शब्द का अर्थ
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चूर :
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वि० [सं० चूर्ण] १. बहुत अधिक और बार-बार काटे,कूटे या तोड़े-फोड़े जाने के कारण बहुत ही छोटे-छोटे खंडों या टुकड़ों में बँटा हुआ। जैसे–काँच की प्याली जमीन पर गिरते ही चूर हो गई। २. जो थकावट, परिश्रम आदि के कारण अत्यन्त शिथिल हो गया हो। जैसे–दिन भर काम करते-करते सन्ध्या को हम थक कर चूर हो जाते हैं। ३. जो किसी काम या बात में इतना अधिक तन्मय या लीन हो जाता हो कि उसे किसी बात या काम का ध्यान ही न रह गया हो। जैसे–बातें करने में चूर। ४. आवेश,उमंग आदि के कारण किसी भाव या विषय में बेसुध। जैसे–(क) घमंड में चूर। (ख) नशे में चूर। |
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चूरट :
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पुं०=चुरुट। |
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चूरण :
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पुं० =चूरन। वि० =चूर्ण। |
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चूरन :
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पुं० [सं० चूर्ण] खूब महीन पीसी हुई पाचक ओषधियों की बुकनी। चूर्ण। |
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चूरनहार :
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पुं० [सं० चूर्णहार] चिकने, मोटे तथा लंबे पत्तोंवाली एक जंगली बेल, जिसके पत्ते दवा के काम आते हैं। |
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चूरना :
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स० [सं० चूर्ण] १. चूर करना। टुकड़े-टुकडे करना। २. तोड़-फोड़ कर नष्ट करना। स० चुराना। उदाहरण–तुम्ह अँब राँड लीन्ह का चूरी।– जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चूरमा :
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पुं० [सं० चूर्ण] रोटी को घी में गूँध तथा भूनकर और चीनी मिलाकर बनाया जानेवाला व्यंजन। |
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चूरमूर :
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पुं० [देश०] जौ या गेहूँ की वे खूँटियाँ जो फसल कट जाने पर खेत में बची रह जाती हैं। |
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चूरा :
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पुं०[सं०चूर्ण] १.किसी चीज के टूटे फूटे या घिसे-पिटे बहुत छोटे-छोटे टुकड़े। जैसे–शीशे का चूरा। २. काठ,धातु आदि को चीरने-रेतने आदि पर उसमें से निकले हुए छोटे-छोटे कण। बुरादा। जैसे–लकड़ी या लोहे का चूरा। वि.-चूर (देखें)। पुं०[सं० चूड़] १. पैर या हाथ में पहनने का कड़ा। २. दे० चूड़ी। पुं० चिड़वा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चूरी :
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स्त्री० [सं० चूर्ण] १. बहुत महीन चूरा या चूर्ण। बुकनी। २. पूरी, रोटी आदि को चूर-चूर करके घी और चीनी मिलाया हुआ एक प्रकार का खाद्य पदार्थ। चरमा। स्त्री० चूड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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चूरू :
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पुं० [सं० चूर] गाँजे के मादा पेड़ों से निकाली हुई एक प्रकार की चरस जो कुछ घटिया समझी जाती है। |
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चूर्ण :
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पुं० [सं० चूर्ण (चूर्ण करना)+अप्] १. किसी चीज के वे बहुत छोटे-छोटे कण जो उसे बहुत अधिक कूटने, पीसने रेतने आदि से बनते हैं। चूरा। बुकनी। सफूफ। २. वैद्यक में, औषधों आदि का वह पिसा हुआ रूप जो खाने, छिड़कने आदि के काम में आता है। बुकनी। ३. विशिष्ट रूप से उक्त प्रकार से तैयार की हुई कोई ऐसी दवा जो पाचक हो। जैसे–हिंगाष्टक चूर्ण। ४. अबीर। ५. गर्दा। धूल। ६. चूना। ७. कौड़ी। वि० १. तोड़-फोड या काट-चीर कर बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में लाया हुआ। चूर किया हुआ। २. सब प्रकार से नष्ट-भ्रष्ट या शक्तिहीन किया हुआ। जैसे–किसी का गर्व या शक्ति चूर्ण करना। |
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चूर्ण-कार :
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वि० [सं० चूर्ण√कृ (करना)+अण्, उप० स०] चूर्ण करनेवाला। पं० १. आटा पीसने और बेचनेवाला व्यापारी। २. पराशर के अनुसार एक संकर जाति जिसकी उत्पत्ति पुंड्रक पुरूष और नट-स्त्री से कही गई है। |
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चूर्ण-कुंतल :
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पुं० [कर्म० स०] गुँथे हुए बाल। लट। जुल्फ। |
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चूर्ण-खंड :
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पुं० [सं० च० त०] कंकड़। |
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चूर्ण-पारद :
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पुं० [एक० त० स०] शिंगरफ। |
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चूर्ण-योग :
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पुं० [ष० त० स०] पीसकर एक में मिलाए हुए बहुत से सुंगधित पदार्थ। |
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चूर्ण-हार :
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पुं० [ष० त०] चूरनहार नाम की बेल। |
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चूर्णक :
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पुं० [सं० चूर्ण+कन्] १. सत्तू। सतुआ। २. एक प्रकार का शालि धान्य। ३. एक प्रकार का वृक्ष। ४. साहित्य में ऐसी गद्य रचना जिसमें छोटे-छोटे तथा मधुर शब्द और पद होते हैं। |
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चूर्णन :
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पुं० [सं०√चूर्ण+ल्युट-अन] चूर्ण करना। किसी सूखी वस्तु को कूट अथवा पीसकर उसे चूर्ण का रूप देना। |
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चूर्णशाकांक :
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पुं० [सं० चूर्ण-शाक, उपमि० स०√अंक+अण्, उप० स०] गौर सुवर्ण नामक साग। |
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चूर्णा :
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स्त्री०[सं० चूर्ण+टाप्] आर्या छंद का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में १८ गुरु और २१ लघु होते हैं। |
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चूर्णि :
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स्त्री० [सं०√चूर्ण+इन्] १. पतंजलि मुनि का रचा हुआ भाष्य। २. कौड़ी। ३. सौ कौड़ियों का समूह। |
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चूर्णि-कृत् :
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पुं० [सं० चूर्ण√कृ(करना)+क्विप्, उप० स०] १. भाष्यकार। २. महाभाष्यकार पतंजलि मुनि की एक उपाधि। |
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चूर्णिका :
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स्त्री० [सं० चूर्ण+ठन्-इक+टाप्] १. सत्तू। सतुआ। २. किसी बहुत कठिन ग्रंथ की किसी टीका या भाष्य जिससे उसके सब प्रसंग या स्थल स्पष्ट हो जाएँ। ३. प्राचीन साहित्य में, गद्य की एक शैली। |
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चूर्णित :
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भू० कृ० [सं०√चूर्ण+क्त] १. जिसे कूट अथवा पीसकर चूर्ण का रूप दिया गया हो। २. अच्छी तरह तोड़ा-फोड़ा या नष्ट-भ्रष्ट किया हुआ। |
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चूर्णी :
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स्त्री० [सं० चूर्णि+ङीष्] १. कार्षापण नामक पुराना सिक्का। २. कपर्द्दिका। कौड़ी। ३. एक प्राचीन नदी का नाम। ४. दे० ‘चूर्णिका’। |
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चूर्मा :
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पुं०=चूरमा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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