शब्द का अर्थ
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					चका					 :
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					पुं० [सं० चक्र] १. पहिया। २. चक्क।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=चकवा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चका-चौंबंद					 :
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					वि०=चाक-चौबंद।				 | 
			
			
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					चकाकेवल					 :
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					स्त्री० [हिं० चकवा, चक्का] काले रंग की मिट्टी जो सूखने पर चिटक जाती और पानी से लसदार होती है। यह कठिनता से जोती जाती है।				 | 
			
			
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					चकाचक					 :
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					स्त्री० [अनु०] तलवार आदि के लगातार शरीर पर पड़ने का शब्द। क्रि० वि० [अनु०] अच्छी तरह से। अधिक मात्रा में। जैसे–चकाचक खाया था। वि० १. चटकीला। २. मजेदार। ३. रस आदि में डूबा हुआ। तर। तराबोर।				 | 
			
			
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					चकाचौंध					 :
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					स्त्री० [सं० चक्र=चमकना+चौ=चारों ओर+अंध] १. किसी वस्तु के अत्यधिक प्रकाशित होने की वह स्थिति जिसमें नेत्र अधिक प्रकाश के कारण उस वस्तु को देख न पाते हों और जल्दी-जल्दी खुलने तथा बंद होने (झपकने) लगते हों। २. उक्त प्रकार की वस्तुओं के देखने से आँखों पर होनेवाला परिणाम। क्रि० प्र०=लगना।-होना।				 | 
			
			
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					चकाचौंधी					 :
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					स्त्री०=चकाचौंध।				 | 
			
			
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					चकाड़ूँ					 :
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					पुं० [हिं० चक+आँड़] चिपटा अँडकोश।				 | 
			
			
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					चकातरी					 :
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					पुं० [देश०] एक प्रकार का वृक्ष।				 | 
			
			
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					चकाना					 :
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					अ०- १. =चकपकाना। २. =चकराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					चकाबू					 :
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					पुं० [सं० चक्रव्यूह] १. प्राचीन काल में युद्ध के समय किसी वस्तु या व्यक्ति को सुरक्षित रखने के लिए उसके चारों ओर खड़ा किया जानेवाला सैनिक व्यूह। २. भूल-भुलैया। (दे०)।				 | 
			
			
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					चकार					 :
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					पुं० [सं० च+कार] १. वर्णमाला में छठा व्यंजन वर्ण जो च है। २. मुँह से निकलने वाला किसी प्रकार का शब्द। जैसे–उसके मुँह से चकार तक न निकला। पुं० [हिं० चोर का अनु०] चोर या उचक्का। जैसे–चाई-चकार चोर और नटखट चोरे बदे।-तेगअली।				 | 
			
			
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					चकावल					 :
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					स्त्री० [देश०] घोड़े के अगले पैर में गामचे की हड्डी का उभार।				 | 
			
			
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					चकासना					 :
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					अ०=चमकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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