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चरन  : पुं० दे० ‘चरण’। (‘चरन’ के यौं० के लिए दे० ‘चरण’ के यौ०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०[?] कौड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चरन-धरन  : पुं० [सं० चरण+हिं० धरना] खड़ाऊँ। उदाहरण–चरन धरन तब राजै लीन्हा।-जायसी।
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चरनंग  : पुं० [सं० चरण-अंग] चरण। पैर। उदाहरण–चरनंग बीर तल बज्जइय, सबर जोर जम दढ्ढ कसि।-चन्दबरदाई।
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चरनचर  : पुं० [सं० चरणचर] पैदल चलनेवाला दूत या सिपाही।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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चरनदासी  : स्त्री० =चरण-दासी।
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चरनबरदार  : पुं० [सं० चरण+फा० बरदार] वह नौकर जो बड़े आदमियों को जूते पहनाता, उतारना, लाता ले जाता तथा यथास्थान रखता हो।
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चरना  : अ० [सं० पा० चरति, प्रा० चरण, बँ० चरा, उ० चरिबा, पं० चरना, सि० चरणु, गु० चरबूँ, ने० चर्नु, मरा० मि० फा० चरीदन] १. पशुओं का घास आदि खाने के लिए खेतों और मैदानों में फिरना। जैसे–मैदान में गौएँ चर रही हैं। मुहावरा–अक्ल का चरने जानादे दे० ‘अक्ल’ के मुहा। २. इधर-उधर घूमना-फिरना या चलना। विचरण करना। स० १. पशुओं का खेतों आदि में उगी हुई घास, पौधे आदि खाना। जैसे–घोड़े घास चर रहे हैं। २. (व्यक्तियों का) अभद्रतापूर्वक तथा जल्दी-जल्दी खाना। पुं० [?] काछा। क्रि० प्र० -काछना। ३. सुनारों का वह औजार जिससे वे नक्काशी करते समय सीधी लकीरें बनाते हैं। चरनायुध
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चरनि  : स्त्री० [सं० चर=गमन] चाल। गति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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चरनी  : स्त्री० [हिं० चरना] १. पशुओं के चरने का स्थान। चरी। चरागाह। २. वह नाँद या बड़ा पात्र अथवा पात्र के आकार की रचना जिसमें पशुओं को चारा खिलाया जाता है। ३. पशुओं के खाने की घास आदि। चारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चरन्नी  : स्त्री० [हिं० चार+आना] चवन्नी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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