शब्द का अर्थ
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चिक :
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स्त्री० [तु० चिक] बाँस या सरकँड़े की तीलियों का बना हुआ झँझरी-दार परदा। चिलमन। पुं० माँस बेचनेवाला कसाई। बूचड़। स्त्री० [अनु०] कमर, पीठ आदि में बल पड़ने के कारण सहसा उत्पन्न होनेवाला दर्द या चिलक। पुं०=चेक (दे० देयादेश) |
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चिकट :
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वि०=चिक्कट। |
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चिकटना :
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अ० [हिं० चिकट] चिक्कट से युक्त होना। मैल जमने के कारण चिपचिपा होना। |
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चिकटा :
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वि०=चिक्कट। |
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चिकड़ी :
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स्त्री० [देश०] एक प्रकार का छोटा पेड़ जिसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है। इस लकड़ी की कंघियाँ बहुत अच्छी बनती हैं। |
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चिकन :
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पुं० [फा०] एक प्रकार का सूती कपड़ा जिस पर सूई और डोरे के कढ़े हुए उभारदार फूल या बूटियाँ बनी होती है। |
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चिकनकारी :
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स्त्री० [फा०] कपड़े पर सूई-डोरे की सहायता से उभारदार फूल, बूटियाँ आदि काढ़ने या बनाने की कला काम। |
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चिकनगर :
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पुं० [फा०] चिकन का काम करनेवाला कारीगर। |
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चिकनदोज :
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पुं०=चिकनगर। |
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चिकना :
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वि० [सं० चिक्कण, प्रा० चिक्कण्ण, गु० चिकोणु, मरा० चिक्कण] [वि० स्त्री० चिकनी] १. जिसका ऊपरी तल जरा भी ऊबड़-खाबड़ या खुरदुरा न हो, बल्कि इतना समतल हो कि हाथ फेरने से कहीं उभार न जान पड़े। जैसे–चिकना, पत्थर चिकनी लकड़ी। २. जिसका ऊपरी तल बहुत ही कोमल और समतल हो। जिस पर पैर या हाथ बिना किसी बाधा या रुकावट के आगे बढ़ता या फिसलता जाय। जैसे–चिकनी जमीन, चिकनी मलमल। ३. जिसका ऊपरी तल या रूप बना सँवारकर बहुत ही मोहक और स्वच्छ किया गया हो। जैसे–तुम्हारा यह चिकना मुँह देखकर ही कोई तुम्हें नौकरी देगा। मुहावरा–चिकने घड़े पर पानी पड़ना=अच्छी बातों का उसी प्रकार व्यर्थ सिद्ध होना जिस प्रकार चिकने घड़े पर पानी पड़ना इसलिए व्यर्थ सिद्ध होता है कि वह पानी तुरंत बहकर नीचे चला जाता है। पद–चिकना घड़ा (क) वह जिस पर उपदेश, दंड आदि का कुछ भी प्रभाव न पड़ता हो, फलतः निर्लज्ज या लापरवाह। (उक्त मुहावरे के आधार पर) चिकना-चुपड़ा= (क) घी, तेल आदि अच्छी तरह लगाकर चिकना और साफ करना। (ख) अच्छी तरह सजाया हुआ। (ग) ऊपर से देखने पर बहुत अच्छा जान पड़ने या प्रिय लगनेवाला। जैसे–चिनकी-चुपड़ी बातें। ४. जिस पर घी, चरबी तेल या ऐसा ही और कोई स्निग्ध पदार्थ चुपड़ा या लगा हो। जिसका खुरदरापन या रूखाई किसी प्रकार दूर कर दी गई हो। ५. जिसका ऊपरी रूप केवल दिखाने के विचार से सँवारकर सुन्दर बनाया गया हो। मुहावरा–चिकना देखकर फिसल पड़ना=केवल वैभव, सजावट, सौन्दर्य आदि देखकर मोहित होना। केवल ऊपरी रूप देखकर रीझना। ६. केवल दूसरों को प्रसन्न करने के लिए चिकनी-चुपड़ी अर्थात् मीठी और सुन्दर बातें कहनेवाला। खुशामदी। चाटुकार। ७. अनुराग, प्रेम या स्नेह करनेवाला। (क्व०)। पुं० घी चरबी तेल आदि चिकने पदार्थ। जैसे–इसमें चिकना बहुत अधिक पड़ा है। |
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चिकनाई :
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स्त्री० [हिं० चिकना+ई(प्रत्य०)] १. चिकने होने की अवस्था या भाव। चिकनापन। चिकनाहट। २. मन, व्यवहार आदि की सरसता या स्निग्धता। ३. घी, तेल आदि चिकने पदार्थ। |
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चिकनाना :
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स० [हिं० चिकना] १. खुरदरापन दूर करके ऊपरी तल चिकना, सम या साफ करना। २. घी, तेल या कोई चिकना पदार्थ लगाकर रूखापन दूर करना। ३. किसी प्रकार साफ या स्वच्छ करना या बनाना-सँवारना। ४. केवल बिगड़ी हुई बातें बनाने के लिए बनावटी बातें कहना। अ० १. चिनका होना। २. चिकने पदार्थ से युक्त होकर स्निग्ध बनना। ३. शरीर में कुछ चरबी भरने और ऊपर से सँवारे-सजाये जाने के कारण डील-डौल या रूप रंग अच्छा निकलना या बनना। जैसे–जब से उनका रोजगार चला है, तब से बहुत कुछ चिकना गये है। ४. अनुराग स्नेह आदि से युक्त होना। उदाहरण–ज्यों ज्यों रुख रुखो करति त्यों-त्यों चित चिकनाय।–बिहारी। |
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चिकनापन :
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पुं० [हिं० चिकना+पन (प्रत्यय)] चिकने होने की अवस्था या भाव। चिकनाई। चिकनाहट। |
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चिकनावट :
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स्त्री० [हिं० चिकना] १. चिकनी-चुपड़ी बातें कहने की अवस्था या भाव। २. बिगड़ा हुआ काम बनाने के लिए मीठी बातें कहने की क्रिया या भाव। जैसे–तुम्हारी यह चिकनाहट हमें अच्छी नहीं लगती। ३. दे० ‘चिकनाहट’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चिकनाहट :
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स्त्री० [हिं० चिकना+हट (प्रत्यय)] चिकने होने की अवस्था या भाव। चिकनापन। |
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चिकनिया :
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वि० [हिं० चिकना] (व्यक्ति) जो प्रायः या सदा तेल-फुलेल आदि लगाकर और खूब बन-ठनकर रहता हो। छैला और बाँका। सजधजवाला और सुन्दर। उदाहरण–सूरदास प्रभु तजी कामरी अब हरि भय चिकनियाँ।–सूर। |
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चिकनी-मिट्टी :
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स्त्री० [हिं० चिकनी+मि्टटी] १. एक प्रकार की लसदार मिट्टी जो सिर मलने आदि के काम आती है। करैली मि्टटी। २. पीले या सफेद रंग की वह लसीली मिट्टी जो हाथ धोने तथा जमीन दीवार आदि लीपने-पोतने के काम आती है। |
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चिकनी-सुपारी :
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स्त्री० [सं० चिक्कणी] एक प्रकार की उबाली हुई बढ़िया सुपारी जो चिपटी और अधिक स्वादिष्ट होती है। चिकनी डली। |
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चिकर :
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पुं०[देश] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा। |
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चिकरना :
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अ० [सं० चीत्कार, प्रा० चीक्कार, चिम्कार] १. चीत्कार करना। जोर से चिल्लाना। २. चिघाड़ना |
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चिकवा :
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पुं० [देश०] १. एक प्रकार का टसर। २. उक्त टसर का बना हुआ कपड़ा। चिकट। पुं०=चिक (कसाई)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चिकार :
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पुं० [सं० चीत्कार, प्रा० चिक्कार] १. चीत्कार। चिल्लाहट। क्रि० प्र० पड़ना।-मचना।-मचाना। २. चिंघाड़। |
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चिकारना :
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अ० [हिं० चिकार] १. चीत्कार करना। चिल्लाना। २. हाथी का चिघाड़ना। |
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चिकारा :
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पुं० [हिं० चिकार] [स्त्री० अल्पा० चिकारी] १. सारंगी की तरह की एक बाजा जो घोड़े की बालों की कमानी से बजाया जाता है। २. [स्त्री० चिकारी] हिरन की जाति का एक जानवर जो बहुत तेज दौड़ता है और अपनी बड़ी तथा सुन्दर आँखो के लिए प्रसिद्ध है। इसके स्वादिष्ट मांस के लिए इसका शिकार किया जाता है। छिकरी। छिगार। |
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चिकारी :
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स्त्री० [हिं० चिकारा] १. छोटा चिकारा। २. मच्छर की तरह का एक फतिंगा। स्त्री०=चीत्कार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चिकित :
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पुं० [सं०√कित (ज्ञाने)+यङ-लुक्, द्वित्वादि,+अच्] एक ऋषि का नाम। |
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चिकितायन :
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पुं० [सं० चिकित+फक्-आयन] चिकित ऋषि के वंशज। |
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चिकित्सक :
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पुं० [सं०√कित+सन्, द्वित्वादि,+ण्वुल्-अक] रोगों की चिकित्सा करनेवाला वैद्य। |
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चिकित्सन :
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पुं [सं०√कित्+सन्, द्वित्वादि+ल्युट्–अन] चिकित्सा करना। |
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चिकित्सन-प्रमाणक :
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पुं० [ष० त०] वह प्रमाण-पत्र जिसमें चिकित्सक किसी की अवस्था या अस्वस्थता को प्रमाणित करता है। (मेडिकल सर्टिफिकेट) |
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चिकित्सा :
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स्त्री० [सं०√कित+सन्, द्वित्वादि,+अ-टाप्] १. वे सब उपाय और कार्य जो किसी रोगी का रोग दूर कर उसे स्वस्थ बनाने के लिए किये जाते हैं। इलाज। (ट्रीटमेट) २. वैद्य का काम या व्यवसाय। ३. उक्त की कोई विशिष्ट प्रणाली या ढंग। (थेरैपी) जैसे–जल चिकित्सा, विद्युत-चिकित्सा। |
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चिकित्सा-शास्त्र :
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पुं० [ष० त०] वह शास्त्र जिसमें अनेक प्रकार के लोगों के लक्षणों और चिकित्साओं का विवेचन होता है। (मेडिकल सायन्स)। |
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चिकित्सालय :
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पुं० [चिकित्सा-आलय, ष० त०] वह स्थान जहाँ रोगियों की चिकित्सा की जाती है। अस्पताल। दवाखाना। |
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चिकित्सावकाश :
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पुं० [चिकित्सा-अवकाश, ष० त०] वह अवकाश या छुट्टी जो किसी रोगी कर्मचारी को चिकित्सा कराने के लिए मिलती है। (मेडिकल लीव) |
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चिकित्सित :
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भू० कृ० [सं०√कित+सन्, द्वित्वादि,+क्त] जिसकी चिकित्सा या दवा की गई हो। जिसका इलाज किया गया हो। पुं० एक प्राचीन ऋषि का नाम। |
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चिकित्सु :
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पुं० [सं०√कित+सन्, द्वित्वादि,+उ] चिकित्सक। |
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चिकित्स्य :
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वि० [सं०√कित+सन्, द्वित्वादि,+यत्] १. (रोग) जिसे दूर किया जा सके। २. (रोगी) जिसे स्वस्थ्य बनाया जा सके। (क्योरेबुल; उक्त दोनों अर्थों में) |
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चिकिन :
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वि० [सं० नि=नत नासिका+इनच्, चिक् आदेश] चिपटी नाकवाला। पुं०=चिकन। |
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चिकिल :
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पुं० [सं०√चि (चयन)+इलच् क् आगम] कीचड़। पंक। |
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चिकीर्षक :
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वि० [सं०√कृ (करना)+सन्, द्वित्वादि+ण्वुल्-अक] (व्यक्ति) जो कोई कार्य करने के लिए इच्छुक हो। |
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चिकीर्षा :
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स्त्री० [सं०√कृ+सन्, द्वित्वादि,+अ–टाप्] [वि० चिकीर्षित,चिकीर्ष्य] कुछ या कोई काम करने अथवा कोई काम जानने की इच्छा। |
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चिकुटी :
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स्त्री०=चिकोटी। |
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चिकुर :
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पुं० [सं० चि√कुर् (शब्द करना)+क] १. सिर के बाल। केश। २. पर्वत। पहाड़। ३. रेंगकर चलनेवाले जंतु। सरीसृप ४. एक प्रकार का पक्षी। ५. एक प्रकार का वृक्ष। ६. छछूँदर। ७. गिलहरी। वि० चंचल। चपल। |
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चिकुर-पक्ष :
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पुं० [ष० त] १. सिर के सँवारे और सजाये हुए बाल। २. बालों की लट। जुल्फ। |
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चिकुर-भार :
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पुं० [ष० त]=चिकुर-पक्ष। |
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चिकुर-हस्त :
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पुं० [ष० त०]=चिकुर-पक्ष। |
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चिकुला :
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पुं० [सं० चिकुर] १. चिकुर नामक पक्षी का बच्चा। २. चिड़िया का बच्चा। |
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चिकूर :
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पुं० [सं० चिकुर, नि०-दीर्घ]=चिकुर (केश)। |
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चिकोटी :
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स्त्री० [अनु०] हाथ की चुटकी की वह मुद्रा जिससे किसी के शरीर का थोड़ा-सा मांस पकड़कर (उसे पीड़ित अथवा कभी सचेत करने के लिए) दबाया जाता है। चुटकी। |
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चिक्क :
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वि० [सं० चिक्√कै (शब्द करना)+क] चिपटी नाकवाला। पुं० छछूँदर। पुं० चिक (कसाई)। स्त्री०=चिक (तीलियों का झँझरीदार परदा)। |
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चिक्कट :
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वि० [सं० चिक्लिद] १. चिकनाहट और मैल से भरा हुआ। जिस पर तेल आदि की मैल जमी हो। बहुत गंदा और मैला। २. चिपचिपा। लसीला। पुं० [?] १. एक प्रकार का टसर या रेशमी कपड़ा। २. वे कपड़े जो भाई अपनी बहन को उसकी संतान के विवाह के समय देता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चिक्कण :
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वि० [सं० चित्√कण (शब्द करना)+क] चिकना। पुं० १. सुपारी का पेड़ और उसका फल। २. हरीतकी। हर्रे। ३. आयुर्वेद में पाक बनाने के समय उसके नीचे की आँख की एक अवस्था। |
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चिक्कणा :
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स्त्री० [सं० चिक्कण+टाप्]=चिक्कणी। |
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चिक्कणी :
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स्त्री० [सं० चिक्कण+ङीष्] १. सुपारी। २. हड़। हर्रे। |
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चिक्कन :
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वि०=चिकना। |
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चिक्करना :
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अ० [सं० चीत्कार] चीत्कार करना। जोर से चिल्लाना। |
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चिक्कस :
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पुं० [सं०√चिक्क (पीसना)+असच्] १. जौ का आटा अथवा जौ के आटे का बना हुआ भोजन। २. तेल, और हल्दी के योग से बनाया हुआ जौ के आटे का उबटन जो प्रायः यज्ञोपवीत के समय वटु के शरीर पर मला जाता हैं। पुं० [देश०] लोहे, पीतल आदि के छड़ का बना हुआ वह अड्डा जिस पर तोते, बाज, बुलबुल आदि पक्षी बैठाये जाते है। |
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चिक्का :
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स्त्री० [सं०√चिक्क्+अच्-टाप्] सुपारी। पुं०√चिक्किर (चूहा)। पुं०=चक्का।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चिक्कार :
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पुं०=चीत्कार। |
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चिक्किर :
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पुं० [सं० चिक्क+इरच्] १. एक प्रकार का जहरीला चूहा जिसके काटने से सूजन होती है। २. गिलहरी। |
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चिक्लिद :
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पुं० [सं० क्लिद् (गीला करना)+यङ्-लुक्, द्वित्वादि+अच्] १. आर्द्रता। नमी। २. चंद्रमा। |
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