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झख  : स्त्री० [हिं० झीखना] १. झीखने की क्रिया या भाव। मुहावरा–झख मारना=(क) ऐसा तुच्छ और व्यर्थ का काम करना जिसमें विफलता निश्चित हो, अथवा जिसका कुछ भी परिणाम या फल न हो सकता हो। (उपेक्षा या तिरस्कार सूचक) जैसे–आप भी वहाँ झख मारने गये थे। (ख) बहुत ही विवशता की दशा में झीखना। जैसे–तुम्हें भी वहाँ झख मारकर जाना पड़ेगा। विशेष–कुछ लोग ‘झख’ को सं० झष से व्युत्पन्न मानकर उक्त मुहावरे का अर्थ करते हैं मछली मारने की तरह का व्यर्थ सा काम बहुत सा समय लगाकर और चुपचाप बैठकर प्रतीक्षा करते हुए पूरा करना। पर वह व्युत्पत्ति ठीक नहीं जान पड़ती। स्त्री० [सं० झष] मछली। उदाहरण–झखौ विलखि दुरि जात जल लखि जलजात लजात।–बिहारी।
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झखकेतु  : पुं०=झषकेतु।
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झखना  : अ०=झीखना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झखनिकेत  : पुं=झषनिकेत।
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झखराज  : पुं०=झषराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झखलगन  : पुं०=झखलग्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झखाट  : वि०=झंखाड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झखिया  : स्त्री=झखी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झखी  : स्त्री० [सं० झष०] मछली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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