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झाड़  : पुं० [सं० झाट] [स्त्री० अल्पा० झाड़ी] ऐसे छोटे पेड़ों या पौधों का वर्ग जिनकी पतली-पतली शाखाएँ आपस में उलझी हुई और जमीन से थोड़ी ही ऊँचाई पर छितरी या फैली हुई रहती है। पद–झाड़ का काँटा=ऐसा झगड़ालू या हुज्जती आदमी जिससे पीछा छुड़ाना कठिन हो। झाड़-झंखाड़–(देखें स्वतंत्र शब्द)। २. उक्त झाड़ की तरह का एक प्रकार का अनेक शाखाओंवाला दीये, मोमबत्तियां आदि जलाने का शीशे का बहुत बड़ा आधान जो कमरे की छत में शोभा के लिए लटकाया जाता है। ३. उक्त आकार या रूप की एक प्रकार की आतिशबाजी। ४. उक्त आकार या रूप का एक प्रकार का छापा। ५. एक प्रकार की समुद्री घास। जरस। जार। ६. एक ही तरह की बहुत सी छोटी बड़ी चीजों का बड़ा गुच्छा या लच्छा। स्त्री० [हिं० झाड़ना] १. झाड़ने की क्रिया या भाव। २. झाड़ने पर निकलनेवाली धूल आदि। झाड़न। ३. मंत्र आदि पढ़कर किसी की प्रेत-बाधा, रोग आदि दूर करने का काम। पद–झाड़-फूँक (देखें)। ४. क्रोधपूर्वक डांटकर कही जानेवाली बात। क्रि० प्र०–देना।–पड़ना।–बताना।–सुनाना। ५. कुश्ती में विपक्षी के किसी के अंग को दिया जानेवाला झटका।
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झाड़ बुहार  : स्त्री० [हिं० झाड़ना+बुहारना] कूड़ा-करकट, धूल आदि झाड़ने की क्रिया या भाव।
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झाड़-झंखाड़  : पुं० [हिं० झाड़+झंखाड़] १. काँटेदार झाड़ियों का समूह। २. व्यर्थ के पेड़-पौधों का समूह। निकम्मी, रद्दी और व्यर्थ की चीजों, विशेषतः काठ-कबाड़ का लगा हुआ ढेर।
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झाड़-फ़ानूस  : पुं० [हिं० झाड़+फा० फ़ानूस] शीशे के झाड़, हाँड़ियाँ आदि जो छत पर टाँगी जाती हैं तथा जिनमें दीये, मोमबत्तियाँ आदि जलाई जाती है।
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झाड़-फूँक  : स्त्री० [हिं० झाड़ना+फूँकना] मंत्र-बल के द्वारा किसी का रोग या प्रेत-बाधा दूर करने की क्रिया या भाव।
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झाड़खंड़  : पुं०=झारखंड।
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झाड़दार  : वि० [हिं० झाड़+फा० दार] १. (पौधा या वृक्ष) जिसमें बहुत सी घनी डालियाँ लगती हों। घना। सघन। २. काँटेदार। कटीला। ३. जिस पर झाड़ों अर्थात् पेड़-पौधों की आकृतियाँ बनी हों। पुं० १. एक प्रकार का कसीदा जिसमें पौधों और बेल-बूटों की आकृतियां कढ़ी होती है। २. उक्त प्रकार के बेल-बूटोंवाला कालीन या गलीचा।
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झाड़न  : स्त्री० [हिं० झाड़ना] १. झाड़ने पर निकलनेवाली धूल अथवा रद्दी चीजें या उनके टुकड़े। २. वह कपड़ा जिससे अलमारियों, कुरसियों, चौकियों दरवाजों आदि पर पड़ी हुई धूल आदि झाड़ी और पोंछी जाती है।
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झाड़ना  : स० [सं० झर्च=आघात करना] १. कोई चीज उठाकर उसे इस प्रकार झटका देना कि उस पर पड़ी या लगी हुई फालतू और रद्दी चीजें दूर जा गिरें। जैसे–चाँदनी या दरी झाड़ना। २. झाड़ू, झाड़न आदि की सहायता से किसी चीज के ऊपर पड़ी हुई धूल आदि साफ करना। जैसे–कमरे का फर्श झाड़ना। ३. ऐसा आघात करना कि कहीं लगी या सटी हुई चीज या चीजें कटकर या टूटकर अलग हो जाएँ या नीचे गिर पड़े। जैसे–पेड़ में से आम या इमली झाड़ना। ४. डरा धमका कर या और किसी युक्ति से कुछ धन वसूल करना या रकम ऐंठना। झटकना। जैसे–जरा सी बात में पुलिस ने दो सौ रुपयें झाड़ लिये। ५. कुछ विशिष्ट प्रकार के शस्त्र इस प्रकार चारों ओर घुमाते हुए चलाना कि कोई पास आने का साहस न करे। जैसे–तलवार, पटा या लाठी झाड़ना। ६. जोर का आघात या प्रहार करना। जैसे–थप्पड़ या मुक्का झाड़ना। (क्व०) ७. पक्षियों का कुछ विशिष्ट ऋतुओं में, प्रकृत रूप से अपने पुराने पंख या पर गिराना जिसमें उनके स्थान पर फिर से नये पंख या पर निकलें। जैसे–यह पक्षी ग्रीष्मकाल में अपने पुराने पंख झाड़ता है। ८. कंघी फेर कर सिर के बाल साफ करना। ९. संभोग या समागम करके वीर्यपात करना। (बाजारू)। १॰. तंत्र-मंत्र आदि का ऐसा प्रयोग करना किसी का कोई रोग अथवा उस (व्यक्ति) पर चढ़ा हुआ प्रेत या भूत उतर जाय। जैसे–ओझा लोग देहातियों को भूत-प्रेत झाड़ने के नाम पर खूब ठगते हैं। ११. किसी की अकड़, ऐंठ या शेखी दूर करनेवाली कड़ी-कड़ी बातें सुनाना। फटकारना। जैसे–आज मैनें उन्हें ऐसा झाड़ा कि वे ठंढ़े हो गये। उदाहरण–ऐसे वचन कहूँगी इनतें, चतुराई इनकी मैं झारति।–सूर। १२. अपनी योग्यता दिखाकर धाक जमाने के लिए किसी भाषा या विषय में बहुत सी उलटी-सीधी बातें कर जाना। जैसे–देहातियों के सामने अँगरेजी या कानून झाड़ना, मूर्खों के सामने वेदांत झाड़ना।
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झाड़वाला  : पुं० [हिं० झाड़+वाला (प्रत्यय)] झाड़ू देने या लगानेवाला व्यक्ति। झाड़बरदार।
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झाड़ा  : पुं० [हिं० झाड़ना] १. भूत-प्रेत की बाधा, रोग आदि दूर करने के लिए की जानेवाली झाड़-फूँक या मंत्रोपचार। २. किसी के पहने हुए कपड़े आदि झाड़कर ली जानेवाली तलाशी। ३. पाखाना फिरने या मल त्याग करने की क्रिया। क्रि० प्र०–फिरना। (हगना)। ४. मल-त्याग करने की कोठरी। पाखाना। शौचालय। ५. गुह। मल। ६. दे० झाला (सितार का)।
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झाड़ी  : स्त्री० [हिं० झाड़] १. हिं० झाड़ का स्त्री० अल्पा० रूप। छोटा झाड़। २. बहुत से छोटे-छोटे झाड़ों या पेड़-पौधों का झुरमुट। स्त्री० [हिं० झाड़ना] सूअर के बालों की बनी हुई कूची। बलौंछी।
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झाड़ीदार  : वि० [हिं० झाड़ी+फा० दार] १. आकार, रूप आदि के विचार से झाड़ी की तरह का। छोटे झाड़ का सा। २. काँटेदार। कँटीला। ३. (स्थान) जहाँ पर बहुत सी झाडियाँ हों। ४. दे० झाड़दार।
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झाड़ू  : पुं० [हिं० झाड़ना] १. लंबी सीकों आदि का वह मुट्ठा जिससे फर्श पर पड़ा हुआ कूड़ा-करकट, धूल आदि साफ करते हैं। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। मुहावरा–झाड़ू देना=(क) झाड़ू की सहायता से जमीन या फर्श पर का कूड़ा करकट साफ करना। (ख) इस प्रकार सब कुछ नष्ट करना कि कुछ भी बाकी न रह जाय। झाडू फिरना=ऐसा अपव्यय या नाश होना कि कुछ भी बाकी न बच रहे। झाड़ू फेरना=पूरी तरह नाश करके कुछ भी बाकी न रहने देना। पूरा सफाया करना। (किसी को) झाड़ू मारना=बहुत ही उपेक्षा तथा तिरस्कारपूर्वक दूर हटाना। (स्त्रियाँ) जैसे–झाड़ू मारो ऐसे धोबी (या नौकर) को। ० दुमदार सितारा। पुच्छलतारा। धूम-केतु।
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झाड़ूदुमा  : पुं० [हिं० झाड़+फा० दुम] हाथी, जिसकी दुम के बाल झाडू के अगले भाग की तरह छितरे या फैले हुए हों। ऐसा हाथी ऐबी माना जाता है।
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झाड़ूबरदार  : पुं० [हिं० झाड़+फा० बरदार] [भाव० झाड़बरदारी] १. वह सेवक जो घर में झाड़ू लगाता हो। २. गलियों में और सड़कों पर झाड़ू देनेवाला मेहतर।
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