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चाँद  : पुं० [सं० चंद्र; पा० पं० चंद; उ० बं० गु० ने० चाँद, सि० चंडु, चंद्रु, मरा० चाँद, चाँदोबा] १. चंद्रमा। मुहावरा–चाँद का खेत करना=चंद्रमा के निकलने के समय उसकी आभा का चारों ओर फैलना। चाँद चढ़ना=चंद्रमा का ऊपर आना या उदय होना। चाँद पर थूकना=ऐसा अनुचित और निंदनीय काम करना जिसका परिणाम उलटा कर्त्ता पर पड़े। जैसे–किसी ऐसे महात्मा पर कलंक लगाना जिसके फलस्वरूप स्वयं अपमानित होना पड़े। (ऊपर की ओर थूकने से अपने ही मुँह पर थूक पड़ती है। इसी से यह मुहावरा बना है) चाँद पर धूल डालना=किसी निर्दोष अथवा परम पवित्र पर कलंक लगाना। पद–चाँद का कुंडल या मंडलबहुत हलकी बदली पर प्रकाश पड़ने के कारण चंद्रमा के चारों ओर दिखायी देनेवाला वृत्त या घेरा। चाँद का टुकड़ापरम सुन्दर या व्यक्ति। चाँद दीखे-शुक्ल पक्ष की द्वितीया के बाद। जैसे–चाँद दिखे आना तुम्हें काम दे दिया जायगा। चाँद-सा मुखड़ा=अत्यन्त सुन्दर मुख। आज किधर चाँद निकला?=(क) आज कैसे दिखाई पड़े। (ख) यह नई बात कैसे हुई। (जब कोई मनुष्य बहुत दिनों पर दिखाई पड़ता है तब उससे कहा जाता है)। २. चांद्रमास। महीना। जैसे–आज एक चाँद बाद आप दिखाई पड़े हैं। ३. मुसलमानी मास की गणना के अनुसार महीने का पहला दिन जो उनके हिसाब से शुक्ल पक्ष की तृतीया को आरंभ होता है। जैसे–चाँद के चाँद तनख्वाह मिलना। ४. द्वितीया के चंद्रमा के आकार का एक गहना। ५. चंद्रमा के आकार-प्रकार का कोई अर्द्ध-गोलाकार अथवा मंडलाकार धातु-खंड या रचना। जैसे–ढाल पर चाँद, चांदमारी में निशाना साधने का चांद, लंप की चिमनी के पीछे उसका प्रकाश प्रत्यावर्तित करने के लिए लगाया जानेवाला चाँद। ६. घोड़े के माथे पर की एक भौंरी। ७. भालू की गरदन के नीचे का सफेद बालोंवाला घेरा। (कलंदर)। ८. सिर पर पहना जानेवाला चंद्रमा के आकार का मंडलाकार ताज। ९. पशुओं के मस्तक पर का गोलाकार सफेद या किसी भिन्न रंग का दाग या फूल। १॰. कलाई पर गोदा जानेवाला मंडलाकार गोदना। स्त्री० १. खोपड़ी का सबसे ऊँचा और मध्य भाग। २. खोपड़ी। मुहावरा–चाँद पर बाल न छोड़ना (क) सिर पर इतना मारना कि बाल झड़ जाएँ। (ख) सब कुछ ले लेना, कुछ बाकी न छोड़ना।
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चाँद-तारा  : स्त्री० [हिं० चाँद+तारा] १. एक प्रकार की बढिया मलमल जिस पर चांद और तारों के आकार की बूटियाँ बनी होती थी। २. एक प्रकार का कनकौआ या पतंग जिस पर उक्त प्रकार की आकृतियाँ बनी होती हैं।
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चाँद-बाला  : पुं० [हिं० चाँद+बाला (कान में पहनने की बड़ी बाली)] कान में पहनने का एक प्रकार का बाला जिसके नीचे का भाग अर्द्धचन्द्राकार होता है।
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चाँद-सूरज  : पुं० [हिं० चाँद+सूरज] एक प्रकार का गहना जिसे स्त्रियाँ चोटी में गूँथकर पहनती हैं।
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चाँदना  : पुं० [हिं० चाँद+ना (प्रत्यय)] १. उजाला। प्रकाश। २. चाँदनी। ज्योत्स्ना। मुहावरा–(किसी जगह) चाँदना कर देना=सब कुछ उड़ा ले जाना। कुछ भी बाकी न छोड़ना। जैसे–चोरों ने घर पर चांदना कर दिया।
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चांदनिक  : वि० [सं० चन्दन+ठक्-इक] १. चंदन का। चंदन-संबंधी। २. चंदन में होने, रहने अथवा उससे बननेवाला। ३. जिसमें चंदन की महक हो। चंदन से सुवासित।
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चाँदनी  : स्त्री० [सं० चंद्र>>चंद्रण, दे० प्रा० चंदिण, प्रा० चंद्दण; बँ० उ० चांदनी, गु० चांदरणु, मरा० चंदर्णें] १. चाँद का प्रकाश। रात के समय होनेवाला चंद्रमा का उजाला या प्रकाश। कौमुदी। चंद्रिका। ज्योत्स्ना। क्रि० प्र०–खिलना।–छिटकना।–फैलना।–बिछना। मुहावरा–चाँदनी मारना=(क) लोक प्रवाद के अनुसार चाँदनी का बुरा प्रभाव पड़ने के कारण घाव या जख्म का अच्छा न होना। (ख) चाँदनी पड़ने या लगने के कारण घोड़ो को एक प्रकार का आकस्मिक रोग होना। पद–चाँदनी रात=वह रात जिसमें चंद्रमा का प्रकाश चारों ओर फैला हो। शुक्ल पक्ष की रात्रि। चार दिन की चाँदनी अस्थायी या क्षणिक वैभव या सुख। स्त्री० [हिं० चंदनी] १. बिछाने की बड़ी सफेद चादर। सफेद फर्श। विशेष–कहते है कि पहले नूरजहाँ ने अपने महल में चंदन के रंग का एक फर्श बनवाया था, उसी से यह शब्द बिछाने की चादर के अर्थ में चल पड़ा। २. छत पर या ऊपर की ओर तानने का कपड़ा। छतगीर। ३. गुलचाँदनी नाम का पौधा और उसका फूल।
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चाँदमारी  : स्त्री० [हिं० चाँद+मारना] १. कपड़े तख्ते दीवार आदि पर बने हुए चंद्र-चिन्ह्रों पर तीर, बन्दूक आदि से निशाने लगाने की अभ्यासात्मक क्रिया। २. वह मैदान जहाँ उक्त प्रकार की क्रिया होती है।
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चाँदला  : वि० [हिं० चाँद] १. (दूज के चंद्रमा के समान) टेढ़ा। वक्र। २. जिसके सिर के बाल झड़ गये हों। चँदला। गंजा।
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चांदा  : पुं० [हिं० चाँद] १. चाँदमारी के मैदान में वह स्थान जहाँ से दूरबीन लगाई जाती है। २. वह पटरा जिस पर निशाना लगाने या अभ्यास करने के लिए छोटे-छोटे चिन्ह्र बने रहते हैं। ३. खेत, भूमि आदि की नाप में वह केन्द्र स्थल जहाँ से दूरी की नाप लेकर हद बाँधी जाती है। ४. छप्पर का पाखा जो प्रायः चन्द्राकार होता है। ५. ज्यामिति में, धातु, प्लास्टिक, सींग आदि का अर्द्ध-वृत्ताकार एक प्रसिद्ध उपकरण जिससे कोण आदि नापे जाते हैं। (प्रोट्रेक्टर)।
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चाँदी  : स्त्री० [हिं० चाँदनी] १. एक प्रसिद्ध सफेद चमकीली कीमती धातु जो अपेक्षया नरम होती है और जिसके गहने, बरतन, सिक्के आदि बनते हैं। इसका गुरुत्व सोने के गुरुत्व का आधा होता है। इससे कई एक ऐसे क्षार बनाये जाते हैं जिन पर प्रकाश का प्रभाव बहुत विलक्षण पड़ता है। रजत। रौप्य। मुहावरा–चाँदी कर डालना या कर देना=जलाकर राख कर डालना। (गाँजे, तमाकू आदि की भरी हुई चिलम के संबंध में प्रयुक्त) २.चाँदी के सिक्को के आधार पर धन-संपत्ति। दौलत। मुहावरा–चाँदी बरसना=खूब आमदनी होना। चाँदी काटना=प्रायः अनुचित रूप से खूब रूपया पैदा करना। खूब धन कमाना। चाँदी की ऐनक लगाना=घूस या रिश्वत लेकर ही किसी का काम करना। जैसे–हमारे तहसीलदार साहब चाँदी की ऐनक लगाते हैं। (किसी की) चाँदी होना=बहुत अधिक आय या आर्थिक लाभ होना। पद-चाँदी का जूता=वह धन जो किसी को अपने अनुकूल या वश में करने को दिया जाता है। घूस या रिश्वत के रूप में दिया जानेवाला धन। चांदी का पहरा=आर्थिक दृष्टि से पूर्णता, सुख-समृद्धि के दिन। ३. खोपड़ी का मध्य भाग। चांद। चँदिया। मुहावरा–चाँदी खुलवानाचाँद के ऊपर के बाल मुड़ाना। ४. एक प्रकार की छोटी मछली। ५. चूने की सफेदी। (क्व०) ६. सफेद रंग अथवा सफेद रंग की कोई वस्तु। ७. जल जाने पर किसी चीज की होनेवाली सफेद राख। जैसे–तमाकू जलकर चांदी हो गया।
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चांद्र  : वि० [सं० चन्द्र+अण्] चंद्रमा संबंधी। चंद्रमा का। जैसे–चांद्र मास, चांद्रवत्सर। पुं० १. चांद्रायण व्रत। २. चंद्रकांत मणि। ३. मृगशिरा नक्षत्र। ४. पुराणानुसार प्लक्ष द्वीप का एक पर्वत। ५. अदरक। आदी।
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चांद्र-पुर  : पुं० [कर्म० स०] बृहत्संहिता के अनुसार एक नगर जिसमें एक प्रसिद्ध शिवमूर्ति होने का उल्लेख है।
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चांद्र-मास  : पुं० [कर्म० स०] वह मास जो चंद्रमा की गति के अनुसार निश्चित होता है। उतना काल जितना चंद्रमा को पृथ्वी की एक परिक्रमा करने में लगता है। कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक का समय।
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चांद्र-वत्सर  : पुं० [कर्म० स०]=चांद्रवर्ष।
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चांद्र-वर्ष  : पुं० [कर्म० स०] बारह चांद्र मासों का समय। यह सौर वर्ष से लगभग १॰ दिन छोटा है)।
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चांद्रक  : पुं० [सं० चान्द्र√कै(प्रतीत होना)+क]सोंठ।
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चांद्रमस  : वि० [सं० चन्द्रमस्+अण्] चंद्रमा संबंधी। पुं० मृगशिरा नक्षत्र।
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चांद्रमसायन  : पुं० [सं० चांद्रमसायनि, पृषो० सिद्धि] बुध ग्रह।
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चांद्रमसायनि  : पुं० [सं० चंद्रमस्+फिञ्-आयन] बुध ग्रह।
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चांद्रमसी  : स्त्री० [सं० चान्द्रमस+ङीप्] बृहस्पति की पत्नी का नाम।
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चांद्रव्रतिक  : वि० [सं० चान्द्रव्रत+ठन्-इक] चांद्रायण व्रत करनेवाला। पुं० राजा।
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चांद्रायण  : पुं० [चंद्र-अयन, ब० स० णत्व, दीर्घ] [वि० चांद्रायणिक] १. महीने भर का एक व्रत जिसमें चंद्रमा के घटने-बढ़ने के अनुसार आहार के कौर या ग्रास घटाने-बढ़ाने पड़ते हैं। २. २१ मात्राओं का एक छंद जिसके प्रत्येक चरण में ११ और १॰ पर यति होती है। पहले विराम पर जगण और दूसरे पर रगण होना आवश्यक होता है।
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चांद्रायणिक  : वि० सं० चान्द्रायण+ठञ्-इक] चांद्रायण व्रत करने वाला।
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चांद्रि  : पुं० [सं० चंद्र+इञ्] बुध ग्रह।
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चांद्री  : स्त्री० [सं० चान्द्र+ङीष्] १. चंद्रमा की स्त्री। २. चाँदनी। ज्योत्स्ना। ३. सफेद भटकटैया। वि०=चांद्र।
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