शब्द का अर्थ
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					तरंग					 :
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					स्त्री० [सं०√तृ (तैरना)+अंगच्] १. पानी की लहर। हिलोर। क्रि० प्र०–उठना। २. किसी चीज या बात का ऐसा सामंजस्यपूर्ण उतार-चढ़ाव जो लहरों के समान जान पड़े। जैसे–संगीत में तान की तरंग। ३. उक्त के आधार पर कुछ विशिष्ट प्रकार के बाजों के नाम के साथ लगकर, उत्पन्न की जानेवाली स्वर-लहरी। जैसे–जल-तरंग, तबला-तरंग। ४. सहसा मन में उठनेवाली कोई उमंग या भावना। जैसे–जब मन में तरंग आई, तब उठकर चल पड़े। ५. हाथ में पहनने की एक प्रकार की चूड़ी जिसके ऊपर की बनावट लहरियेदार होती है। ६. घोड़े की उछाल या फलाँग। ७. कपड़ा। वस्त्र।				 | 
			
			
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					तरंगक					 :
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					पुं० [सं० तरङ+कन्] [स्त्री० तरंगिका] १. पानी की लहर। हिलोर। २. स्वरलहरी।				 | 
			
			
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					तरंगभीरु					 :
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					पुं० [ष० त०] चौदहवें मनु के एक पुत्र।				 | 
			
			
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					तरंगवती					 :
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					स्त्री० [सं० तरंग+मतुप्+ङीष्] नदी।				 | 
			
			
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					तरंगायति					 :
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					वि० [सं० तरंगित] १. जिसमें तरंग या तरंगें उठ रही हों। २. तरंगों की तरह का। लहरियेदार। लहरदार।				 | 
			
			
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					तरंगालि					 :
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					स्त्री० [सं० तरंग+इनि+ङीप्] जिसमें तरंगे या लहरें उठती हों। स्त्री० नदी। सरिता।				 | 
			
			
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					तरंगित					 :
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					वि० [सं० तरंग+इतच्] [स्त्री० तरंगिता] १. (जलाशय) जिसमें तरंगें या लहरें उठ रही हों। २. (हृदय) जो तरंग या उमंग से प्रफुल्लित या मग्न हो रहा हो। ३. जो बार-बार कुछ नीचे गिरकर फिर ऊपर उठता हो।				 | 
			
			
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					तरंगी(गिन्)					 :
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					वि० [सं० तरंग+इनि] [स्त्री० तरंगिणी] १. जिसमें तरंगें या लहरें उठती हों। २. जो मन की तरंग या मौज आकस्मिक भावावेश या स्फूर्ति) के अनुसार सब काम करता हो। ३. भावुक। रसिक। पुं० बहुत बड़ी नदी। नद।				 | 
			
			
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