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चलन  : पुं० [सं०√चल्+ल्युट-अन] १. गति। चाल। २. कंपन। ३. चरण। पैर। ४. हिरन। ५. ज्योतिष में विषुवत् की वह गति जिससे दिन और रात दोनों बराबर रहते हैं। ६. नृत्य में एक प्रकार की चेष्टा या मुद्रा। पुं० [हिं० चलना] १.चलने की अवस्था, क्रिया या भाव। गति। चाल। २. प्रचलित रहने की अवस्था या भाव। प्रचलन। जैसे–कपड़े या सिक्के का चलन। ३. आचार-व्यवहार आदि से संबंध रखने वाली प्रथा। रीति। रिवाज। ४. अच्छा आचरण या व्यवहार। जैसे–जो चलन से रहेगा, उसे कभी कोई कष्ट न होगा।
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चलन-कलन  : पुं० [तृ० त०] ज्योतिष में एक प्रकार का गणित जिसके द्वारा पृथ्वी की गति के अनुसार दिन-रात के घटने-बढ़ने का हिसाब लगाया जाता है।
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चलन-समीकरण  : पुं० [ष० त०] गणित में एक प्रकार की क्रिया। दे० ‘समीकरण’।
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चलनदारी  : स्त्री० [हिं० चलन+दरी] वह स्थान जहाँ यात्रियों को पुण्यार्थ जल पिलाया जाता हो। पौसरा।
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चलनसार  : वि० [हिं० चलन+सार (प्रत्यय)] १. जिसका उपयोग, प्रचलन या व्यवहार हो रहा हो। जैसे–चलनसार सिक्का। २. जो बहुत दिनों तक चल सके अर्थात् काम में आ सके। जैसे–चलनसार धोती।
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चलनहार  : वि० [हिं० चलना+हार (प्रत्य)] १. जो अभी चलने को उद्यत या प्रस्तुत हो। २. जो अभी चल रहा हो। चलनेवाला। ३. दे० ‘चलनसार’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चलना  : अ० [सं० चलन] १. पैरों की सहायता से जीव-जंतुओं का एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने के लिए आगे बढ़ना। जैसे–आदमियों या घोड़ों का चलना। मुहावरा–चल देना=(क) कोई स्थान छोड़कर वहाँ से दूर होना या हट जाना। (ख) बिना कुछ कहे-सुने या चुपके से खिसक या हट जाना। जैसे–वह लड़का मेरे सब कपड़े लेकर चल दिया। चल पड़ना=चलना आरंभ करना। जैसे–सबेरा होते ही यात्री चल पड़े। २. पहियों आदि की सहायता से अथवा किसी प्रकार किसी ओर अग्रसर होना या बढ़ना। जैसे–गाड़ी या जहाज का चलना, मछली या साँप का चलना। ३. किसी प्रकार की गति से युक्त होकर आगे बढ़ना। गति में होना। जैसे–आँधी या हवा चलना, ग्रहों या नक्षत्रों का चलना। ४. किसी प्रकार की गति से युक्त होकर या हिलते-डोलते हुए कोई कार्य संपन्न या संपादित करना। जैसे–घड़ी,नाड़ी या यंत्र चलना। ५. कोई काम करते हुए उसमें आगे की ओर बढ़ना। उन्नति करना। अग्रसर होना। मुहावरा–(किसी व्यक्ति का) चल निकलना=किसी काम या बात में तत्परतापूर्वक लगे रहकर औरों से कुछ आगे बढ़ना या उन्नति करना। जैसे–थोड़े ही दिनों में वह संस्कृत पढ़ने (या दस्कारी सीखने) में चल निकलेगा। (किसी काम या बात का) चल निकलना उन्नति, वृद्धि आदि के मार्ग पर आगे बढ़ना। जैसे–रोजगार (या वकालत) चल निकलना। ६. उचित या साधारण गति से क्रियाशील रहना। सक्रिय रहना या होना। जैसे–(क) लिखने में कलम चलना। (ख) कारखाना या दूकान चलना। (ग) बिना कहीं अटके या रुके बराबर बढ़ते चलना। ७. किसी कार्य, बात या स्थिति का उचित रूप से निर्वाह या वहन होना। काम निकलना या होता रहना। जैसे–(क) इतने रुपयों से काम नहीं चलेगा। (ख) यह लड़का चौथे दरजे में चल जायगा। मुहावरा–पेच चलना=खाने-पीने का सुभीता होता रहना। जीविका-निर्वाह होना। जैसे–इसी मकान के किराये से उनका पेट चलता है। ८. किसी चीज का ठीक तरह से उपयोग या व्यवहार में आते रहना। बराबर काम देते रहना। जैसे–(क) यह कपड़ा तो अभी बरसों चलेगा। (ख) बुढा़पे के कारण अब उनका शरीर नहीं चलता। (ग) पाकिस्तानी नोट और रुपए भारत में नहीं चलते। ९. शरीर के किसी अंग का अपने कार्य में प्रवृत्त या रत होना। जैसे–जबान या मुँह चलना अर्थात् जबान या मुँह से बातें निकलना; मुँह चलना अर्थात् मुँह से खाने या चबाने की क्रिया होना, हाथ चलना अर्थात् हाथ के द्वारा किसी पर प्रहार होना। १॰. किसी काम या बात का आरंभ होना। छिड़ना। जैसे–किसी की चर्चा या जिक्र चलना, कोई प्रसंग या बात चलना, कोई नयी प्रथा या रीति चलना। ११. प्रहार के उद्देश्य से अस्त्र-शस्त्र आदि का प्रयोग या व्यवहार होना। जैसे–गोली, तलवार या लाठी चलना। १२. उक्त के आधार पर, लाक्षणिक रूप में आपस में वैर-विरोध या वैमनस्य का व्यवहार होना। जैसे–आज-कल दोनों भाइयों में खूब चल रही है। १३. तरल पदार्थ का अपने आधान या पात्र में से होते हुए आगे बढ़ते या बहते रहना। जैसे–पानी गिरने या बरसने पर पनाला या मोरी चलना। १४. उक्त के आधार पर लाक्षणिक रूप में शरीर के किसी अंग में से तरल पदार्थ का असाधारण या विकृत रूप में बाहर निकलना या निकलते रहना। जैसे–पेट चलना अर्थात् दस्त के रूप में पेट में से निरंतर बहुत सा मल निकलना; पेट और मुँह चलना अर्थात् लगातार बहुत से दस्त और कै होना। १५. मार्ग या रास्ते के संबंध में, ऊपर से लोगों का आना-जाना होना। जैसे–(क) यह सड़क रात भर चलती है। (ख) यह गली सबेरे से चलने लगती है। (ग) यह जल-मार्ग आजकल नहीं चलता। १६. किसी क्रम या परंपरा का बराबर आगे बढ़ते रहना या जारी रहना। जैसे–किसी का नाम या वश चलना। उदाहरण–रघुकुल रीति सदा चली आई।-तुलसी। १७. मन का किसी प्रकार की वासना से युक्त होकर किसी ओर प्रवृत्त होना। जैसे–खाने-पीने की किसी चीज पर मन चलना। १८. अधिकार, युक्ति वश शक्ति आदि के संबंध में अपना ठीक और पूरा काम करना अथवा परिणाम या फल दिखाना। जैसे–जब तक हमारी (युक्ति या शक्ति) चलेगी, तब तक हम उन्हें ऐसा नहीं करने देगें। मुहावरा–(किसी की) कुछ चलना=किसी का कुछ अधिकार या वश अथवा उपाय या कौशल सफल या सार्थक होना। जैसे–किसी की कुछ नहीं चलती कि जब तकदीर फिरती है।–कोई शायर। १९. किसी लिखावट या लेख का ठीक तरह से पढ़ा जाना और समझ में आना। जैसे–उनका लिखा हुआ पत्र या लेख यहाँ किसी से नहीं चलता (पढ़ा जाता)। २॰. खाने या पीने के समय किसी पदार्थ का ठीक तरह से गले के नीचे उतरना। खाया, निगला या पीया जाना। जैसे–(क) पेट बहुत भर गया है, अब एक भी पूरी (या रोटी) नहीं चलेगी। (ख) ले लो अभी दो लड्डू तो और चल ही जायँगे। २१. खाने-पीने की चीजें परोसने के समय अलग-अलग चीजों का क्रम से सामने आना या रखा जाना। जैसे–पहले पूरी तरकारी और तब मिठाई चलनी चाहिए। २२. लोगों के साथ अच्छा और मेल-जोल का आचरण या व्यवहार करना। जैसे–संसार (या समाज) में सबसे मिलकर चलना चाहिए। २३. आज्ञा, आदेश, उदाहरण आदि के अनुसार आचरण या व्यवहार करना। जैसे–सदा बड़ों की आज्ञा और उपदेश के अनुसार अथवा उनके दिखलाये या बतलाये हुए मार्ग पर चलना चाहिए। २४. किसी प्रकार के कपट, चालाकी या धूर्तत्ता का आचरण या व्यवहार करना। जैसे–हम देखते हैं कि आज-कल तुम हमसे भी चलने लगे हो। २५. किसी काम या चीज का अपने उचित, चलित या नियत क्रम, मार्ग या स्थिति से इधर-उधर या विचलित होना जो दोष विकार आदि का सूचक होता है। जैसे–(क) ऐसा जान पड़ता है कि छत (या दीवार) भी दो चार दिन में चली जायगी। (ख) उनका आधा खेत तो इस बरसात में गंगा में चला गया। मुहावरा–(किसी चीज का) चल जानाकिसी चीज का कट-फट टूट-फूट या गल-सड़कर अथवा और किसी प्रकार खराब या विकृत हो जाना। जैसे–(क) थान में से टुकड़ा फाड़ने के समय कपड़े का चल जाना अर्थात् सीधा न फटकर इधर-उधर या तिरछा फट जाना। (ख) कढ़ी, दाल या भात का चल जाना अर्थात् बासी होने के कारण सड़ने लगना। (ग) अंगरखा या कुरता चल जाना अर्थात् किसी जगह से कट, फट या मसक जाना। (घ) किसी का दिमाग या मस्तिष्क चल जाना अर्थात् कुछ-कुछ पागल या विक्षिप्त सा हो जाना। जैसे–जान पड़ता है कि इस लड़के का दिमाग कुछ चल गया है। २६. इस लोक से प्रस्थान करना। काल के मुँह में जाना। मर जाना। जैसे–सबको एक न एक दिन चलना है। मुहावरा–(किसी व्यक्ति का) चल बसना=मर जाना। स्वर्गवासी होना। जैसे–आज मोहन के पिता चल बसे। २७. नष्ट या समाप्त होना मुहावरा–(किसी चीज का) चला जाना=नष्ट या समाप्त हो जाना। न रह जाना। जैसे–उनके आने से मेरी भूख और प्यास चली जाती है। स० १. कुछ विशिष्ट खेलों में से किसी चीज के द्वारा अपनी बारी से चलने की सी क्रिया करना। आगे बढ़ना या रखना अथवा सामने लाना। जैसे–(क) चौसर की गोटी, ताश का पत्ता या शतरंज का मोहरा चलना। (ख) घोड़ा या हाथी चलना, बादशाह या बेगम चलना। २. किसी प्रकार की चाल, तरकीब या युक्ति को क्रियात्मक रूप देना। जैसे–(क) आपस में तरह-तरह की चालें चलना। (ख ) नित्य नई तरकीब चलना। पुं० [हिं० चलनी] १. बड़ी चलनी या छलनी। २. चलनी की तरह का लोहे का वह बड़ा कलछा या पौना जिससे उबलते हुए ऊख के रस पर का फेन या मैल उठाते हैं। ३. हलवाइयों का उक्त प्रकार का वह उपकरण जिससे चाशनी या शीरे पर की मैल उठाई जाती है।
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चलनि  : स्त्री०=चलन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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चलनिका  : स्त्री० [सं० चलनी+कन्-टाप्, ह्रस्व] १. स्त्रियों के पहनने का घाघरा। २. झालर।
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चलनी  : स्त्री०=छलनी। स्त्री० [सं०√चल्+ल्युट्-अन,ङीष्] =चलनिका।
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चलनौस  : पुं० [हिं० चालना+औस (प्रत्य)] किसी वस्तु में का वह अंश जो उसे चालने या छानने पर चलनी में बच रहता है। चालन। चोकर।
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चलनौसन  : पुं०=चलनौस।
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