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चाप  : पुं० [सं० चप+अण्] १. धनुष। २. ज्यामिति में वृत्त की परिधि का कोई भाग। (आर्क) ३. मेहराब। स्त्री० [हिं० चापना=दबाना] १. चापने की क्रिया या भाव। दाब। २. पैरों की आहट। पुं० [अं० चाँप] आलू, बेसन आदि की बनी हुई तथा घी आदि में तली हुई नमकीन टिकिया।
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चाप-कर्ण  : पुं० [ष० त०] ज्यामति में वह सरल रेखा जो किसी चाप के एक सिरे से दूसरे सिरे तक गई हो। जीवा। (कार्ड)।
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चाप-जरीब  : पुं० [हिं० चाप+अ० जरीब] जमीन की लंबाई की एक नाप या मान।
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चाप-दंड  : पुं० [उपमि० स०] वह डंडा जिससे कोई वस्तु आगे की ओर ढकेली जाय।
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चापक  : पुं० [सं० चाप से] धनुष की डोरी। उदाहरण–क्रीड़त गिलोल जब लालकर मार जानि चापक सुमन।–चन्दवरदाई।
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चापट  : स्त्री० [हिं० चिपटना] १. चोकर। २. भूसी। वि० =चौपट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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चापड़  : वि० [सं० चिपिट, हिं० चिपटा, चपटा] १. जो दबकर चिपटा हो गया हो। २. जो कुचले जाने के कारण जमीन के बराबर हो गया हो। ३. सब प्रकार से नष्ट-भ्रष्ट। चौपट। पुं० वह कड़ी जमीन जो अच्छी तरह जोती न गई हो। जैसे–मत बो चापड़, उजड़ेगा टापर।-खेतिहरों की कहावत।
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चापना  : स० [सं० चप, प्रा० चप्पइ, बँ० चांपा, उ० चापुआ, गु० चापवूँ, मरा० चाँपणे] ऊपर से जोर लगाकर भार या रखकर दबाना। चाँपना। २. छाती से लगाकर दबाना, आलिंगन करते समय किसी को दबाना।
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चापर  : वि०=चापड़।
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चापल  : पुं० [सं० चपल+अण्] चंचलता। चपलता। वि० चंचल। चपल।
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चापलता  : स्त्री० =चपलता।
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चापलूस  : वि० [फा०] [भाव० चापलूसी] जो किसी के सामने उसकी आवश्यकता से अधिक या झूठी प्रशंसा करे। खुशामदी। चाटुकार।
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चापलूसी  : स्त्री० [फा०] वह झूठी प्रशंसा जो केवल दूसरों को प्रसन्न और अनुकूल करने के लिए की जाय। झूठी बड़ाई या प्रशंसा से भरी बात। खुशामद। चाटुता।
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चापी(पिन्)  : पुं० [सं० चाप+इनि] १. वह जो हाथ में चाप अर्थात् धनुष रखता हो। धनुर्धर। २. शिव। ३. धनु राशि।
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चापू  : पुं० [देश०] हिमालय के आस-पास के प्रदेशों में होनेवाली एक प्रकार की छोटी बकरी जिसके बाल बहुत लंबे और मुलायम होते और कंबल आदि बनाने के काम आते हैं।
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