शब्द का अर्थ
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					जीभ					 :
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					स्त्री० [सं० जिह्वा, जिह्विका, प्रा० जिब्भा, जिब्भया, जैन, प्रा० जिब्भा, जीहा] १. मुँह में तालु के नीचे का वह चिपटा लंबा तथा लचीला टुकड़ा जिसमें रसों का आस्वादन और ध्वनियों का उच्चारण किया जाता है। जबान। रसना। पद–छोटी जीभ=गले के अंदर की घंटी। कौआ। गलशुंडी। मुहावरा–जीभ करना=ढिठाई से जबाव देना। जीभ खोंलना=कुछ कहना। जीभ चलना=(क) विभिन्न वस्तुओं के स्वाद लेने की इच्छा होना। (ख) बहुत ही उग्र बातें कहना। जीभ निकालना=दंड देने के लिए जीभ उखाड़ना या काट लेना। (किसी की) जीभ पकड़ना=(क) किसी को कोई बात न कहने देना। किसी को विवश करना कि वह कोई विशिष्ट बात न कहे। (ख) किसी को उसकी कही हुई बात के पालन के लिए विवश करना। जीभ हिलना=मुँह से कुछ कहना। (किसी की) जीभ के नीचे जीभ होना=किसी का अपने सुभीते के अनुसार कई तरह की बातें कहना। अपने कथन या वचन का ध्यान न रखना। २. जीभ के आकार की कोई चिपटी तथा लंबोतरी वस्तु। जैसे–निब।				 | 
			
			
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					जीभा					 :
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					पुं० [हिं० जीभ] १. जीभ के आकार की कोई बड़ी वस्तु। जैसे–कोल्हू का पच्चर। २. एक रोग जिसमें चौपायों की जीभ के काँटे कुछ सूज तथा बढ़ जाते हैं और जिसके कारण उन्हें कुछ खाने में बहुत कष्ट होता है। ३. एक रोग जिसमें बैलों की आँख के आगे का मांस बढ़कर लटकने लगता है।				 | 
			
			
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					जीभी					 :
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					स्त्री० [हिं० जीभ] १. धातु आदि का बना हुआ वह पतला धनुषाकार पत्तर जिससे जीभ पर जमी हुई मैल उतारी या छीली जाती है। २. मैल साफ करने के लिए जीभ छीलने की क्रिया। ३. कलम की निब। ४. छोटी जीभ। गलशुंडी।				 | 
			
			
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