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छः  : वि० [सं० षट्; पा० प्रा० छः, अप० चह, बं० छय, ओ० छअ; छे, ल्हां० छे, छी; ने० सि० गु० छ; सिंह० स० सय, ह, हय, मरा० सहा] जो गिनती में पाँच से एक अधिक पं० हो। पुं० उक्त संख्या का सूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है।-६।
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छंग  : पुं० [हिं० उछंग] गोद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छंगा  : वि० [हिं० छः+उँगली] [स्त्री० छंगी] जिसके हाथ में (पाँच की जगह) छः उँगलियाँ हों।
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छँगुनिया  : स्त्री०=छँगुली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छँगुलिया  : स्त्री०=छँगुली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छँगुली  : स्त्री० [हिं० छोटी+उँगली] हाथ की सबसे छोटी उँगली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छंगू  : पुं०=छंगा।
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छँछला  : पुं० [अनु०] छन छन शब्द (नूपुरों आदि का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छंछाल  : स्त्री० [?+हिं० उछाल] छोटी धारा। फव्वारा। उदाहरण–रायजादी घर-अंगणइ छुटे पेट, छुटे पेट छंछाल।–ढोला मारू।
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छँछौरी  : स्त्री०=छछौरी।
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छंट  : क्रि० वि० [हिं० झट ?] शीघ्र। जल्दी। उदाहरण–कहै सखी सूँनीर लै रावल छंट उनय।–जटमल।
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छँटना  : अ० [हिं० छाँटना] १. किसी वस्तु अथवा उसके किसी अंश का कटकर अलग होना। जैसे–सिर के बाल या पेड़ की डाल छँटना। २. किसी का अपने वर्ग या समूह से अलग होना। जैसे–दल में से चार आदमियों का छँटना। ३. किसी वस्तु में से अतिरिक्त, अनावश्यक या फालतू अंश निकालकर अलग होना। जैसे–कार्यालय से कर्मचारी छँटना। ४. छिन्न-भिन्न या तितर-बितर होना। जैसे–बादल छँटना, भीड़ छँटना। ५. किसी क्रिया के फलस्वरूप कम होना या नष्ट हो जाना। न रह जाना। जैसे–आँख की लाली छँटना, कपड़े की मैल छंटना। ६. चुन कर अच्छी वस्तुएँ अलग रखी जाना। जैसे–ये अनार छँटे हुए हैं। पद–छंटा हुआ=चालाक या धूर्त्त (व्यक्ति)। ७. आकार या मोटाई में कम होना। क्षीण होना।
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छँटनी  : स्त्री० [हिं० छाँटना] १. छाँटने या छाँटे जाने की क्रिया या भाव। छँटाई। २. किसी काम या कार्यालय में लगे हुए आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों या कार्यकत्ताओं को निकालकर अलग करने या सेवा से हटाने का काम। (रिट्रेन्चमेंट)।
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छँटवाना  : स० [हिं० छाँटना का प्रे० रूप] छाँटने का काम दूसरे से कराना।
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छँटाई  : स्त्री० [हिं० छाँटना] १. छाँटने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. दे० ‘छँटनी’।
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छँटाना  : स०=छँटवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छँटाव  : पुं० [हिं० छाँटना] छाँटने की क्रिया या भाव । छँटाई।
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छँटुआ  : वि० [हिं० छाँटना] १. छाँटकर निकाला हुआ। (पदार्थ) २. जिसमें से अच्छी वस्तुएँ निकाल ली गई हों। बचा-खुचा या रद्दी। जैसे–छँटुआ माल।
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छँटैल  : वि० [हिं० छाँटना] १. छँटुआ। (दे०) २. (व्यक्ति) जो बहुत ही धूर्त हो। छँटा हुआ।
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छँटौनी  : स्त्री०=छँटनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छँड़ना  : स० [हिं० छोड़ना] छोड़ना। छोड़ देना। उदाहरण–इमि रसाल गुन गरुब वधि वसुधा महि छंड़हि।–चंदवरदाई। स० [हिं० छड़ना] १. किसी चीज का रद्दी अंश निकालने के लिए उसे कूटना। जैसे–ओखली में धान छड़ना। २. अच्छी तरह मारना-पीटना।
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छँड़ाना  : स० [हिं० छुड़ाना] १. मुक्त कराना। २. छीन लेना। स० [हिं० छड़ना का प्रे० रूप](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) छंडऩे का काम दूसरे से कराना।
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छँड़ुआ  : वि० [हिं० छाड़ना] १. छोड़ा हुआ। त्यागा हुआ। २. मुक्त किया हुआ।
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छंद  : पुं० [सं०√छंद् (प्रसन्न करना)+घञ्] १. अभिलाषा। इच्छा। २. अभिप्राय। मतलब। ३. उपाय। तरकीब। युक्ति। ४. तरह-तरह के रूप धारण करने की क्रिया या भाव। ५. कपट। छल। ६. संघात। समूह। ७. गाँठ। बंधन। पुं० [सं० छंदस्(√छंद+असुन्)] १. मात्राओं या वर्णों का कोई निश्चित मान जिसके अनुसार किसी पद्य के चरण लिखे जाते हैं। आकार, विस्तार आदि के विचार से वे रूप या साँचे जिनमें पद्यात्मक रचना बनती है। (मीटर) विशेष–हमारे यहाँ छन्द दो प्रकार के होते हैं–मात्रिक और वर्णिक। मात्रिक छंद को मात्रा-वृत्त और जाति छंद तथा वर्णिक को वर्ण-वृत्त भी कहते हैं। २. वह साहित्यिक पद्यात्मक रचना जो किसी छंद के नियमों के अनुसार लिखी गई हो। ३. विवाह के समय वर द्वारा कन्या पक्षवालों को सुनाई जानेवाली एक प्रकार की छोटी कविता। ४. वेद। ५. मनमाना आचरण। स्वेच्छाचार। पुं० [सं० छंदक] कलाई पर पहना जानेवाला एक प्रकार का गहना। छंदक
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छंदः शास्त्र  : पुं० [ष० त०] वह शास्त्र जिसमें विभिन्न छंदों के रूप और लक्षण बतलाये जाते हैं।
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छंदना  : अ० [हिं० छंद] १. छंद बनाना। २. किसी छंद में कविता करना। ३. कविता करना। उदाहरण–दुःख प्रद उभय बीच कुछ छंदूँ।–निराला। अ० [हिं० छाँदना का अ० रूप] छाँदा अर्थात् बाँधा जाना। जैसे–गधे या घोड़े का पैर छंदना।
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छँदरना  : स० [सं० छंद] धोखा देना। छलना।
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छंदवासी(सिन्)  : वि० [सं० छंद√वस् (रहना)+णिनि] [स्त्री० छंदवासिनी] उच्छृंखलतापूर्ण और मनमाना आचरण करने वाला।
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छंदा  : वि० [हिं० छानना] [स्त्री० छँदी] चरने के लिए छोड़ा हुआ (पशु) जिसके दोनों पैर बँधे हुए हों।
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छंदानुवृत्ति  : स्त्री० [छंद-अनुवृत्ति, तृ० त०] किसी को किसी छल या बहाने से प्रसन्न करने की क्रिया या भाव।
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छंदित  : भू० कृ० [सं०√ छंद+क्त] प्रसन्न किया हुआ।
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छंदोगति  : स्त्री० [सं० छंदस्-गति, ष० त०] किसी छंद में शब्दों आदि की वह योजना जिसके द्वारा उसके पढ़ने में एक विशेष प्रकार की गति या लय का अनुभव हो।
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छंदोदोष  : पुं० [सं० छंदस्+दोष, ष० त०] छंद में निश्चित मात्राओं या वर्णों से अधिक या कम मात्राएँ या वर्ण होने का दोष। (छंदशास्त्र)।
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छंदोबद्ध  : वि० [सं० छदस्-बद्ध स० त०] (साहित्यिक रचना) जो किसी छंद या पद्य के रूप में हो। छंद या पद्य में बँधा हुआ रचा हुआ। (कथन या लेख)। (मीट्रिकल)
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छंदोभंग  : पुं० [सं० छंदस्-भंग, ष० त०] छंद रचना में छंद-शास्त्र के नियमों के पालन की वह त्रुटि जिससे उसमें ठीक गति या लय का अभाव होता है अथवा ठीक स्थान पर यति या विराम नहीं होता।
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