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झ  : देवनागरी वर्णमाला में च वर्ग का चौथा अक्षर जो उच्चारण तथा भाषा-विज्ञान की दृष्टि से तालव्य, स्पर्श संघर्षी, महाप्राण तथा सघोष व्यंजन है।
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झं  : पुं० [अव्यक्त ध्वनि] १. धातु के किसी पात्र पर आघात होने से उसमें से निकलने वाला शब्द। २. हाथी की चिघाड़।
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झइ  : स्त्री=झाईं।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झउवा  : पुं०=झाबा।
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झक  : स्त्री० [अनु०] १. मन की वह वृत्ति जिसके फलस्वरूप मनुष्य बिना समझे-बूझे और प्रायः हठवश किसी काम में प्रवृत्त होता है। इसकी गिनती कुछ हलके पागलपन में होती है। क्रि० प्र०–चढ़ना।–लगना।–सवार होना। २. दुर्गंध या बू। जैसे–सड़ी तरकारी की झक। वि० [हिं० झकाझक] १. स्वच्छ तथा उज्जवल। २. चमकदार। चमकीला। स्त्री०=झख।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झककेतु  : पुं०=झषकेतु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झकझक  : स्त्री० [अनु०] व्यर्थ की तकरार या हुज्जत। किचकिच।
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झकझका  : स्त्री० [हिं० झकझक] १. जो बिलकुल साफ या स्वच्छ हो। उज्जवल। जैसे–झकझका कुरता। २. जिसमें ओप या चमक हो। चमकीला।
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झकझकाहट  : स्त्री० [अनु०] ओप। चमक।
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झकझोर  : पुं० [अनु०] १. झकझोरने की क्रिया या भाव। २. हवा का झकोरा या झोंका। ३. झटका। वि० १. झकझोरा हुआ। २. जिसमें किसी तरह का झोंका या गति की तीव्रता हो। तीव्र। तेज।
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झकझोरना  : स० [अनु०] १. किसी चीज या जीव को उठा या पकड़कर इस प्रकार झटकना या जोर-जोर से हिलाना कि वह टूट-फूट जाय या बेदम हो जाय। २. पेड़ या उसकी शाखा को इस प्रकार हिलाना कि उसके पत्ते या फल नीचे गिर पड़ें।
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झकझोरा  : पुं० [अनु०] झटका। धक्का।
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झकझोलना  : स०=झकझोरना।
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झकड़  : पुं०=झक्कड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झकड़ी  : स्त्री० [देश०] वह बरतन जिसमें दूध दूहा जाता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंकना  : अ० दे० ‘झीखना’।
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झकना  : अ० हिं० बकना का अनु०। अ० [हिं० झख+ना (प्रत्यय)] झख मारना।
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झकर  : पुं०=झक्कड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झका  : वि०=झक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झकाझक  : वि० [अनु०] १. स्वच्छ तथा उज्जवल। २. चमकीला।
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झंकाड़  : +पुं०=झंखाड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंकार  : स्त्री० [सं० झन-कार, ब० स०] १. धातु के किसी पात्र पर आघात लगने पर कुछ समय तक उसमें से बराबर निकलता रहनेवाला झनझन शब्द। झनकार। २. कुछ कीड़ों के बोलने का झन झन शब्द। जैसे–झिल्ली या झींगुर की झंकार।
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झंकारना  : स० [सं० झंकार] धातु के किसी टुकड़े का पात्र पर इस प्रकार आघात करना कि वह झन झन शब्द करने लगे। अ० झन झन शब्द उत्पन्न होना।
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झंकारिणी  : स्त्री० [सं० झंकार+इनि-ङीप्] गंगा।
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झँकिया  : स्त्री० [हिं० झाँकना] १. छोटी खिड़की। झरोखा। २. झँझरी। जाली।
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झकुरना  : अ० [?] उदास होना। (बुंदेल)।
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झकुराना  : अ० [हिं० झकोरा] झकोरा लेना। झूमना। स०=झकोरा देना। हिलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झकूटा  : पुं० [अनु०] छोटा पेड़। क्षुप।
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झंकृत  : भू० कृ,० [सं० झन√ कृ(करना)+क्त] जिसमें से झंकार निकली या उत्पन्न हुई हो।
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झंकृता  : स्त्री० [सं० झंकृत+टाप्] तारा देवी।
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झंकृति  : स्त्री० [सं० झन्√ कृ(करना)+क्तिन्] झंकार।
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झँकोर  : पुं०=झकोरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झकोर  : स्त्री० [अनु०] झकोरने की क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=झकोरा (हवा का झोंका)।
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झँकोरना  : अ०=झकोरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झकोरना  : अ० [अनु०] हवा का झोंका मारना। स०=झकझोरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झकोरा  : पुं० [अनु०] हवा का झोंका।
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झँकोलना  : अ=झकोरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झकोलना  : स० [?] १. डालना। २. मिलाना।
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झँकोला  : पुं=झकोरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झकोला  : पुं०=झकोरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झकोला  : पुं० [हिं० झोंका] १. हवा का झोंका। २. तेज हवा के कारण उठनेवाली पानी की लहर। वि० जिसमें कुछ भी कसाव या तनाव न हो। ढीला-ढाला। उदाहरण–चारपाई बिलकुल झकोली थी।–वृन्दावनलाल।
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झक्क  : वि० स्त्री०=झक।
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झक्कड़  : पुं० [अनु०] तेज आँधी। अंधड़। क्रि० प्र०–उठना–चलना। पुं० दे० ‘झक्की’।
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झक्का  : पुं० [अनु०] १. हवा का तेज झोंका। २. तेज आँधी। झक्कड़। (लश०)
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झक्की  : वि० [हिं० झक] जिसे किसी बात की झक या सनक हो। नासमझी से और केवल हठ-वश किसी काम में लगा रहनेवाला। सनकी।
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झक्खड़  : पुं=झक्कड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झक्खना  : अ०=झीखना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झख  : स्त्री० [हिं० झीखना] १. झीखने की क्रिया या भाव। मुहावरा–झख मारना=(क) ऐसा तुच्छ और व्यर्थ का काम करना जिसमें विफलता निश्चित हो, अथवा जिसका कुछ भी परिणाम या फल न हो सकता हो। (उपेक्षा या तिरस्कार सूचक) जैसे–आप भी वहाँ झख मारने गये थे। (ख) बहुत ही विवशता की दशा में झीखना। जैसे–तुम्हें भी वहाँ झख मारकर जाना पड़ेगा। विशेष–कुछ लोग ‘झख’ को सं० झष से व्युत्पन्न मानकर उक्त मुहावरे का अर्थ करते हैं मछली मारने की तरह का व्यर्थ सा काम बहुत सा समय लगाकर और चुपचाप बैठकर प्रतीक्षा करते हुए पूरा करना। पर वह व्युत्पत्ति ठीक नहीं जान पड़ती। स्त्री० [सं० झष] मछली। उदाहरण–झखौ विलखि दुरि जात जल लखि जलजात लजात।–बिहारी।
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झखकेतु  : पुं०=झषकेतु।
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झंखना  : अ० १. दे० ‘झीखना’। २. दे० ‘झाँकना’।
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झखना  : अ०=झीखना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झखनिकेत  : पुं=झषनिकेत।
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झंखर  : पुं०=झंखाड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झखराज  : पुं०=झषराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झखलगन  : पुं०=झखलग्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झखाट  : वि०=झंखाड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंखाड़  : पुं० [हिं० झाड़ का अनु०] १. काँटेदार अथवा और प्रकार के जंगली घने पौधे या उनका समूह। २. व्यर्थ के कूड़े-करकट का ढेर। वि० (वृक्ष) जिसके पत्ते झड़ गये हों।
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झखिया  : स्त्री=झखी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झखी  : स्त्री० [सं० झष०] मछली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झगड़ना  : अ० [हिं० झकझक से अनु०] अपना पक्ष ठीक सिद्ध करने के लिए दो व्यक्तियों या पक्षों का आवेश या क्रोध में आकर आपस में कुछ कहा-सुनी करना। झगड़ा करना।
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झगड़ा  : पुं० [हिं० झगड़ना का भाव०] १. दो पक्षों में होनेवाली ऐसी कहा-सुनी या विवाद जिसमें प्रत्येक अपना पक्ष ठीक बतलाता हुआ दूसरे को अन्यायी या दोषी ठहराता है। २. वह चीज या बात जिसके कारण लोग आपस में लड़ते हों। ३. मुकदमा।
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झगड़ालू  : वि० [हिं० झगड़ा+आलू (प्रत्यय)] जो प्रायः दूसरों से झगड़ा किया करता हो।
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झगड़ी  : वि०=झगड़ालू।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=झगड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झगर  : पुं० [देश०] एक प्रकार की चिड़िया।
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झगरना  : अ०=झगड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंगरा  : पुं० [देश०] [स्त्री० अल्पा० झँगरी] बाँस की खपचियों का बना हुआ जालीदार बड़ा टोकरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झगरा  : पुं०=झगड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झगराऊ  : वि० =झगड़ालू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झगरी  : स्त्री०=झगड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झगला  : पुं०=झगा।
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झंगा  : पुं०=झगा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झगा  : पुं० [?] १. छोटे बच्चों के पहनने का एक प्रकार का ढीला-ढाला छोटा कुरता। उदाहरण– सीस पगा न झगा तन पै, प्रभु जाने को आहि बसे केहि ग्रामा।–नरोत्तम। २. ढीला कुरता।
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झंगिया  : स्त्री०=झँगुली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँगुला  : पुं० [हि० झगा] [स्त्री० अल्पा० झँगुलिया, झँगुली] बच्चों के पहनने का छोटा कुरता।
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झगुलिया  : स्त्री०=झगुली।
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झँगुली  : स्त्री० [हिं० झँगुला का स्त्री०] छोटा झँगुला।
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झगुली  : स्त्री० [हिं० झगा का अल्पा०] झगा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झगूला  : पुं० [स्त्री० अल्पा० झँगूली]=झँगुला।
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झंजोड़ना  : स०=झझोड़ना।
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झज्झर  : स्त्री०=झंझर।
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झज्झी  : स्त्री०=झंझी।
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झंझ  : स्त्री० १. दे० ‘झाँझ’। २. दे० ‘झंझा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झझक  : स्त्री० [हिं० झझकना] १. झझकने की क्रिया या भाव। २. क्रोध में आकर पागलों की तरह या झुँझलाते हुए बिगड़ खड़े होने की अवस्था या भाव। ३. कभी-कभी होनेवाला पागल का सा हलका दौरा। जैसे–जब कभी इन्हें झझक आ जाती है तब ये इसी तरह बकते हैं। ४. किसी पदार्थ में से रह-रहकर निकनलेवाली हल्की दुर्गन्ध। जैसे–इस नल में से कभी-कभी झझक आती है। क्रि० प्र०–आना।–निकलना। स्त्री०=झिझक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झझकन  : स्त्री०=झझक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झझकना  : अ० [अनु०] १. झझक में आकर अर्थात् झक या सनक में आकर बिगड़ खड़े होना। २. दे० ‘झिझिकना’।
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झझकाना  : स० [हिं० झझकना का प्रे०] किसी को झझकने में प्रवृत्त करना। चौंकाना। स० [हिं० झिझकरना] झिझकने में प्रवृत्त करना।
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झझकार  : स्त्री० [झझकारना] १. झझकारने की क्रिया या भाव। २. दे० ‘झझक’।
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झझकारना  : स० [अनु०] १. डाँटना। डपटना। २. तुच्छ समझकर दुरदुराना।
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झंझट  : स्त्री० [अनु०] ऐसा काम या बात जिसके साधन में कई प्रकार की छोटी मोटी कठिनाइयाँ हो और जिसके लिए विशेष परिश्रम या प्रयत्न करना पड़े। बखेड़ा।
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झंझटी  : वि० [हिं० झंझट] १. (काम या बात) जिसे संपादन करने में अनेक प्रकार की झंझटें खड़ी होती हों। २. (व्यक्ति) जो हर बात को उलझता तथा उसे झगड़े का रूप देता हो। ३. झगड़ालू।
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झंझन  : पुं० [सं०] झंकार।
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झंझनाना  : अ० [हिं० झन झन] झन झन शब्द उत्पन्न होना। स० झन झन शब्द उत्पन्न करना।
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झंझंर  : स्त्री० [सं० अलिंजर] मिट्टी का जल रखने का एक छोटा पात्र। वि०=झँझरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँझरा  : पुं० [हिं०] मिट्टी का छोटे-छोटे छेदोंवाला वह ढकना जिससे खौलता हुआ दूध ढका जाता है। वि० [स्त्री० झँझरी] १. जिसमें बहुत से छोटे-छोटे छेद हों। २. बहुत ही झीना या महीन (कपड़ा)
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झंझरि  : वि० [सं० जर्जर] जर्जर। क्षत-विक्षत। स्त्री०=झंझरी।
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झँझरी  : स्त्री० [हिं० झर झर से अनु०] १. किसी चीज में बने हुए बहुत से छोटे-छोटे छेदों का समूह। जाली। २. दीवारों आदि की जालीदार खिड़की या झरोखा। ३. लोहे के चूल्हें की वह जाली जिस पर जलते हुए कोयले रहते हैं। ४. छेद। सुराख। ५. आटा छानने की चलनी। छाननी। ६. लोहे का जालीदार पौना। झरना। ७. एक प्रकार की जल कीड़ा जिसमें छोटी नावों पर बैठकर उन्हें चक्कर देते हैं।
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झँझरीदार  : वि० [हिं० झंझरी+पा० दार] जिसमें बहुत से छोटे-छोटे छेद पास-पास बने हुए हों।
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झंझा  : स्त्री० [सं० झम√झट् (इकट्ठा होना)+ड-टाप्] १. वह तेज आँधी जिसके साथ पानी भी जोरों से बरसता हो। २. अंधड़। आँधी। वि० तेज। प्रचंड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=झाँझ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंझा-मरुत्  : पुं=झंझानिल।
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झंझानिल  : पुं० [सं० झंझा+अनिल, मध्य० स०] १. प्रचंड वायु। आँधी। २. ऐसी आँधी जिसके साथ पानी भी बरसे।
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झंझार  : पुं० [सं० झंझा] आग की ऊंची तथा बड़ी लपट।
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झंझावात  : पुं=झंझानिल।
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झझिया  : स्त्री०=झिंझिया।
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झंझी  : स्त्री० [देश०] १. फूटी कौड़ी। २. दलालों को दलाली में मिलनेवाली रकम। (दलाल)।
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झँझोटी, झँझौटी  : स्त्री=झिंझौटी।
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झंझोड़ना  : सं० [सं० झर्झन] किसी चीज को अच्छी तरह पकड़कर जोर-जोर से तथा बार-बार झटकना या हिलाना जिससे वह टूट-फूट जाय या बेदम हो जाय। झकझोरना। जैसे–बिल्ली का कबूतर या चूहे को झँझोड़ना।
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झँझोरा  : पुं० [देश०] कचनार का पेड़।
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झट  : अ० य० [सं० डटिति] १. बहुत तेजी या फुरती से। २. चटपट। तत्काल। तुरन्त।
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झटकना  : स० [सं० झट्ट] १. इस प्रकार किसी चीज को एकाएक जोर से हिलाना कि वह गिर पड़े। झटका देना। २. धोखा देकर अथवा जबरदस्ती किसी की कोई चीज ले लेना। अ० चिंता, रोग आदि के कारण बहुत अधिक अशक्त या दुर्बल होना।
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झटका  : पुं० [हिं० झटकना] १. झटकने की क्रिया या भाव। २. ऐसा आघात या हलकी ठोकर जिससे गति सहसा रुक जाय और इधर-उधर हटना या गिरना पड़े। हलका धक्का। झोंका। (जर्क) ३. आपत्ति, रोग, शोक आदि का ऐसा आघात जो बहुत कुछ निकम्मा कर दे। ४. मांस खाने के लिए पशु-पक्षी आदि काटने का वह प्रकार (जबह या हलालवाले प्रकार से भिन्न) जिसमें हथियार के एक ही आघात से गरदन काट देते हैं।
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झटकारना  : स० [हिं० झटकना] जोर से झटका देना। जैसे–कपड़ा झट-कारना।
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झटपट  : अव्य० [हिं० झट+अनु० पट] अति शीघ्र। तुरंत ही। फौरन।
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झटा  : स्त्री० [सं०√झट्+अच्–टाप्] भू–आँवला।
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झटाका  : क्रि० वि०=झड़ाका।
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झटास  : स्त्री० [हिं० झड़ी] बौछार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झटि  : स्त्री० [सं०√झट्+इन्] झाड़। झाड़ी।
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झटिका  : स्त्री० [?] तेज हवा।
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झटिति  : क्रि० वि० [सं०√झट्+क्विप्√इ+क्तिन्०] १. झट से। चटपट। तुरंत। २. बिना कुछ सोचे समझे और तुरंत।
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झट्ट  : क्रि० वि०=झट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंड  : स्त्री० [सं० जट] छोटे बालकों के जन्म काल के सिर के बाल बच्चों के मुंडन के पहले के बाल जो प्रायः कटवाये न जाने के कारण बड़े बड़े हो जाते हैं। मुहावरा–झंड उतारना=बच्चे का मुंडन संस्कार करना। पुं०=जंड (करील का वृक्ष)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झड़  : स्त्री०=झड़ी।
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झड़कना  : स०=झिड़कना।
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झड़क्का  : पुं=झड़ाका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झड़झड़ाना  : स० [अनु०] १. झड़ झड़ शब्द उत्पन्न करना। २. झड़ झड़ शब्द करते हुए कुछ गिरना, फेंकना या हटाना। झटकारना। ३. झँझोंड़ना। ४. झिड़कना। अ० १. झड़झड़ शब्द होना। २. झड़ झड़ शब्द करते हुए गिरना।
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झड़त्कार  : पुं० [सं० झणत (अव्यक्त शब्द)-कार, ब० स०] झनकार।
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झडन  : स्त्री० [हिं० झड़ना] १. झड़ने की क्रिया या भाव। २. झड़ने या झाड़ने से निकलने वाली चीज। ३. दलाली, मुनाफे सूद आदि के रूप में मिलनेवाली रकम जो किये हुए परिश्रम या लगाई हुई पूँजी में से झड़ी या निकली हुई होती है।
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झड़ना  : अ० [सं० क्षरण] १. किसी चीज में से उसके छोटे-छोटे अंगों या अंशों का टूट-टूटकर गिरना। जैसे–पेड़ में से पत्तियाँ झडना। २. ऊपर पड़े हुए बहुत छोटे-छोटे कणों का अलग होकर गिरना। जैसे–कपड़े या शरीर पर की धूल झड़ना। ३. वीर्य का स्खलित होना। (बाजारू)। अ० [हिं० झाड़ना का अ०] झाड़ा या साफ किया जाना।
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झड़प  : स्त्री० [अनु०] १. झड़पने की क्रिया या भाव। २. दो जीवों या प्राणियों में कुछ समय के लिए होनेवाली ऐसी छोटी लड़ाई जिसमें वे एक दूसरे पर रह-रहकर झपटते हों। ३. दो व्यक्तियों में उक्त प्रकार से होने वाली कहा-सुनी। आवेश और क्रोध के वश में होकर की जाने वाली अप्रिय, आक्षेपपूर्ण और कटु-बात-चीत।
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झड़पना  : अ० [अनु०] आवेश और क्रोधपूर्वक किसी पर आक्रमण करना। टूट पड़ना। स० उक्त प्रकार से आक्रमण करके किसी से कुछ छीन लेना। जैसे–लड़के के हाथ से बंदर ने अमरूद झड़प लिया।
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झड़पा-झ़ड़पी  : स्त्री० [अनु०] १. झ़ड़प। २. गुत्थमगुत्था। हाथापाई।
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झड़पाना  : स० [हिं० झड़पना] १. दो जीवों विशेषतः पक्षियों को झड़पने या झपटने में प्रवृत्त करना। २. दूसरों को लड़ने-झगड़ने में प्रवृत्त करना।
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झड़बेरी  : स्त्री० [हिं० झाड़+बेर] १. जंगली बेर का वृक्ष। २. उक्त वृक्ष का फल। पद–झड़ बेरी का काँटा=ऐसा व्यक्ति जो सदा उलझने या लड़ने-भिड़ने को तैयार रहता हो और जिससे जल्दी पीछा छुड़ाना कठिन हो।
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झड़बैरी  : स्त्री०=झड़-बेरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झड़वाई  : स्त्री० [हिं० झड़वाना] झाड़ने या झड़वाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक।
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झड़वाना  : स० [हिं० झाड़ना का प्रे० रूप] १. झाड़ने का काम दूसरे से कराना। २. नजर या भूत-प्रेत आदि लगने पर ओझे से झाड़ फूँक कराना।
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झंडा  : पुं० [सं० ध्वज+दंड, पा० धजोदंड, प्रा० झपअंड, गु० सि० झंडो, मरा० झेंडा] [स्त्री० अल्पा० झंडी] १. झंडे के सिर पर लगा हुआ कपड़े का वह आयताकार या तिकोना टुकड़ा जिस पर कुछ विशिष्ट चिन्ह बने होते हैं तथा जो किसी जाति, दल, राष्ट्र, संप्रदाय या समाज का प्रतीक चिन्ह होता तथा जो भवनों, मंदिरों, आदि पर फहराया जाता है। ध्वजा पताका। मुहावरा–(किसी बात का) झंडा खड़ा करना=इस रूप में कोई नया काम आरंभ करना कि और लोग भी आकर सम्मिलित हों तथा उसके अनुयायी बनें। जैसे–विद्रोह का झंडा खड़ा करना। (किसी स्थान पर) झंडा गाड़ना-किसी स्थान पर अधिकार कर लेने के उपरांत वहाँ अपना झंडा लगाना। जो विजय का सूचक होता है। झंडा फहराना=झंडा गाड़ना। (किसी के) झंडे तले आना=किसी की अधीनता स्वीकार करना तथा उसी के पक्ष में सम्मिलित होना या उसका अनुयायी बनना। पद–झंडे तले की दोस्ती=बहुत सी साधारण या आकस्मिक रूप से होनेवाली जान-पहचान। २. उक्त झंडे का प्रतीक कागज का वह छोटा टुकड़ा जिस प किसी राष्ट्र, संप्रदाय आदि के चिन्ह बने होते हैं। (फ्लेग)। पद–झंडा दिवस (दे०)। पुं० [सं० जयंत] ज्वार, बाजरे आदि पौधे के ऊपर का नर-फूल। जीरा।
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झंडा दिवस  : पुं० [हिं० झंडा+फा० दिवस] किसी विशिष्ट आंदोलन या लोकोपकारी कार्य से लोगों को परिचित कराने और उनकी सहानुभूति प्राप्त करने के लिए मनाया जानेवाला कोई विशिष्ट दिन जिसमें स्वयंसेवक लोग प्रतीक रूप में छोटे-छोटे झंडे बेचते और बड़े-बड़े घर, दूकानों आदि पर लगाते हैं। (फ्लेग डे)।
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झड़ाई  : स्त्री० [हिं० झाड़ना] झाड़ने की क्रिया, भाव या मजदूरी। स्त्री०=झड़वाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [हिं० झड़ना] झड़ने की क्रिया या भाव।
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झड़ाक  : पुं०, क्रि० वि०=झड़ाका।
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झड़ाका  : क्रि० वि० [अनु०] बहुत जल्दी। चटपट। झट से। पुं०=झड़प।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झड़ाझड़  : क्रि० वि० [अनु०] १. बराबर एक के बाद एक। निरंतर। लगातार। २. बहुत जल्दी जल्दी या तेजी से।
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झंडी  : स्त्री० [हिं० झंडा का स्त्री० अल्पा० रूप] कपड़े, कागज आदि का बना हुआ छोटा झंडा जिसका व्यवहार प्रायः दीवारों पर सजावट आदि के लिए लगाने और सेना आदि में संकेत कराने के लिए होता है। पद–लाल झंडी=किसी प्रकार के अनिष्ट या संकट की सूचना देनेवाला पदार्थ या संकेत।
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झड़ी  : स्त्री० [हिं० झड़ना] १. झड़ने की क्रिया या भाव। २. कुछ समय तक लगातार झड़ते रहने की क्रिया या भाव० २. ऐसी वर्षा जो लगातार अधिक समय तक होती रहे। जैसे–तीन दिन से पानी की झड़ी लगी है। ४. लगातार एक पर एक होती रहनेवाली क्रिया या भाव। जैसे–गालियों की झड़ी, प्रश्नों की झड़ी। क्रि० प्र०–बँधना।–लगना। ५. ताले के अंदर का वह खटका जो चाबी के आघात से हटता-बढ़ता रहता है और जिसके कारण ताला खुलता और बंद होता है।
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झंडीदार  : वि० [हि० झंडी+फा० दार] जिसमें झंडी लगी हो।
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झँडूलना  : पुं० दे० ‘झँडूला’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँडूला  : वि० [हिं० झंड+ऊला (प्रत्यय)] १. (बालक जिसके सिर पर जन्म काल के बाल अभी तक वर्तमान हों। जिसका अभी मुंडन संस्कार न हुआ हो। २. (सिर के बाल) जो गर्भ-काल से ही चले आ रहे हों और अभी तक मूँडे न गये हों। ३. घनी डालियों और पत्तियोंवाला। सघन। (वृक्ष)। पुं० १. वह बालक जिसके सिर पर अभी तक गर्भ के बाल हों। २. गर्भ समय से चले आये हुए बाल जो अभी तक मूँड़े न गये हों। ३. घनी डालियों और पत्तियोंवाला वृक्ष। ४. =झुंड।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झ़डूला  : वि०=झंडूला।
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झंडोत्तोलन  : पुं० [हिं० झंडा+उत्तोलन] झंडा फहराने की क्रिया या रस्म। ध्वजोत्तलन। (असिद्ध रूप)।
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झण-झण  : पुं० [सं० अव्यक्त शब्द] झनझन शब्द।
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झन  : स्त्री० [अनु०] धातु के किसी पटल या पात्र पर आघात होने से उसमें से निकलनेवाला शब्द।
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झनक  : स्त्री० [अनु०] झन झन शब्द।
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झनक-मनक  : स्त्री० [अनु०] १. पहने हुए गहनों की एक दूसरे से टकराने पर होनेवाली झंकार। २. घुँघरुओं के बजने का शब्द।
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झनकता  : अ० [अनु०] १. धातु के किसी पटल या पात्र पर आघात होने पर उसमें से झन झन शब्द निकलना। २. कुछ क्रुद्ध और बहुत दुःखी होकर बड़बड़ाते रहना। बकना-झकना। ३. झीखना। ४. आवेश तथा क्रोध में आकर हाथ-पाँव पटकना।
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झनकवात  : स्त्री० [अनु० झनक+सं० वात] घोड़ो को होनेवाला एक वात रोग जिसमें उनकी टाँगों में एक प्रकार की कँपकपी होती है।
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झनकार  : स्त्री०=झंकार।
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झनकारना  : अ० स०=झंकारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झनझन  : स्त्री० [अनु०] झनझन शब्द। झंकार।
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झनझना  : पुं० [देश०] तमाखू में लगनेवाला एक कीड़ा जो उसकी नसों में छेद कर देता है। चनचना। वि० झनझन शब्द करनेवाला।
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झनझनाना  : अ० [अनु०] १. झनझन शब्द होना। २. दे० झनझना। स० झनझन शब्द उत्पन्न करना या निकालना।
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झनझनाहट  : स्त्री० [अनु०] १. झनझन शब्द होने की अवस्था, क्रिया या भाव। झंकार। २. दे० ‘झुनझुनी’।
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झनझोरा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़।
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झननन  : पुं० [अनु०] घुँघरू या पायल के बजने से होनेवाला शब्द।
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झननाना  : अ० [हिं० झननन] झन झन शब्द होना। स० झन झन शब्द उत्पन्न करना या निकालना।
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झनवाँ  : पुं० [देश०] एक प्रकार का धान।
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झनस  : पुं० [?] पुरानी चाल का एक प्रकार का बाजा जिस पर चमड़ा मढ़ा हुआ होता था।
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झनाझन  : स्त्री० [अनु०] झनझन शब्द। झंकार। क्रि० वि,० झन झन शब्द करते हुए।
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झनिया  : वि०=झीना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झन्नाना  : अ०=झनझनाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झन्नाहट  : स्त्री०=झनझनाहट।
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झंप  : पुं० [सं० झम√पत् (गिरना)+ड] १. उछलने की क्रिया या भाव। उछाल। २. कूदने की क्रिया या भाव। कुदान। क्रि० प्र०–देना।–मारना। ३. बहुत शीघ्रता से होनेवाली उन्नति या वृद्धि। पुं०=झांप।
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झप  : स्त्री० [सं० झंप या हिं० झपना] एकाएक किसी चीज के ऊँचाई पर से गिर पड़ने की अवस्था या भाव। मुहावरा–(गुड्डी या पतंग का) झप खाना=उड़ती हुई गुड्डी या पतंग का एकाएक पेंदे के बल नीचे गिर पड़ना। क्रि० वि० जल्दी से० झटपट।
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झपक  : स्त्री० [हिं० झपकना] १. झपकने अर्थात् बार-बार पलकें खोलने और बंद करने की क्रिया या भाव। २. एक बार पलक गिरने में लगनेवाला समय। ३. झपकी।
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झँपकना  : अ० १.=झपकना। २.=झँपना।
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झपकना  : अ० [सं० झंप] १. पलकें गिरना। २. पलकों का उठना और गिरना या खुलना और बंद होना। ३. झपकी लेना। ऊँघना। स०=झपकाना। अ०=झेंपना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ०=झपटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झपका  : पुं० [अनु०] हवा का झोंका। (लश०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झपकाना  : स० [अनु०] १. पलकें गिरना २. पलकें उठा तथा गिराकर आँखें खोलना और बंद करना।
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झँपकी  : स्त्री०=झपकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झपकी  : स्त्री० [हिं० झपकना] १. झपकने या झपकाने की क्रिया या भाव। २. वह नींद जो पलकें गिरने से आरंभ होती है और कुछ ही क्षणों बाद पलकें खुल जाने के कारण टूट जाती हो। हलकी नीद। क्रि० प्र०–आना।–लगना।–लेना। स्त्री० [अनु०] १. वह कपड़ा जिससे अनाज ओसाते हैं। २. धोखा।
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झपकौहाँ  : वि० [हिं० झपना] [स्त्री० झपकौंही] बार बार या रह-रहकर झपकनेवाला या झपकता हुआ। (आलस्य, तंद्रा निद्रा आदि के आगमन का सूचक) जैसे–झपकौंहें नयन, झपकौंही पलकें।
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झपट  : स्त्री० [सं० झंप] १. झपटने अर्थात् तेजी से आगे बढ़कर किसी पर आक्रमण करने की क्रिया या भाव। २. दे० ‘झडप’।
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झपटना  : अ० [सं० झंप=कूदना] १. वेगपूर्वक किसी की ओर बढ़ना। २. किसी को पकड़ने अथवा किसी के हाथ से कोई चीज छीन लेने के लिए उस पर वेगपूर्वक आक्रमण करना० जैसे–बिल्ली का चूहे पर झपटना। चील का मांस पर झपटना। स० झंपटकर या तेजी से बढ़कर कोई चीज ले लेना।
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झपटना  : स० [हिं० झपटने का प्रे० रूप] किसी को झपटने में प्रवृत्त करना। जैसे–कुत्ते को बिल्ली पर झपटाना।
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झपटान  : स्त्री०=झपट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झपट्ट  : स्त्री=झपट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झपट्टा  : पुं० [हिं० झपट] १. झपटने की क्रिया या भाव। झपट। २. किसी से कुछ सहसा छीन लेने के लिए उस पर किया जानेवाला आक्रमण। क्रि० प्र०–मारना। पद–चील झपट्टा=चील की तरह किसी पर झपटकर कोई चीज छीन लेने की क्रिया या भाव।
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झपड़ियाना  : अ० [हिं० झापड़+इयाना (प्रत्यय)] लगातार कई झापड़ या थप्पड़ लगाना।
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झँपताल  : पुं०=झपताल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झपताल  : पुं० [देश०] संगीत में पाँच मात्राओं का एक ताल।
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झँपना  : अ० [सं० झंप] १. उछलना। २. कूदना। ३. झपटना। ४. एकदम से आ पहुँचना। टूट पड़ना। ५. झेंपना। ६. पलकों का गिरना या बंद होना। ७.आड़ में होना। छिपना। ८. सो जाना। उदाहरण–वृक्ष मानों व्यर्थ बाट निहार। झँप उठे हैं झीम, झुक थक, हार।–मैथिलीशरण। स० १. आड़ में करना। छिपाना। २. ढकना। ३. बन्द करना। मूँदना।
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झपना  : अ० [हिं० झपकना] १. पलक गिरना। २. किसी वस्तु का ऊपर से नीचे की ओर एकाएक आना। जैसे–गुड्डी या पतंग का झपना। अ०=झेंपना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [स्त्री० अल्पा० झपनी] किसी पात्र का ढकना।
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झपनी  : स्त्री० [हिं० झाँपना=ढकना] १. वह जिससे कोई चीज ढकी जाय। ढकना। ढक्कन। २. छोटी ढक्कनदार पिटारी।
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झँपरिया  : स्त्री=झँपरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँपरी  : स्त्री० [हिं० झापना=ढकना] वह कपड़ा जो डोली या पालकी के ऊपर डाला जाता है। ओहार।
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झपलैया  : स्त्री० [हिं० झँपोला] छोटी टोकरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झपवाना  : स० [हिं० झपाना का प्रे० रूप] किसी को झपाने अर्थात् पलकें मूँदने में प्रवृत्त करना।
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झपस  : स्त्री० [हिं० झपसना] १. झपसने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. मार्ग में बाधक होनेवाले पेड़ की झुकी हुई डाल। (कहार)।
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झपसट  : स्त्री० [अनु०] छल। धोखे-बाजी। जैसे–तुम तो अपना काम झपसट में ही निकाल लेते हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झपसना  : अ० [हिं० झँपना+ढँकना] पेड़-पौधों लताओं आदि का खूब अच्छी तरह चारों ओर फैलना।
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झंपा  : पुं० १. दे० झब्बा। २. दे० बाल (अनाज की)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झंपाक  : पुं० [सं० झंप√अक् (जाना)+अण्] [स्त्री० झंपाकी] बंदर।
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झपाका  : पुं० [हिं० झप] जल्दी। शीघ्रता। क्रि० वि० बहुत जल्दी या तेजी से। चटपट। तुरन्त।
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झपाट  : क्रि० वि०=झटपट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झपाटा  : पुं०=झपट्टा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँपान  : पुं० [सं० झप] पहाड़ों पर सवारी के काम आनेवाली एक प्रकार की खटोली।
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झपाना  : पुं० [हिं० झपना] १. पलकें गिराना या मूँदना झपकाना। २. झुकाना अ०=झेंपना। (लज्जित होना)। स० ऐसा काम करना जिससे कोई झेपें। लज्जित करना।
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झंपारु  : पुं० [सं० झंप-आ√ रा(लेना)+डु] बंदर।
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झपाव  : पुं० [देश०] घास काटने का एक उपकरण।
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झंपित  : भू० कृ० [सं० झंप] १. ढका हुआ। २. छिपा हुआ।
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झपित  : भू० कृ० [हिं० झपना] १. झपा या मुँदा हुआ। २. जो झप या झपक रहा हो। बार-बार बन्द होता हुआ। ३. झेंपा हुआ। लज्जित।
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झँपिया  : स्त्री० [हिं० झाँपा] छोटा झाँपा।
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झपिया  : स्त्री० [देश०] १. गलें में पहनने का पुरानी चाल का हँसुली के आकार का एक गहना जिसके बीच में कोई नग जड़ा होता है। २. पिटारी।
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झंपी(पिन्)  : पुं० [सं० झप+इनि] बंदर।
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झपेट  : स्त्री० [हिं० झपेटना] १. झपेटने की क्रिया या भाव। २. झपेटे जाने की अवस्था या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झपेटना  : स० [हिं० झपटना] १. सहसा आक्रमण करना। झपटना। २. झपटकर किसी से कुछ छीन अथवा किसी को पकड़ या दबोच लेना।
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झपेटा  : पुं० [हिं० झपेटना] १. झपेटे जाने या किसी की झपट में आने की अवस्था, क्रिया या भाव। जैसे–भूत-प्रेत के झपेटे में आना या पड़ना। २. हवा का झोंका। झकोरा। ३. दे० ‘झपट’ ४. दे० ‘झिड़की’।
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झँपोला  : पुं० [हिं० झाँपा+ओला (प्रत्यय)] [स्त्री० अल्पा० झँपोली या झँपोलिया] १. छोटा झाँपा। २. पिटारा।
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झपोला  : पुं० [स्त्री० झपोली]=झँपोला (छोटी टोकरी)।
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झप्पड़  : पुं०=झापड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झप्पर  : पुं०=झापड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झप्पान  : पुं०=झँपान (एक प्रकार की पालकी या सवारी)।
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झप्पानी  : पुं० [हिं० झप्पान] झप्पान अर्थात् पालकी उठानेवाला आदमी।
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झंब  : पुं० [देश०] गुच्छा (प्रायः फलों का गुच्छा)।
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झब-झबी  : स्त्री० [देश०] कान में पहनने का एक प्रकार का तिकोना गहना।
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झबड़ा  : वि०=झबरा।
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झबधरी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास जो गेहूँ की फसल के लिए हानिकारक होती है।
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झबरा  : वि० [अनु०] [स्त्री० झबरी] (पशु) जिसके अंगों या शरीर में बड़े-बड़े बाल हों। जैसे–झबरा कुत्ता, झबरी बिल्ली। पुं०–भालू। (कलंदर)।
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झबरीला  : वि० [स्त्री० झबरीली]=झबरा।
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झबरैरा  : वि०=झबरीला (झबरा)।
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झबा  : पुं०=झब्बा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झबार  : पुं० दे० ‘झगड़ा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झबिया  : स्त्री० [हिं० झब्बा का स्त्री अल्पा० ] १. छोटा झब्बा। छोटा फुँदना। २. बहुत छोटी कटोरियों के आकार के वे छोटे-छोटे टुकड़े जो सोभा के लिए जोशन, बाजूबंद आदि गहनों में लगाए जाते हैं। स्त्री० [हिं० झाबा० का स्त्री अल्पा० ] छोटा झाबा।
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झबुआ  : वि०=झबरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झबूँकना  : अ० १.=चमकना। २.=चौंकना।
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झब्बा  : पुं० [अनु०] १. धागे के छोटे-छोटे टुकड़ों को बीच में एक साथ बाँधकर बनाया जानेवाला गुच्छा या फुँदना जो कपड़ों, गहनो आदि में सोभा के लिए लगाया जाता है। २. गुच्छा।
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झमक  : स्त्री० [हिं० झमकना] १. झमकने की क्रिया या भाव। २. झम झम के रूप में होनेवाला शब्द। ३. तीव्र उजाला या प्रकाश ४. ठसक। नखरा। (क्व०)
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झमकड़ा  : पुं०=झमक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झमकना  : अ० [अनु० झमझम] १. रह-रहकर परन्तु तेजी से चमकना। २. झमझम शब्द होना। ३. झमझम शब्द करते हुए चलना-फिरना या उछलना-कूदना। ४. अकड़, ऐंठ या ठसक दिखाना। ५. अधिक मात्रा या तीव्र रूप में उपस्थित होना। छाना। जैसे–आँखों में नींद झमकना। स०=झमकाना।
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झमकाना  : स० [हिं० झमकना का स० रूप०] १. ऐसा काम करना जिससे कोई चीज खूब झमके या अपनी चमक-दमक दिखलावे। जैसे–कपड़े गहने या हथियार झमकाना। २. झमझम शब्द उत्पन्न करना।
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झमकारा  : वि० [हिं० झमझम] १. झमकानेवाला। २. (बादल) जो बरसने को हो।
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झमकीला  : वि० [हिं० झमकना+इला (प्रत्यय)०] १. चमकीला। २. अकड़ या ऐंठ दिखानेवाला।
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झमक्का  : पुं०=झमाका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झमझम  : स्त्री० [अनु०] १. घुँघुरुओं आदि के बजने से उत्पन्न होनेवाला शब्द २. छोटी छोटी बूदों का वर्षा का शब्द। ३. चमक-दमक। वि० १. झमझम शब्द करता हुआ। जैसे–झमझम पानी बरसना। खूब चमकता या दमकता हुआ। क्रि० वि० १. झमझम शब्द करते हुए। पानी का झमझम बरसना। २. दे० ‘झमाझम’।
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झमझमाना  : अ० [अनु०] १. झमझम शब्द होना। २. खूब चमक-दमक से युक्त होना। चमचमाना। स० १.=झमझम शब्द उत्पन्न करना। २. चमक-दमक से युक्त करना। ३. चमक दमक दिकलाना। जैसे–कपड़े या गहनें झमझमाना।
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झमझमाहट  : स्त्री० [अनु०] १. झमझम शब्द होने की अवस्था या भाव।
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झमना  : अ० [अनु०] १. पलकों आदि का गिरना। झमकना। २. किसी के आगे नम्रतापूर्वक झुकना। ३. चारों ओर से आकर एकत्र होना। ४. दे० ‘झमाना’।
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झमाका  : पुं० [अनु०] १. किसी प्रकार उत्पन्न होनेवाला झमझम शब्द। जैसे–गहनों या घुँघरुओं का झमाका। २. ठसक। नखरा। (क्व०)। क्रि० वि० १. झमझम शब्द करते हुए। २. झट से। चटपट। तुरन्त।
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झमाझम  : क्रि० वि० [अनु०] १. झमझम शब्द करते हुए। जैसे–पानी झमाझम बरस रहा था। २. चमचमाते हुए कांति या दमक के साथ। जैसे–रेशमी कपड़ों का झमाझम चमकना। वि० १. झमाझम शब्द करता हुआ। २. खूब चमकता-दमकता हुआ।
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झमाट  : पुं०=झुरमुट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झमाना  : अ० [अनु०] १. पलकों का गिरना या झपकना। २. कुंठित या लज्जित होना। (पूरब)। स० कुछ या कोई चीज झमने में प्रवृत्त करना। अ० [हिं० झाम=झुंड] इकट्ठा होना। एकत्र होना। अ० स०=झँवाना।
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झमूरा  : वि० [?] (पशु) जिसके सारे शरीर पर घने और लंबे बाल हों। झबरा। पुं० १. घने और घुघराले बालोंवाला छोटा सुन्दर बच्चा। २. नटों और बाजीगरों के साथ रहनेवाला लड़का जो प्राय अनेक प्रकार के करतब या खेल दिखलाता है। ३. भालू (कलंदर और मदारी)।
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झमेला  : पुं० [अनु० झाँव-झाँव] १. कोई ऐसी पेचीली बात जिसमें दोनों पक्ष आपस में झाँव झाँव करते हों। २. ऐसी झंझट या बखेड़ा जिसका निपटारा सहज में न हो सकता हो। ३. ऐसा काम जिसके संपादन में अनेक विपत्तियाँ खड़ी होती हों। बखेड़ा। ४. अव्यवस्थित या विश्रृंखल जन-समूह। बहुत से लोगों की भीड़-भाड़। (क्व०)
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झमेलिया  : पुं० [हिं० झमेला+इया(प्रत्यय)] १. वह जो जान-बूझकर और प्रायः झमेला खड़ा किया करता हो। २. झगड़ा करनेवाला व्यक्ति।
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झर  : स्त्री० [सं०√झृ (झरना)+अच्] १. पानी का झरना। निर्झर। सोता। २. समूह। ३. तेजी। वेग। ४. पानी की (या और किसी चीज की) लगातार होनेवाली झड़ी। ४. ‘आग की लपट’। ५. दे० झड़ी। स्त्री० [हिं० झाल का पुराना रूप] १. ज्वाला। जलना। २. गरमी। ताप। उदाहरण–नैंक न झुरसी बिरह-झर नेह लता कुम्हलाति।–बिहारी।
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झरक  : स्त्री=झलक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झरकना  : अ० १.=झिड़कना। २. झनखना।
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झरझर  : स्त्री० [अनु०] तेज हवा के चलने से अथवा उसके किसी चीज के टकराने से होनेवाला शब्द। क्रि० वि० झरझर शब्द करते हुए।
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झरझराना  : अ० [हिं० झरझर] १. झरझर शब्द होना। २. झरझर शब्द करते हुए किसी चीज का चलना, जलना या बहना। स० इस प्रकार किसी चीज को गिराना कि वह झरझर शब्द करे।
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झरन  : स्त्री० [हिं० झरना०] १. झरने की क्रिया या भाव। २. झर कर निकलनेवाली या निकली हुई चीज। ३. दे० ‘झड़न’।
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झरना  : पुं० [सं० क्षर] [स्त्री० अल्पा० झरनी] १. पहाड़ों आदि में ऊँचे स्थान से नीचे गिरनेवाला जल प्रवाह।। २. लगातार बहनेवाली पानी की कोई प्राकृतिक छोटी जल-धारा। चश्मा। सोता। ३. कपड़ों की बुनाई का वह प्रकार जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर दूसरे रंग के सूत इस प्रकार लगाये जाते हैं जो देखनें में धाराओं के समान जान पड़ते हों। जैसे–झऱने की साड़ी। वि० झरनेवाला। वि० झरनेवाला। अ० ऊँचे स्थान से पानी या और किसी चीज का लगातार नीचे गिरना। पुं० [सं० क्षरण०] [स्त्री० अल्पा० झरनी] १. अनाज छानने की एक प्रकार की बड़ी छलनी। २. लंबी डंडी की एक झँझरीदार चिपटी कलछी। पौना। अ=झड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झरनी  : स्त्री० हिं० झरना का स्त्री अल्पा० रूप।
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झरप  : स्त्री० [अनु०] १.=झड़प २.=झकोरा। ३.=तेज़ी। वेग। ४.=चाँड़। टेक। ५. चिक। चिलमन। ६. झरोखा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झरपना  : अ० स०=झड़पना। अ० [अनु०] बौछार मारना।
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झरपेटा  : पुं०=झपेटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झरफ  : स्त्री०=झरिफ (चिलमन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झरबेर  : पुं०=झड़-बेरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झरबैरी  : स्त्री०=झड़-बेरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झरवाना  : स०=झड़वाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झरसना  : अ० [अनु०] १. झुलसना। २. मुरझाना। स० १. झुलसना। २. मुरझाने या सूखने में प्रवृत्त करना।
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झरहरना  : अ०=झरझराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झरहरा  : वि०=झँझरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झरहराना  : स०=झरझराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झरहिल  : स्त्री० [देश] एक प्रकार की चिड़िया।
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झरा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का धान।
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झराझर  : क्रि० वि० [अनु०] १. झरझर शब्द करते हुए। २. निरंतर। लगातार। ३. जल्दी-जल्दी या वेगपूर्वक।
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झरापना  : अ०=झरपना (झड़पना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झराबोर  : पुं० वि०=झलाबोर।
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झरार  : वि० [हिं० झाल] झालदार। चरपरा।
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झराहर  : पुं० [सं० ज्वालाधर] सूर्य।
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झरि  : स्त्री=झड़ी अव्य० [ ?] १. बिलकुल। २. कुल। सब। पुं०=झार।
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झरिफ  : पुं० [हिं० झरप] १. चिक। चिलमन। २. परदा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झरी  : स्त्री० [हिं० झरना] १. पानी का झरना। सोता। चश्मा। २. वह धन जो हाट या बाजार में बैठकर सौदा बेचनेवाले छोटे दूकानदारों से नित्य प्रति कर के रूप में उगाहा जाता है। ३. दो तख्तों, पत्थरों आदि के बीच में पड़नेवाला थोड़ा-सा अवकाश। दरज। ४. दे० ‘झड़ी’।
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झरुआ  : पुं० [देश०] एक प्रकार की घास।
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झरोखा  : पुं० [अनु० झरझर=वायु बहने का शब्द-ओख=गावाक्ष] १. दीवार में बनी हुई जालीदार छोटी खिड़की। २. खिड़की।
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झर्झर  : पुं० [सं० झर्झ√रा (दान)+क] १. एक प्रकार का पुराना बाजा जिसपर चमड़ा मढ़ा हुआ होता था। २. झाँझ। ३. पैर में पहनने की झाँझन। ४. कलियुग। ५. एक प्राचीन नद। ६. रसोई में काम आनेवाला झरना नामक उपकरण। पौना।
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झर्झरक  : पुं० [सं० झर्झर+कन्] कलियुग।
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झर्झरा  : स्त्री० [सं० झर्झर+टाप्] १. तारादेवी का एक नाम। २. रंडी। वेश्या।
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झर्झरावती  : स्त्री० [सं० झर्झरा+मतुप्, वत्व, ङीप्] १. गंगा २. कटसरैया। (क्षुप)।
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झर्झरिका  : स्त्री० [सं० झर्झरा+कन्,टाप्,इत्व] तारादेवी।
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झर्झरी(रिन्)  : पुं० [सं० झर्झर+इनि] शिव। स्त्री० [सं० झर्झर+ङीष्] झाँझ नामक बाजा।
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झर्झरीक  : पुं० [सं० झर्झर+ईकन्] १. देश। २. देह। शरीर। ३. चित्र। तस्वीर।
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झर्प  : स्त्री०=झड़प।
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झर्रा  : पुं० [देश०] १. एक प्रकार की छोटी चिड़िया। २. बया नामक पक्षी।
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झर्राटा  : पुं० [अनु०] कपड़ा फटने अथवा फाड़े जाने पर होनेवाला शब्द। क्रि० वि० चटपट। तुरन्त।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झर्रैया  : पुं० [देश०] बया (पक्षी)।
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झल  : पुं० [हिं० झार, सं० झल=ताप] १. स्वाद आदि की तीक्ष्णता। झाल। २. जलन। ताप। दाह। ३. काम-वासना। संभोग की प्रबल इच्छा। ४. किसी बात की प्रबल कामना या इच्छा। क्रोध। गुस्सा। ६. झक। सनक। ७. उन्माद। पागलपन। ८. दल। ९. राशि। समूह।
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झलक  : स्त्री० [सं० झल्लिका=चमक] १. झलकने की क्रिया, अवस्था या भाव। २. ऐसा क्षणिक दर्शन या प्रत्यक्षीकरण जिसमें किसी चीज के रूप-रंग, आकार-प्रकार आदि का पूरा-पूरा ज्ञान तो न हो, पर उसका कुछ आभास अवश्य मिल जाय। ३. ऐसा दृश्य जिससे किसी चीज का संक्षिप्त परिचय मात्र मिलता हो। ४. चित्रकला में, वह आभा या रंगत जो किसी समूचे चित्र में व्याप्त हो। ५. चमक। प्रभा।
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झलकदार  : वि० [हिं० झलक+फा० दार] जिसमें आभा या चमक हो। चमकीला।
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झलकना  : अ० [हिं० झलक+ना (प्रत्यय)] १. इस प्रकार किसी के सामने एकाएक कुछ क्षणों के लिए उपस्थित होना और तुरंत ही अंतर्धान या अदृश्य हो जाना कि उसके आकार-प्रकार, रूप-रंग आदि का ठीक और पूरा भान न हो पाये। २. लाक्षणिक अर्थ में किसी बात आदि का आभास मात्र मिलना। जैसे–उसकी बात से झलकता था कि पुस्तक उसी ने चुराई है। ३. चमकना।
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झलकनि  : स्त्री०=झलक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झलका  : पुं० [सं० ज्वल=जलना] छाला। फफोला। उदाहरण–झलका झलकत पायन ऐसे।–तुलसी।
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झलकाना  : स० [हिं० झलकना का स० रूप०] १. ऐसी क्रिया करना जिससे कोई चीज झलके या कुछ चमकती हुई थोड़ी देर के लिए सामने आये। २. चमकाना। ३. बात-चीत व्यवहार आदि में कोई अभिप्राय या आशय बहुत ही अस्पष्ट या कुछ छिपे हुए रूप में लक्षित कराना। आभास देना। दरसाना।
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झलकी  : स्त्री० [हिं० झलक] १. आकाशवाणी रेडियो से प्रसारित होनेवाली एक प्रकार की बहुत छोटी नाटिका जिसके अंगों को परस्पर सम्बद्ध करने के लिए व्याख्यात्मक छोटी वार्त्ता भी होती है। इनमें दैनिक जीवन की सामान्य घटनाओं का उल्लेख होता है। (आधुनिक) २.=झलक।
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झलझल  : स्त्री० [सं० झलज्झलः] चमक-दमक, विशेषतः गहनों की चमक-दमक। वि० खूब चमकता-दमकता हुआ। क्रि० वि० १. चमक-दमक से० २. तीव्र आभा या प्रकाश से युक्त होकर। जैसे–गहनों का झलझल चमकना।
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झलझलाना  : अ० [अनु०] खूब चमकना। स० खूब चमकाना।
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झलझलाहट  : स्त्री० [हिं० झलझल+आहट(प्रत्यय)०] झलझलाने अर्थात् चमकने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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झलना  : स० [हिं० झलझल (हिलना) से अनु०] १. हवा करने के लिए पंखा या कोई चीज बार-बार चलाना या हिलाना डुलाना। २. धक्का देकर आगे बढ़ाना। ढकेलना। अ० किसी चीज के अगले भाग का इधर-उधर हिलना-डोलना। (क्व०) स०=झेलना। (देखें)। अ० [हिं० झल्ला=पागल ?] शेखी बघारना। डींग हाँकना। अ० [हिं० झालना का अ०] धातु आदि की चीजों का झाला या टांके से जोड़ा जाना।
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झलमल  : स्त्री० [स० ज्वल=दीप्ति] १. अँधेरे के बीच में रह-रहकर होने वाला मध्यम या हल्का प्रकाश। २. अंधकार। अँधेरा। ३. चमक-दमक। वि० १. जिसमें अंधकार के साथ-साथ कुछ-कुछ प्रकाश भी हो। २. चमकीला।
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झलमला  : वि०=झिलमिला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झलमलाना  : अ० [हिं० झलमल] १. रह-रहकर चमकना। चमचमाना। (दीपक का) रह-रहकर कभी तीव्र और कभी मंद प्रकाश देना। स० १. रह-रहकर चमकाना। २. ऐसी क्रिया करना जिससे कभी कुछ तीव्र और कभी कुछ मंद प्रकाश निकले।
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झलरा  : पुं०=झालर (पकवान)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झलराना  : स० [हिं० झालर] १. झालर के रूप में बनाना। झालर का रूप देना। २. झालर टाँकना या लगाना। अ० झालर के रूप में या यों ही फैलकर छाना या छितराना।
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झलरी  : स्त्री० [सं० झल√रा+ड-ङीष्] १. हुडुक नाम का बाजा। २. झाँझ।
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झलवाना  : स० [हिं० झलना] झलने का काम दूसरे से कराना। जैसे–पंखा झलवाना। स० [हिं० झालना] झालने का काम दूसरे से कराना।
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झलहल  : वि० [अनु० झलाझल] चमकदार। पुं०=झलमल। क्रि० वि०=झल झल।
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झलहाया  : वि० [हिं० झल] [स्त्री० झलहाई] १. जिसे किसी प्रकार की झल या सनक हो। २. डाह करनेवाला। ईर्ष्यालु।
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झला  : स्त्री० [सं०] आतप। धूप। पुं० [हिं० झड़] १. हलकी वर्षा। २. ढेर। राशि। ३. झुंड। दल। पुं० [हिं० झलना] पंखा जो जला जाता है। स्त्री०=झालर।
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झलाई  : स्त्री० [हिं० झालना] कड़ी धातुओं को मुलायम धातुओं के टांके से जोड़ने की क्रिया, भाव या मजदूरी। (सोल्डरिंग)।
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झलाऊ  : वि० [हिं० झोल] १. जिसमें झोल हो। झोलदार। २. ढीला-ढाला।
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झलाझल  : वि० [अनु०] [भाव० झलाझली] बहुत अधिक चमक-दमक वाला। चमकता हुआ। क्रि० वि० चमकते हुए। प्रकाश के साथ। पुं० एक प्रकार का झकीला कपड़ा।
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झलाझली  : स्त्री० [अनु०] झलझल या बहुत अधिक चमकीले होने की अवस्था या भाव। वि० क्रि० वि०=झलाझल। स्त्री० [हिं० झलना] पंखे आदि का बराबर झला और झलवाया जाना।
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झलाना  : स० [हिं० झलाना] झलने का काम दूसरे से कराना। झलवाना।
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झलाबोर  : पुं० [हिं० झलझल=चमक] १. जरी आदि के बने हुए दुपट्टों या साड़ियों का आँचल। २. कोई ऐसी चीज जिस पर कारचोबी या जरी का काम किया जाता हो। ३. एक प्रकार की आतिशबाजी। ४. चमक-दमक। ५. कँटीली झाड़ी। वि० खूब चमक-दमकवाला।
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झलामल  : स्त्री० वि०=झममल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झलारा  : वि० [हिं० झाल] [स्त्री० झालरी] बहुत ही तीक्ष्ण स्वादवाला। झालदार।
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झलाहा  : वि० [हिं० झाल] [स्त्री० झलाही] १. बहुत तीक्ष्ण स्वादवाला। झालदार। २. ईर्ष्या या डाह करनेवाला। ३. बहुत ही उग्र या कठोर स्वभाव वाला। उदाहरण–मैं अपने बनड़े से पानी भराऊँ, ननदी झलाही को क्या है मलोला।–स्त्रियों का गीत।
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झलि  : स्त्री० [सं०] एक तरह की सुपारी।
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झलुआ  : पुं० [हिं० झूला] छोटा झूला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झल्ल  : पुं० [सं०√ झर्च्छ्+क्विप्√ ला+क] १. वह जिसके वैदिक संस्कार न हुए हों। व्रात्य। २. एक प्राचीन वर्ण-संकर जाति। ३. भाँड़। विदूषक। ४. हुडुक नाम का बाजा। पटह। ५. आग की लपट। ज्वाला। स्त्री० [हिं० झल्ला] झल्ले होने की अवस्था या भाव। पागलपन। सनक।
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झल्ल-कंठ  : पुं० [ब० स०] कबूतर।
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झल्लक  : पुं० [सं० झल्ल+कन्] १. काँसे का बना हुआ करताल। झाँझ। २. मँजीरा।
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झल्लकी  : स्त्री० [सं० झल्लक+ङीष्]=झल्लक।
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झल्लना  : अ० [हिं० झल्ल] १. बावला या पागल होना। २. क्रुद्ध होना। ३. डींग मारना। स० =झलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झल्लरा  : स्त्री० [√झर्च्छ्+अरन्, पृषो० सिद्धि] १. पुरानी चाल का चमड़े से मढ़ा हुआ एक बाजा। हुडुक। २. झाँझ। ३. पसीना। स्वेद। ४. घुँघराले बाल। ४. शुद्धता।
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झल्लरी  : स्त्री० [सं० झल्लर+ङीष्]=झल्लरा।
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झल्ला  : पुं० [देश०] [स्त्री० झल्ली] १. बहुत बड़ा टोकरा। झाबा। २. वर्षा की ऐसी झड़ी जिसके साथ तेज हवा भी हो। झंझा। ३. तमाकू के पत्तों पर उभरनेवाले चकते या दाने। वि० [हिं० झल्लाना] [स्त्री० झल्ली] कम वृद्धि होने के कारण पागलों जैसा आचरण करनेवाला। सिड़ी। वि० [हिं० झाल] [स्त्री० झल्ली] बहुत ही तरल या पतला। जैसे–झल्ली दाल, तरकारी का झल्ला रसा।
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झल्लाना  : अ० [हिं० झल] १. क्रुद्ध होकर या खीझकर बहुत ही तीक्ष्ण स्वर में बोलना। २. बिगड़ते हुए बोलना। स० किसी को खिजलाने या खीझने में प्रवृत्त करना।
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झल्लिका  : स्त्री० [सं० झल्ल√कै (प्रकाश करना)+क, पृषो० सिद्धि] १. शरीर पोंछने का कपड़ा। अँगोछा। २. शरीर को मलकर पोंछने पर निकलेवाली मैल। ३. चमक। दीप्ति। ४. सूर्य की किरणों का तेज या प्रकाश।
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झल्ली  : स्त्री० [सं० झल्ली+ङीष्] एक प्रकार का चमड़े से मढा हुआ छोटा बाजा। वि० हिं० ‘झल्ला’ का स्त्री रूप।
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झल्लीवाला  : पुं० [हिं० झल्ली] [स्त्री० झल्लीवाली] वह व्यक्ति जो टोकरे में बोझ रखकर ढोता हो।
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झल्लीषक  : पुं० [सं०] एक तरह का नृत्य।
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झँवकार  : वि० [हिं० झाँवला-काला] झाँवे के रंग का। कुछ-कुछ काला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँवन  : स्त्री० [हिं० झँवाना] १. झँवाने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. किसी चीज का वह अंश जो झँवाने या किचित् जल जाने के कारण कम हो जाय। जैसे मशीन में पीसे जाने पर गेहूँ या आटे की झँवन।
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झवर  : पुं० [हिं० झगड़ा] झगड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँवराना  : अ० [हिं० झाँवर] १. झाँवला या कुछ काला पड़ना। २. कुम्हलाना। मुरझाना। स० १. झाँवला या कुछ-कुछ काला करना। २. कुम्हलाने या मुरझाने में प्रवृत्त करना।
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झँवा  : पुं०=झाँवाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँवाना  : अ० [हिं० झाँवाँ] १. ताप आदि के प्रभाव से झाँवे के रंग का हो जाना। कुछ काला या झाँवला हो जाना। जैसे–धूप से शरीर का रंग झँवाना। २. अग्नि का जलते-जलते बुझने को होना। आँच धीमी या मन्द पड़ना। ३. जलने, सूखने आदि के कारण किसी चीज का कुछ अंश कम होना या घट जाना। ४. कुम्हलाना। मुरझाना। ५. निर्जीव या बेदम होना। उदाहरण–मुरछित अवनी परी झँवाई।–तुलसी। ६. शरीर के किसी अंग का झाँवें से रगड़ कर साफ किया जाना। ७. झेंपना। स० १. ताप आदि के प्रभाव से किसी चीज को झांवे के रंग का अर्थात् झाँवला या कुछ कुछ काला कर देना। २. ऐसा करना कि आग धीमी या मंद पड़कर बुझने लगे। ३. जला या सुखाकर किसी चीज का कुछ अंश कम करना या घटाना। ४. कुम्हलाने या मुरझाने में प्रवृत्त करना। ५. शरीर का कोई अंश साफ करने के लिए उसे झाँवे से रगड़ना। ६. निर्जीव या बेदम करना। ७. लज्जित या शरमिंदा करना।
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झवारि  : स्त्री०=झवर (झगड़ा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँवावना  : स० [हिं० झँवाना] झँवाने का काम किसी दूसरे से कराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झँवैला  : वि० [हिं० झाँवाँ+ऐला (प्रत्यय)] [स्त्री० झँवेली] १. जो लकर झाँवे के रंग का हो गया हो। झँवाया हुआ। २. झाँवे के रंग का। कुछ-कुछ काला। ३. झाँवे से रगड़ा हुआ।
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झष  : पुं० [सं०√झष् (मारना)+अच्] १. मछली। २. मगर। ३. मकर राशि। ४. मीन राशि। ५. ताप। ६. बन। स्त्री०=झख।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झष-केतु(केतन)  : पुं० [ब० स०] कामदेव। मदन।
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झष-ध्वज  : पुं० [ब० स०] कामदेव।
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झष-निकेत  : पुं० [हिं० झख] वह स्थान जहाँ मछिलयाँ रहती हों। जैसे–जलाशय, समुद्र आदि।
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झष-राज  : पुं० [ष० त०] मकर या मगर नामक जल-जन्तु।
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झषना  : अ० [हिं० झख] १. झख मारना। २. ‘झींखना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झषा  : स्त्री० [सं०√झष्+अच्-टाप्] नागबला। गुलसकरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झषांक  : पुं० [झष-अंक, ब० स०] कामदेव। मदन।
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झषाशन  : पुं० [सं०√अश् (भक्षण)+ल्यु-अन] सूँस (जल-जंतु)।
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झषोदरी  : स्त्री० [झष-उदर, ब० स० ङीष्] व्यास की माता मत्स्यगंधा का एक नाम।
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झँसना  : अ० [अनु०] १. शरीर के किसी अंग में तेल या और कोई चीज कोई प्रभाव उत्पन्न करने के लिए बार-बार रगड़ते हुए मलना। जैसे–सिर में तेल झँसना, पैरों के तलुओं में कद्दू या फूल की कटोरी झँसना। २. झाँसा देकर किसी से कुछ धन वसूल करना। तिकड़म से किसी की कोई चीज ले लेना।
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झसना  : सं०=झँसना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झहगी  : वि० [फा० जंगी] १. जंग अर्थात् युद्ध संबंधी। २. युद्ध के काम आनेवाला। ३. बहुत बड़ा। (राज०)
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झहनना  : अ० [अनु०] १. झन-झन शब्द होना। २. झल्लाना। ३. शरीर के रोएँ खड़े होना। रोमांच होना। ४. चकित या स्तब्ध होना। सन्नाटे में आना। सकपका जाना। स०=झहनाना।
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झहनाना  : स० [हिं० झहनना का सकर्मक] १. झनझन शब्द उत्पन्न करना। २. किसी प्रकार किसी के शरीर में रोमांच उत्पन्न करना। ३. ऐसा काम करना जिससे कोई चकित हो जाय या सन्नाटे में आ जाय।
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झहरना  : अ० [अनु०] १. झर झर शब्द होना। जैसे–हवा से पत्तों का झहरना। २. हिलते-डुलते रहना। ३. सामने आना। उपस्थित होना। ४. शिथिल या ढीला होना। ५. दुःखी होना। अ० १=झल्लाना। २=झरना।
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झहराना  : स० [हिं० झहरना] किसी को झहरने में प्रवृत्त करना। अ०=झहरना।
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झा  : पुं० [सं० उपाध्याय, प्रा० उज्झाओं, हिं० ओझा] १. मैथिल ब्राह्मणों की एक उपाधि। २. गुजराती ब्राह्मणों की एक उपाधि।
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झाँई  : स्त्री० [सं० छाया] १. छाया। परछाई। उदाहरण–जा तान की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।–बिहारी। २. अँधकार। अँधेरा। ३. छल। धोखा। मुहावरा–झाँई देना या बताना=बातें बनाकर धोखा देना। ४. रक्त-विकार से मुँह पर पड़नेवाले काले दब्बे। ५. किसी प्रकार की काली छाया या हलका दाग। ६. आभा। झलक।
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झाँई  : स्त्री=झाँई।
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झाँई-झप्पा  : पुं०=झाँसा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँई-माँई  : स्त्री० [अनु०] बहुत छोटे बच्चों का एक खेल जिसमें वे कुछ गाते हुए घूमते और झूमते हैं। मुहावरा–(कोई चीज) झाँई माँई हो जाना=गायब, गुम या लुप्त हो जाना।
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झाऊ  : पुं० [सं० झावुक] मोर पंखी की जाति का एक पौधा जिसकी पत्तियाँ औषध के काम आती है।
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झाँक  : स्त्री० [हिं० झाँकना] १. झाँकने की क्रिया या भाव। २. झलक। स्त्री० [?] आग। अग्नि। उदाहरण–नई गोरी नये बालमा नई होरी की झाँक।–बुदेल० लो० गी०। पुं=चीतल (जंगली हिरन)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँकना  : अ० [सं० अध्यक्ष, प्रा० अज्झक्ख] १. नीचे की ओर की चीज देखने के लिए गरदन झुकाकर तथा आँखे नीचे करके उसकी ओर ताकना। देखने के लिए झुकना। जैसे–खिड़की में से या छत पर से झाँकना। २. आड़ में से दाहिने या बाएँ कुछ झुककर या किसी संधि में से टोह लेने के लिए देखना। ३. कोई काम करने के लिए उसकी ओर प्रवृत्त होना। उदाहरण–यही ठीक है धनुष छोड़कर कीड़ा झाँकों।–मैथिलीशरण।
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झाँकनी  : स्त्री०=झाँकी।
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झाँकर  : पुं=झंखाड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँका  : पुं० [हिं० झाँकना] झरोखा जिसमें से झाँककर देखते हैं। पुं०=खाँचा (रहठे आदि का दौरा)।
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झाँकी  : स्त्री० [हिं० झाँकना] १. झाँकने की क्रिया या भाव। २. किसी पूज्य या प्रिय वस्तु या व्यक्ति का सुखद अवलोकन। दर्शन। ३. सहसा कुछ देर के लिए एक बार दिखाई पड़ने या सामने आने की क्रिया या भाव। (ग्लासं) ४. कोई मनोहर या सुंदर दृश्य। ५. किसी बात का किया जानेवाला संक्षिप्त परिचय या परिज्ञान। जैसे–कश्मीर और बुंदेलखंड की झाँकी। ६. छोटी खिड़की।
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झाँकृत  : पुं० [सं० झंकृत+अण्] १. पैरों में पहनने का झाँझन नामक आभूषण। २. झनझन करने या झरने का शब्द।
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झाँख  : पुं० [देश०] जंगली हिरन की एक जाति।
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झाँखना  : अ०=झींखना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँखर  : पुं० [हिं० झंखाड़] १. अरहर की वे खूटियाँ जो फसल काटने के बाद खेत में रह जाती है। २. झाड़-झंखाड़। वि० १. जिसके सारे तल में बहुत से छोटे-छोटे छेद हो। २. ढीली बुनावटवाला।
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झाग  : पुं० [हिं० गाज] १. किसी तरल पदार्थ को फेंटने आदि पर उसमें से निकलनेवाले तथा एक में मिले हुए असंख्य बुलबुलों का समूह। फेन। जैसे–तेल या दूध की झाग। २. रोग आदि के कारण मुँह में से निकलेवाली वह थूक जिसमें बहुत अधिक बुलबुले हों। क्रि० प्र०–उठना।– छूटना।–छोड़ना।–निकासन–फेंकना।
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झागड़  : पुं०=झगड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झागना  : अ० [हिं० झाग] झाग या फेन निकलना। स० झाग या फेन उत्पन्न करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँगला  : वि० [देश०] ढीला-ढाला (कपड़ा) पुं० एक प्रकार का ढीला ढाला कुरता। झगा।
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झाँगा  : पुं० [?] चितकबरे रंग का छोटा कीड़ा जो गोभी, सरसों आदि के पत्ते में लगकर उन्हें खाता या उनका रस चूसता है। पुं० झगा (बच्चों का कुरता)।
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झाँजन  : स्त्री०=झाँझन।
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झाँझ  : स्त्री० [सं० झर्झर] [स्त्री० अल्पा० झाँझड़ी] १. काँसे, पीतल आदि के मोटे पत्तर की बनी हुई एक प्रकार की कम उबारदार कटोरियों का जो़ड़ा जो पूजन आदि के समय एक दूसरी पर आघात करके बजाई जाती है। छैना। क्रि० प्र०–पीटना।–बजाना। २. क्रोध। गुस्सा। ३. किसी दूषित मनोविकार का आवेग। ४. पाजीपन। शरारत। क्रि० वि० -उतरना।-चढ़ना।-निकलना। ५.ऐसा जलाशय जिसका जल सूख गया हो। स्त्री०=झाँझन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाझ  : स्त्री०=झाँझ। पुं०=जहाज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँझड़ी  : स्त्री० १=छोटी झाँझी। २. =झाँझन (पैर में पहनने का गहना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँझन  : स्त्री० [अनु०] चाँदी आदि का बना हुआ नक्काशीदार कड़ा जिसे स्त्रियाँ पैरों में पहनती हैं और जिससे झनझन शब्द निकलता है। पैजनी। पायल।
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झाझन  : स्त्री=झाँझन। पुं०=झाऊ (पेड़)।
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झाँझर  : स्त्री० [अनु०] १. झाँझन। पैंजनी नाम का गहना जो पैर में पहना जाता है। २. आटा आदि छानने की छाननी। वि० [सं० जर्जर] १. झँजरा। २. जर्जर। ३. बहुत ही खिन्न और दुःखी। कष्ट या दुःख से क्षीण या जर्जर। (पूरब) उदाहरण–एक हम झाँझरि हरि बिनु हो, पीतम मेल त्यागी।–स्त्रियों का गीत।
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झाँझरी  : स्त्री० [देश०] १. झाँझ नाम का बाजा। झाल। २. झाँझन या पैजनी नाम का पैर में पहनने का गहना।
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झाँझा  : पुं० [हिं० झंझारा] १. फसल के पत्ते आदि खा जानेवाले कुछ छोटे कीड़ों का एक वर्ग। २. वह बड़ा पौना जिससे कहाड़ी में सेव (नमकीन पकवान) छाना या गिराया जाता है। ३. घी में भूनकर चीनी के साथ मिलाई हुई भाँग की पत्तियाँ जो यों ही फाँक ली जाती हैं। पुं० १. झंझट या बखेड़े की बात। ३. तकरार। हुज्जत। पुं०=बड़ी झाँझ।
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झाझा  : वि० [सं० दग्ध ?] [स्त्री० झाझी] १. जला हुआ। दग्ध। २. गहरा-गाढ़ा या तेज। जैसे–झाझा नशा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँझिया  : पुं० [हिं० झाँझ+इया(प्रत्यय)] वह जो झाँझ बजाता हो।
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झाँझी  : स्त्री० [हिं० झँझरी] १. एक उत्सव जिसमें बालिकाएँ रात के समय झँझरीदार हाँडी में दीपक रखकर गीत गाती हुई घर-घर जाती और वहां से पैसे या अनाज पाती है। २. उक्त अवसर या उत्सव पर गाये जानेवाले गीत।
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झाँट  : स्त्री० [सं० जट, हिं,० झंड=बाल] १. पुरुष या स्त्री की जननेंद्रिय पर के बाल। उपस्थ पर के बाल। शष्प। पशम। २. बहुत ही तुच्छ और निकम्मी चीज। पद–झाँट की झँटुल्ली=बहुत ही तुच्छ या हीन।
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झाट  : पुं० [सं०√झट् (शीघ्रता)+घञ्] १. कुंज। २. झाड़ी। ३. घाव का धोकर साफ करना।
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झाटक-पट  : पुं० [हिं० झटपट] एक प्रकार की ताजीम जो राजपूताने के राज-दरबारो में अधिक प्रतिष्ठित सरदारों को मिला करती थी।
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झाँटा  : पुं० [देश०] झंझट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=झाड़ू (पूरब)।
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झाटा  : स्त्री० [सं०√झट्+णिच्+अच्-टाप्] १. जूही। २. भुई। आँवला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाटास्त्रक  : पुं० [सं० झाट-अस्त्र, ब० स०] तरबूज।
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झाँटि  : स्त्री०=झाँट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाटिका  : स्त्री० [सं० झाट+कन्-टाप्, इत्व] भुई आँवला।
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झाटी  : स्त्री०=झाटिका।
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झाड़  : पुं० [सं० झाट] [स्त्री० अल्पा० झाड़ी] ऐसे छोटे पेड़ों या पौधों का वर्ग जिनकी पतली-पतली शाखाएँ आपस में उलझी हुई और जमीन से थोड़ी ही ऊँचाई पर छितरी या फैली हुई रहती है। पद–झाड़ का काँटा=ऐसा झगड़ालू या हुज्जती आदमी जिससे पीछा छुड़ाना कठिन हो। झाड़-झंखाड़–(देखें स्वतंत्र शब्द)। २. उक्त झाड़ की तरह का एक प्रकार का अनेक शाखाओंवाला दीये, मोमबत्तियां आदि जलाने का शीशे का बहुत बड़ा आधान जो कमरे की छत में शोभा के लिए लटकाया जाता है। ३. उक्त आकार या रूप की एक प्रकार की आतिशबाजी। ४. उक्त आकार या रूप का एक प्रकार का छापा। ५. एक प्रकार की समुद्री घास। जरस। जार। ६. एक ही तरह की बहुत सी छोटी बड़ी चीजों का बड़ा गुच्छा या लच्छा। स्त्री० [हिं० झाड़ना] १. झाड़ने की क्रिया या भाव। २. झाड़ने पर निकलनेवाली धूल आदि। झाड़न। ३. मंत्र आदि पढ़कर किसी की प्रेत-बाधा, रोग आदि दूर करने का काम। पद–झाड़-फूँक (देखें)। ४. क्रोधपूर्वक डांटकर कही जानेवाली बात। क्रि० प्र०–देना।–पड़ना।–बताना।–सुनाना। ५. कुश्ती में विपक्षी के किसी के अंग को दिया जानेवाला झटका।
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झाड़ बुहार  : स्त्री० [हिं० झाड़ना+बुहारना] कूड़ा-करकट, धूल आदि झाड़ने की क्रिया या भाव।
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झाड़-झंखाड़  : पुं० [हिं० झाड़+झंखाड़] १. काँटेदार झाड़ियों का समूह। २. व्यर्थ के पेड़-पौधों का समूह। निकम्मी, रद्दी और व्यर्थ की चीजों, विशेषतः काठ-कबाड़ का लगा हुआ ढेर।
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झाड़-फ़ानूस  : पुं० [हिं० झाड़+फा० फ़ानूस] शीशे के झाड़, हाँड़ियाँ आदि जो छत पर टाँगी जाती हैं तथा जिनमें दीये, मोमबत्तियाँ आदि जलाई जाती है।
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झाड़-फूँक  : स्त्री० [हिं० झाड़ना+फूँकना] मंत्र-बल के द्वारा किसी का रोग या प्रेत-बाधा दूर करने की क्रिया या भाव।
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झाड़खंड़  : पुं०=झारखंड।
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झाड़दार  : वि० [हिं० झाड़+फा० दार] १. (पौधा या वृक्ष) जिसमें बहुत सी घनी डालियाँ लगती हों। घना। सघन। २. काँटेदार। कटीला। ३. जिस पर झाड़ों अर्थात् पेड़-पौधों की आकृतियाँ बनी हों। पुं० १. एक प्रकार का कसीदा जिसमें पौधों और बेल-बूटों की आकृतियां कढ़ी होती है। २. उक्त प्रकार के बेल-बूटोंवाला कालीन या गलीचा।
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झाड़न  : स्त्री० [हिं० झाड़ना] १. झाड़ने पर निकलनेवाली धूल अथवा रद्दी चीजें या उनके टुकड़े। २. वह कपड़ा जिससे अलमारियों, कुरसियों, चौकियों दरवाजों आदि पर पड़ी हुई धूल आदि झाड़ी और पोंछी जाती है।
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झाड़ना  : स० [सं० झर्च=आघात करना] १. कोई चीज उठाकर उसे इस प्रकार झटका देना कि उस पर पड़ी या लगी हुई फालतू और रद्दी चीजें दूर जा गिरें। जैसे–चाँदनी या दरी झाड़ना। २. झाड़ू, झाड़न आदि की सहायता से किसी चीज के ऊपर पड़ी हुई धूल आदि साफ करना। जैसे–कमरे का फर्श झाड़ना। ३. ऐसा आघात करना कि कहीं लगी या सटी हुई चीज या चीजें कटकर या टूटकर अलग हो जाएँ या नीचे गिर पड़े। जैसे–पेड़ में से आम या इमली झाड़ना। ४. डरा धमका कर या और किसी युक्ति से कुछ धन वसूल करना या रकम ऐंठना। झटकना। जैसे–जरा सी बात में पुलिस ने दो सौ रुपयें झाड़ लिये। ५. कुछ विशिष्ट प्रकार के शस्त्र इस प्रकार चारों ओर घुमाते हुए चलाना कि कोई पास आने का साहस न करे। जैसे–तलवार, पटा या लाठी झाड़ना। ६. जोर का आघात या प्रहार करना। जैसे–थप्पड़ या मुक्का झाड़ना। (क्व०) ७. पक्षियों का कुछ विशिष्ट ऋतुओं में, प्रकृत रूप से अपने पुराने पंख या पर गिराना जिसमें उनके स्थान पर फिर से नये पंख या पर निकलें। जैसे–यह पक्षी ग्रीष्मकाल में अपने पुराने पंख झाड़ता है। ८. कंघी फेर कर सिर के बाल साफ करना। ९. संभोग या समागम करके वीर्यपात करना। (बाजारू)। १॰. तंत्र-मंत्र आदि का ऐसा प्रयोग करना किसी का कोई रोग अथवा उस (व्यक्ति) पर चढ़ा हुआ प्रेत या भूत उतर जाय। जैसे–ओझा लोग देहातियों को भूत-प्रेत झाड़ने के नाम पर खूब ठगते हैं। ११. किसी की अकड़, ऐंठ या शेखी दूर करनेवाली कड़ी-कड़ी बातें सुनाना। फटकारना। जैसे–आज मैनें उन्हें ऐसा झाड़ा कि वे ठंढ़े हो गये। उदाहरण–ऐसे वचन कहूँगी इनतें, चतुराई इनकी मैं झारति।–सूर। १२. अपनी योग्यता दिखाकर धाक जमाने के लिए किसी भाषा या विषय में बहुत सी उलटी-सीधी बातें कर जाना। जैसे–देहातियों के सामने अँगरेजी या कानून झाड़ना, मूर्खों के सामने वेदांत झाड़ना।
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झाड़वाला  : पुं० [हिं० झाड़+वाला (प्रत्यय)] झाड़ू देने या लगानेवाला व्यक्ति। झाड़बरदार।
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झाड़ा  : पुं० [हिं० झाड़ना] १. भूत-प्रेत की बाधा, रोग आदि दूर करने के लिए की जानेवाली झाड़-फूँक या मंत्रोपचार। २. किसी के पहने हुए कपड़े आदि झाड़कर ली जानेवाली तलाशी। ३. पाखाना फिरने या मल त्याग करने की क्रिया। क्रि० प्र०–फिरना। (हगना)। ४. मल-त्याग करने की कोठरी। पाखाना। शौचालय। ५. गुह। मल। ६. दे० झाला (सितार का)।
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झाड़ी  : स्त्री० [हिं० झाड़] १. हिं० झाड़ का स्त्री० अल्पा० रूप। छोटा झाड़। २. बहुत से छोटे-छोटे झाड़ों या पेड़-पौधों का झुरमुट। स्त्री० [हिं० झाड़ना] सूअर के बालों की बनी हुई कूची। बलौंछी।
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झाड़ीदार  : वि० [हिं० झाड़ी+फा० दार] १. आकार, रूप आदि के विचार से झाड़ी की तरह का। छोटे झाड़ का सा। २. काँटेदार। कँटीला। ३. (स्थान) जहाँ पर बहुत सी झाडियाँ हों। ४. दे० झाड़दार।
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झाड़ू  : पुं० [हिं० झाड़ना] १. लंबी सीकों आदि का वह मुट्ठा जिससे फर्श पर पड़ा हुआ कूड़ा-करकट, धूल आदि साफ करते हैं। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। मुहावरा–झाड़ू देना=(क) झाड़ू की सहायता से जमीन या फर्श पर का कूड़ा करकट साफ करना। (ख) इस प्रकार सब कुछ नष्ट करना कि कुछ भी बाकी न रह जाय। झाडू फिरना=ऐसा अपव्यय या नाश होना कि कुछ भी बाकी न बच रहे। झाड़ू फेरना=पूरी तरह नाश करके कुछ भी बाकी न रहने देना। पूरा सफाया करना। (किसी को) झाड़ू मारना=बहुत ही उपेक्षा तथा तिरस्कारपूर्वक दूर हटाना। (स्त्रियाँ) जैसे–झाड़ू मारो ऐसे धोबी (या नौकर) को। ० दुमदार सितारा। पुच्छलतारा। धूम-केतु।
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झाड़ूदुमा  : पुं० [हिं० झाड़+फा० दुम] हाथी, जिसकी दुम के बाल झाडू के अगले भाग की तरह छितरे या फैले हुए हों। ऐसा हाथी ऐबी माना जाता है।
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झाड़ूबरदार  : पुं० [हिं० झाड़+फा० बरदार] [भाव० झाड़बरदारी] १. वह सेवक जो घर में झाड़ू लगाता हो। २. गलियों में और सड़कों पर झाड़ू देनेवाला मेहतर।
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झाण  : पुं० [सं० ध्यान] हठ-योग में, एक प्रकार की साधना जिसमें पंच महाभूतों का ध्यान करके उन्हें ऊपर की ओर प्रवृत्त किया जाता था, और इसके लिए शरीर के अन्दर के पाँच चक्रों का भी ध्यान किया जाता था। (बौद्ध)।
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झाँप  : स्त्री० [हिं० झाँपना] १. वह चीज जिससे कोई दूसरी चीज झाँपी या ढकी जाती हो। ऊपरी आवरण। जैसे–पिटारी की झाँप। २. वास्तु कला में, खिड़की, दरवाजे आदि के ऊपर दीवार से बाहर निकली हुई रचना जो धूप, वर्षा के जल आदि को कमरे के अन्दर आने में रुकावट उत्पन्न करती है। (शेड)। ३. परदा। ४. टट्टी। ५. मस्तूल का झुकाव। ६. कान का एक आभूषण। ७. घोडे़ को गले में पहनाई जानेवाली एक प्रकार की हुमेल या हैकल। स्त्री०=झपकी। स्त्री०=उछल-कूद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झापड़  : पुं० [?] थप्पड़। तमाचा। क्रि० प्र०–देना।–मारना।–लगाना।
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झाँपना  : स० [सं० उत्थापन, हिं० ढाँपना] १. ऊपर से आवरण डाल कर ढाँकना। ढकना। २. मलना। रगड़ना। उदाहरण–फिरि फिरि झाँपति है कहा रुचिर चरन के रंग।–मतिराम। ३. पकड़कर दबाना या दबोचना। अ०=झेंपना।
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झाँपा  : पुं० [हिं० झाँपना] [स्त्री० झाँपी] १. वह बड़ी टोकरी या दौरी जिससे दही, दूध आदि ढाँके जाते हैं। २. मूँज की बनी हुई एक प्रकार की बड़ी पिटारी। स्त्री०=झपकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँपो  : स्त्री० [देश०] १. खंजन पक्षी। २. दुश्चरित्रा या पुंश्चली स्त्री। (गाली)।
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झाबड़-झल्ला  : वि० [हिं०] बहुत अधिक ढीला-ढाला।
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झाबर  : पुं० [?] दलदली भूमि। पुं०=झाबा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=झबरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाबा  : पुं० [हिं० झाँपना-ढाँकना] [स्त्री० अल्पा० झाबी] १. रहठे का बना हुआ वह टोकरा या दौरा। खाँचा। २. घी, तेल आदि रखने का वह कुप्पा जिसमें टोंटी भी लगी रहती है। ३. चमड़े का एक प्रकार का बड़ा थाल। सफरा। (पश्चिम) ४. शीशे का बड़ा झाड़ जो रोशनी के लिए छत में लटकाया जाता है। पुं०=झब्बा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाम  : पुं० [देश०] १. गुच्छा। २. समूह। ३. झब्बा। तुर्रा। ४. मिट्टी खोदने की एक प्रकार की कुदाल। ५. एक प्रकार का बड़ा यंत्र जो नदियों आदि के तल की मिट्टी खोदने के काम आता है। ६. डाँट-फटकार। ७. घुड़की। ८. कपट। छल। धोखा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झामक  : पुं० [सं० झम् (खाना)+ण्वुल्-अक] जली हुई ईंट। झाँवाँ।
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झामर  : पुं० [सं० झाम√रा (देना)+क] १. टेकुआ रगड़ने का सान। सिल्ली। २. पैजनी की तरह का पैर में पहनने का एक गहना।
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झामर-झूमर  : पुं० [अनु०] ऐसी चीज या बात जिसमें ऊपरी आडबंर, झंझटें या बखेड़े तो बहुत से हों परन्तु जिसमें तत्त्व या सार कुछ भी न हों। उदाहरण–दुनिया झामर-झूमर उलझी सत्तमान के बकरा लाये, कान पकड़ सिर काटा।–कबीर।
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झामरा  : वि० [हिं० झाँवला] १. झाँवे के रंग का। झाँवला। २. मलिन। उदाहरण–सामरि हे झामरि तोर देह। विद्यापति।
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झामा  : वि०=झाँवला। पुं०=झाँवाँ।
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झामी  : वि० [हिं० झाम=धोखा] धोखा देनेवाला। धोखेबाज। स्त्री० [अनु०] १. झन झन शब्द। झनकार। २. सुनसान जगह में तेज हवा चलने पर होनेवाला शब्द जो प्राय डरावना होता है।
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झार  : वि० [सं० सर्व, प्रा० सारो, हि० सारा] १. आदि से अन्त तक का सब। कुल। पूरा। समस्त। सारा। २. जिसमें कुछ भी मिलावट न हो। खालिस। पुं० १. झुंड। दल। २. समूह। अव्य० १. केवल। निपट। निरा। २. एक दम से। एक सिरे से। स्त्री० [हिं० झाल] १. स्वाद में चरपरे या तीखे होने की अवस्था या भाव। झाल। २. आग की लपट। ज्वाला। ३. जलन। ताप। ४. ईर्ष्या के कारण होनेवाला मनस्ताप। डाह। पुं० [हिं० झरना] रसोई का झरना या पौना नामक उपकरण। पुं० [?] एक प्रकार का पेड़।
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झारखंड  : पुं० [हिं० झार० सं०+खंड] १. उजाड़ जगह। २. जंगल। ३. बिहार राज्य के एक छोटे भू-भाग का नाम। ४. एक पर्वत जो वैद्यनाथ धाम से जगन्नाथ पुरी तक विस्तृत है।
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झारन  : स्त्री०=झाड़न।
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झारना  : स०=झाड़ना।
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झारा  : पुं० [हिं० झार] बहुत पतली धुली हुई भाँग। पुं० [हिं० झारना] १. अनाज फटकने का सूप। २. अनाज छानने का झरना। ३. पटा, बनेठी, लाठी आदि चलाने की कला या विद्या। पुं० =झाड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झारि  : स्त्री०=झार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झारी  : स्त्री० [हिं० झारना] १. लंबी गरदनवाली एक प्रकार की टोंटीदार लुटिया जिससे जल बँधी हुई धार के रूप में निकलता है। २. पानी में अमचूर, जीरा, नमक आदि मिलाकर बनाया जानेवाला एक प्रकार का स्वादिष्ट पेय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=झाड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [हिं० झार] समष्टि। समूह। उदाहरण–गई जहाँ सुर नर मुनि झारी।–तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० वि० एक दम से। एक सिरे से।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झारू  : पुं=झाड़।
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झार्झर  : पुं० [सं० झर्झर+अण्] हुडुक या ढोल बजानेवाला व्यक्ति।
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झाल  : स्त्री० [सं० झालिः=आम का पना या पन्ना] १. गंध, स्वाद आदि की तीव्रता। जैसे–मिर्च, राई आदि की झाल। २. स्वाद का चरपरापन या तीक्ष्णता। जैसे–तरकारी या दाल की झाल, आम या इमली के पन्ने की झाल। स्त्री० [हिं० झालना] १. झालने (अर्थात् धातु की चीजों को टाँका लगाकर जोड़ने) की क्रिया या भाव। २. धातु की चीजों का वह अंश जिसमें उक्त प्रकार का टाँका लगा हो। स्त्री० [सं० ज्वाल] १. जलन। ताप। दाह। २. लपट। लौ। ३. उत्कट या प्रबल कामवासना। ४. मन की तरंग। मौज। (क्व०) पुं० [सं० झल्लक] काँसे आदि की बनी हुई बड़ी झाँझ। स्त्री० [हिं० झड़ी] १. (वर्षा की) झड़ी। २. बादल के कारण होनेवाला अँधेरा।
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झालड़  : स्त्री०=झालर।
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झालना  : स० [?] [भाव० झलाई] १. धातु की बनी हुई चीजों के भिन्न-भिन्न अंगों को टाँका लगाकर उन्हें आपस में जोड़ना। २. किसी पात्र का मुँह धातु का टाँका लगाकर चारों ओर से अच्छी तरह बंद करना। जैसे–गंगा जल से भरी हुई लुटिया झालना। ३. पेय पदार्थों की बोतलें आदि बरफ या शोरे में रखकर खूब ठंढ़ी करना। स० १.=झेलना (सहना)। २.=झलना। (ग्रहण या धारण करना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झालर  : स्त्री० [सं० झल्लरी] १. किसी विस्तार में उनके एक या कई सिरों पर शोभा या सजावट के लिए टाँका, बनाया या लगाया जानेवाला लहरियेदार किनारा या हाशिया। जैसे–तकिये, पंखे या परदे में लगी हुई झालर, सायबान में लगाई जानेवाली झालर। २. वास्तु-रचना में पत्थर, लकड़ी आदि को गढ़ या तराशकर प्रस्तुत की जानेवाली उक्त प्रकार की बनावट। जैसे–दरवाजे के पल्ले या मेहराब में की झालर। ३. उक्त आकार या प्रकार की कोई ऐसी लटकती हुई चीज जो प्रायः हिलती रहती हो। जैसे–गौ या बैल के गले की झालर। ४. किनारा। छोर। सिरा। (क्व०) ५. एक प्रकार का बहुत बड़ा छैना या झाँझ जो पूजा आदि के समय देवताओं के सामने बजाते हैं। पुं०=झलरा (पकवान)। उदाहरण–झालर माँड़े आय पोई।–जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झालरदार  : वि० [हिं० झालर+फा० दार] जिसमें झालर टँकी, बनी या लगी हो।
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झालरना  : अ० [हिं० झालर+ना (प्रत्य०)] १. झालर का हिलना या हवा में लहराना। २. हवा में किसी वस्तु का लहराना। ३. (पेड़-पौधों का) शाखाओं, पत्तियों, फूलों आदि से युक्त या संपन्न होना। उदाहरण–नित नित होति हरी हरी खरी झालरति जाति।–बिहारी।
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झालरा  : पुं० [हिं० झालर] एक प्रकार का रुपहला हार। हुमेल। पुं० [?] कुछ विशिष्ट प्रकार का बना हुआ चौकोर और बड़ा कूआँ। बावली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाला  : पुं० [देश०] १. गुजरात, मारवाड़ आदि प्रदेशों में बसी हुई एक राजपूत जाति। २. उक्त जाति का व्यक्ति। ३. सितार आदि बजाने में उत्पन्न होनेवाली एक विशेष प्रकार की कलात्मक झंकार।
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झालि  : स्त्री० [सं०] एक प्रकार की काँजी जो कच्चे आम को पीसकर और उसमें राई, नमक आदि मिलाकर बनाई जाती है। झारी। स्त्री०=झाल (वर्षा की झड़ी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झावँ झावँ  : पुं=झाँवँ-झाँवँ।
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झाँवना  : स० [हिं० झाँवा+ना (प्रत्यय)] झाँवे से रगड़कर (हाथ-पैर आदि) धोना। स० अ० =झँवाना।
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झाँवर  : पुं० [?] वह नीची भूमि जिसमें वर्षा का पानी अधिक मात्रा में रुकने के कारण मोटा अन्न अधिकता से उपजता हो। २. धान के लिए उपयुक्त नीची भूमि। वि० [हिं० झाँवला] [स्त्री० झाँवली] १. झाँवे के रंग का। काला। २. मलिन। मैला। ३. कुम्हलाया या मुरझाया हुआ। ४. धीमा। मंद। ५. सुस्त।
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झावर  : वि०=झाबर (झबरा)।
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झाँवली  : स्त्री० [हिं० झाँई] १. बहुत ही थोड़े समय के लिए या एकाध क्षण कुछ दिखाई पड़ने की अवस्था या भाव। २. झलक। ३. आँख के कोने से देखने की अवस्था या भाव। कनखी। मुहावरा–झाँवली दना=आँख हिलाकर हलका सा संकेत करना।
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झाँवाँ  : पुं० [सं० झामक] १. भट्ठे में पकी हुई वह ईट जो अधिक ताप लगने के कारण काली पड़ गई हो और कुछ टेढ़ी भी हो गई हो। २. उक्त जली हुई ईंट का टुकड़ा जिसमें प्रायः छोटे-छोटे छेद होते है तथा जिसका प्रयोग चीजों पर से दाग छुड़ाने और विषेषतः पाँवों पर जमी हुई मैल रगड़कर छुड़ाने के लिए होता है।
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झावु  : पुं० [सं० झा√वा (गति)+डु] झाऊ (एक क्षुप)।
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झावुक  : पुं० [सं० झावु+कन्] झाऊ।
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झाँसना  : स० [हिं० झाँसा] झाँसा या धोखा देना। २. झाँसा या धोखा देकर किसी से कुछ ले लेना। झँसना।
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झाँसा  : पुं० [सं० अध्यास=मिथ्या ज्ञान, प्रा० अज्झास] १. किसी से कुछ झँसने या वसूल करने के लिए उसे समझाई जानेवाली उलटी सीधी बात। २. अपने काम निकालने के लिए कही जानेवाली कोई छलपूर्ण बात। क्रि० प्र०–देना।–बताना।–में आना। पद–झाँसा-पट्टी (देखें)।
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झाँसा पट्टी  : स्त्री० [हिं०] किसी को छल-कपट की बातों में फुसलाकर दिया जानेवाला धोखा।
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झाँसिया  : पुं० [हिं० झाँसा+इया (प्रत्यय)] वह जो लोगों को झाँसा देकर अपना स्वार्थ सिद्ध करता हो।
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झाँसी  : पुं० [देश०] तमाखू दाल आदि की फसल में लगनेवाला एक प्रकार का गुबरैला कीड़ा।
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झाँसू  : पुं० [हिं० झाँसा] झाँसिया (दे।)
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झिंकार  : पुं० [?] बारहसिंघा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिंगड़ना  : अ०=झगड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झिगड़ा  : पुं०=झगड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिंगन  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़ जिसकी पत्तियों से लाल रंग बनता है। पुं० [?] सारस्वत ब्राह्मणों की एक जाति या वर्ग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिंगनी  : स्त्री=खर-तरोई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिंगवा  : स्त्री० [सं० चिंगट] एक प्रकार की छोटी मछली जिसके अगले और पिछले दोनों भागों पर बाल होते हैं।
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झिंगाक  : पुं० [सं०√लिंग् (गमनादि)+आकन्, पृषो० सिद्धि] तरोई। तोरी।
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झिंगारना  : अ० [हिं० झिंगुर] झींगुर का बोलना या शब्द करना। स० उक्त प्रकार का शब्द उत्पन्न करना।
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झिंगिन  : पुं०=जूगनूँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिंगिनी  : स्त्री० [सं०√लिंग+इनि, पृषो० सिद्धि] एक जंगली पेड़ जिसके फल बेर के समान छोटे-छोटे और सफेद रंग के फूल होते है जो औषध के काम आते हैं।
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झिंगी  : स्त्री०=झिंगिनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिंगुला  : पुं० [स्त्री० अल्पा० झिंगुली] झगा। (बच्चो का)।
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झिझक  : स्त्री० [हिं० झिझकना] झिझकने की क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० दे० ‘झझक’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिझकना  : अ० [अनु०] [भाव० झिझक] भय, लज्जा, संकोच आदि के कारण कुछ कहने या करने से आनाकानी करना, पीछे हटना या रुकना। अ० दे० ‘झझकना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिझकार  : स्त्री०=झझकार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिझकारना  : स=झझकारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिंझा  : वि० [?] [स्त्री० झिंझी] चिपटी नाकवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिंझिम  : पुं० [सं० झिम्√झम्+अच्, पृषो० सिद्धि] ऐसा वन जिसमें आग लगी हो।
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झिंझिया  : स्त्री०=झाँझी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिंझिरिष्टा  : स्त्री० [सं०] झिंझिरोटा।
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झिंझिरोटा  : पुं० [सं० झिंझिरिष्टा] एक प्रकार का क्षुप।
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झिंझी  : स्त्री० [सं०] झींगुर। झिल्ली। स्त्री=झंझी या झज्झी(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)।
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झिंझोटी  : स्त्री० [देश०] दिन के चौथे पहर में गाई जानेवाली संपूर्ण जाति की रागिनी जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं।
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झिटकारना  : स०=झटकारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिंटी  : स्त्री० [सं० झिम्√रट् (रटना)+अच्-ङीष्, पृषो० सिद्धि] कटसरैया। पियाबासा।
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झिड़क  : स्त्री० [हिं० झिड़कना] १. झिड़कने की क्रिया या भाव। २. झिड़की।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिड़कना  : स० [हिं० झटकना या झाड़ना] १. पुरानी हिन्दी में झटका देकर या झटकारते हुए दूर करना या हटाना। उदाहरण–कोटि सुर को दंड आभा झिरकि डारै वारि।–सूर। २. आज-कल किसी के अनुचित आचरण या व्यवहार से क्रुद्ध या रुष्ट होकर उसे तिरस्कारपूर्वक बिगड़कर कोई कठोर बात कहना। झिड़की
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झिड़झिड़ाना  : अ० [भाव० झिड़झिड़ाहट]=चिड़चिड़ाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिनवा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का बढि़या धान जिसके चावल बारीक होते हैं। वि०=झीना।
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झिपना  : अ=झेंपना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिपाना  : स० [हिं० झेंपना का स० रूप] किसी को झेंपने में प्रवृत्त करना० लज्जित करना।
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झिमकना  : अ०=झमकना।
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झिमिटना  : अ० [अनु०] एकत्र होना। उदाहरण–झिमिट जाते है जहाँ जो लोग…।–मैथिलीशरण।
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झिर  : स्त्री०=झिरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिरकना  : स०=झिड़कना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिरझिर  : क्रि० वि० [अनु०] १. थोड़ा-थोड़ा करके और मन्द गति से। धीरे-धीरे। जैसे–झिरझिर झरना (पानी का सोता) बहना। २. उक्त प्रकार से और झिरझिर शब्द करते हुए। जैसे–झिरझिर हवा बहना।
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झिरझिरा  : वि०=झीना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिरझिराना  : अ०=झिड़झिड़ाना (चिड़चिड़ाना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिरना  : पुं० [हिं० झरना] १. झरना। २. झिरी। अ०=झरना।
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झिरहर  : वि०=झीना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिरा  : स्त्री० [हिं० झरना=रसकर निकलना] आमदनी। आय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिराना  : अ० स०=झुराना।
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झिरिका  : स्त्री० [सं०] झींगुर।
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झिरिया  : स्त्री० [हिं० झरना] छोटा झरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिरी  : स्त्री० [हिं० झरना] १. वह छोटा छेद या संधि जिसमें से कोई चीज धीरे-धीरे निकल या बह जाय दरज। २. वह गड्ढा जिसमें आस-पास का पानी झिर-झिरकर इकट्ठा होता है। ३. किसी बड़े जलाशय के आस-पास का वह छोटा झरना या सोता जिसमें से पानी झिर या रसकर निकलता हो। ४. तुषार। पाला। ५.ऐसी फसल जो पाला पड़ने के कारण खराब हो गई हो।
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झिरीका  : स्त्री० [सं० झिरी√कै (शब्द)+क-टाप्] झींगुर।
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झिर्री  : स्त्री० [हिं० झरना या झिरी] वह छोटा गड्ढा जो नाली आदि का पानी रोकने के लिए खोदा जाता है। घेरुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिलँगा  : वि० [हिं० ढीला+अंग] १. ढीले अँगोंवाला। २. झीनी बुनावट वाला। उदाहरण–झिलँगा खंटिया बातल देह।–घाघ। ३. दुबला-पतला। पुं० १. वह छोटी हलकी खाट जिसकी बुनावट दूर दूर या विरल हो। २. ऐसी टूटी-फूटी और पुरानी खाट जिसकी बुनावट ढीली पड़ गई हो। पुं० =झींगा। (मछली)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिलना  : अ० [हिं० झेलना] १. हिं० ‘झेलना’ का अ० रूप। झेला या सहा जाना। २. कष्ट सहते और जोर लगाते हुए अन्दर घुसना, धँसना या पैठना। उदाहरण–वाणी की वीणा ध्वनि सी भर उठी शून्य में झिलकर-प्रसाद। ३. कष्ट सहते हुए अपनी कामना या वासना पूरी करना। ४. तृप्त होना। अघाना। ५. किसी काम या बात में पूरी तरह से तन्मय या लीन होना। पुं० [सं० झिल्ली] झींगुर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिलम  : स्त्री० [हिं० झिलमिला] युद्ध के समय पहने जानेवाले टोप में पीछे की ओर लगी हुई सिकड़ियों की वह झालर जो गरदन पर लटकी रहती थी।
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झिलमटोप  : पुं=झिलम।
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झिलमा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का धान।
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झिलमिल  : स्त्री० [सं० ज्वल्+झला] १. संध्या या सबेरे की वह स्थिति जब कि कुछ कुछ अंधकार भी हो और कुछ-कुछ प्रकाश भी, और जिसमें चीजें साफ न दिखाई देती हों। झिलमिला। २. प्रकाश की किरणों या लौ के हिलते रहने की वह स्थिति जिसमें कभी तो कुछ अँधेरा हो जाता हो और कभी-कभी कुद्ध उजाला। ३. किसी चमकीली चीज की वह स्थिति जिसमें रह-रहकर प्रकाश की किरणें दिखाई देती या निकलती हों। जैसे–पानी की झिलमिल। ४. पुरानी चाल की एक प्रकार की बहुत बढ़िया मलमल जिसकी प्रायः साड़ियाँ बनती थीं। वि०=झिलमिला।
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झिलमिला  : वि० [सं०√ज्वल्+झला] १. (समय) जिसमें न तो पूरा अंधकार ही हो और न पूरा प्रकाश ही। मिला-जुला थोड़ा अँधेरा और थोड़ा उजाला। २. (प्रकाश) जो हिलते रहने के कारण रह-रहकर चमकता हो और फिर बीच-बीच में आँखों से ओझल हो जाता हो। रह-रहकर चमकनेवाला। ३. (आवरण) जिसमें जगह-जगह बहुत से छोटे-छोटे अवकाश या छेद हों और इसीलिए जिसके कारण कहीं तो प्रकाश आ जाता हो और कहीं अँधेरा बना रहता हो। ४. जिसका कुछ-कुछ आभास तो मिलता हो, फिर भी पूरी तरह से स्पष्ट न हो। पुं०=झिलमिल।
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झिलमिलाना  : अ० [अनु०] [भाव० झिलमिलाहट, झिलमिली] हिलते रहने के कारण रह-रहकर चमकना। जैसे–लौ का झिलमिलाना। स० किसी चमकीली चीज को इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा हिलाना कि उसमें से रह-रहकर प्रकाश या उसकी किरणें निकलें।
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झिलमिलाहट  : स्त्री० [अनु०] झिलमिलाने की क्रिया, अवस्था या भाव।
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झिलमिली  : स्त्री० [हिं० झिलमिल] १. बेड़े बल में एक दूसरी पर जड़ी या बैठाई हुई पटरियों का वह ढाँचा जो किवाड़ों के पल्लों के कुछ भागों में इसलिए जड़ा रहता है कि खड़े बल में लगी हुई लकड़ी के सहारे आवश्यकतानुसार प्रकाश, वायु आदि के आने के लिए कुछ अवकाश निकाला जा सके। खड़खड़िया। क्रि० प्र०–उठाना।–खोलना।–गिराना।–चढ़ाना। २. चिक। चिलमन। ३. कान में पहनने का एक प्रकार का गहना। ४. झिलमिलाहट।
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झिलवाना  : स० [हिं० ‘झेलना’ का प्रे० रूप] किसी को कुछ झेलने में प्रवृत्त करना।
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झिली  : स्त्री०=झींगुर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिल्ल  : पुं० [सं०] छोटे-छोटे पत्तोवाला एक पौधा जिसमें लाल रंग के फूल लगते हैं।
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झिल्लड़  : वि० [हिं० झिल्ला] (वह कपड़ा) जिसकी बुनावट दूर दूर पर हो। पतला और झँझरा। झीना। गफ का विपर्याय।
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झिल्लन  : स्त्री० [देश०] दरी बुनने के करघे की वह लकड़ी जिसमें बय का बाँस लगा रहता है। गुरिया।
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झिल्ला  : वि० [अनु०] [स्त्री० झिल्ली] १. पतला। बारीक। महीन। २. दे० ‘झिल्लड़’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झिल्लि  : स्त्री० [सं० झिर√लिश् (गमनादि)+डि] १. एक प्रकार का बाजा। २. झींगुर।
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झिल्लिका  : स्त्री० [सं० झिल्लि+कन्-टाप्] १. झींगुर। २. झिल्ली। ३. झींगुर की झनकार। ४. सूर्य का प्रकाश।
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झिल्ली  : स्त्री० [सं० झिल्लि+ङीष्] झींगुर। स्त्री० [?] १. किसी चीज के ऊपर या चारों ओर प्राकृतिक रूप से लगा या लिपटा हुआ बहुत ही पतला और पारदर्शक आवरण। जैसे–गर्भस्थ शिशु के चारों ओर लिपटी हुई झिल्ली, आँख त्वचा अथवा फेफड़े के ऊपर की झिल्ली। २. फलों आदि के ऊपर का उक्त प्रकार का बहुत पतला छिलका। जैसे–अंगूर या जामुन पर की झिल्ली। ३. आँख का जाला नामक रोग।
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झिल्लीक  : पुं० [सं० झिल्ली+कन्] झींगुर।
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झिल्लीका  : स्त्री० [सं० झिल्लीक+टाप्] झींगुर।
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झिल्लीदार  : वि० [हिं० झिल्ली+फा० दार] जिसमें या जिसके ऊपर झिल्ली हो। झिल्ली से युक्त।
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झींक  : स्त्री०=झींका।
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झींकना  : स० [?] १. पटकना। २. फेंकना। ३. मंडित या सज्जित करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ० १. मंडित या सज्जित होना। उदाहरण–आनंद कंद चन्द्र के ऊपर तो तारा-गण झींके।–लोक गीत। २. दे० झीखना।
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झींका  : पुं० [देश०] पीसे जानेवाले अन्न की उतनी मात्रा जितनी एक बार में चक्की में डाली जाती है।
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झीका  : पुं० [सं० शिक्य] छीका। सिकहर।
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झींख  : स्त्री०=झीख।
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झीख  : स्त्री० [हिं० झीखना] झीकने की अवस्था क्रिया या भाव।
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झींखना  : अ०=झीखना।
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झीखना  : अ० [अनु०] मानसिक कष्ट, चिंता आदि से व्यथित होकर बहुत ही दुःखी भाव से रह-रहकर और समय-कुसमय उसकी चर्चा करते रहना। कुढ़-कुढ़ कर अपना दुखड़ा रोते रहना। पुं० वह कथन या बात जो उक्त प्रकार से कुढ़-कुढ़कर कहीं जाती हो।
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झींगट  : पुं० [देश०] मल्लाह। माँझी (लश०)
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झींगन  : पुं० [देश०] मोटे तने तथा कम शाखाओं वाला मँझोले कद का एक पेड़।
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झींगा  : पुं० [सं० चिंगट] १. एक प्रकार की छोटी मछली जो प्रायः नदियों और जलाशयों में पाई जाती है। इसका मांस खानें में बहुत स्वादिष्ट होता है। २. एक प्रकार का बढ़िया अगहनी धान जिसका चावल दिनों तक रह सकता है। ३. कपास की फसल में लगनेवाला एक प्रकार की कीड़ा।
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झींगुर  : पुं० [झी+कर से अनु०] एक प्रकार का छोटा बरसाती कीड़ा जो झीं झीं शब्द करने के लिए प्रसिद्ध है।
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झींझना  : अ० [अनु०] झुँझलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झीझा  : वि० [स्त्री० झीझी]=झीना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [?] धीमा। मन्द।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झींझो  : पुं०=झाँझी।
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झींटना  : अ०=झीखना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झीठ  : वि०=झूठ। (ब्रज)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झीड़ना  : अ० [अनु०] १. बलपूर्वक प्रविष्ट होना। घुसना। २. धँसना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झीणा  : वि०=झीना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झीत  : पुं० [?] जहाज के पाल में लगा हुआ बटन। (लश०)
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झीन  : वि०=झीना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झीना  : वि० [सं० क्षीण] [स्त्री० झीनी] १. क्षीण शरीरवाला। दुबला-पतला। २. पतला। बारीक। महीन। ३. (कपड़ा) जिसके ताने तथा बाने के सूतों की बुनावट ठस न होकर विरल हो। उदाहरण–झीनी झीनी बीनी चदरिया।–कबीर। मुहावरा–झीना ओढ़ाना=चित्रकला में आकृतियों पर ऐसा झीना या पतला वस्त्र अंकित करना कि नीचे के अंग दिखाई दें। ४. रचना जिसके दोनों बल के डोरे, तार आदि अपेक्षया एक दूसरे से दूर या विरल हों। जैसे–खाट या पलंग की झीनी बुनावट। ५. जिसमें बहुत से छोटे-छोटे छेद हो। झँझरा। ६. धीमा। मंद।
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झीनासारी  : पुं० [?] एक प्रकार का धान और उसका चावल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झींपना  : अ=झेंपना। स० दे० ‘ढकना’।
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झीमना  : अ० [अनु०] १. झूमना। उदाहरण–नवनील कुंज है झीम रहे कुसुमों की कथा न बंद हुई।–प्रसाद। २. ऊँघना।
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झींमर  : पुं०=झीवर (मल्लाह)।
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झीमस  : स्त्री० [हिं० झीमना] ऊँघ। झपकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झीरिका  : स्त्री० [सं०] झींगुर।
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झीरुका  : स्त्री० [सं०] झींगुर।
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झील  : स्त्री० [सं० क्षीर=जल] १. वह बहुत बड़ा प्राकृतिक जलाशय जिसमें पानी रुका रहता हो। बहुत बड़ा ताल। २. उक्त प्रकार का कोई कृत्रिम छोटा जलाशय। स्त्री० [?] झोंका।
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झीलना  : स०=झेलना।
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झीलम  : स्त्री०=झिलम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झीलर  : पुं० [हिं० झील] छोटी झील। ताल।
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झीली  : स्त्री० [हिं० झिल्ली] १. दही, दूध आदि के ऊपर की मलाई। २. दे० झिल्ली।
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झींवर  : पुं०=झीवर (मल्लाह)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झीवर  : पुं० [सं० धीवर] मल्लाह। माँझी।
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झींसी  : स्त्री० [अनु० या हिं० झीना=बहुत महीन] ऐसी हलकी वर्षा जिसमें पानी बहुत ही छोटी-छोटी या महीन बूँदों के रूप में बरसता हो। क्रि० प्र०–पड़ना।
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झुकझोरना  : स=झझकोरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुकना  : अ० [सं० युज्-किसी ओर प्रवृत्त होना] १. किसी ऊर्ध्व या खड़े बल में रहनेवाली चीज के ऊपरी भाग का कुछ टेढ़ा होकर किसी दिशा या पार्श्व में कुछ नीचे की ओर आना या होना। जैसे–(क) पढ़ने-लिखने के समय आदमी की गरदन या सिर झुंकना। (ख) बरसात में पानी भरने के कारण मकान की दीवार या बरामदा झुकना। २. क्षैतिज या बेड़ेबल में रहनेवाली अथवा सीधी चीज का कोई अंश या सिरा नीचे की ओर आना, मुड़ना या होना। जैसे–(क) लकड़ी की धरन का बीच में झुकना। (ख) लोहे की छड़ का एक या दोनों सिरे झुकना। ३. बोझ, भार आदि के कारण किसी चीज का अपनी प्रसम और स्वाभाविक अवस्था या स्थिति से हटकर कुछ नीचे की ओर आना या होना। जैसे–फलों के भार से वृक्ष की डालियाँ झुकना। ४. आकाशस्थ, ग्रहों, नक्षत्रों आदि की अपनी पूरी ऊँचाई तक पहुँच चुकने के बाद क्षितिज की ओर उन्मुख या प्रवृत्त होना। जैसे–चंद्रमा या सूर्य का (अस्तमित होने के समय या उससे पहले) झुकना। ५. दुर्बलता रोग, वार्धक्य शिथिलता आदि के कारण शरीर के किसी ऐसे अंग का कुछ नीचे की ओर आना या प्रवृत्त होना जो साधारणयतः खड़ा या सीधा रहता हो अथवा जिसे खड़ा या सीधा रहना चाहिए। जैसे–(क) नशे या लज्जा से आँखे या सिर झुकना। (ख) बुढ़ापे में कमर या गरदन झुकना। ६. उद्देश्य की पूर्ति या कार्य की सिद्धि के लिए थोड़ा आगे बढ़ते हुए नीचे की ओर प्रवृत्त होना। जैसे–किसी के चरण छूने या कोई चीज उठाने के लिए झुकना। ७. प्रतियोगिता, बैर, विरोध आदि के प्रसंगों में प्रतिपक्षी की प्रबलता या महत्ता मानते हुए उसके सामने दबना अथवा नम्र भाव से आचरण या व्यवहार करना। अभिमान, बल आदि का प्रदर्शन छोड़कर विनीत और सरल होना। जैसे–(क) युद्ध में शत्रु के सामने झुकना।(ख) लड़ाई-झगड़े में भाइयों के आगे झुकना। ८.आवेश, क्रोध आदि से युक्त होकर कठोर बातें कहने या रोष प्रकट करने के लिए किसी की ओर प्रवृत्त होना। जैसे–पहले तो वे अपने भाई से उलझ रहे थे फिर मेरी ओर (या मुझ पर) झुक पड़े। उदाहरण–(क) नहिं जान्यौ बियोग सो रोग है आगे झुकी। तब हौ तेहि सों तरजी।–तुलसी। (ख) तऊ लाज आई झुकत खरे लजौहे देखि।-बिहारी। ९. विशेष ध्यान देते हुए किसी काम या बात की ओर प्रवृत्त होना। दत्त-चित्त होकर कुछ करने लगना। जैसे–आज-कल वह इतिहास छोड़कर दर्शन (या वेंदात) की ओर झुके हैं।
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झुकमुख  : पुं० दे० ‘झुट-पुटा’।
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झुकरना  : अ० [अनु०] १.=झुँझलाना। २.=झुकराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुकराना  : अ० [हिं० झोंका] वायु, वेग आदि के कारण इधर-उधर झुकना। झीके खाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुँकवाई  : स्त्री०=झोंकवाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुकवाई  : स्त्री० [हिं० झुकवाना] झुकवाने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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झुँकवाना  : स०=झोंकवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुकवाना  : स० [हिं० झुकाना का प्रे० रूप] १. किसी को झुकने में प्रवृत्त करना। २. किसी के द्वारा ऐसा काम करना जिससे कोई दूसरा झुके। स० दे० ‘झोंकवाना’।
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झुँकाई  : स्त्री०=झोंकवाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुकाई  : स्त्री० [हिं० झुकाना] झुकाने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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झुकाना  : स० [हिं० झुकाना का स०] १. किसी खड़ी या सीधी चीज का कोई अंश या तल किसी प्रकार कुछ नीचे लाना ऐसा काम करना जिससे कुछ झुके। नीचे की ओर प्रवृत्त करना। जैसे–दबाकर लकड़ी या ठोंक-पीटकर लोहे की छड़ झुकाना। २. जो चीज ऊँचाई पर अथवा ऊपर हो उसे या उसका कोई अंश नीचे की ओर लाना। जैसे–राजा या सेनापति की मृत्यु होने पर किले का झंडा झुकाना। ३. अपना कोई अंग किसी ओर कुछ नीचे करना या ले जाना। जैसे–किसी के सामने आँखे या शिर झुकाना, किसी ओर कंधा, पैर या हाथ झुकाना। ४. किसी को किसी प्रकार दबाते हुए अथवा उसका अभिमान, विरोध, हठ आदि दूर करते हुए उसे नम्र या विनीत बनाना। जैसे–उदारता अथवा कौशल से विरोधी को अपने सामने झुकाना। ५. उक्त के आधार पर बैरी या शत्रु को पराजित या परास्त करना। ६. कुछ बल प्रयोग करते हुए किसी को किसी काम या बात की ओर प्रवृत्त करना या उसमें लगाना। जैसे–लड़का तो अभी पढना चाहता था पर पिता ने उसे नौकरी (या रोजगार) में झुका दिया। ७. कोई चीज या बात किसी ओर अग्रसर या प्रवृत्त करना। जैसे–आप लोगों ने आपस के लड़ाई-झगड़े (या हँसी-मजाक) की बात लाकर मुझ पर झुका दी। ८. प्रायः या सदा खड़ी अथवा सीधी रहनेवाली चीज कुछ टेढ़ी करके किसी ओर नत या प्रवृत्त करना। जैसे–बीमारी या बुढ़ापे ने उसकी कमर झुका दी।
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झुकामुकी(मुखी)  : स्त्री०=झुकमुख (झुटपुटा)।
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झुकार  : पुं० [हिं० झकोरा] हवा का झोंका। झकोरा।
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झुकाव  : पुं० [हिं० झुकना] १. झुकने की क्रिया या भाव। २. झुके हुए होने की अवस्था या भाव। ३. किसी विशेष कार्य या विषय की ओर होनेवाली सामान्य से कुछ आगे बढ़ी हुई प्रवृत्ति जिसके कारण वह कार्य या विषय अपेक्षया अधिक प्रिय और रुचिकर होता है जैसे–गणित की ओर इस लड़के का शुरू से ही झुकाव है।
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झुकावट  : स्त्री०=झुकाव।
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झुँगना  : पुं०=जूगनूँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुंगरा  : पुं० [देश०] साँवाँ। (कदन्न)।
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झुगिया  : स्त्री०=झुग्गी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुग्गी  : स्त्री० [?] १. फकीरों, साधुओं आदि की रहने की झोपड़ी। २. कोई बहुत छोटा मकान।
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झुझकावना  : स०=जुझाना (जूझने में प्रवृत्त करना)।
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झुँझना  : पुं० [हिं० झुनझना] १. घर में बालक के जन्म लेने पर गाये जाने वाले वे गीत जिनमें शिशु झुनझुना बजाने या उससे खेलने का उल्लेख होता है। २. दे० ‘झुनझुना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुँझलाना  : अ० [अनु०] [भाव० झुँझलाहट] इस प्रकार कुछ क्रुद्ध तथा व्यथित होकर कोई बात कहना जिससे अप्रसन्नता असंतोष या असहमति सूचित होती हो।
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झुँझलाहट  : स्त्री० [हिं० झुँझलाना] झुँझलाने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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झुझ्झ  : पुं०=युद्ध।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झुंट  : पुं० [सं० यूथ, प्रा० जूट] १. एक ही जाति या वर्ग के बहुत से पक्षियों, पशुओं आदि के एक स्थान पर एकत्र रहने या होने की अवस्था या भाव। जैसे–कबूतरों या हिरनों का झुंड। मुहावरा–झुंड में रहना=पशु-पक्षियों का अकेले, नहीं बल्कि अपने वर्ग के अन्य जीवों के साथ मिलकर रहना। २. व्यक्तियों का समूह।
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झुट-पुटा  : पुं० [अनु०] सूर्योदय से कुछ पहले और सूर्यास्त होने के कुछ बाद का वह समय जिसमें प्रकाश धुँधला होने के कारण चीजें स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देतीं।
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झुटलाना  : स०=झुठलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुटालना  : स०=जुठारना (जूठा करना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुटुंग  : वि० [हिं० झोंटा] जिसके सिर पर बहुत बड़ा या भारी झोंटा हो।
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झुट्ठल  : वि० [हिं० झूठ] झूठा। क्रि० वि० झूठ-मूठ। व्यर्थ में।
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झुट्ठा  : वि०=झूठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुठकाना  : स० [हिं० झूठ] झूठ-मूठ कोई बात कह कर किसी को धोखे या भ्रम में डालना।
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झुठलाना  : स० [हिं० झूठ+लाना (प्रत्यय)] १. किसी को झूठा ठहराना या सिद्ध करना। जैसे–तुम तो अपनी बातों से सच्चों को भी झुठला देते हो। २. झूठ-मूठ कोई बात कहकर किसी को धोखे या भ्रम में डालना। जैसे–खेल में बच्चों को झुठलाना।
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झुठाई  : स्त्री० [हिं० झूठ+आई (प्रत्यय)] झूठे होने की अवस्था या भाव। झूठापन। मिथ्यात्व।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुठाना  : स० [हिं० झूठ+आना (प्रत्यय)] १. (किसी विषय या बात को) झूठा सिद्ध करना। २. झुठलाना।
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झुठामूठी  : क्रि० वि०=झूठ-मूठ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुठालना  : स=झुठलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुंड  : पुं० [सं०√लुट् (गति)+अच्, पृषो० सिद्धि] झाड़ी।
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झुंडी  : स्त्री० [?] १. पौधों का ऊपरी भाग काट लेने पर नीचे बची रह जानेवाली उसकी जड़ या खूटी। २. वह कुलाबा जिसमें चिलमन या परदा टाँगा जाता है।
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झुनक  : पुं० [अनु०] घुँघरुओं या नूपुरों के बजने का शब्द।
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झुनकना  : अ० [अनु०] झुनझुन शब्द निकलना या होना। स०=झुनझुन शब्द उत्पन्न करना या निकालना। पुं०=झुनझुना (खिलौना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुनका  : पुं० [?] छल। धोखा।
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झुनकारा  : वि० [स्त्री० झुनकारी]=झीना।
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झुनझनियाँ  : स्त्री० [अनु०] १. पैरों में पहनने का गहना जिसके घुघरुओं से झुनझुन शब्द निकलता है। २. अपराधियों के पैरों में पहनाई जानेवाली बेड़ी ३. सनई का पौधा। ४. दे० ‘झुनझुनी’।
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झुनझुन  : स्त्री० [अनु०] घुँघरुओं आदि के बजने से होनेवाला शब्द।
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झुनझुना  : पुं० [हिं० झुनझुन] बच्चों के खेलने का एक प्रकार का खिलौना।
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झुनझुनाना  : अ० [अनु०] १. झुनझुन शब्द निकलना या होना। २. शरीर के किसी अंग में झुनझुनी होना। स० झुनझुन शब्द उत्पन्न करना या निकालना।
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झुनझुनी  : स्त्री० [हिं० झुनझुना] शरीर के किसी अंग विशेषतः हाथ या पैर की वह अस्थायी या क्षणिक अवस्था जिसमें रक्त का संचार रुकने के कारण उस अंग में कुछ देर तक हलकी चुनचुनाहट और कुछ सनसनी सी होती है। क्रि० वि०=चढना।
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झुनी  : स्त्री० [देश०] जलाने की पतली लकड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुन्  : स्त्री०=झुनझुनी।
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झुपझुपी  : स्त्री०=झुबझुबी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुपरी  : स्त्री०=झोपड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुप्पा  : पुं०=झब्बा।
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झुबझुबी  : स्त्री० [अनु०] कानों में पहनने का एक आभूषण। झुपझुपी।
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झुमका  : पुं० [प्रा० झुम्म+अक्क(प्रत्यय)] १. कानों में पहनने का एक प्रकार का आभूषण जो नीचे लटकता रहता है। २. एक प्रकार का पौधा जिसमें उक्त आभूषण के आकार के फूल लगते हैं। ३. इस पौधे का फूल। ४. उक्त गहने या फूल के आकार का गुच्छा।
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झुमना  : वि० [हिं० झूमना] जो प्रायः या बराबर घूमता रहता हो। जिसकी प्रवृत्ति झूमने या झूमते रहने की हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० वह बैल जो बँधा रहने पर प्रायः झूमता रहता हो। (ऐसा बैल ऐबी या बुरा समझा जाता है।) अ०=झूमना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुमरा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का बहुत बड़ा हथौड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुमरि  : स्त्री० [सं०] एक रागिनी।
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झुमरी  : स्त्री० [देश०] छत, दीवार या पलस्तर आदि पीटने की काठ की छोटी मुँगरी।
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झुमाऊ  : वि०=झुमना।
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झुमाना  : स० [हिं० झूमना का स० रूप] किसी को झूमने में प्रवृत्त करना। ऐसी क्रिया करना जिससे कोई झूमने लगे।
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झुमिरना  : अ०=झूमना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुरकुट  : वि० [अनु०] १. मुरझाया या सूखा हुआ। २. कृश और क्षीण शरीरवाला। दुबला-पतला।
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झुरकुटिया  : पुं० [देश०] एक प्रकार का बढ़िया पक्का लोहा जिसे खेड़ी भी कहते हैं। वि० =झुरकुट।
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झुरकुन  : पुं० [हिं० झड़+कन्] १. झड़ी हुई चीज। झड़ना। २. किसी चीज के बहुत छोटे-छोटे टुकड़े। चूर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुरझुरी  : स्त्री० [अनु०] शरीर में होनेवाली कुछ हलकी कँपकँपी, विशेषतः वह कँपकपी जो जूड़ी या शीत-ज्वर चढ़ने के समय होती है।
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झुरना  : अ० [सं० क्षर, प्रा० झूरइ, या सं० ज्वल्] १. किसी विकट चिंता या दुःख के कारण मन ही मन इतना अधिक संतप्त तथा विकल रहना कि शरीर धीरे-धीरे सूखता जाय। अन्दर ही अन्दर दुःखी रहकर अपना शरीर घुलाना। २. सूखना। ३. कुम्हलाना। मुरझाना।
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झुरमुट  : पुं० [सं० झुट=झाड़ी] १. पास-पास उगी तथा एक दूसरी से उलझी हुई घनी झाड़ियों का समूह। २. बहुत से लोगों का समूह। मुहावरा–झुरमुट मारना=बहुत से लोगों का घेरा बनाकर खड़े होना। जैसे–जगह-जगह सिपाही झुरमुट मार कर लड़ रहे हैं। ३. बच्चों का एक खेल जिसमें वे घेरा बनाकर नाचते हैं। ४. चादर से सिर, मुँह तथा सारा शरीर के लपेटे हुए होने की अवस्था। ५. उक्त प्रकार से कोई ओढ़ना, ओढ़ने या लपेटने का ढंग या प्रकार।
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झुरवन  : स्त्री० [हिं० झुरना] १. झुरने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. किसी चीज के झुरने अर्थात् सूखने के कारण उसमें होनेवाली कमी या छीज।
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झुरवाना  : स० [हिं० झुराना] १. ऐसा काम करना जिससे कोई मन ही मन चिंतित और दुःखी होकर सूखता चला जाय। किसी को झुरने में प्रवृत्त करना। २. कोई चीज धूप आदि में रखकर या और किसी प्रकार सुखाना।
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झुरसाना  : अ० स=झुलसना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुरसाना  : स०=झुलसाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुरहुरी  : स्त्री०=झुरझुरी (कँपकँपी)।
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झुराना  : स० [हिं० झुरना] १. किसी को झुरने में प्रवृत्त करना। २. सुखाना। अ० १=झुरना। २. =सूखना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुरावन  : स्त्री० [हिं० झुरना+वन (प्रत्यय)]=झुरवन।
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झुर्री  : स्त्री० [हिं० झुरना] १. वृद्धावस्था में शरीर के दुर्बल और शुष्क हो जाने पर त्वचा पर पड़नेवाली शिकन। २. किसी वस्तु के सूखने पर उसके चिकने या सपाट ऊपरी आवरण या तल पर पड़नेवाली शिकन। जैसे–सूखे हुए आम या परवल पर झुर्री।
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झुलका  : पुं=झुनझुना। (खिलौना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुलना  : पुं०=झुल्ला (स्त्रियों का पहनावा)। वि० पुं०=झूलना।
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झुलनी  : स्त्री० [हिं० झूलना] १. नाक में पहनने की नथ में लटकता रहने वाला मोतियों का छोटा गुच्छा। २. झूमर (गहना)।
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झुलनी बोर  : पुं० [देश०] धान की बाल। (कहार)।
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झुलमुला  : वि० [स्त्री० झुलमुली]=झिलमिला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुलमुलाना  : अ० [?] १. झिलमिलाना। २. सिर में चक्कर आने के कारण लड़खड़ाना।
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झुलमुली  : स्त्री० १.=झिलमिली। २.=झालर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुलवा  : पुं० दे० जेठवा। पुं०=झूला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुलवाना  : स० [झुलाना का प्रे० रूप] किसी को झुलाने का काम किसी दूसरे से कराना।
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झुलस  : स्त्री=झुलसन।
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झुलसन  : स्त्री० [हिं० झुलसना] १. झुलसने की क्रिया या भाव। २. झुलसे हुए होने की अवस्था या भाव। ३. ऐसी गरमी या ताप जिससे शरीर झुलस जाय।
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झुलसना  : अ० [सं०√ज्वल्] १. आग की लपट से सहसा स्पर्श होने पर किसी अंग की त्वचा का कुछ-कुछ जल जाने के कारण काला पड़ जाना। जैसे–रोटी पकाते समय हाथ झुलसना। २. अत्यधिक ताप या गरमी के कारण किसी वस्तु के ऊपरी या बाहरी तल का सूखकर काला पड़ जाना। जैसे–लू से पौधों के पत्ते या शरीर झुलसना। स० किसी वस्तु को इस प्रकार जलाना या तप्त करना कि उसके ऊपरी आवरण या त्वचा का रंग काला पड़ जाय। जैसे–जलती हुई लकड़ी से किसी का मुँह झुलसना।
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झुलसवाना  : स० [हिं० झुलसाना का प्रे० रूप] कोई चीज झुलसने का काम किसी दूसरे से कराना।
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झुलसाना  : स० १.=झुलसना। २.=झुलसवाना। अ०=झुलसना।
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झुलाना  : स० [हिं० झूलना का स०] १. टँगी या लटकी हुई चीज को बार-बार इधर-उधर हिलाना० जैसे–पालना झुलाना। २. ऐसी क्रिया करना जिससे कोई झूलने लगे। जैसे–बच्चे को झुलाना। ३. किसी काम या बात के लिए किसी को बराबर आसरा देते रहना या प्रतीक्षा में रखना (परन्तु वह काम या बात पूरी न करना)। जैसे–यह सुनार तो चीज बनाकर देने में महीनों झुलाता है।
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झुलावना  : स०=झुलाना।
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झुलावनि  : स्त्री० [हि० झुलाना] झुलाने की क्रिया, ढंग या भाव।
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झुलौआ  : वि०=झूलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० १.=झूला। २.=झुल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुल्ला  : पुं० [देश०] स्त्रियों के पहनने का एक प्रकार का पुरानी चाल का कुरता। पुं०=झूला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झुहिरना  : अ० [?] लादा जाना। लदना।
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झुहिराना  : स० [हिं० झुहिरना] लादना। अ०=झुहिरना।
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झूँक  : स्त्री० १.=झोंक। २.=झोंका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूकटी  : स्त्री० [देश०] झाड़ी।
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झूँकना  : स०=झोंकना। अ०=झींखना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूँका  : पुं०=झोंका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूँखना  : अ=झीखना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूझ  : पुं०=जूझ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूझना  : अ०=जूझना।
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झूँझल  : स्त्री०=झुँझलाहट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूट  : पुं०=झूठ।
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झूटना  : पुं० [?] कानों में पहनने का झुमका।
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झूँटा  : पुं० [हिं० झोंझा] झूले पर चढ़कर तथा उसे झुलाकर एक बार आगे जाने और फिर उसी स्थान पर लौट आने की क्रिया या भाव। पेंग। वि० झूठा।
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झूँठ  : पुं०=झूठ। वि०=झूठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूठ  : पुं० [सं० अयुक्त; प्रा० अजुत] ऐसा कथन या बात जो वस्तुतः यथार्थ या सत्य के रूप में कही गई हो। पद–झूठ का पुतला=बहुत बड़ा झूठा आदमी। झूठ की पोट-सरासर झूठी बात। मुहावरा–झूठ का पुल बाँधना=बराबर एक पर एक झूठ बोलते चलना। झूठ सच जोड़ना=किसी सच्ची बात में अपनी ओर से भी झूठी बातें मिलाकर कहना। वि०=झूठा। स्त्री०=जूठ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूठ-मूठ  : अव्य० [हिं० झूठ+अनु० मूठ] १. बिना किसी वास्तविक या सत्य आधार के। झूठ ही। जैसे–झूठमूठ किसी को दौड़ाना। २. यों ही या व्यर्थ किसी को बहकाने या बहलाने के लिए।
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झूठन  : स्त्री० [?] ऐसी भूमि जिसमें दो फसलें पैदा होती हों। दु-फसली जमीन। स्त्री=जूठन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूँठा  : वि०=१.=झूठा। २.=जूठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूठा  : वि० [हिं० झूठ] [स्त्री० झूठी] १. (कथन) जो सत्य न हो, बल्कि उसके विपरीत हो। वास्तव से अन्यथा या भिन्न। मिथ्या। जैसे–झूठा बयान, झूठी शिकायत। २. (व्यक्ति) जो उक्त प्रकार की बात कहता हो या जिसने उक्त प्रकार की बात कही हो। जैसे–झूठा गवाह। ३. (व्यक्ति) जो वास्तव में विश्वसनीय और सत्यनिष्ठ न हो, पर स्वार्थ साधन के लिए अपने आपको विश्वसनीय और सत्य निष्ठ बतलाता हो या सिद्ध करना चाहता हो जैसे–झूठा मित्र। ४. (स्थिति) जिसमें उक्त प्रकार की विश्वसनीयता और सत्यनिष्ठा का अभाव हो। जैसे–झूठी दोस्ती, झूठी मुहब्बत। ५. (पदार्थ) जो नकली या बनावटी होने पर भी देखने में असल की तरह जान पड़ता हो और असल की जगह काम देने के लिए बनाया गया हो। जो केवल दिखाने और धोखा देने भर की हो। जैसे–झूठा गहना, झूठा ताला, झूठा सिक्का। मुहावरा–(किसी चीज का) झूठा पड़ना=खराब हो जाने या बिगड़ जाने के कारण जो ऊपर से देखने में तो ज्यों का त्यों हो, पर ठीक या पूरा काम न दे सकता हो। जैसे–(क) उसका बायाँ हाथ झूठा पड़ गया है। (ख) इस कल के कई पुरजे झूठे पड़ गये हैं। ६. (तथ्य या पदार्थ) जो अपेक्षया या तुलनात्मक दृष्टि से बहुत घटकर तथ्यहीन या निरर्थक सा हो। जैसे–इसके सामने तुम्हारे (क) सब व्यवहार या (ख) सब कपड़े झूठे हैं। वि० दे० ‘जूठा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूँठी  : स्त्री० [?] वे डंठल जो नील के पौधों की डालियों को सड़ाने पर बच रहते हैं।
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झूठों  : अव्य० [हिं० झूठा] १. केवल किसी को बहकाने भर के लिए। झूठ-मूठ। यों ही। २. सिर्फ कहने भर के लिए। नाम मात्र को। जैसे–उन्होंने झूठों भी मुझसे साथ चलने को नहीं कहा।
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झूणि  : पुं० [सं०] १. एक तरह की सुपारी। २. एक प्रकार का अपशकुन।
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झूना  : वि०=झीना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूँपड़ा  : पुं=झोंपड़ा।
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झूँबना  : अ०=झूमना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूबना  : अ=झूमना।
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झूम  : स्त्री० [हिं० झूमना] १. झूमने की अवस्था, क्रिया या भाव। उदाहरण–होती थी प्रकट एक झूम पद पद से।–मैथिलीशरण। २. ऊँघने की अवस्था या भाव।
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झूमक  : पुं० [हिं० झूमना] १. देहाती स्त्रियों का एक प्रकार का नाच जिसमें वे दल बाँधकर और झूम-झूमकर नाचती हैं। झुमकरा। झूमर। २. इस नृत्य के साथ गाये जाने वाले गीत। ३. विवाह आदि मांगलिक अवसरों पर गाये जानेवाले एक प्रकार के गीत। ४. चावर, साड़ी आदि से टाँकी जानेवाली वह झालर जिसमें मोतियों आदि के छोटे-छोटे गुच्छे या झुमके लटकते रहते हैं। ५. झुमका।
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झूमक-साड़ी  : स्त्री० [हिं० झूमक+साड़ी] वह साड़ी जिसमें झूमक अर्थात् ऐसी झालर लगी हो जिसमें मोतियों के गुच्छे आदि टँके हुए हों।
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झूमका  : पुं० १=झूमक। २.=झुमका।
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झूमड़  : पुं०=झूमर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूमड़-झामड़  : पुं० [हिं० झूमड़] व्यर्थ का प्रपंच। आडंबर।
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झूमड़ा  : पुं०=झूमरा।
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झूमना  : अ० [सं० झंप=कूदना] १. किसी चीज के अगले भाग या ऊपरी सिरे का बार-बार या रह-रहकर आगे-पीछे और इधर-उधर झुकते और उठते या हिलते-डुलते रहना। कुछ झोंका खाते हुए कभी किसी ओर और कभी किसी ओर हलकी गति में होना। जैसे–हवा के झोंके से पेड़ों की डालियों का झूमना। २. नशे या नींद के कारण अथवा प्रसन्नता और मस्ती में आने पर किसी जीव या प्राणी के धड़ और सिर में उक्त प्रकार की हलकी गति होना। जैसे–(क) बहुत सुन्दर गीत, भजन या व्याख्यान सुनकर श्रोताओं का झूमना (ख) मस्ती में आकर साँप या हाथी का झूमना। ३. एक जगह इकट्ठे होकर कभी कुछ इधर और कभी कुछ उधर होते रहना। जैसे–आकाश में बादलों का झूमना।
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झूमर  : पुं० [हिं० झूमना] १. सिर पर पहनने का एक गहना जिसमें एक या कई लड़ों में आगे की ओर एक छोटी पटरी-सी बनी होती है जो सिर की गति-विधि के अनुसार इधर-उधर झूमती या लहराती रहती है। २. कान में पहनने का झुमका। ३. पूरब में, देहाती स्त्रियों का एक प्रकार का नाच जिसमें वे घेरा बांधकर झूमती हुई नाचती हैं। ४. उक्त नाच के साथ गाये जानेवाले गीत। ५. विवाह आदि मांगलिक अवसरों पर गाये जानेवाले एक प्रकार के गीत जो प्रायः उक्त प्रकार से नाचते हुए गाये जाते हैं। ६. होली के दिनों में गाये जानेवाले झूमक नामक गीत। ७. एक ही तरह की बहुत सी चीजों का ऐसा समूह कि उनके कारण एक गोल घेरा-सा बन जाय। जमघटा। जैसे–नावों का झूमर। पुं०=झूमड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० प्र०–डालना।–पड़ना। ८. एक प्रकार की मोंगरी जिससे गाड़ीवान आदि अपनी गाड़ियों की मरम्मत करते हैं। ९. काठ का एक प्रकार का खिलौना जिसमें एक गोले या डंडे के साथ छोटी-छोटी गोलियाँ बँधी रहती है। १॰. दे० ‘झूमरा’। (ताल)।
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झूमरा  : पुं० [हिं० झूमर] चौदह मात्राओं का एक ताल।
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झूमरि  : स्त्री=झूमर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूमरी  : स्त्री० [देश०] शालक राग के पाँच भेदों में से एक।
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झूर  : वि० [सं० जुष्ट] जूठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [हिं० झूरना] १. झुरने की क्रिया या भाव। २. उग्र मनस्ताप। जलन। दाह। वि०=झूरा। (सूखा)। वि०=झूठा। क्रि० वि०=झूठ-मूठ।
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झूरना  : अ०=झुरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स०=झुराना।
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झूरा  : वि० [हिं० झूर] १. सूखा। शुष्क। उदाहरण–काठहु चाहि अधिक सो झूरा।-जायसी। २. रस हीन। नीरस। ३. जिसके साथ और कुछ या कोई न हो। अकेला। ४. (वेतन) जिसके साथ भोजन आदि न मिलता हो। विशेष दे० ‘सूखा’। पुं० १. ऐसा स्थान जहाँ जल का अभाव हो। २. ऐसा समय जिसमें वृष्टि का अभाव हो। सूखा। ३. कमी। न्यूनता। विशेष दे० सूखा। क्रि० प्र०–पड़ना।
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झूरि  : स्त्री०=झूर।
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झूरै  : क्रि० वि० [हिं० झूर] १. बिना किसी अर्थ या प्रयोजन के। यों ही। व्यर्थ। २. बिना किसी और उपकरण या सामग्री के। खाली। क्रि० वि०=झूठमूठ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूल  : स्त्री० [हिं० झूलना] १. झूलने की क्रिया या भाव। २. वह चौकोर कपड़ा जो प्रायः सोभा के लिए घोड़ों, बैलों, हाथियों आद की पीठ पर डाला जाता है और जो दाहिने-बाएँ झूलता या लटकता रहता है। मुहावरा–गधे पर झूल पड़ना=बहुत ही अयोग्य या कुपात्र पर कोई बहुत अच्छा अलंकरण या आवरण पड़ना। ३. वह कपड़ा जो पहनने पर ढीला-ढाला, भद्दा या भोडा जान पड़े। (व्यग्यं) जैसे–किसी का ढीला-ढाला कोट देखकर कहना। यह झूल आपकों कहाँ से मिल गई। पुं० =झूला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूल-दंड  : पुं० [हिं० झूलना+सं० दंड] एक प्रकार का व्यायाम जिसमें बारी-बारी से बैठक और झूलते हुए दंड किया जाता है।
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झूलन  : स्त्री० [हिं० झूलना] झूलने की क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) झूल। पुं० १. सावन के महीने में ठाकुरों, देवताओं आदि के संबंध में होनेवाला वह उत्सव जिसमें उनकी मूर्तियाँ हिडोंले में बैठाकर झुलाई जाती हैं और उनके सामने नृत्य, गीत आदि होते हैं। हिंडोला। २. उक्त अवसर पर अथवा सावन-भादों में गाये जानेवाले एक प्रकार के गीत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूलना  : अ० [सं० झुल्, प्रा० झुलइ, झुल्ल, उ० झुलिबा, गुं० झूलवूँ, मरा० झुलणें, सि० झुलणु] १. किसी आधार या सहारे पर लटकी हुई चीज का रह-रहकर आगे-पीछे या इधर-उधर लहराना अथवा हिलना-डोलना। जैसे–टँगा हुआ परदा या उसमें बँधी हुई डोरी का झूलना, पेड़ों में लगे हुए फलों का झूलना। २. झूले पर बैठकर पेंग लेना या बार-बार आगे बढ़ना और पीछे हटना। ३. किसी उद्देश्य या कार्य की सिद्धि की आशा अथवा प्रतीक्षा में बार-बार किसी के यहाँ आना-जाना अथवा अनिश्चित दशा में पड़े रहना। जैसे–किसी कार्यालय में नौकरी पाने की आशा में झूलना। स० झूले पर बैठकर पेंग लेते हुए उसका आनन्द या सुख भोगना। जैसे–बरसात में लड़के-लड़कियाँ दिन भर झूला झूलती रहती हैं। वि० [स्त्री० झूलनी] (पदार्थ) जो रह-रहकर इधर उधर हिलता-डोलता हो। झूलता रहनेवाला या झूलता हुआ। जैसे–पहाड़ी झरने या नदी पर बना हुआ झुलना पुल। पुं० १. मात्रिक सम दंडक छंदों का एक भेद या वर्ग जिसे प्राकृत में झुल्लण कहते थे। इसके प्रत्येक चरण में ३७ मात्राएँ और पहली तथा दूसरी १॰ मात्राओं के बाद यति या विश्राम होता है। यतियों पर तुक मिलना और अन्त में यगण होना आवश्यक है। २. एक प्रकार का वर्णिक समवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में स, ज, ज, भ, र, स और लघु होता है। रूप-माला के प्रत्येक चरण के आरंभ में दो लघु रखने से भी यह छंद बन जाता है। इसमें १२ और ७. वर्णों पर यति होती है। इसे मणि-माल भी कहते हैं। ३. दे० झूला।
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झूलनी बैठक  : स्त्री० [हिं० झूलना+बैठक=कसरत] एक प्रकार की कसरत जिसमें बैठक करके पैर को हाथी के सूँड़ की तरह झुलाया जाता है।
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झूलनी-बगली  : स्त्री० [हिं० झूलना+बगली] बगली की तरह की मुगदर की एक प्रकार की कसरत।
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झूलरि  : स्त्री० [हिं० झूलना] झुलता हुआ छोटा गुच्छा या झुमका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूला  : पुं० [सं० दोल या हिं० झूलना] १. पेड़ की डाल, छत या और किसी ऊँचे स्थान में बाँधकर लटकाई हुई दोहरी या चौहरी जंजीरें या रस्सियाँ जिन पर तख्ता, पीढ़ा और कोई आसन लगाकर लोग खड़े होकर या बैठकर आनन्द और मनोविनोद के लिए झूलते हैं। क्रि० प्र०–झूलना।–डालना।–पड़ना। २. जंगली या पहाड़ी नदियाँ और नाले पार करने के लिए उनके दोनों किनारों पर किसी ऊँचे खंभों, चट्टानों या पेड़ों की डालों पर रस्से बाँधकर बनाया जानेवाला वह पुल जिसका बीचवाला भाग अधर में लटकता और इसीलिए प्रायः इधर उधर झूलता रहता है। झूलना पुल। जैसे–लछमन झूला। ३. यात्रा आदि में काम आनेवाला वह बिस्तर जिसके दोनों सिरे दो ओर रस्सियों से वृक्षों की डालों आदि में बाँध देते हैं और जो उक्त प्रकार से बीच में झूलता या लटकता रहता है। ४. हवा का ऐसा झटका या झोंका जिससे चीजें इधर-उधर झूलने या हिलने-डोलने लगें। (क्व०) ५. दे० झूल। पुं० [?] तरबूज। पुं०=झुल्ला (स्त्रियों का पहनावा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूलि  : स्त्री० १.=झूल। २.=झूली।
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झूली  : स्त्री० [हिं० झूलना] १. वह कपड़ा जिससे हवा करके अन्न ओसाया जाता है। २. ऐसा बिस्तर जिसके दोनों सिरे दोनों ओर किसी ऊँची चीज या जगह में बँधे हों और जिसका बीचवाला भाग झूलता रहता हो। (दे० झूला के अन्तर्गत)।
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झूँसना  : स०=झँसना (धोखा देकर लेना)। अ० स०=झुलसना।
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झूँसा  : पुं० [देश०] एक तरह की घास।
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झूसा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का बरसाती घास जिसे चौपाये बहुत चाव से खाते हैं। गुलगुला। पलंजी।
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झेंपना  : अ० [?] कोई लगती हुई बात सुनकर लज्जित भाव से सिर झुकाना या आँखे नीची करना। कुछ लज्जित होना। संयो० क्रि०–जाना।
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झेपना  : अ=झेंपना।
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झेंपू  : वि० [हिं० झेंपना] जो साधारण सी बात होने पर भी भाव से सिर या आँखें झुकाकर चुप रह जाता हो। प्रायः झेंप जानेवाला।
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झेपू  : वि=झेंपू।
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झेर  : स्त्री० [?] १. झगड़ा। बखेड़ा। २. उलझन। पेच। ३. देर। विलंब।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झेरना  : स० १.=छेड़ना (आरंभ करना)। २.=झेलना(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झेरा  : पुं० [?] १. गिरा या ढहा हुआ कूआँ। २. गड्ढा। पुं०=क्षेर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झेल  : स्त्री० [हिं० झेलना] १. झेलने की क्रिया या भाव। २. हलका और सुखद आघात, धक्का या हिलोरा। ३. तैरने के समय पानी हटाने के लिए हाथ-पैर चलाने की क्रिया या भाव। स्त्री०=झेर (देर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झेलना  : स० [सं०√जल्=घेरकर फँसाना] १. कठिन या विकट परिस्थिति आने या प्रसंग पड़ने पर उससे पार पाने के लिए धैर्य और साहस पूर्वक तत्संबंधी कष्ट सहना। विपत्तियों आदि से न घबराते हुए या उनकी परवाह न करते हुए उन्हें बरदाश्त या सहन करना। जैसे–(क) इतने बड़े परिवार का पालन करने में उन्हें बड़े-बड़े कष्ट झेलने पड़े। (ख) यहाँ तक आने में हम रास्ते में कमर और छाती तक पानी झेलना पड़ा। २. लाक्षणिक रूप में, शुभ और सुखद परिस्थितियों का आनन्द लेते हुए भोग करना। उदाहरण–बाल केलि को विशद परम सुख सुख समुद्र नृप झेलत।–सूर। ३. उचित ध्यान देते हुए ग्राह्य या मान्य करना। कोई बात सुनकर मान लेना। उदाहरण–पायन आनि परे तो परे रहे, केतों करी मनुहार न झेली।–मतिराम। ४. (कोई चीज या बात) हजम करना। पचाना।
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झेलनी  : स्त्री० [हिं० झेलना] वह जंजीर जो गहनों आदि में उनका भार सँभालने अथवा उन्हें यथास्थान ठहराये रखने के लिए उनमें लगी रहती है और जिसका दूसरा सिरा ऊपर कहीं अटकाया या खोंसा जाता है। जैसे–नथ या बाली की झेलनी।
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झेली  : स्त्री० [हिं० झेलना] प्रसव के समय प्रसूत स्त्री को विशेष प्रकार से हिलाने-डुलाने की क्रिया। क्रि० प्र०–देना।
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झोंक  : स्त्री० [सं० जूटक (जटा)] १. झोंकने की क्रिया या भाव। २. सहसा किसी बात की ओर वेगपूर्वक झुक पड़ने अथवा मन के प्रवृत्त होने की अवस्था या भाव। जैसे–झोंक में आकर कोई काम कर बैठना। ३. नशे, मनोविकार, रोग आदि की अवस्था में सहसा मन में होनेवाली वह प्रवृत्ति जिसमें भले-बुरे का ज्ञान अथवा ध्यान न रह जाता हो। जैसे–पागलपन (या बीमारी) की झोंक में वह दिन भर बकता-झकता रहा। ४. किसी कार्य में होनेवाली ऐसी तल्लीनता जिसमें कुछ प्रमाद या भूल हो जाने की संभावना बनी रहती हो अथवा औचित्य की सीमा का उल्लंघन हो सकता हो। जैसे–(क) लिखने की झोंक में कलम से कुछ बातें ऐसी निकल गयी जो नहीं आनी चाहिए थी।(ख) पहली ही झोंक में उसने आधा काम निपटा डाला। ५. गति की ऐसी तीव्रता या वेग जो सहसा रुक न सकता हो अथवा जिसे सँभालना प्रायः कठिन होता हो। जैसे–(क) मोटर इतनी झोंक में आ रही थी कि चालक उसे ढाल पर रोक न सका। (ख) नींद की झोंक में वह पलक से गिरता-गिरता बच गया। ६. किसी चीज के यों ही अथवा वेगपूर्वक किसी ओर झुकने की क्रिया, प्रवृत्ति या भाव। जैसे–(क) नदी के बहाव की किनारे पर पड़नेवाली झोंक। (ख) तराजू की डंडी या पलड़े में होनेवाली झोंक (पासंग की सूचक)। मुहावरा–झोंक मारना=कौशल या वेगपूर्वक तराजू का आगेवाला पलड़ा इस प्रकार आगे झुकाना कि देखनेवाला समझ ले कि चीज तौल में पूरी हो गई। डाँडी मारना। ७. उक्त प्रकार के झुकाव, नति या प्रवृत्ति के कारण किसी ओर अथवा किसी चीज पर पड़नेवाला बोझ या भार। जैसे–दीवार (या बरामदे) की सारी झोंक इसी खंभे पर पडती हैं। पद–नोक-झोंक (देखें)। ८. बैलगाड़ी में वे दोनों लट्ठे जो दोनों ओर उसका झुकाव या भार रोकने के लिए लगे रहते हैं। ९. दे० ‘झाँका’। १॰. दे० ‘झोंकी’।
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झोंकदार  : वि० [हिं० झोंक+दार(प्रत्यय)] (वास्तु कला में, ऐसी रचना) जो सम रेखा के नीचे की ओर झुकी हो। जैसे–झोंकदार छज्जा।
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झोंकना  : स० [हिं० झोंक] १. झोंक या वेग से एक चीज किसी दूसरी चीज में गिराना, डालना या फेंकना। जैसे–(क) इंजन में कोयला, भट्ठी में लकड़ी या भाड़ में झाड़-झंखाड़। (ख) लडके को कूएँ में झोंकना। मुहावरा–भाड़ झोंकना=दे० ‘भाड़’ के मुहावरे। २. ढकेलते या धक्का देते हुए अथवा बलपूर्वक किसी अनिष्ट, अप्रिय अथवा कष्टप्रद स्थिति की ओर अग्रसर होना। जान-बूझकर विपत्ति या संकट में डालना या फँसाना। जैसे–तुम तो मजे से घर बैठे रहे, और मुझे तुमने इस झंझट (मुकदमेबाजी, लड़ाई-झगड़ा आदि) में झोंक दिया। ३. किसी प्रकार का कार्य या भार जबरदस्ती किसी पर रखना या लादना। जैसे–यह काम भी तुमने मुझ पर झोंक दिया। ४. धन आदि के संबंध में बिना परिणाम आदि का विशेष विचार किये आवश्यकता से कहीं अधिक व्यय करना। जैसे–अमेरिका आज-कल अरबों रुपए संसार के पिछड़े हुए देशों में झोंक रहा है।
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झोकना  : स०=झोंकना।
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झोंकवा  : पुं० [हिं० झोंकना] १. वह जो कही कोई चीज झोंकते रहने की सेवा पर नियुक्त हो। २. भट्ठे, भाड़ आदि में ईधन झोंकनेवाला व्यक्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झोंकवाई  : स्त्री० [हिं० झोंकना] १. झोंकवाने की क्रिया भाव या मजदूरी। २.=झोंकाई।
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झोंकवाना  : स० [हिं० झोंकना का प्रे०] झोंकने का काम किसी दूसरे से कराना। किसी को कुछ झोंकने में प्रवृत्त करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झोकवाना  : स० [भाव० झोंकवाई] झोंकवाना।
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झोंका  : पुं० [हिं० झोंक] १. शांत या स्तब्ध वातावरण में थोड़े समय के लिए सहसा वेगपूर्वक चलनेवाली वायुलहरी। २. थोड़े समय के लिए परन्तु सहसा तथा वेगपूर्वक चलनेवाली वर्षा। ३. पानी की लहर। हिलोरा। ४. थोड़े समय के लिए परन्तु सहसा आनेवाली नींद। ५. वेगपूर्वक चलनेवाली वस्तु का लगनेवाला आघात या झटका। ६. वेगपूर्वक इधर-उधर झुकने या हिलने की क्रिया या भाव। ७. उक्त प्रकार के हिलने-डोलने के कारण लगनेवाला आघात, झटका या धक्का। ८. किसी प्रकार के उत्कर्ष आदि में दिखाई देनेवाली अनोखी असाधारणता या विशेषता। उदाहरण–कटि लहँगा लीलो बन्यो झोंको जो देखि मन मोहै।–सूर। ९. कुश्ती का एक पेंच जिसमें विपक्षी की बाँह के नीचे से हाथ ले जाकर उसके कन्धे पर रखते और तब उसे झटके या झोंके से नीचे गिरा देते हैं।
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झोंका  : पुं०=झोंका।
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झोंकाई  : स्त्री० [हिं० झोंकना] १. झोंकने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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झोंकिया  : पुं०=झोंकवा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झोंकी  : स्त्री० [हिं० झोंका] १. ऐसी स्थिति जिसमें अनिष्ट, संकट, हानि आदि की विशेष आशंका या संभावना हो। जोखिम। २. ऐसा साहसपूर्ण कार-बार या लेन-देन जिसमें लाभ और हानि दोनों की बराबर बराबर संभावना हो। (व्यापारी)। क्रि० प्र०–उठाना।–लेना।–सहना। ३. उत्तरदायित्व। जवाबदेही।
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झोंझ  : पुं० [देश०] १. पक्षियों का घोंसला। २. कुछ विशिष्ट प्रकार के पक्षियों के गले में लटकनेवाली मांस की थैली या झालर। जैसे–गिद्ध का झोंझ। ३. उदर। पेट। ४. कोलाहल। हल्ला। ५. खुजली। चुल। मुहावरा–झोंझ मारना=किसी अनिष्ट या अनुचित बात की कामना या वासना होना।
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झोझ  : पुं=झोंझ।
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झोझर  : पुं० [अनु०]=ओझर।
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झोझरू  : पुं० [देश०] एक प्रकार की घास।
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झोंझल  : स्त्री०=झुँझल (झुँझलाहट)
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झोझा  : वि० [हिं० झोंझ-पेट] जिसका पेट फूला तथा बढ़ा हुआ हो। तोंदवाला।
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झोंट  : पुं० [सं० झुंट] १. झाड़ी। २. झाडियों या पौधों का झुरमुट। ३. घास-फूस आदि का पूला। जूरी। ४. झुंड। समूह। पुं०=झोंटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झोंटा  : पुं० [सं० जूट] [स्त्री० अल्पा० झोंटी] १. सिर पर के बढ़े हुए लंबे-लंबे बालों का समूह। उदाहरण–लगे घसीटन धरि धरि झोंटी।–तुलसी। पद–झोंटा-झोंटी=ऐसी लड़ाई-झगड़े जिसमें दोनों पक्ष एक दूसरे का झोंटा ही पकड़कर खींचते हों। झोंटी-झोटा=झोंटा-झोंटी। २. पतली और लंबी वस्तुओं का इतना बड़ा समूह जो एक बार हाथ में आ सके। पुं०=झूँटा (पेंग)। पुं० [हिं० ढोटा] १. भैसा। २. भैंस का बच्चा। पड़वा।
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झोंटिग  : वि० [हिं० झोंटा] जिसके सिर पर झोंटा अर्थात् लंबे-लंबे बाल हों। झोंटेवाला।
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झोंड  : पुं० [सं०] सुपारी का वृक्ष।
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झोंड़ी  : स्त्री०=झोली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झोंपड़ा  : पुं० [सं० झोप्प या झोम्य] [स्त्री० अल्पा० झोंपड़ी] गाँव, जंगल आदि में बना हुआ वह छोटा घर जिसकी दीवारें मिट्टी की और छाजन घास-फूस आदि की होती है। कुटी। पर्णशाला।
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झोंपड़ा  : पुं० [स्त्री० अल्पा० झोपड़ी]=झोंपड़ा।
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झोंपड़ी  : स्त्री० [हिं० झोंपड़ा का स्त्री अल्पा० रूप] छोटा झोंपड़ा।
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झोंपा  : पुं० [हिं० झब्बा] १. झब्बा। फुँदना। २. गुच्छा।
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झोर  : पुं०=झोल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झोरई  : वि० [हिं० झोंल] (तरकारी) जिसमें झोल, रसा या शोरबा हो। रसेदार। स्त्री० रसेदार तरकारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झोरना  : स० [सं० दोलन या हिं० झकझोरना] १. सहसा जोर से हिलाकर गति में लाना। २. इस प्रकार किसी चीज को हिलाना या झटकारना कि उस पर पड़ी या लगी हुई दूसरी चीजें गिर जायँ। ३. झकझोरना। ४. बलपूर्वक या धोखे से धन ऐँठना। ५. अच्छी तरह तृप्त होकर खाना। ६. इकट्ठा या एकत्र करना।
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झोरा  : पुं० [स्त्री० अल्पा० झोरी]=झोला। पुं० [?] गुच्छा। झब्बा।
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झोरि  : स्त्री०=झोली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झोरी  : स्त्री० [?] एक प्रकार की रोटी। स्त्री०=झोली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झोल  : पुं० [हिं० झूलना या झूला] १. ताने जानेवाले कपड़ों का वह अंश या भाग जो उचित कसाव या तनाव के अभाव में किसी ओर कुछ झुका, दबा या फूला रहता है। जैसे–छत में टँगी हुई चादर या शामियाने में का झोल। २. पहनने के कपड़ों में उक्त प्रकार का ढीला ढाला अंश जो प्रायः कटाई-सिलाई आदि के दोषों के कारण होता है। जैसे–कमीज, कुरते या कोट का झोल। ३. ओढ़े या बाँधे जानेवाले कपड़ों का आंचल, पल्ला या सिरा जो किसी ओर झूलता या लटकता रहता है। जैसे–पगड़ी या साड़ी का झोल। ४. झिल्ली की वह थैली जिसमें गर्भ से निकलने के समय अंडे या बच्चे बंद या लिपटे रहते हैं। मुहावरा–झोल बैठाना=सेने के लिए मुरगी के नीचे अंडे रखना। ५. खिड़कियों, दरवाजों आदि में टाँगने का परदा। ६. किसी प्रकार की खड़ी की हुई आड़ या ओट। ७. तरकारियों आदि में का रसा या शोरबा जिसमें उनके टुकड़े झूलते या इधर-उधर हिलते हुए दिखाई देते हैं। ८. उक्त प्रकार की अथवा कढ़ी की तरह की खाने या पीने की कोई चीज। जैसे–आम या इमली का झोल। ९. भारत में से निकाली हुई पीच। माँड़। १॰. धातु की चीजों पर किया जानेवाला गिलट या मुलम्मा। क्रि० प्र०–चढ़ाना–फेरना। ११. हाथी की वह दोषपूर्ण चाल जिसमें वह कुछ इधर-उधर झूलता हुआ सा चलता है। १२. किसी प्रकार की कमी, त्रुटि या दोष। उदाहरण–कैधों तुम पावन प्रभु नाहीं, कै कछु मो मैं झोलो।–सूर। १३. झंझट, धोखे या बखेड़े की बात। जैसे–यब सब झोल है, पहले हमारा रुपया चुकाकर तब और कोई बात करो। १४. चूक। भूल। पद–झोल-झाल (देखें)। वि० १. जिसमें उचित कसाव या तनाव हो। २. निकम्मा और व्यर्थ का अथवा निस्सार। ३. दूषित। बुरा। पुं० [हिं० झाल] १. जलन। दाह। २. भस्म। राख। उदाहरण–तेहि पर बिरह जराइ कै चहै उड़ावा झोल।–जायसी।
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झोल-झाल  : पुं० [हिं० झोंल+अनु० झाल] १. कपड़ों में का झोल। २. निकम्मी या व्यर्थ की चीज या बात। वि० १. ढीला-ढाला। २. निकम्मा या व्यर्थ। ३. दूषित। बुरा।
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झोलदार  : वि० [हिं० झोंल+फा० दार] १. (तरकारी) जिसमें झोल अर्थात् रसा हो। रसेदार। २. (धातु) जिस पर मुलम्मा हुआ हो। ३. (वस्त्र) जिसमें झोल पड़ता हो।
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झोलना  : स० [सं० ज्वलन] १. तपाना या जलाना। २. संतप्त या दुःखी करना। स० १. दे० ‘झुलाना’। २. दे० ‘झकझोरना’। अ० दे० ‘झूलना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झोला  : पुं० [हिं० झूलना या झोली] [स्त्री० अल्पा० झोली] १. कपड़े आदि की सिली हुई एक प्रकार की प्रसिद्ध लंबोत्तरी थैली जिसके मुँह पर डोरी या तनी उसे पकड़ने या लटकाने के लिए लगी रहती है थैला। २. कपड़े का सिला हुआ आवरण। खोली। जैसे–बंदूक का झोला। ३. साधुओं के पहनने का ढीला-ढाला कुरता। ४. वात रोग के कारण होनेवाला एक प्रकार पक्षाघात जिसमें हाथ या पैर निष्प्राण होकर झूलने लगते हैं। क्रि० प्र०–मारना। ५. पाले, लू आदि के कारण पेड़ों के कुम्हला या सूख जाने का एक रोग। ६. आघात। धक्का। ७. झोंका। झकोरा। उदाहरण–कोई खाहिं पवन कर झोला।–जायसी। ८. पाल की रस्सी को ढीला करने की क्रिया ९. इशारा। संकेत।
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झोलिहारा  : पुं० [हिं० झोली+हारा (प्रत्यय)] १. वह जो गले या हाथ में अथवा कंधे पर झोली लटकाकर चलता हो। २. कहार।
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झोली  : स्त्री० [प्रा० झोल्लिअ] १. छोटा झोला। थैली। २. ओढ़े या पहने हुए कपड़े का पेट पर पड़नेवाला वह अंश जिसे दोनों हाथों से फैलाकर उसमें कोई चीज ग्रहण की जाती है। जैसे–फकीर अपनी झोली में रोटियाँ रखता जाता था। क्रि० प्र०–फैलाना। मुहावरा–झोली डालना=भिक्षा ग्रहण करने के लिए झोली फैलाना। (किसी की) झोली भरना-देवी, देवता आदि का प्रसाद किसी की झोली में डालना। (मंगल सूचक) ३. वह कपड़ा जिसकी सहायता से अनाज ओसाया या बरसाया जाता है। ४. घास-फूस आदि बाँधने का बड़ा जाल। ५. चीजें फँसाने के लिए बनाया जानेवाला रस्सियों का एक प्रकार का फंदा। ६. चरसा। मोट। ७. एक प्रकार का सफरी बिस्तर। विशेष दे० ‘झूला’ के अन्तर्गत। स्त्री० [सं० ज्वाला या झाला] राख। भस्म। मुहावरा–झोली बुझाना=(क) कार्य का संपादन या बात की सिद्धि हो जाने के उपरांत किसी का उसे करने का ढोंग रचना। (ख) निराश होकर या व्यर्थ बैठना।
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झौआ  : पुं० [हिं० झाबा] [स्त्री० अल्पा० झौनी] मिट्टी आदि ढोने का खाँचा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झौंझट  : स्त्री०=झंझट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झौंड़  : स्त्री० [हिं० झाँव झाँव से अनु०] १. कहा-सुनी। २. हुज्जत। ३. डाँट-फटकार। ४. झंझट। बखेड़ा।
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झौंद  : पुं०=झौंझ (पेट)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झौनी  : स्त्री० [देश०] टोकरी। दौरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० हिं० झौआ का स्त्री अल्पा० रूप। छोटा खाँचा।
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झौंर  : पुं०=झौर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झौर  : पुं० [?] १. फूलों आदि का गुच्छा। उदाहरण–माधुरी झौरनि फूलनि भौरनि बौरनि बेली बची है।–देव। २. सूत आदि का झब्बा। ३. झुंड। समूह। उदाहरण–कहै गुवालिनि की झौरि जौरि दौरि दौरि नन्द पौरि आवन तबै लगीं।–रत्नाकर। ४. झुमका नाम का गहना। स्त्री०–झौड़ (कहा-सुनी, तकरार आदि)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झौंरना  : स०=झौरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ० [?] गूँजना। गुजारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झौरना  : स० [प्रा० झोडण] १. दबाने के लिए झपट कर पकड़ना। २. छोप लेना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स० [हिं० झौर+ना (प्रत्यय)] झुंड बनाना।
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झौंरा  : पुं०=झौर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झौरा  : पुं०=१.=झौर। २.=झौड़।
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झौंराना  : अ० स०=झँवाना। अ०=झूमना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स०=झूमने में प्रवृत्त करना।
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झौरे  : क्रि० वि० [हिं० धौरे] १. समीप। पास। निकट। २. संग। साथ।
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झौवा  : पुं०=झौआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झौंसना  : स०=झुलसना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झौहाना  : अ० [अनु०] क्रुद्ध होकर झल्लाते हुए बोलना।
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