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चर्च  : पुं० [अं०] १.वह मंदिर जिसमें मसीही प्रार्थना करते हैं। गिरजा। २. मसीही धर्म की कोई शाखा या संप्रदाय। पुं०=चर्चन।
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चर्चक  : वि० [सं०√ चर्च (बोलना)+ण्वुल्-अक] चर्चा करनेवाला।
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चर्चन  : पुं०[सं०√चर्च+ल्युट-अन] १.चर्चा करने की क्रिया या भाव। २. चर्चा। ३. लेप लगाना। लेपन।
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चर्चर  : वि० [सं०√चर्च+अरन्] गमनशील। चलनेवाला। चर।
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चर्चरिका  : स्त्री०[सं०चर्चरी+कन्-टाप्-ह्रस्व] नाटक में वह गीत जो दर्शकों के मनोरंजन के लिए दो अंकों के बीच में अर्थात् ऐसे समय में होता है जब कि रंगमंच पर अभिनय नहीं होता।
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चर्चरी  : स्त्री० [सं० चर्चर+ङीष्] १. एक प्रकार का वर्ण-वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में रगण, सगण, दो जगण, भगण और तब फिर रगण (र, स, ज, भ, र) होता है। २. वसंत या होली के दिनों में गाया जानेवाला चाँचर नामक गीत। ३. होली की धूम-धाम और हुल्लड़। ४. ताली बजने या बजाने का शब्द। ५. ताल के ६॰ मुख्य भेदों में से एक। (संगीत)। ६. प्राचीन काल का एक प्रकार का ढोल। ७. आमोद-प्रमोद के समय की जानेवाली कीड़ा। ८. नाच-गाना। ९. दे० ‘चर्चरिका’।
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चर्चरीक  : पुं० [सं०√चर्च् (ताड़ना)+ईकन्, नि० सिद्धि] १. महाकाल भैरव। २. साग-भाजी। तरकारी। ३. सिर के बाल गूँथना या बनाना। केश-विन्यास।
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चर्चस  : पुं० [सं०√चर्च्+असुन्] कुबेर की नौ निधियों में से एक।
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चर्चा  : स्त्री० [सं०√चर्च्+णिच्+अङ-टाप्] १. किसी विषय पर या व्यक्ति के संबंध में होनेवाली बात-चीत। जिक्र। वार्तालाप। २. बहुत से लोगों में फैली हुई ऐसी बात जिसके संबंध में प्रायः सभी लोग कुछ न कुछ कहते हों। ३. किसी प्रकार का कथन या उल्लेख। ४. विचारपूर्वक किसी बात के सब पक्षों पर होनेवाला विचार। जैसे–आज की गोष्ठी में इन्हीं विषयों पर चर्चा हो सकती है। ५. किवंदती। अफवाह। ६. किसी चीज के ऊपर कोई गाढ़ी चीज पोतना, लगाना या लेपना। लेपन। ७. गायत्री रूपा महादेवी। ८. दुर्गा।
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चर्चिक  : वि० [सं० चर्चा+ठन्-इक] वेद आदि जाननेवाला।
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चर्चिका  : स्त्री० [सं० चर्चा+कन्-टाप्, इत्व] १. चर्चा। जिक्र। २. दुर्गा। ३. एक प्रकार का सेम।
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चर्चित  : भू० कृ० [सं० चर्च्+क्त] १. चर्चा के रूप में आया हुआ। २. जिसकी चर्चा की गई हो या हुई हो। ३. जो लेप के रूप में ऊपर से पोता या लगाया गया हो। जैसे–चंदनचर्चित ललाट या शरीर।
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