ने के समय स्वभावतः बन जाती है। जैसे–एक चंगुल आटा उठा लाओ। ३. किसी व्यक्ति के प्रभाव अथवा वश में होने की वह स्थिति जिसमें से निकलना सहज न हो। मुहावरा–(किसी के) चंगुल में फँसना=पूरी तरह से किसी के अधिकार या वश में पड़ना या होना।				 | 
			
			
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					चँगेर					 :
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					स्त्री० [सं० चंगेरिका] १. बाँस की खमाचियों की बनी हुई छोटी डलिया जिसमें फल, फूल, मिठाइयाँ आदि रखते हैं। २. धातु आदि का बना हुआ उक्त प्रकार का पात्र। ३. पानी भरने की चमड़े की मशक। पखाल। ४. पालने की तरह की वह टोकरी जिसमें बच्चे लेटाकर झुलाये और सुलाये जाते हैं।				 | 
			
			
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					चँगेरा					 :
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					पुं० [स्त्री० चँगेरी] बड़ी चँगेर।				 | 
			
			
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					चंगेरिक					 :
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					पुं० [सं०?] [स्त्री० चंगेरिका ?] बड़ी चँगेर। टोकरा। डला।				 | 
			
			
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					चँगेरी					 :
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					स्त्री० =चँगेर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चँगेल					 :
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					स्त्री० [देश०] खँडहरों आदि में होनेवाली एक प्रकार की घास। स्त्री=चँगेर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चँगेली					 :
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					स्त्री=चँगेर।				 | 
			
			
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