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चमड़ा  : पुं० [सं० चर्म] १. पशुओं और मनुष्यों के सारे शरीर का वह ऊपरी आवरण जिससे मांस और नसें रुकी रहती हैं और जिस पर प्रायः रोएँ उगे रहते हैं। त्वचा। (स्किन) २. मरे हुए पशुओं अथवा पशुओं को मारकर उनकी उतारी हुई खाल को छील तथा सिझाकर औद्योगिक कार्यों के लिए तैयार किया हुआ उसका रूप। (हाइड)। मुहावरा–चमड़ा उधेड़ना या खींचना=चमड़े को शरीर से अलग करना। चमड़ा सिझाना (क) चमड़े को बबूल की छाल, सज्जी, नमक आदि के पानी में डालकर मुलायम करना। (ख) लाक्षणिक रूप में बहुत अधिक मारना या पीटना। ३. छाल। छिलका।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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