शब्द का अर्थ
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चातुर :
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वि० [सं० चतुर+अण्] जो आँखों से दिखाई दे। नेत्र-गोचर। पुं० [चतुर+अण्] १. चार पहियों की गाड़ी। २. मसनद। वि० [सं० चतुर] १. चतुर। होशियार। २. चालाक। धूर्त्त। ३. खुशामदी। चापलूस। (क्व०)। |
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समानार्थी शब्द-
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चातुरई :
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स्त्री०=चतुराई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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चातुरक :
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वि० पुं० [सं० चातुर+कन्]=चातुर। |
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चातुरक्ष :
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पुं० [सं० चतुरक्ष+अण्] १. चार पासों का खेल। २. छोटा गोल तकिया। |
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चातुरता :
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स्त्री०=चतुरता। |
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चातुरिक :
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पुं० [सं० चातुरी+ठक्-इक] सारथी। रथवान। |
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चातुरी :
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स्त्री० [सं० चतुर+ष्यञ्-ङीष्,यलोप] १.चतुरता। व्यवहारदक्षता। होशियारी। २. चालाकी। धूर्त्तता। ३. निपुणता। |
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चातुर्थक :
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वि० [सं० चतुर्थ+ठक्–क] हर चौथे दिन आने, घटने या होनेवाला। चौथिया। पुं० चौथिया ज्वर। |
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चातुर्थिक :
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वि० [सं० चतुर्थ+ठक्-इक] =चातुर्थक। |
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चातुर्दश :
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पुं० [सं० चतुर्दशी+अण्] राक्षस। वि० १. चतुर्दशी संबंधी। २. जो चतुर्दशी को उत्पन्न हुआ हो। |
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चातुर्भद्र(क) :
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पुं० [सं० चतुर्भद्र+अण्] १. चारों पदार्थ, यथा-अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष। २. वैद्यक में ये चार ओषधियाँ-नागर मोथा, पीपल (पिप्पली) अतीस और काकड़ासिंगी। कोई-कोई चक्रदत्त के अनुसार इन चार जीवों को भी चातुर्भद्र कहते हैं–जायफल, पुष्कर, मूल, काकड़ा सिंगी और पीपल। |
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चातुर्महाराजिक :
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पुं० [सं० चतुर्महराजिक+अण्] १. विष्णु। २. गौतम। बुद्ध का एक नाम। |
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चातुर्मास :
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वि० [सं० चतुर्मास+अण्] १. चार महीनों में संपन्न होनेवाला। २. चार महीनों का। |
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चातुर्मासिक :
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वि० [सं० चतुर्मास+ठक्-इक] चार महीनों में होनेवाला (यज्ञ, कर्म आदि)। |
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चातुर्मासी :
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स्त्री० [सं० चतुर्मास+अण्-ङीष्] पूर्णमासी। वि० [हिं०] चौमासे का। |
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चातुर्मास्य :
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पुं० [सं० चतुर्मास+ण्य] १. चार महीनों में होनेवाला एक वैदिक यज्ञ। २. वर्षा ऋतु के चार महीनों में होनेवाला एक प्रकार का पौराणिक व्रत। चौमासा। |
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चातुर्य्य :
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पुं० [सं० चतुर+ष्यञ्] =चतुरता। |
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चातुर्वर्ण्य :
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पुं० [सं० चतुर्वर्ण+ष्यञ्] १. हिदुओं के ये चारों वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। २. चारों वर्णों के पालन के लिए विहित धर्म। जैसे–ब्राह्मण का धर्म यजन, याजन, दान अध्यापन, अध्ययन और प्रतिग्रह, क्षत्रिय का धर्म बाहुबल से प्रजा-पालन आदि। वि० चारों वर्णों में होनेवाले अथवा उनसे संबंध रखनेवाला। |
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चातुर्विद्य :
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वि० [सं० चतुर्विद्या+ष्यञ्] चारों वेदों का ज्ञाता। पुं० चारों वेद। |
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चातुर्होत्र :
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पुं० [सं० चतुर्होतृ+अण्] [वि० चातुर्होत्रिय] चार होताओं द्वारा संपन्न होनेवाला यज्ञ। |
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