शब्द का अर्थ
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					जठर					 :
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					पुं० [√जन् (उत्पन्न होना)+अर, ठ आदेश] १. पेट। २. पेट का भीतरी भाग। ३. किसी वस्तु का भीतरी भाग। ४. एक उदर रोग जिसमें पेट फूलने लगता है और भूख बन्द हो जाती है। ५. शरीर। ६. एक पर्वत। (पुराण)। वि० १. जो कठोर कड़ा या दृढ़ हो। २. पुराना। ३. वृद्ध। ४. बँधा या बाँधा हुआ।				 | 
			
			
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					जठर-गद					 :
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					पुं० [ष० त०] आँत में होनेवाला विकार।				 | 
			
			
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					जठर-ज्वाला					 :
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					स्त्री० [ष० त०] १. पेट में लगनेवाली भूख अथवा इस भूख से होनेवाला कष्ट। २. शूल। (दे०)।				 | 
			
			
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					जठराग्नि					 :
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					स्त्री० [जठर-अग्नि, मध्य० स०] जठर या पेट के अंदर का वह शारीरिक ताप जिससे खाया हुआ अन्न पचता है।				 | 
			
			
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					जठराजि					 :
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					स्त्री०=जठराग्नि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					जठरानल					 :
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					पुं० [जठर-अनल, मध्य० स०] जठराग्नि। (दे०)				 | 
			
			
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					जठरामय					 :
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					पुं० [जठर-आमय] १. अतिसार रोग। २. जलोदर (रोग)।				 | 
			
			
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